NCERT Notes For Class 9 History Chapter 3 In Hindi नात्सीवाद और हिटलर का उदय

Class 9 History Chapter 3 In Hindi नात्सीवाद और हिटलर का उदय

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NCERT Notes For Class 9 History Chapter 3 In Hindi नात्सीवाद और हिटलर का उदय

 

वाइमर गणराज्य का जन्म

प्रथम विश्व युध

  1. बीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में जर्मनी एक ताकतवर साम्राज्य था ।
  2. उसने ऑस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ मिलकर मित्र राष्ट्रों ( इंग्लैंड , फ्रांस और रूस ) के खिलाफ़ पहला विश्वयुद्ध ( 1914-1918 ) लड़ा था ।
  3. उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि यह युद्ध इतना लंबा खिंच जाएगा और पूरे यूरोप को आर्थिक दृष्टि से निचोड़ कर रख देगा ।
  4. फ्रांस और बेल्जियम पर क़ब्ज़ा करके जर्मनी ने शुरुआत में सफलताएँ हासिल कीं ।
  5. लेकिन 1917 में जब अमेरिका भी मित्र राष्ट्रों में शामिल हो गया तो इस ख़ेमे को काफ़ी ताकत मिली और आखिरकार , नवंबर 1918 में उन्होंने केंद्रीय शक्तियों को हराने के बाद जर्मनी को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया ।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में लोकतांत्रिक संविधान।

  1. साम्राज्यवादी जर्मनी की पराजय और सम्राट के पदत्याग ने वहाँ की संसदीय पार्टियों को जर्मन राजनीतिक व्यवस्था को एक नए साँचे में ढालने का अच्छा मौका उपलब्ध कराया ।
  2. इसी सिलसिले में वाइमर में एक राष्ट्रीय में सभा की बैठक बुलाई गई और संघीय आधार पर एक लोकतांत्रिक संविधान पारित किया गया ।
  3. नई व्यवस्था में जर्मन संसद यानी राइख़स्टाग के लिए जनप्रतिनिधियों का चुनाव किया जाने लगा ।
  4. प्रतिनिधियों के निर्वाचन के लिए औरतों सहित सभी वयस्क नागरिकों को समान और सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान किया गया ।

वर्साय की संधि

  1. मित्र राष्ट्रों के साथ वर्साय ( Versailles ) में हुई शांति – संधि जर्मनी की जनता के लिए बहुत कठोर और अपमानजनक थी ।
  2. इस संधि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश , तकरीबन 10 प्रतिशत आबादी 13 प्रतिशत भूभाग , 75 प्रतिशत लौह भंडार और 26 प्रतिशत कोयला भंडार फ्रांस , पोलैंड , डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े ।
  3. जर्मनी की रही – सही ताकत खत्म करने के लिए मित्र राष्ट्रों ने उसकी सेना भी भंग कर दी ।
  4. युद्ध अपराधबोध अनुच्छेद ( War Guilt Clause ) के तहत युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को ज़िम्मेदार ठहराया गया ।
  5. इसके एवज़ में उस पर छः अरब पौंड का जुर्माना लगाया गया
  6. बहुत सारे जर्मनों ने न केवल इस हार के लिए बल्कि वर्साय में हुए इस अपमान के लिए भी वाइमर गणराज्य को ही ज़िम्मेदार ठहराया ।

युद्ध का असर जर्मनी/वीमर पर

  1. प्रथम विश्व युध ने पूरे महाद्वीप को मनोवैज्ञानिक और आर्थिक , दोनों ही स्तरों पर तोड़ कर रख दिया ।
  2. यूरोप कल तक कर्ज़ देने वालों का महाद्वीप कहलाता था जो युद्ध खत्म होते – होते कर्जदारों का महाद्वीप बन गया ।
  3. विडंबना यह थी कि पुराने साम्राज्य द्वारा किए गए अपराधों का हर्जाना नवजात वाइमर गणराज्य से वसूल किया जा रहा था ।
  4. इस गणराज्य को युद्ध में पराजय के अपराधबोध और राष्ट्रीय अपमान का बोझ तो ढोना ही पड़ा , हर्जाना चुकाने की वजह से आर्थिक स्तर पर भी वह अपंग हो चुका था ।
  5. वाइमर गणराज्य के हिमायतियों में मुख्य रूप से समाजवादी , कैथलिक और डेमोक्रैट खेमे के लोग थे ।
  6. ‘ नवंबर के अपराधी ‘ कहकर उनका खुलेआम मज़ाक उड़ाया गया ।

प्रथम विश्व युद्ध का यूरोपीय समाज पर प्रभाव

  1. ” पहले महायुद्ध ने यूरोपीय समाज और राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी गहरी छाप छोड़ दी थी ।
  2. सिपाहियों को आम नागरिकों के मुकाबले ज्यादा सम्मान दिया जाने लगा ।
  3. राजनेता और प्रचारक इस बात पर जोर देने लगे कि पुरुषों को आक्रामक , ताकतवर और मर्दाना गुणों वाला होना चाहिए ।
  4. मीडिया में खंदकों की जिंदगी का महिमामंडन किया जा रहा था ।
  5. लेकिन सच्चाई यह थी कि सिपाही इन खंदकों में बड़ी दयनीय जिंदगी जी रहे थे । वे लाशों को खाने वाले चूहों से घिरे रहते ।
  6. वे ज़हरीली गैस और दुश्मनों की गोलाबारी का बहादुरी से सामना करते हुए भी अपने साथियों को पल – पल मरते देखते थे ।

राजनीतिक रैडिकलवाद ( आमूल परिवर्तनवाद ) और आर्थिक संकट

  1. जिस समय वाइमर गणराज्य की स्थापना हुई उसी समय रूस में हुई बोल्शेविक क्रांति की तर्ज़ पर जर्मनी में भी स्पार्टकिस्ट लीग अपने क्रांतिकारी विद्रोह की योजनाओं को अंजाम देने लगी ।
  2. बहुत सारे शहरों में मजदूरों और नाविकों की सोवियतें बनाई गईं ।
  3. बर्लिन के राजनीतिक माहौल में सोवियत किस्म की शासन व्यवस्था की हिमायत के नारे गूँज रहे थे ।
  4. समाजवादियों , डेमोक्रैट्स और कैथलिक गुटों ने वाइमर में इकट्ठा होकर इस ने प्रकार की शासन व्यवस्था के विरोध में एक लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना का फ़ैसला लिया ।
  5. और आखिरकार वाइमर गणराज्य ने पुराने सैनिकों के फ़्री कोर नामक संगठन की मदद से इस विद्रोह को कुचल दिया ।
  6. इस पूरे घटनाक्रम के बाद स्पार्टकिस्टों ने जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी की नींव डाली ।
  7. राजनीतिक रैडिकलवादी विचारों को 1923 के आर्थिक संकट से और बल मिला ।

आर्थिक संकट

  1. जर्मनी ने पहला विश्वयुद्ध मोटे तौर पर कर्ज लेकर लड़ा था और युद्ध के बाद तो उसे स्वर्ण मुद्रा में हर्जाना भी भरना पड़ा ।
  2. इस दोहरे बोझ से जर्मनी के स्वर्ण भंडार लगभग समाप्त होने की स्थिति में पहुँच गए थे ।
  3. आखिरकार 1923 में जर्मनी ने कर्ज़ और हर्जाना चुकाने से इनकार कर दिया । इसके जवाब में फ़्रांसीसियों ने जर्मनी के मुख्य औद्योगिक इलाके रूर पर कब्ज़ा कर लिया ।
  4. जर्मनी ने फ्रांस के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध के रूप में बड़े पैमाने पर कागज़ी मुद्रा छापना शुरू कर दिया ।

अतिरिक्त धन प्रिंट प्रभाव

  1. जर्मन सरकार ने इतने बड़े पैमाने पर मुद्रा छाप दी कि उसकी मुद्रा मार्क का मूल्य तेज़ी से गिरने लगा ।
  2. अप्रैल में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 24,000 मार्क के बराबर थी जो जुलाई में 3,53,000 मार्क , अगस्त में 46,21,000 मार्क तथा दिसंबर में 9,88,60,000 मार्क हो गई ।
  3. इस तरह एक डॉलर में खरबों मार्क मिलने लगे ।
  4. जैसे – जैसे मार्क की कीमत गिरती गई , ज़रूरी चीज़ों की कीमतें आसमान छूने लगीं ।
  5. इस संकट को बाद में अति – मुद्रास्फीति का नाम दिया गया ।
  6. जब कीमतें बेहिसाब बढ़ जाती हैं तो उस स्थिति को अति – मुद्रास्फीति का नाम दिया जाता है ।

अमेरिका ने की जर्मनी की मदद

  1. जर्मनी को इस संकट से निकालने के लिए अमेरिकी सरकार ने हस्तक्षेप किया ।
    • इसके लिए अमेरिका ने डॉव्स योजना बनाई ।
  2. इस योजना में जर्मनी के आर्थिक संकट को दूर करने के लिए हर्जाने की शर्तों को दोबारा तय किया गया ।
  3. मंदी के साल सन् 1924 से 1928 तक जर्मनी में कुछ स्थिरता रही ।
  4. जर्मन निवेश और औद्योगिक गतिविधियों में सुधार मुख्यत : अमेरिका से लिए गए अल्पकालिक कर्जों पर आश्रित था ।
  5. जब 1929 में वॉल स्ट्रीट एक्सचेंज ( शेयर बाज़ार ) धराशायी हो गया तो जर्मनी को मिल रही यह मदद भी रातों – रात बंद हो गई ।

मंदी के साल

  1. 24 अक्तूबर को केवल एक दिन में 1.3 करोड़ शेयर बेच दिए गए
  2. कीमतों में गिरावट की आशंका को देखते हुए लोग धड़ाधड़ अपने शेयर बेचने लगे ।
  3. यह आर्थिक महामंदी की शुरुआत थी ।
  4. 1929 से 1932 तक के अगले तीन सालों में अमेरिका की राष्ट्रीय आय केवल आधी रह गई ।
  5. फ़ैक्ट्रियाँ बंद हो गई थीं , निर्यात गिरता जा रहा था , किसानों की हालत खराब थी और सट्टेबाज बाज़ार से पैसा खींचते जा रहे थे ।
  6. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आई इस मंदी का असर दुनिया भर में महसूस किया गया ।

जर्मनी पर मंदी का असर

  1. इस मंदी का सबसे बुरा प्रभाव जर्मन अर्थव्यवस्था पर पड़ा ।
  2. 1932 में जर्मनी का औद्योगिक उत्पादन 1929 के मुकाबले केवल 40 प्रतिशत रह गया था ।
  3. मज़दूर या तो बेरोज़गार होते जा रहे थे या उनके वेतन काफ़ी गिर चुके थे ।
  4. बेरोज़गारों की संख्या 60 लाख तक जा पहुँची ।
  5. जर्मनी की सड़कों पर ऐसे लोग बड़ी तादाद में दिखाई देने लगे जो – ‘ मैं कोई भी काम करने को तैयार हूँ ‘
  6. लिखी तख्ती गले में लटकाये खड़े रहते थे । बेरोज़गार नौजवान या तो ताश खेलते पाए जाते थे , नुक्कड़ों पर झुंड लगाए रहते थे या फिर रोज़गार दफ़्तरों के बाहर लंबी लंबी कतार में खड़े पाए जाते थे । जैसे – जैसे रोज़गार – – –
  7. जैसे – जैसे मुद्रा का अवमूल्यन होता जा रहा था ; मध्यवर्ग , खासतौर से वेतनभोगी कर्मचारी और पेंशनधारियों की बचत भी सिकुड़ती जा रही थी ।
  8. कारोबार ठप्प हो जाने से छोटे – मोटे व्यवसायी , स्वरोजगार में लगे लोग और खुदरा व्यापारियों की हालत भी खराब होती जा रही थी ।
    • बड़े व्यवसाय संकट में थे ।
  9. किसानों का एक बहुत बड़ा वर्ग कृषि उत्पादों की कीमतों में बेहिसाब गिरावट की वजह से परेशान था ।

राजनीति पर मंदी का प्रभाव

  1. राजनीतिक स्तर पर वाइमर गणराज्य एक नाजुक दौर से गुज़र रहा था ।
  2. वाइमर संविधान में कुछ कमियाँ थीं ।
    • इनमें से एक कमी आनुपातिक प्रतिनिधित्व से संबंधित थी ।
    • इस प्रावधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना लगभग नामुमकिन बन गया था ।
    • हर बार गठबंधन सरकार सत्ता में आ रही थी ।
  3. दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने , नागरिक अधिकार रद्द करने और अध्यादेशों के ज़रिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था ।
  4. अपने छोटे से जीवन काल में वाइमर गणराज्य का शासन 20 मंत्रिमंडलों के हाथों में रहा और उनकी औसत अवधि 239 दिन ज्यादा नहीं रही ।
    • इस दौरान अनुच्छेद 48 का भी जमकर इस्तेमाल किया गया ।
  5. लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों का विश्वास खत्म होने लगा क्योंकि वह उनके लिए कोई समाधान नहीं खोज पा रही थी ।

हिटलर का उदय

  • अर्थव्यवस्था , राजनीति और समाज में गहराते जा रहे इस संकट ने हिटलर के सत्ता में पहुँचने का रास्ता साफ़ कर दिया ।
  • 1889 में ऑस्ट्रिया में जन्मे हिटलर की युवावस्था बेहद गरीबी में गुजरी थी ।
  • भर्ती के बाद उसने अग्रिम मोर्चे पर संदेशवाहक का काम किया , कॉर्पोरल बना और बहादुरी के लिए उसने कुछ तमगे भी हासिल किए जर्मन सेना की पराजय ने तो उसे हिला दिया था ,
  • लेकिन वर्साय की संधि ने तो उसे आग – बबूला ही कर दिया ।
  • 1919 में उसने जर्मन वर्कर्स पार्टी नामक एक छोटे – से समूह की सदस्यता ले ली ।
  • धीरे – धीरे उसने इस संगठन पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया और उसे नैशनल सोशलिस्ट पार्टी का नया नाम दिया ।
  • इसी पार्टी को बाद में नात्सी पार्टी के नाम से जाना गया ।
  • लेकिन महामंदी के दौरान नात्सीवाद ने एक जन आंदोलन का रूप ग्रहण कर लिया ।
  • जैसा कि हम पहले देख चुके हैं , 1929 के बाद बैंक दिवालिया हो चुके थे , काम – धंधे बंद होते जा रहे थे , मज़दूर बेरोजगार हो रहे थे और मध्यवर्ग को लाचारी और भुखमरी का डर सता रहा था ।
  • नात्सी प्रोपेगैंडा में लोगों को एक बेहतर भविष्य की उम्मीद दिखाई देती थी ।
  • 1929 में नात्सी पार्टी को जर्मन संसद- राइख़स्टाग – के लिए हुए चुनावों में महज़ 2.6 फ़ीसदी वोट मिले थे ।
  • 1932 यह देश की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी थी और उसे 37 फ़ीसदी वोट मिले ।
  • हिटलर ज़बर्दस्त वक्ता था ।
  • उसका जोश और उसके शब्द लोगों को हिलाकर रख देते थे ।
  • वह अपने भाषणों में एक शक्तिशाली राष्ट्र की स्थापना , वर्साय संधि में हुई नाइंसाफ़ी के प्रतिशोध और जर्मन समाज को खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलाने का आश्वासन देता था ।
  • उसका वादा था कि वह बेरोज़गारों को रोज़गार और नौजवानों को एक सुरक्षित भविष्य देगा ।
  • उसने आश्वासन दिया कि वह देश को विदेशी प्रभाव से मुक्त कराएगा और तमाम विदेशी ‘ साज़िशों ‘ का मुँहतोड़ जवाब देगा ।

लोकतंत्र का ध्वंस

  1. 30 जनवरी 1933 को राष्ट्रपति हिंडनबर्ग ने हिटलर को चांसलर का पद – भार संभालने का न्यौता दिया । यह मंत्रिमंडल में सबसे शक्तिशाली पद था ।
  2. सत्ता हासिल करने के बाद हिटलर ने लोकतांत्रिक शासन की संरचना और संस्थानों को भंग करना शुरू कर दिया ।
  3. 28 फरवरी 1933 को जारी किए गए अग्नि अध्यादेश ( फ़ायर डिक्री ) के ज़रिए अभिव्यक्ति , प्रेस एवं सभा करने की आज़ादी जैसे नागरिक अधिकारों को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दिया गया ।
  4. 3 मार्च 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम ( इनेबलिंग ऐक्ट ) पारित किया गया ।
  5. इस कानून के ज़रिए जर्मनी में बाकायदा तानाशाही कर दी गई ।
  6. इस कानून ने हिटलर को संसद को हाशिए पर धकेलने और केवल अध्यादेशों के ज़रिए शासन चलाने का निरंकुश अधिकार प्रदान कर दिया ।
  7. नात्सी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों पर पाबंदी लगा दी गई ।
  8. अर्थव्यवस्था , मीडिया , सेना और न्यायपालिका पर राज्य का पूरा नियंत्रण स्थापित हो गया ।

नई ताकतों का गठन

  • पूरे समाज को नात्सियों के हिसाब से नियंत्रित और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए ।
  • पहले से मौजूद हरी वर्दीधारी पुलिस और स्टॉर्म टूपर्स ( एसए ) के अलावा गेस्तापो ( गुप्तचर राज्य पुलिस ) , एसएस ( अपराध नियंत्रण पुलिस ) और सुरक्षा सेवा ( एसडी ) का भी गठन किया गया ।

गेस्टापो की असीमित शक्ति

  • इन नवगठित दस्तों को बेहिसाब असंवैधानिक अधिकार दिए गए और इन्हीं की वजह से नात्सी राज्य को एक खूंखार आपराधिक राज्य की छवि प्राप्त हुई ।
  • गेस्तापो के यंत्रणा गृहों में किसी को भी बंद किया जा सकता था । ये नए दस्ते किसी को भी यातना गृहों में भेज सकते थे , किसी को भी बिना कानूनी कार्रवाई के देश निकाला दिया जा सकता था या गिरफ़्तार किया जा सकता था ।
  • दंड की आशंका से मुक्त पुलिस बलों ने निरंकुश और निरपेक्ष शासन का अधिकार प्राप्त कर लिया था ।

पुनर्निर्माण

  1. हिटलर ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की ज़िम्मेदारी अर्थशास्त्री ह्यालमार शाख़्त को सौंपी ।
  2. शाख़्त ने सबसे पहले सरकारी पैसे से चलाए जाने वाले रोज़गार संवर्धन कार्यक्रम के ज़रिए सौ फ़ीसदी उत्पादन और सौ फ़ीसदी रोज़गार उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया ।
  3. मशहूर जर्मन सुपर हाइवे और जनता की कार- फ़ॉक्सवैगन- इस परियोजना की देन थी ।

विदेश नीति

  1. 1933 में उसने ‘ लीग ऑफ़ नेशंस ‘ से पल्ला झाड़ लिया ।
  2. 1936 में राईनलैंड पर दोबारा क़ब्ज़ा किया
  3. एक जन , एक साम्राज्य , एक नेता के नारे की आड़ में 1938 में ऑस्ट्रिया को जर्मनी में मिला लिया ।
  4. इसके बाद उसने चेकोस्लोवाकिया के क़ब्ज़े वाले जर्मनभाषी सुडेंटनलैंड प्रांत पर कब्ज़ा किया और फिर पूरे चेकोस्लोवाकिया को हड़प लिया ।
  5. हिटलर ने आर्थिक संकट से निकलने के लिए युद्ध का विकल्प चुना ।
  6. वह राष्ट्रीय सीमाओं का विस्तार करते हुए ज्यादा से ज्यादा संसाधन इकट्ठा करना चाहता था ।

द्वितीय विश्व युद्ध

  • सितंबर 1939 में हिटलर पोलैंड पर हमल कर दिया ।
  • इसकी वजह से फ्रांस और इंग्लैंड के साथ भी उसका युद्ध शुरू हो गया ।
  • सितंबर 1940 में जर्मनी ने इटली और जापान के साथ एक त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर किए ।
  • इस संधि से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में हिटलर का दावा और मज़बूत हो गया ।
  • 1940 के अंत में हिटलर अपनी ताकत के शिखर पर था ।
  • अब हिटलर ने अपना सारा ध्यान पूर्वी यूरोप को जीतने के दीर्घकालिक स पर केंद्रित कर दिया ।
  • वह जर्मन जनता के लिए संसाधन और रहने की जगह ( Living Space ) का इंतजाम करना चाहता था ।
  • जून 1941 में उसने सोवियत संघ पर हमला किया ।
  • यह हिटलर की एक ऐतिहासिक बेवकूफ़ी थी ।
  • इस आक्रमण से जर्मन पश्चिमी मोर्चा ब्रिटिश वायुसैनिकों के बमबारी की चपेट में आ गया जबकि पूर्वी मोर्चे पर सोवियत सेनाएँ जर्मनों को नाकों चने चबवा रही थीं सोवियत लाल सेना ने स्तालिनग्राद में जर्मन सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया ।
  • सोवियत लाल सैनिकों ने पीछे हटते जर्मन सिपाहियों का आखिर तक पीछा किया और अंत में वे बर्लिन के बीचोंबीच जा पहुँचे ।

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध में प्रवेश किया

  • अमेरिका इस युद्ध में फँसने से लगातार बचता रहा ।
  • लेकिन वह लंबे समय तक युद्ध से दूर भी नहीं रह सकता था ।
  • पूरब में जापान की ताकत फैलती जा रही थी ।
  • उसने फ्रेंच इंडो – चाइना पर कब्ज़ा कर लिया था और प्रशांत महासागर में अमेरिकी नौसैनिक ठिकानों पर हमले की पूरी योजना बना ली थी ।
  • जब जापान ने हिटलर को समर्थन दिया और पर्ल हार्बर पर अमेरिकी ठिकानों को बमबारी का निशाना बनाया तो अमेरिका भी दूसरे विश्वयुद्ध में कूद पड़ा ।
  • यह युद्ध मई 1945 में हिटलर की पराजय और जापान के हिरोशिमा शहर पर अमेरिकी परमाणु बम गिराने के साथ खत्म हुआ ।

नात्सियों का विश्व दृष्टिकोण

  1. नात्सी विचारधारा हिटलर के विश्व दृष्टिकोण का पर्यायवाची थी ।
  2. इस विश्व दृष्टिकोण में सभी समाजों को बराबरी का हक नहीं था , वे नस्ली आधार पर या तो बेहतर थे या कमतर थे ।
  3. इस नज़रिये में ब्लॉन्ड , नीली आँखों वाले , नॉर्डिक जर्मन आर्य सबसे ऊपरी और यहूदी सबसे निचली पायदान पर आ थे ।
  4. हिटलर की नस्ली सोच चार्ल्स डार्विन और हर्बर्ट स्पेंसर जैसे विचारकों के सिद्धांतों पर आधारित थी ।
  5. डार्विन प्रकृति विज्ञानी थे जिन्होंने विकास और प्राकृतिक चयन की अवधारणा के ज़रिए पौधों और पशुओं की उत्पत्ति की व्याख्या का प्रयास किया था ।
  6. बाद में हर्बर्ट स्पेंसर ‘ अति जीविता का सिद्धांत ‘ ( सरवाइवल ऑफ़ द फ़िटेस्ट ) – जो सबसे योग्य है , वही जिंदा बचेगा- यह विचार दिया ।
  7. इस विचार का मतलब यह था कि जो प्रजातियाँ बदलती हुई वातावरणीय परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल सकती हैं व पृथ्वी पर जिंदा रहती हैं ।

नात्सियों की दलील बहुत सरल थी :

  • नात्सियों की दलील बहुत सरल थी : जो नस्ल सबसे ताकतवर है वह जिंदा रहेगी ; कमज़ोर नस्लें खत्म हो जाएँगी ।
  • आर्य नस्ल सर्वश्रेष्ठ है ।
  • उसे अपनी शुद्धता बनाए रखनी है , ताकत हासिल करनी है और दुनिया पर वर्चस्व कायम करना है ।

विचारधारा का दूसरा पहलू

  1. हिटलर की विचारधारा का दूसरा पहलू लेबेन्त्राउम जीवन परिधि की भू – राजनीतिक अवधारणा से संबंधित था ।
  2. वह मानता था कि अपने लोगों को बसाने के लिए ज़्यादा से ज्यादा इलाकों पर कब्ज़ा करना ज़रूरी है ।
  3. इससे मातृ देश का क्षेत्रफल भी बढ़ेगा
  4. नए इलाकों में जाकर बसने वालों को अपने जन्मस्थान के साथ गहरे संबंध बनाए रखने में मुश्किल भी पेश नहीं आएगी ।
  5. हिटलर की नज़र में इस तरह जर्मन राष्ट्र के लिए संसाधन और बेहिसाब शक्ति इकट्ठा की जा सकती थी ।

नस्लवादी राज्य की स्थापना

  1. सत्ता में पहुँचते ही नात्सियों ने ‘ शुद्ध ‘ जर्मनों के विशिष्ट नस्ली समुदाय की स्थापना के सपने को लागू करना शुरू कर दिया ।
  2. सबसे पहले उन्होंने विस्तारित जर्मन साम्राज्य में मौजूद उन समाजों या नस्लों को खत्म करना शुरू किया जिन्हें वे ‘ अवांछित ‘ मानते थे ।
  3. नात्सी ‘ शुद्ध और स्वस्थ नॉर्डिक आर्यों का समाज बनाना चाहते थे ।
  4. उनकी नज़र में केवल ऐसे लोग ही ‘ वांछित ‘ थे ।

अवांछितों श्रेणी

  • केवल यहूदी ही नहीं थे जिन्हें ‘ अवांछितों ‘ की श्रेणी में रखा गया था ।
  • इनके अलावा भी कई नस्लें थीं जो इसी नियति के लिए अभिशप्त थीं ।
  • जर्मनी में रहने वाले जिप्सियों और अश्वेतों की पहले तो जर्मन नागरिकता छीन ली गई और बाद में उन्हें मार दिया गया ।
  • रूसी और पोलिश मूल के लोगों को भी मनुष्य से कमतर माना गया

यहूदियों का शोषण

  • नात्सी जर्मनी में सबसे बुरा हाल यहूदियों का हुआ ।
  • यहूदियों के प्रति नात्सियों की दुश्मनी का एक आधार यहूदियों के प्रति ईसाई धर्म में मौजूद परंपरागत घृणा भी थी ।
  • ईसाइयों का आरोप था कि ईसा मसीह को यहूदियों ने ही मारा था ईसाइयों की नज़र में यहूदी आदतन हत्यारे और सूदखोर थे ।
  • मध्यकाल तक यहूदियों को ज़मीन का मालिक बनने की मनाही थी ।
  • ये लोग मुख्य रूप से व्यापार और धन उधार देने का धंधा करके अपना गुजारा चलाते थे ।
  • वे बाकी समाज से अलग बस्तियों में रहते थे जिन्हें घेटो ( Ghettoes ) यानी दड़बा कहा जाता था ।
  • नस्ल संहार के जरिए ईसाई बार – बार उनका सफ़ाया करते रहते थे ।
  • उनके खिलाफ़ जब – तब संगठित हिंसा की जाती थी और उन्हें उनकी बस्तियों से खदेड़ दिया जाता था ।
  • लेकिन यहूदियों के प्रति हिटलर की घृणा तो नस्ल के छद्म वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित थी ।
  • हिटलर की ‘ दृष्टि ‘ में इस समस्या का सिर्फ़ एक ही हल था यहूदियों को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए ।
  • सन् 1933 से 1938 तक नात्सियों ने यहूदियों को तरह – तरह से आतंकित किया , उन्हें दरिद्र कर आजीविका के साधनों से हीन कर दिया और उन्हें शेष समाज से अलग – थलग कर डाला ।
  • 1939-45 के दूसरे दौर में यहूदियों को कुछ खास इलाकों में इकट्ठा करने और अंतत : पोलैंड में बनाए गए गैस चेंबरों में ले जाकर मार देने की रणनीति अपनाई गई ।

नस्ली कल्पनालोक ( यूटोपिया )

  1. युद्ध के साए में नात्सी अपने कातिलाना , नस्लवादी कल्पनालोक या आदर्श विश्व के निर्माण में लग गए ।
  2. जनसंहार और युद्ध एक ही सिक्के के दो पहलू बन गए ।
  3. पराजित पोलैंड को पूरी तरह तहस नहस कर दिया गया ।
  4. उत्तर – पश्चिमी पोलैंड का ज्यादातर हिस्सा जर्मनी में मिला लिया गया ।
  5. इसके बाद पोलैंडवासियों को मवेशियों की तरह खदेड़ कर जनरल गवर्नमेंट नामक दूसरे हिस्से में पहुँचा दिया गया ।
  6. जर्मन साम्राज्य में मौजूद तमाम अवांछित तत्त्वों को जनरल गवर्नमेंट नामक इसी इलाके में लाकर रखा जाता था ।
  7. आर्य जैसे लगने वाले पोलैंड के बच्चों को उनके माँ – बाप से छीन कर जाँच के लिए ‘ नस्ल विशेषज्ञों के पास पहुँचा दिया गया ।
  8. अगर वे नस्ली जाँच में कामयाब हो जाते तो उन्हें जर्मन परिवारों में पाला जाता और अगर ऐसा नहीं होता तो उन्हें अनाथाश्रमों में डाल दिया जाता जहाँ उनमें से ज़्यादातर मर जाते थे ।

नात्सी जर्मनी में युवाओं की स्थिति

  • युवाओं में हिटलर की दिलचस्पी जुनून की हद तक पहुँच चुकी थी ।
  • उसका मानना था कि एक शक्तिशाली नात्सी समाज की स्थापना के लिए बच्चों को नात्सी विचारधारा की घुट्टी पिलाना बहुत ज़रूरी है ।
  • इसके लिए स्कूल के भीतर और बाहर , दोनों जगह बच्चों पर पूरा नियंत्रण आवश्यक था ।
  • तमाम स्कूलों में सफ़ाए और शुद्धीकरण की मुहिम चलाई गई ।
  • यहूदी या ‘ राजनीतिक रूप अविश्वसनीय ‘ दिखाई देने वाले शिक्षकों को पहले नौकरी से हटाया गया ।
  • बच्चों को अलग – अलग बिठाया जाने लगा । जर्मन और यहूदी बच्चे एक साथ न तो बैठ सकते थे और न खेल – कूद सकते थे ।
  • बाद में ‘ अवांछित बच्चों ‘ को यानी यहूदियों , जिप्सियों के बच्चों और विकलांग बच्चों को स्कूलों से निकाल दिया गया ।
  • चालीस के दशक में तो उन्हें भी गैस चेंबरों में झोंक दिया गया ।

शिक्षा प्रक्रिया

  • स्कूली पाठ्यपुस्तकों को नए सिरे से लिखा गया ।
  • नस्ल के बारे प्रचारित नात्सी विचारों को सही ठहराने के लिए नस्ल विज्ञान के नाम से एक नया विषय पाठ्यक्रम में शामिल किया गया ।
  • बच्चों को सिखाया गया कि वे वफादार व आज्ञाकारी बनें , यहूदियों से नफ़रत और हिटलर की पूजा करें ।
  • खेल – कूद के ज़रिए भी बच्चों में हिंसा और आक्रामकता की भावना पैदा की जाती थी ।
  • हिटलर का मानना था कि मुक्केबाज़ी का प्रशिक्षण बच्चों को फौलादी दिल वाला , ताकतवर और मर्दाना बना सकता है ।

जर्मन बच्चों और युवाओं को ‘ राष्ट्रीय समाजवाद की भावना ‘ से लैस करने की जिम्मेदारी युवा संगठनों को सौंपी गई ।

  • 10 साल की उम्र के बच्चों को युंगफ़ोक में दाखिल करा दिया जाता था ।
  • 14 साल की उम्र में सभी लड़कों को नात्सियों के युवा संगठन हिटलर यूथ की सदस्यता लेनी पड़ती थी ।
  • इस संगठन में वे युद्ध की उपासना , आक्रामकता व हिंसा , लोकतंत्र की निंदा और यहूदियों , कम्युनिस्टों , जिप्सियों व अन्य ‘ अवांछितों ‘ से घृणा का सबक सीखते थे ।
  • गहन विचारधारात्मक और शारीरिक प्रशिक्षण के बाद लगभग 18 साल की उम्र में वे लेबर सर्विस ( श्रम सेवा ) में शामिल हो जाते थे ।
  • इसके बाद उन्हें सेना में काम करना पड़ता था और किसी नात्सी संगठन की सदस्यता लेनी पड़ती थी ।

मातृत्व की नात्सी सोच

  • नात्सी जर्मनी में प्रत्येक बच्चे को बार बार यह बताया जाता था कि औरतें बुनियादी तौर पर मर्दों से भिन्न होती हैं ।
  • उन्हें समझाया जाता था कि औरत – मर्द के लिए समान अधिकारों का संघर्ष गलत है ।
  • यह समाज को नष्ट कर देगा ।
  • इसी आधार पर लड़कों को आक्रामक , मर्दाना और पत्थरदिल होना सिखाया जाता था जबकि लड़कियों को यह कहा जाता था कि उनका फ़र्ज़ एक अच्छी माँ बनना और शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देना और उनका पालन – पोषण करना है ।
  • नस्ल की शुद्धता बनाए रखने , यहूदियों से दूर रहने , घर संभालने और बच्चों को नात्सी मूल्य मान्यताओं की शिक्षा देने का दायित्व उन्हें ही सौंपा गया था ।

नाजी समाज में महिलाओं की भूमिका

  • 1933 में हिटलर ने कहा था : ‘ मेरे राज्य की सबसे महत्त्वपूर्ण नागरिक माँ है ।
  • ‘ लेकिन नात्सी जर्मनी में सारी माताओं के साथ भी एक जैसा बर्ताव नहीं होता था ।
  • जो औरतें नस्ली तौर पर अवांछित बच्चों को जन्म देती थीं उन्हें दंडित किया जाता था
  • नस्ली तौर पर वांछित दिखने वाले बच्चों को जन्म देने वाली माताओं को इनाम दिए जाते थे ।
  • ऐसी माताओं को अस्पताल में विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं ,
  • दुकानों में उन्हें ज्यादा छूट मिलती थी और थियेटर व रेलगाड़ी के टिकट उन्हें सस्ते में मिलते थे ।
  • हिटलर ने खूब सारे बच्चों को जन्म देने वाली माताओं के लिए वैसे ही तमगे देने का इंतजाम किया था जिस तरह के तमगे सिपाहियों को दिए जाते थे ।
  • चार बच्चे पैदा करने वाली माँ को काँसे का , छः बच्चे पैदा करने वाली माँ को चाँदी का और आठ या उससे ज्यादा बच्चे पैदा करने वाली माँ को सोने का तमगा दिया जाता था ।

विचारधारा का पालन नहीं करने वाली महिलाएं

  • निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली ‘ आर्य ‘ औरतों की सार्वजनिक रूप से निंदा की जाती थी और उन्हें कड़ा दंड दिया जाता था ।
  • बहुत सारी औरतों को गंजा करके , मुँह पर कालिख पोत कर और उनके गले में तख्ती लटका कर पूरे शहर में घुमाया जाता था ।
  • उनके गले में लटकी तख्ती पर लिखा होता था – ‘ मैंने राष्ट्र के सम्मान को मलिन किया है ।
  • इस आपराधिक कृत्य के लिए बहुत सारी औरतों को न केवल जेल की सज़ा दी गई बल्कि उनसे तमाम नागरिक सम्मान और उनके पति व परिवार भी छीन लिए गए ।

प्रचार की कला

नात्सी शासन ने भाषा और मीडिया का बड़ी होशियारी से इस्तेमाल किया और उसका ज़बर्दस्त फायदा उठाया ।

यहूदियों के खिलाफ मीडिया का इस्तेमाल

  • नात्सियों ने अपने अधिकृत दस्तावेज़ों में ‘ हत्या ‘ या ‘ मौत ‘ जैसे शब्दों का कभी इस्तेमाल नहीं किया ।
  • सामूहिक हत्याओं को विशेष व्यवहार , अंतिम समाधान ( यहूदियों के संदर्भ में ) , यूथनेजिया ( विकलांगों के लिए ) , चयन और संक्रमण मुक्ति आदि शब्दों से व्यक्त किया जाता था ।
  • ‘ इवैक्युएशन ‘ ( खाली कराना ) का आशय था लोगों को गैस चेंबरों में ले जाना ।
  • उन्हें ‘ संक्रमण मुक्ति क्षेत्र ‘ कहा जाता था । गैस चेंबर स्नानघर जैसे दिखाई देते थे और उनमें नकली फव्वारे भी लगे होते थे ।

लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए मीडिया का इस्तेमाल

  • नात्सी विचारों को फैलाने के लिए तस्वीरों , फ़िल्मों , रेडियो , पोस्टरों , आकर्षक नारों और इश्तहारी पर्चों का खूब सहारा लिया जाता था ।
  • पोस्टरों में जर्मनों के ‘ दुश्मनों ‘ की रटी – रटाई छवियाँ दिखाई जाती थीं , उनका मजाक उड़ाया जाता था , उन्हें अपमानित किया जाता था , उन्हें शैतान के रूप में पेश किया जाता था ।
  • समाजवादियों और उदारवादियों को कमज़ोर और पथभ्रष्ट तत्त्वों के रूप में प्रस्तुत किया जाता था ।
  • उन्हें विदेशी एजेंट कहकर बदनाम किया जाता था ।
  • प्रचार फिल्मों में यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने पर जोर दिया जाता था ।
  • ‘ द एटर्नल ज्यू ‘ ( अक्षय यहूदी ) इस सूची की सबसे कुख्यात फिल्म थी ।
  • परंपराप्रिय यहूदियों को खास तरह की छवियों में पेश किया जाता था । उन्हें दाढ़ी बढ़ाए और काफ़्तान ( चोगा ) पहने दिखाया जाता था ,
  • उन्हें केंचुआ , चूहा और कीड़ा जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता था ।
  • उनकी चाल ढाल की तुलना कुतरने वाले छछूंदरी जीवों से की जाती थी ।
  • नात्सीवाद ने लोगों के दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला , उनकी भावनाओं को भड़का कर उनके गुस्से और नफरत को ‘ अवांछितों ‘ पर केंद्रित कर दिया ।

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