NCERT Solutions For Class 11 Hindi Vitan Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें

Class 11 Hindi Vitan Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें

NCERT Solutions For Class 11 Hindi Vitan Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें (हिंदी)परीक्षा में राज्य बोर्ड और सीबीएसई स्कूलों में से कुछ में एनसीईआरटी की किताबों के माध्यम से छात्रों को पढ़ाया जाता है । के रूप में अध्याय एक अंत शामिल है, वहां एक अभ्यास के लिए छात्रों को मूल्यांकन के लिए तैयार सहायता प्रदान की है ।छात्रों को उन अभ्यासों को बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट करने की जरूरत है क्योंकि बहुत पिछले उन लोगों से पूछा भीतर सवाल ।

कई बार, छात्रों के अभ्यास के भीतर अटक जाते है और सवालों के सभी स्पष्ट करने में सक्षम नहीं हैं । छात्रों को सभी प्रश्नों को हल करने और अपनी पढ़ाई को संदेह के साथ बनाए रखने में सहायता करने के लिए, हमने सभी कक्षाओं के लिए छात्रों के लिए स्टेप एनसीईआरटी सॉल्यूशंस द्वारा कदम प्रदान किए हैं। इन उत्तरों को इसी तरह छात्रों की सहायता और सवालों का सही जवाब देने के तरीके के रूप में ठीक से सचित्र समाधानों की सहायता से बेहतर अंक स्कोरिंग में छात्रों की मदद मिलेगी ।

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Class 11 Hindi Vitan Chapter 2 राजस्थान की रजत बूँदें

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न. 1.
राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?
उत्तर:
राजस्थान में रेत अथाह है। वर्षा का पानी रेत में समा जाता है, जिससे नीचे की सतह पर नमी फैल जाती है। यह नमी खड़िया मिट्टी की परत के ऊपर तक रहती है। इस नमी को पानी के रूप में बदलने के लिए चार-पाँच हाथ के व्यास की जगह को तीस से साठ हाथ की गहराई तक खोदा जाता है। खुदाई के साथ-साथ चिनाई भी की जाती है। इस चिनाई के बाद खड़िया की पट्टी पर रिस-रिस कर पानी एकत्र हो जाता है। इसी तंग गहरी जगह को कुंई कहा जाता है। यह कुएँ का स्त्रीलिंग रूप है। यह कुएँ से केवल व्यास में छोटी होती है, परंतु गहराई में लगभग समान होती है। आम कुएँ का व्यास पंद्रह से बीस हाथ का होता है, परंतु कुंई का व्यास चार या पाँच हाथ होता है।

प्रश्न. 2.
दिनोदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं? जानें और लिखें।
उत्तर:
मनुष्य ने प्रकृति का जैसा दोहन किया है, उसी का अंजाम आज मनुष्य भुगत रहा है। जंगलों की कटाई भूमि का जल स्तर घट गया है और वर्षा, सरदी, गरमी आदि सभी अनिश्चित हो गए हैं। इसी प्राकृतिक परिवर्तन से मनुष्य में अब कुछ चेतना आई है। अब वह जल संरक्षण के उपाय खोजने लगा है। इस उपाय खोजने की प्रक्रिया में राजस्थान सबसे आगे है, क्योंकि वहाँ जल का पहले से ही अभाव था। इस पाठ से हमें जल की एक-एक बूंद का महत्त्व समझने में मदद मिलती है। पेय जल आपूर्ति के कठिन, पारंपरिक, समझदारीपूर्ण तरीकों का पता चलता है।

अब हमारे देश में वर्षा के पानी को एकत्र करके उसे साफ़ करके प्रयोग में लाने के उपाय और व्यवस्था सभी जगह चल रही है। पेय जल आपूर्ति के लिए नदियों की सफ़ाई के अभियान चलाए जा रहे हैं। पुराने जल संसाधनों को फिर से प्रयोग में लाने पर बल दिया जा रहा है। राजस्थान के तिलोनिया गाँव में पक्के तालाबों में वर्षा का जल एकत्र करके जल आपूर्ति के साथ-साथ बिजली तक पैदा की जा रही है जो एक मार्गदर्शक कदम है। कुंईनुमा तकनीक से पानी सुरक्षित रहता है।

प्रश्न. 3.
चेजारो के साथ गाँव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फ़र्क आया है, पाठ के आधार पर बताइए?
उत्तर:
‘चेजारो’ अर्थात् चिनाई करने वाले। कुंई के निर्माण में ये लोग दक्ष होते हैं। राजस्थान में पहले इन लोगों का विशेष सम्मान था। काम के समय उनका विशेष ध्यान रखा जाता था। कुंई खुदने पर चेलवांजी को विदाई के समय तरह-तरह की भेंट दी जाती थी। इसके बाद भी उनका संबंध गाँव से जुड़ा रहता था। प्रथा के अनुसार कुंई खोदने वालों को वर्ष भर सम्मानित किया जाता था। उन्हें तीज-त्योहारों में, विवाह जैसे मंगल अवसरों पर नेग, भेंट दी जाती थी। फसल आने पर उनके लिए अलग से अनाज निकाला जाता था। अब स्थिति बदल गई है, आज उनका सम्मान कम हो गया है। अब सिर्फ मजदूरी देकर काम करवाया जाता है।

प्रश्न. 4.
निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:
जल और विशेष रूप में पेय जल सभी के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। कुंई का जल और रेगिस्तान की गरमी की तुलना करें तो जल अमृत से बढ़कर है। ऐसे में अपनी-अपनी व्यक्तिगत कुंई बना लेना और मनमाने ढंग से उसका प्रयोग करना समाज के अंकुश से परे हो जाएगा। अतः सार्वजनिक स्थान पर बनी व्यक्तिगत कुंई पर और उसके प्रयोग पर समाज का अंकुश रहता है। यह भी एक तथ्य है कि खड़िया की पट्टी वाले स्थान पर ही कुंई बनाई जाती हैं और इसीलिए एक ही स्थान पर अनेक कुंई बनाई जाती हैं। यदि वहाँ हरेक अपनी कुंई बनाएगा तो क्षेत्र की नमी बँट जाएगी जिससे कुंई की पानी एकत्र करने की क्षमता पर फर्क पड़ेगा।

प्रश्न. 5.
कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त करें पालरपानी, पातालपानी, रेजाणीपानी।
उत्तर:
पालरपानी-यह पानी का वह रूप है जो सीधे बरसात से मिलता है। यह धरातल पर बहता है और इसे नदी, तालाब आदि में रोका जाता है। इस पानी का वाष्पीकरण जल्दी होता है। काफी पानी जमीन के अंदर चला जाता है। पातालपानी-जो पानी भूमि में जाकर भूजल में मिल जाता है, उसे पाताल पानी कहते हैं। इसे कुओं, पंपों, ट्यूबबेलों आदि के द्वारा निकाला जाता है। रेजाणीपानी-यह पानी धरातल से नीचे उतरता है, परंतु पाताल में नहीं मिलता है। यह पालरपानी और पातालपानी के बीच का है। वर्षा की मात्रा नापने में इंच या सेंटीमीटर नहीं, बल्कि ‘रेजा’ शब्द का उपयोग होता है। रेज का माप धरातल में समाई वर्षा को नापता है। रेजाणी पानी खड़िया पट्टी के कारण पाताली पानी से अलग बना रहता है तथा इसे कुंइयों के माध्यम से इकट्ठा किया जाता है।

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