NCERT Notes For Class 9 History Chapter 2 In Hindi यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

Class 9 History Chapter 2 In Hindi यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

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NCERT Notes For Class 9 History Chapter 2 In Hindi यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रांति

 

सामाजिक परिवर्तन का युग

  1. फ्रांसीसी क्रांति ने सामाजिक संरचना के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन की संभावनाओं का सूत्रपात कर दिया था ।
  2. समाज की आर्थिक और सामाजिक सत्ता पर कुलीन वर्ग और चर्च का नियंत्रण था ।
  3. फ्रांसीसी क्रांति के बाद इस संरचना को बदलना संभव दिखाई देने लगा ।
  4. यूरोप और एशिया सहित दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में व्यक्तिगत अधिकारों के स्वरूप और सामाजिक सत्ता पर किसका नियंत्रण हो- इस पर चर्चा छिड़ गई ।
  5. मगर यूरोप में भी सभी लोग आमूल समाज परिवर्तन के पक्ष नहीं थे ।
  6. बहुत सारे लोग बदलाव के लिए तो तैयार थे लेकिन वह चाहते थे कि यह बदलाव धीरे धीरे हो ।
  7. एक खेमा मानता था कि समाज का आमूल पुनर्गठन ज़रूरी है ।
  8. रूस में हुई क्रांति के फलस्वरूप समाजवाद बीसवीं सदी का स्वरूप तय करने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली विचारों की श्रृंखला का हिस्सा बन गया ।

उदारवादी , रैडिकल और रूढ़िवादी

उदारवादी

  1. उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का सम्मान और जगह मिले ।
  2. उदारवादी समूह वंश आधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के भी विरोधी थे ।
  3. वे सरकार के समक्ष व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे ।
  4. उनका कहना था कि सरकार को किसी के अधिकारों का हनन करने या उन्हें छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए ।
  5. यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार के पक्ष में था जो शासकों और अफ़सरों के प्रभाव से मुक्त और सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार शासन कार्य चलाए ।
  6. पर यह समूह ‘ लोकतंत्रवादी ‘ ( Democrat ) नहीं था ।
  7. ये लोग सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार यानी सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने के पक्ष में नहीं थे ।
  8. उनका मानना था कि वोट का अधिकार केवल संपत्तिधारियों को ही मिलना चाहिए ।

रैडिकल

  1. रैडिकल समूह के लोग ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की आबादी के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो ।
  2. रैडिकल बड़े ज़मींदारों और संपन्न उद्योगपतियों को प्राप्त किसी भी तरह के विशेषाधिकारों के खिलाफ़ थे ।
  3. वे निजी संपत्ति के विरोधी नहीं थे लेकिन केवल कुछ लोगों के पास संपत्ति के संकेंद्रण का विरोध ज़रूर करते थे ।

रूढ़िवादी

  1. रुढ़िवादी तबका रैडिकल और उदारवादी , दोनों के खिलाफ़ था ।
  2. मगर फ़्रांसीसी क्रांति के बाद तो रुढ़िवादी भी बदलाव की जरूरत को स्वीकार करने लगे थे ।
  3. अठारहवीं शताब्दी में रुढ़िवादी आमतौर पर परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे ।
  4. रुढ़िवादी चाहते थे कि अतीत का सम्मान किया जाए अर्थात् अतीत को तरह ठुकराया न जाए और बदलाव की प्रक्रिया धीमी हो ।

औद्योगिक समाज और सामाजिक परिवर्तन

  1. यह दौर गहन सामाजिक एवं आर्थिक बदलावों का था ।
  2. यह ऐसा समय था जब नए शहर बस रहे थे , नए – नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो रहे थे ,
    1. रेलवे का काफी विस्तार हो चुका था
    2. औद्योगिक क्रांति संपन्न हो चुकी थी
  3. ” औद्योगीकरण ने औरतों आदमियों और बच्चों , सबको कारखानों में ला दिया ।
  4. काम के घंटे यानी पाली बहुत लंबी होती थी और मज़दूरी बहुत कम थी ।
  5. बेरोज़गारी आम समस्या थी । औद्योगिक वस्तुओं की माँग में गिरावट आ जाने पर तो बेरोज़गारी और बढ़ जाती थी ।
  6. शहर तेज़ी से बसते और फैलते जा रहे थे इसलिए आवास और साफ़ – सफ़ाई का काम भी मुश्किल होता जा रहा था ।

उदारवादी और रैडिकल , दोनों ही इन समस्याओं का हल खोजने की कोशिश कर रहे थे ।

  1. उन्हें लगता था कि अगर मज़दूर स्वस्थ हों और नागरिक पढ़े – लिखे हों , तो इस व्यवस्था का भरपूर लाभ लिया जा सकता है ।
  2. ये लोग जन्मजात मिलने वाले विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे । व्यक्तिगत प्रयास , श्रम और उद्यमशीलता में उनका गहरा विश्वास था ।
  3. उनकी मान्यता थी कि यदि हरेक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता दी जाए , गरीबों को रोज़गार मिले , और जिनके पास पूँजी है उन्हें बिना रोक – टोक काम करने का मौका दिया जाए तो समाज तरक्की कर सकता है ।

यूरोप में समाजवाद का आना

समाज के पुनर्गठन की संभवत :

  1. सबसे दूरगामी दृष्टि प्रदान करने वाली विचारधारा समाजवाद ही थी ।
  2. उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यूरोप में समाजवाद एक जाना पहचाना विचार था ।
  3. समाजवादी निजी संपत्ति के विरोधी थे ,वे संपत्ति पर निजी स्वामित्व को सही नहीं मानते थे ।
  4. उनका कहना था कि संपत्ति के निजी स्वामित्व की व्यवस्था ही सारी समस्याओं की जड़ है ।
  5. उनका तर्क था कि बहुत सारे लोगों के पास संपत्ति तो है जिससे दूसरों को रोज़गार भी मिलता है लेकिन समस्या यह है कि संपत्तिधारी व्यक्ति को सिर्फ़ अपने फ़ायदे से ही मतलब रहता है ; वह उनके बारे में नहीं सोचता जो उसकी संपत्ति को उत्पादनशील बनाते हैं ।

समाजवादी बदलाव चाहते थे और इसके लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर अभियान चलाया

  1. समाजवादियों के पास भविष्य की एक बिल्कुल भिन्न दृष्टि थी । कुछ समाजवादियों को कोऑपरेटिव यानी सामूहिक उद्यम के विचार में दिलचस्पी थी ।
  2. कोऑपरेटिव ऐसे लोगों के समूह थे जो मिल कर चीजें बनाते थे और मुनाफ़े को प्रत्येक सदस्य द्वारा किए गए काम के हिसाब से आपस में बाँट लेते थे ।

कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स की विचारधारा

  1. कार्ल मार्क्स ( 1818-1882 ) और फ्रेडरिक एंगेल्स ( 1820 – 1895 ) ने समाजवाद दिशा में कई नए तर्क पेश किए ।
  2. मार्क्स का विचार था कि औद्योगिक समाज ‘ पूँजीवादी ‘ समाज है ।
  3. फ़ैक्ट्रियों में लगी पूँजी पर पूँजीपतियों का स्वामित्व है और पूँजीपतियों का मुनाफ़ा मज़दूरों की मेहनत से पैदा होता है ।
  4. मार्क्स का निष्कर्ष था कि जब तक निजी पूँजीपति इसी तरह मुनाफ़े का संचय करते जाएँगे तब तक मज़दूरों की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता ।
  5. अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए मज़दूरों को पूँजीवाद व निजी संपत्ति पर आधारित शासन को उखाड़ फेंकना होगा ।
  6. मार्क्स का विश्वास था कि खुद को पूँजीवादी शोषण से मुक्त कराने के लिए मज़दूरों को एक अत्यंत भिन्न किस्म का समाज बनाना होगा जिसमें सारी संपत्ति पर पूरे समाज का यानी सामाजिक नियंत्रण और स्वामित्व रहेगा ।
  7. उन्होंने भविष्य के इस समाज को साम्यवादी ( कम्युनिस्ट ) समाज का नाम दिया ।

समाजवाद के लिए समर्थन

  1. 1870 का दशक आते – आते समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे ।
  2. जिल इंग्लैंड और जर्मनी के मज़दूरों ने अपनी जीवन और कार्यस्थितियों में सुधार लाने के लिए संगठन बनाना शुरू कर दिया था ।
  3. संकट के समय अपने सदस्यों को मदद पहुँचाने के लिए इन संगठनों ने कोष स्थापित किए और काम के घंटों में कमी तथा मताधिकार के लिए आवाज़ उठाना शुरू कर दिया ।
  4. 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों और ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी ।
  5. फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम से ऐसी ही एक पार्टी का गठन किया गया ।

रूसी क्रांति

  • 1917 की अक्तूबर क्रांति के ज़रिए रूस की सत्ता पर समाजवादियों ने कब्ज़ा कर लिया ।
  • फरवरी 1917 में राजशाही के पतन और अक्तूबर की घटनाओं को ही अक्तूबर क्रांति कहा जाता है ।

रूसी साम्राज्य, 1914

  1. 1914 में रूस और उसके पूरे साम्राज्य पर ज़ार निकोलस II का शासन था ।
  2. मास्को के आसपास पड़ने वाले भूक्षेत्र के अलावा आज का फ़िनलैंड , लातविया , लिथुआनिया , एस्तोनिया तथा पोलैंड , यूक्रेन व बेलारूस के कुछ हिस्से रूसी साम्राज्य के अंग थे ।
  3. यह साम्राज्य प्रशांत महासागर तक फैला हुआ था और आज के मध्य एशियाई राज्यों के साथ – साथ जॉर्जिया , आर्मेनिया व अज़रबैजान भी इसी साम्राज्य के अंतर्गत आते थे ।

अर्थव्यवस्था और समाज

रूस में कृषि समाज

  1. बीसवीं सदी की शुरुआत में रूस की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा खेती – बाड़ी से जुड़ा हुआ था ।
  2. रूसी साम्राज्य की लगभग 85 प्रतिशत जनता आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर थी ।
  3. रूसी के किसान समय – समय पर सारी ज़मीन को अपने कम्यून ( मीर ) को सौंप देते थे और फिर कम्यून ही प्रत्येक हिसाब से किसानों को ज़मीन बाँटता था ।
  4. रूस अनाज का एक बड़ा निर्यातक था
  5. रूसी साम्राज्य के किसान अपनी ज़रूरतों के साथ – साथ बाजार के लिए भी पैदावार करते थे ।

रूसी क्रांति में उद्योग की शुरुआत

  1. उद्योग बहुत कम थे ।
  2. सेंट पीटर्सबर्ग और मास्को प्रमुख औद्योगिक इलाके थे ।
  3. बहुत सारे कारखाने 1890 के दशक में चालू हुए थे जब रूस के रेल नेटवर्क को फैलाया जा रहा था । रूसी उद्योगों में विदेशी निवेश भी तेजी से बढ़ा था ।
  4. इन कारकों के चलते कुछ ही सालों में रूस के कोयला उत्पादन में दोगुना और स्टील उत्पादन में चार गुना वृद्धि हुई थी ।
  5. सन् 1900 तक कुछ इलाकों में तो कारीगरों और कारखाना मज़दूरों की संख्या लगभग बराबर हो चुकी थी ।
  6. कारखाने उद्योगपतियों की निजी संपत्ति थे ।
  7. मज़दूरों को न्यूनतम वेतन मिलता रहे और काम की पाली के घंटे निश्चित हों – इस बात का ध्यान रखने के लिए सरकारी विभाग बड़ी फ़ैक्ट्रियों पर नज़र रखते थे ।
  8. काम की पाली प्राय : 15 घंटे तक खिंच जाती थी जबकि कारखानों में मज़दूर आमतौर पर 10-12 घंटे की पालियों में काम करते थे ।

सामाजिक समूह में श्रमिकों का विभाजन

  1. उनके बीच योग्यता और दक्षता के स्तर पर भी काफी फ़र्क था ।
  2. सेंट पीटर्सबर्ग के एक धातु मज़दूर ने कहा था : ‘ धातुकर्मी मज़दूरों में खुद को साहब मानते थे ।
  3. ‘ 1914 में फ़ैक्ट्री मज़दूरों में औरतों की संख्या 31 प्रतिशत थी लेकिन उन्हें पुरुष मज़दूरों के मुकाबले कम वेतन मिलता था ( मर्दों की तनख्वाह के मुकाबले आधे से तीन – चौथाई तक ) |
  4. मज़दूरों के बीच मौजूद फ़ासला उनके पहनावे और व्यवहार में भी सफ़ दिखाई देता था ।

मज़दूर में एकता

  1. जब किसी को नौकरी से निकाल दिया जाता था या उन्हें मालिकों से कोई शिकायत होती थी तो मज़दूर एकजुट होकर हड़ताल भी कर देते थे ।
  2. 1896-1897 के बीच कपड़ा उद्योग में और 1902 में धातु उद्योग में ऐसी हड़तालें काफ़ी बड़ी संख्या में आयोजित की गईं ।

रूस में समाजवाद

  1. 1914 से पहले रूस में सभी राजनीतिक पार्टियाँ गैरकानूनी थीं ।
  2. मार्क्स के विचारों को मानने वाले समाजवादियों ने 1898 में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी ( रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक श्रमिक पार्टी ) का गठन किया था ।
  3. रूसी समाजवादियों को लगता था कि रूसी किसान जिस तरह समय – समय पर ज़मीन बाँटते हैं उससे पता चलता है कि वह स्वाभाविक रूप से समाजवादी भावना वाले लोग हैं ।
  4. रूसी समाजवादियों का मानना था कि रूस में मज़दूर नहीं बल्कि किसान ही क्रांति की मुख्य शक्ति बनेंगे ।
  5. वे क्रांति का नेतृत्व करेंगे और रूस बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा जल्दी समाजवादी देश बन जाएगा ।
  6. सन् 1900 में उन्होंने सोशलिस्ट रेवलूशनरी पार्टी ( समाजवादी क्रांतिकारी पार्टी ) का गठन कर लिया ।
  7. इस पार्टी ने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और माँग की कि सामंतों के कब्ज़े वाली ज़मीन फौरन किसानों को सौंपी जाए ।
  8. लेनिन का मानना था कि किसानों में एकजुटता नहीं है ; वे बँटे हुए हैं । कुछ किसान गरीब थे तो कुछ अमीर , कुछ मज़दूरी करते थे तो कुछ पूँजीपति थे जो नौकरों से खेती करवाते थे । इन आपसी विभेदों ‘ के चलते वे सभी समाजवादी आंदोलन का हिस्सा नहीं हो सकते थे ।

उथल पुथल का समय : 1905 की क्रांति

  • रूस एक निरंकुश राजशाही था ।
  • उदारवादियों ने इस स्थिति को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर मुहिम चलाई ।
  • 1905 की क्रांति के दौरान उन्होंने संविधान की रचना के लिए सोशल डेमोक्रेट और समाजवादी क्रांतिकारियों को साथ लेकर किसानों और मज़दूरों के बीच काफी काम किया ।

खूनी रविवार

  • रूसी मज़दूरों के लिए 1904 का साल बहुत बुरा रहा ।
  • ज़रूरी चीज़ों की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ीं कि वास्तविक वेतन में 20 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई ।
  • उसी समय मज़दूर संगठनों की सदस्यता में भी तेजी से वृद्धि हुई ।
  • जब 1904 में ही गठित की गई असेंबली ऑफ़ रशियन वर्कर्स ( रूसी श्रमिक सभा ) के चार सदस्यों को प्युतिलोव आयरन वर्क्स में उनकी नौकरी से हटा दिया गया तो मज़दूरों ने आंदोलन छेड़ने का एलान कर दिया ।
  • अगले कुछ दिनों के भीतर सेंट पीटर्सबर्ग के 110,000 से ज़्यादा मज़दूर काम के घंटे घटाकर आठ घंटे किए जाने , वेतन में वृद्धि और कार्यस्थितियों में सुधार की माँग करते हुए हड़ताल पर चले गए ।
  • इसी दौरान जब पादरी गैपॉन के नेतृत्व में मजदूरों का एक जुलूस विंटर पैलेस ( ज़ार का महल ) के सामने पहुँचा तो पुलिस और कोसैक्स ने मज़दूरों पर हमला बोल दिया ।
  • इस घटना में 100 से ज्यादा मज़दूर मारे गए और लगभग 300 घायल हुए ।
  • इतिहास में इस घटना को खूनी रविवार के नाम से याद किया जाता है ।
  • 1905 की क्रांति की शुरुआत इसी घटना से हुई थी ।
  • सारे देश में हड़तालें होने लगीं ।
  • जब नागरिक स्वतंत्रता के अभाव का विरोध करते हुए विद्यार्थी अपनी कक्षाओं का बहिष्कार करने लगे तो विश्वविद्यालय भी बंद कर दिए गए ।
  • वकीलों , डॉक्टरों , इंजीनियरों और अन्य मध्यवर्गीय कामगारों ने संविधान सभा के गठन की माँग करते हुए यूनियन ऑफ़ यूनियंस की स्थापना कर दी ।
  • 1905 की क्रांति के दौरान ज़ार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद या ड्यूमा के गठन पर अपनी सहमति दे दी ।
  • ज़ार ने पहली ड्यूमा को मात्र 75 दिन के भीतर और पुनर्निर्वाचित दूसरी ड्यूमा को 3 महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया ।
  • वह किसी तरह की जवाबदेही या अपनी सत्ता पर किसी तरह का अंकुश नहीं चाहता था ।
  • उसने मतदान कानूनों में फेरबदल करके तीसरी ड्यूमा में रुढ़िवादी राजनेताओं को भर डाला ।

पहला विश्वयुद्ध और रूसी साम्राज्य

  • 1914 में दो यूरोपीय गठबंधनों के बीच युद्ध छिड़ गया ।
  • एक खेमे में जर्मनी , ऑस्ट्रिया और तुर्की ( केंद्रीय शक्तियाँ ) तो दूसरे खेमे में फ्रांस , ब्रिटेन व रूस ( बाद में इटली और रूमानिया भी इस खेमे में शमिल हो गए थे ।
  • यूरोप के साथ – साथ यह युद्ध यूरोप के बाहर भी फैल गया था । इसी युद्ध को पहला विश्वयुद्ध कहा जाता है ।
  • इस युद्ध को शुरू – शुरू में रूसियों का काफ़ी समर्थन मिला । जनता ने ज़ार का साथ दिया ।
  • लेकिन जैसे – जैसे युद्ध लंबा खिंचता गया , जार ने ड्यूमा में मौजूद मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया ।
  • उसके प्रति जनसमर्थन कम होने लगा । जर्मनी – विरोधी भावनाएँ दिनोंदिन बलवती होने लगीं ।
  • जर्मनी विरोधी भावनाओं के कारण ही लोगों ने सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदल कर पेत्रोग्राद रख दिया क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग जर्मन नाम था ।
  • 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और ऑस्ट्रिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय झेलनी पड़ी ।
  • 1917 तक 70 लाख लोग मारे जा चुके थे ।
  • पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि दुश्मन की सेना वहाँ टिक ही न सके ।
  • फ़सलों और इमारतों के विनाश से रूस में 30 लाख से ज़्यादा लोग शरणार्थी हो गए ।
  • इन हालात ने सरकार और ज़ार , दोनों को अलोकप्रिय बना दिया ।
  • सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे । अब वे लड़ना नहीं चाहते थे ।

युद्ध का उद्योगों पर बुरा असर

  1. युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा असर पड़ा ।
  2. 1916 तक रेलवे लाइनें टूटने लगीं ।
  3. अच्छी सेहत वाले मर्दों को युद्ध में झोंक दिया गया ।
  4. देश भर में मज़दूरों की कमी पड़ने लगी और ज़रूरी सामान बनाने वाली छोटी – छोटी वर्कशॉप्स ठप्प होने लगीं ।
  5. ज़्यादातर अनाज सैनिकों का पेट भरने के लिए मोर्चे पर भेजा जाने लगा ।
  6. शहरों में रहने वालों के लिए रोटी और आटे की किल्लत पैदा हो गई ।
  7. 1916 की सर्दियों में रोटी की दुकानों पर अकसर दंगे होने लगे ।

पेत्रोग्राद में फरवरी क्रांति

  • सन् 1917 की सर्दियों में राजधानी पेत्रोग्राद की हालत बहुत खराब थी ।
  • फरवरी में मज़दूरों के इलाके में खाद्य पदार्थों की भारी कमी पैदा हो गई ।

फरवरी क्रांति

  • 22 फरवरी को दाएँ तट पर स्थित एक फ़ैक्ट्री में तालाबंदी घोषित कर दी गई ।
  • इस फैक्ट्री के मज़दूरों के समर्थन में पचास फैक्ट्रियों के मज़दूरों ने भी हड़ताल का एलान कर दिया ।
  • बहुत सारे कारखानों में हड़ताल का नेतृत्व औरतें कर रही थीं ।
  • इसी दिन को बाद में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का नाम दिया गया ।
  • आंदोलनकारी जनता बस्ती पार करके राजधानी के बीचोंबीच नेव्स्की प्रोस्पेक्ट तक आ गई ।
  • फ़ैशनेबल रिहायशी इलाकों और सरकारी इमारतों को मज़दूरों ने घेर लिया तो सरकार ने कर्फ्यू लगा दिया ।
  • सरकार ने उन पर नजर रखने के लिए घुड़सवार सैनिकों और पुलिस को तैनात कर दिया ।
  • रविवार , 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को बर्खास्त कर दिया ।
  • 27 को उन्होंने पुलिस मुख्यालयों पर हमला करके उन्हें तहस – नहस कर दिया ।
  • रोटी , तनख्वाह , काम के घंटों में कमी और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते असंख्य लोग सड़कों पर जमा हो गए ।
  • सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण कायम करने के लिए एक बार फिर घुड़सवार सैनिकों को तैनात कर दिया ।
  • घुड़सवार सैनिकों की टुकड़ियों ने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया ।
  • गुस्साए सिपाहियों ने एक रेजीमेंट की बैरक में अपने ही एक अफ़सर पर गोली चला दी ।
  • तीन दूसरी रेजीमेंटों ने भी बगावत कर दी और हड़ताली मज़दूरों के साथ आ मिले ।
  • सिपाही और मज़दूर एक सोवियत या ‘ परिषद् ‘ का गठन करने के लिए उसी इमारत में जमा हुए जहाँ अब तक ड्यूमा की बैठक हुआ करती थी ।
  • यहीं से पेत्रोग्राद सोवियत का जन्म हुआ ।
  • एक प्रतिनिधिमंडल ज़ार से मिलने गया । सैनिक कमांडरों ने उसे सलाह दी कि वह राजगद्दी छोड़ दे ।
  • उसने कमांडरों की बात मान ली और 2 मार्च को गद्दी छोड़ दी ।
  • सोवियत और ड्यूमा के नेताओं ने देश का शासन चलाने के लिए एक अंतरिम सरकार बना ली ।
  • तय किया गया कि रूस के भविष्य के बारे में फ़ैसला लेने की ज़िम्मेदारी संविधान सभा को सौंप दी जाए और उसका चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाए ।

फरवरी के बाद

  1. जन सभा करने और संगठन बनाने पर लगी पाबंदी हटा ली गई ।
  2. अप्रैल 1917 में बोल्शेविकों के निर्वासित नेता व्लादिमीर लेनिन रूस लौट आए ।
  3. लेनिन का कहना था कि अब सोवियतों को सत्ता अपने हाथों में ले लेनी चाहिए ।
  4. लेनिन ने बयान दिया कि युद्ध समाप्त किया जाए , सारी ज़मीन किसानों के हवाले की जाए और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए ।
  5. इन तीन माँगों को लेनिन की ‘ अप्रैल थीसिस ‘ के नाम से जाना जाता है ।

अक्तूबर 1917 की क्रांति

  • लेनिन को अंतरिम सरकार द्वारा तानाशाही थोप देने की आशंका दिखाई देने लगी ।
  • सेना और फ़ैक्ट्री सोवियतों में मौजूद बोल्शेविकों को इकट्ठा किया गया ।
  • 16 अक्तूबर 1917 को लेनिन ने पेत्रोग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए राजी कर लिया ।
  • सत्ता पर कब्ज़े के लिए लियॉन ट्रॉट्स्की के नेतृत्व में सोवियत की ओर से एक सैनिक क्रांतिकारी समिति का गठन किया गया ।
  • इस बात का खुलासा नहीं किया गया कि योजना को किस दिन लागू किया जाएगा ।
  • 24 अक्तूबर को विद्रोह शुरू हो गया । संकट की आशंका को देखते हुए प्रधानमंत्री केरेंस्की सैनिक टुकड़ियों को इकट्ठा करने शहर से बाहर चले गए ।
  • तड़के ही सरकार के वफ़ादार सैनिकों ने दो बोल्शेविक अखबारों के दफ़्तरों पर घेरा डाल दिया ।
  • टेलीफ़ोन और टेलीग्राफ़ दफ़्तरों पर नियंत्रण प्राप्त करने और विंटर पैलेस की रक्षा करने के लिए सरकार समर्थक सैनिकों को रवाना कर दिया गया ।
  • पलक झपकते क्रांतिकारी समिति ने भी अपने समर्थकों को आदेश दे दिया कि सरकारी कार्यालयों पर कब्ज़ा कर लें और मंत्रियों को गिरफ़्तार कर लें ।
  • उसी दिन ऑरोरा नामक युद्धपोत ने विंटर पैलेस पर बमबारी शुरू कर दी ।
  • अन्य युद्धपोतों ने नेवा के रास्ते से आगे बढ़ते हुए विभिन्न सैनिक ठिकानों को अपने नियंत्रण में ले लिया ।
  • शाम ढलते – ढलते पूरा शहर क्रांतिकारी समिति के नियंत्रण में आ चुका था और मंत्रियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था ।
  • दिसंबर तक मास्को पेत्रोग्राद इलाके पर बोल्शेविकों का नियंत्रण स्थापित हो चुका था ।

अक्तूबर के बाद क्या बदला ?

  • बोल्शेविक निजी संपत्ति की व्यवस्था के पूरी तरह खिलाफ थे ।
  • ज्यादातर उद्योगों और बैंकों का नवंबर 1917 में ही राष्ट्रीयकरण किया जा चुका था ।
  • स्वामित्व और प्रबंधन सरकार के नियंत्रण में आ चुका था ।
  • ज़मीन को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया ।
  • किसानों को सामंतों की ज़मीनों पर कब्ज़ा करने की खुली छूट दे दी गई ।
  • शहरों में बोल्शेविकों ने मकान मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़कर उनके बड़े मकानों के छोटे – छोटे हिस्से कर दिए ताकि बेघरबार या ज़रूरतमंद लोगों को भी रहने की जगह दी जा सके ।
  • उन्होंने अभिजात्य वर्ग द्वारा पुरानी पदवियों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी ।
  • बोल्शेविक पार्टी का नाम बदल कर रूसी कम्युनिस्ट पार्टी ( बोल्शेविक ) रख दिया गया ।
  • नवंबर 1917 में बोल्शेविकों ने संविधान सभा के लिए चुनाव कराए लेकिन इन चुनावों में उन्हें बहुमत नहीं मिल पाया ।
  • जनवरी 1918 में असेंबली ने बोल्शेविकों के प्रस्तावों को खारिज कर दिया और लेनिन ने असेंबली बर्खास्त कर दी ।
    • उनका मत था कि अनिश्चित परिस्थितियों में चुनी गई असेंबली के मुकाबले अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस कहीं ज़्यादा लोकतांत्रिक संस्था है ।
  • मार्च 1918 में अन्य राजनीतिक सहयोगियों की असहमति के बावजूद बोल्शेविकों ने ब्रेस्ट लिटोस्क में जर्मनी से संधि ली ।
  • आने वाले सालों में बोल्शेविक पार्टी अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने वाली एकमात्र पार्टी रह गई ।
  • अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस को अब देश की संसद का दर्जा दे दिया गया था ।
  • रूस एक दलीय राजनीतिक व्यवस्था वाला देश बन गया ।
  • ट्रेड यूनियनों पर पार्टी का नियंत्रण रहता था ।
  • गुप्तचर पुलिस ( जिसे पहले चेका और बाद में ओजीपीयू तथा एनकेवीडी का नाम दिया गया ) बोल्शेविकों की आलोचना करने वालों को दंडित करती थी ।

गृह युद्ध

  1. गैर – बोल्शेविक समाजवादियों , उदारवादियों और राजशाही के समर्थकों ने बोल्शेविक विद्रोह की निंदा की ।
  2. उनके नेता दक्षिणी रूस में इकट्ठा होकर बोल्शेविकों ( ‘ रेड्स ‘ ) से लड़ने के लिए टुकड़ियाँ संगठित करने लगे ।
  3. 1918 और 1919 में रूसी साम्राज्य के ज़्यादातर हिस्सों पर सामाजिक क्रांतिकारियों ( ग्रीन्स ‘ ) और ज़ार समर्थकों ( ‘ व्हाइट्स ‘ ) का ही नियंत्रण रहा ।
  4. उन्हें फ्रांसीसी , अमेरिकी , ब्रिटिश और जापानी टुकड़ियों का भी समर्थन मिल रहा था ।
  5. ये सभी शक्तियाँ रूस में समाजवाद को फलते – फूलते नहीं देखना चाहती थीं ।
  6. इन टुकड़ियों और बोल्शेविकों के बीच चले गृह युद्ध के दौरान लूटमार , डकैती और भुखमरी जैसी समस्याएँ बड़े पैमाने पर फैल गईं ।
  7. ‘ व्हाइट्स ‘ में जो निजी संपत्ति के हिमायती थे उन्होंने ज़मीन पर कब्ज़ा करने वाले किसानों के खिलाफ़ काफ़ी सख्त रवैया अपनाया ।
  8. जनवरी 1920 तक भूतपूर्व रूसी साम्राज्य के ज़्यादातर हिस्सों पर बोल्शेविकों का नियंत्रण कायम हो चुका था ।
  9. उन्हें गैर – रूसी राष्ट्रवादियों और मुस्लिम जदीदियों की मदद से यह कामयाबी मिली थी ।

समाजवादी समाज का निर्माण

  • गृह युद्ध के दौरान बोल्शेविकों ने उद्योगों और बैंकों के राष्ट्रीयकरण को जारी रखा ।
  • उन्होंने किसानों को उस ज़मीन पर खेती की छूट दे दी जिसका समाजीकरण किया जा चुका था ।
  • शासन के लिए केंद्रीकृत नियोजन की व्यवस्था लागू की गई ।
  • अफ़सर इस बात का हिसाब लगाते थे कि अर्थव्यवस्था किस तरह काम कर सकती है ।
  • इसी आधार पर उन्होंने पंचवर्षीय योजनाएँ बनानी शुरू कीं । पहली दो ‘ योजनाओं ‘ ( 1927-1932 और 1933-1938 ) के दौरान औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सभी तरह की कीमतें स्थिर कर दीं ।
  • औद्योगिक उत्पादन बढ़ने लगा ( 1929 से 1933 के बीच तेल , कोयले और स्टील के उत्पादन में 100 प्रतिशत वृद्धि हुई ।
  • महिला कामगारों के बच्चों के लिए फ़ैक्ट्रियों में बालवाड़ियाँ खोल दी गईं ।

तेजी से बदलाव का प्रभाव

  1. तेज निर्माण कार्यों के दबाव में कार्यस्थितियाँ खराब होने लगीं ।
  2. मैग्नीटोगोर्क शहर में एक स्टील संयंत्र का निर्माण कार्य तीन साल के भीतर पूरा कर लिया गया ।
  3. इस दौरान मज़दूरों को बड़ी सख्त जिंदगी गुजारनी पड़ी जिसका नतीजा ये हुआ कि पहले ही साल में 550 बार काम रुका ।
  4. सस्ती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करायी गई ।

स्तालिनवाद और सामूहिकीकरण

  • 1927-1928 के आसपास रूस के शहरों में अनाज का भारी संकट पैदा हो गया था ।
  • सरकार ने अनाज की कीमत तय कर दी थी । उससे ज्यादा कीमत पर कोई अनाज नहीं बेच सकता था ।
  • लेकिन किसान उस कीमत पर सरकार को अनाज बेचने के लिए तैयार नहीं थे ।
  • लेनिन के बाद पार्टी की कमान संभाल रहे स्तालिन ने स्थिति से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए ।
  • उन्हें लगता था कि अमीर किसान और व्यापारी कीम­­­त बढ़ने की उम्मीद अनाज नहीं बेच रहे हैं ।
  • स्थिति पर काबू पाने के लिए सट्टेबाज़ी पर अंकुश लगाना और व्यापारियों के पास जमा अनाज को जब्त करना ज़रूरी था ।
  • 1928 में पार्टी के सदस्यों ने अनाज उत्पादक इलाकों का दौरा किया ।
  • उन्होंने किसानों से जबरन अनाज खरीदा और ‘ कुलकों ‘ के ठिकानों पर छापे मारे ।
    • रूस में संपन्न किसानों को कुलक कहा जाता था ।
  • जब इसके बाद भी अनाज की कमी बनी रही तो खेतों के सामूहिकीकरण का फ़ैसला लिया गया ।
  • 1929 पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों ( कोलखोज ) में काम करने का आदेश जारी कर दिया ।
  • ज्यादातर ज़मीन और साजो – सामान सामूहिक खेतों के स्वामित्व में सौंप दिए गए ।
  • सभी किसान सामूहिक खेतों पर काम करते थे और कोलखोज के मुनाफ़े को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था ।
  • इस फ़ैसले से गुस्साए किसानों ने सरकार का विरोध किया और वे अपने जानवरों को खत्म करने लगे ।
  • 1929 से 1931 के बीच मवेशियों की संख्या में एक तिहाई कमी आ गई ।
  • सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को सख्त सजा दी जाती थी । बहुत सारे लोगों को निर्वासन या देश निकाला दे दिया गया ।
  • सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन में नाटकीय वृद्धि नहीं हुई ।
  • बल्कि 1930 – 1933 की खराब फ़सल के बाद तो सोवियत इतिहास का सबसे बड़ा अकाल पड़ा जिसमें 40 लाख से ज्यादा लोग मारे गए ।

रूसी क्रांति और सोवियत संघ का वैश्विक प्रभाव

  1. मेहनतकशों के राज्य की स्थापना की संभावना ने दुनिया भर के लोगों में एक नई उम्मीद जगा दी थी ।
  2. बहुत सारे देशों में कम्युनिस्ट पार्टियों का गठन किया गया – जैसे , इंग्लैंड में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन की स्थापना की गई ।
  3. जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ तब तक सोवियत संघ की वजह से समाजवाद को एक वैश्विक पहचान और हैसियत मिल चुकी थी ।
  4. पचास के दशक तक देश के भीतर भी लोग यह समझने लगे थे कि सोवियत संघ की शासन शैली रूसी क्रांति के आदर्शों के अनुरूप नहीं है ।
  5. एक पिछड़ा हुआ देश महाशक्ति बन चुका था ।
  6. उसके उद्योग और खेती विकसित हो चुके थे और गरीबों को भोजन मिल रहा था ।
  7. लेकिन वहाँ के नागरिकों को कई तरह की आवश्यक स्वतंत्रता नहीं दी जा रही थी और विकास परियोजनाओं को दमनकारी नीतियों के बल पर लागू किया गया था ।
  8. बीसवीं सदी के अंत तक एक समाजवादी देश के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सोवियत संघ की प्रतिष्ठा काफी कम रह गई थी

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