बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ NCERT Notes For Class 11 History Chapter 7 In Hindi

Class 11 History Chapter 7 In Hindi बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ

NCERT Notes For Class 11 History Chapter 7 In Hindi बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ, (इतिहास) परीक्षा कुछ राज्य बोर्ड और सीबीएसई स्कूलों में छात्रों को एनसीईआरटी किताबों के माध्यम से पढ़ाया जाता है। जैसा कि अध्याय में अंत शामिल है, छात्रों को मूल्यांकन के लिए तैयार करने में सहायता करने के लिए एक अभ्यास प्रदान किया गया है। छात्रों को उन अभ्यासों को बहुत अच्छी तरह से हल करने की आवश्यकता है क्योंकि अंतिम में प्रश्न उन्हीं से पूछे गए थे।

TextbookNCERT
BoardCBSE Board, UP board, JAC board, HBSE Board, Bihar Board, PSEB board, RBSE Board, UBSE Board
Class11th Class
SubjectHistory
ChapterChapter 7
Chapter Nameबदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ
Topicबदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ NCERT Notes For Class 11 History Chapter 7 In Hindi
MediumHindi
Especially Designed Notes forCBSE, ICSE, IAS, NET, NRA, UPSC, SSC, NDA, All Govt. Exam

“14वीं-17वीं शताब्दियों के काल का यूरोप के इतिहास में विशेष स्थान रहा है । यह काल एक विशिष्ट नगरीय संस्कृति के विकास का काल था । इस काल में अनेक महत्त्वपूर्ण नगरों; जैसे- फ्लोरेंस, वेनिस तथा रोम का विकास हुआ। ये नगर ज्ञान एवं कला के केंद्र बन गए तथा इस अवधि में यहाँ मुद्रण के आविष्कार से एक क्रांतिकारी बदलाव आया । “

बदलती हुई सांस्कृतिक परंपराएँ NCERT Notes For Class 11 History Chapter 7 In Hindi

स्रोत

चौदहवीं शताब्दी इतिहास की जानकारी के लिए बहुत अधिक सामग्री दस्तावेजों , मुद्रित पुस्तक , मूर्तियों , भवनों तथा वस्त्रों से प्राप्त होती है जो यूरोप और अमरीका के अभिलेखागारों , कला चित्रशालाओं और संग्रहालयों में सुरक्षित रखी हुई हैं ।

जैकब बर्कहार्ट और पुनर्जागरण के बारे में उनका विचार

  • जैकब वर्कहार्ट ( Jacob Burckhardt 1818-97 ) स्विटजरलैंड के ब्रेसले विश्वविद्यालय के थे
  • उनके अनुसार इतिहास लेखन में राजनीति ही सब कुछ नहीं है इतिहास का सरोकार उतना ही संस्कृति से है जितना राजनीति से
  • 1860 ई . में बर्कहार्ट ने “दि सिविलाईजेशन ऑफ दि रेनेसा इन इटलो “नामक पुस्तक की रचना की ।
  • इसमें उन्होंने अपने पाठकों का ध्यान साहित्य , वास्तुकला और चित्रकला की और आकर्षित किया
  • और यह बताया कि चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक इटली के नगरों में किस प्रकार एक ‘ मानवतावादी ‘ संस्कृति पनप रही थी ।
  • उन्होंने यह लिखा कि यह संस्कृति इस नए विश्वास पर आधारित थी कि व्यक्ति अपने बारे में खुद निर्णय लेने और अपनी दक्षता को आगे बढ़ाने में समर्थ है ।
  • ऐसा व्यक्ति ‘ आधुनिक ‘ था जबकि ‘ मध्यकालीन मानव ‘ पर चर्च का नियंत्रण था ।

यूरोप में 14वीं शताब्दी और 17वीं शताब्दी ईस्वी के बीच हुए परिवर्तन

  • चौदहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक यूरोप के अनेक देशों में नगरों की संख्या बढ़ रही थी ।
  • एक विशेष प्रकार की ‘ नगरीय – संस्कृति ‘ विकसित हो रही थी ।
  • नगर के लोग अब यह सोचने लगे थे कि वे गांव के लोगों से अधिक ‘ सभ्य ‘ हैं ।
  • नगर खासकर फ़्लोरेंस , अमीर वेनिस और रोम – कला और विद्या के केंद्र बन गए ।
  • नगर कला और ज्ञान के केन्द्र बन गए ।
  • और अभिजात वर्ग के लोग कलाकारों और लेखकों के आश्रयदाता थे ।
  • इसी समय मुद्रण के आविष्कार से अनेक लोगों को छपी हुई पुस्तकें उपलब्ध होने लगी ।
  • यूरोप में इतिहास की एक नई भावना विकसित हुई और लोगों ने इतिहास को मध्यकालीन और आधुनिक के रूप में विभाजित करने लगे थे ।
  • चर्च के पृथ्वी के केंद्र संबंधी विश्वासों का वैज्ञानिकों ने गलत सिद्ध कर दिया चूँकि वे अब सौर मंडल को समझने लगे थे ।
  • नवीन भौगोलिक ज्ञान ने इस विचार को उलट दिया कि भूमध्यसागर विश्व का केंद्र है । इस विचार के पीछे यह मान्यता रही थी कि यूरोप विश्व का केंद्र है

इटली के नगरों का पुनरुत्थान

  • पश्चिम रोम साम्राज्य के पतन के बाद इटली के राजनैतिक और सांस्कृतिक केन्द्रों का विनाश हो गया ।
  • एक अरसे से पश्चिमी यूरोप के क्षेत्र , सामंती संबंधों के कारण नया रूप ले रहे थे और लातिनी चर्च के नेतृत्व में उनका एकीकरण हो रहा था ।
  • इसी समय पूर्वी यूरोप बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासन में बदल रहा था । उधर कुछ और पश्चिम में इस्लाम एक सांझी सभ्यता का निर्माण कर रहा था ।
  • इटली एक कमजोर देश था और अनेक टुकड़ों में बँटा हुआ था ।
  • इन्हीं परिवर्तनों ने इतालवी संस्कृति के पुनरुत्थान में सहायता प्रदान की ।
  • बाइजेंटाइन साम्राज्य और इस्लामी देशों के बीच व्यापार के बढ़ने से इटली के तटवर्ती बंदरगाह पुनर्जीवित हो गए ।
  • बारहवीं शताब्दी से जब मंगोलों ने चीन के साथ ‘ रेशम मार्ग ‘ से व्यापार आरंभ किया तो इसके कारण पश्चिमी यूरोपीय देशों के व्यापार को बढ़ावा मिला ।
  • इसमें इटली के नगरों ने मुख्य भूमिका निभाई । अब वे अपने को एक स्वतंत्र नगर – राज्यों का एक समूह मानते थे । नगरों में फ़्लोरेंस और वेनिस , गणराज्य थे
  • कई शहर अस्तित्व में आए क्योंकि उनका प्रशासन अमीर व्यापारियों और बैंकरों के हाथों में था, जो पादरी या सामंती प्रभुओं के नियंत्रण से मुक्त थे और इससे नागरिकता के विचार में मदद मिलती है ।

 

विश्वविद्यालय में मानवतावाद

  • यूरोप में सबसे पहले विश्वविद्यालय इटली के शहरों में स्थापित हुए ।
  • ग्यारहवीं शताब्दी से पादुआ और बोलोनिया ( Bologna ) विश्वविद्यालय विधिशास्त्र के अध्ययन केंद्र रहे
  • वकीलों और नोटरी की बहुत अधिक आवश्यकता होती थी क्योंकि वे नियमों को लिखते , उनकी व्याख्या करते और समझौते तैयार करते थे ।
  • इनके बिना बड़े पैमाने पर व्यापार करना संभव नहीं था । कानून का अध्ययन एक प्रिय विषय बन गया ।
  • फ्रांचेस्को पेट्रार्क इस परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
  • उसने इस बात पर जोर दिया कि इन प्राचीन लेखकों की रचनाओं का बहुत अच्छी तरह से अध्ययन किया जाए ।
  • इस शिक्षा कार्यक्रम में यह अंतर्निहित था कि बहुत कुछ जानना बाकी है और यह सब हम केवल धार्मिक शिक्षण से नहीं सीखते ।
  • इसी नयी संस्कृति को उन्नीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने ‘ मानवतावाद ‘ नाम दिया ।
  • पंद्रहवीं शताब्दी शब्द उन अध्यापकों के लिए प्रयुक्त होता था जो व्याकरण , अलंकारशास्त्र , कविता , इतिहास और नीतिदर्शन विषय पढ़ाते थे ।
  • ये विषय धार्मिक नहीं थे वरन् उस कौशल पर बल देते थे जो व्यक्ति चर्चा और वाद – विवाद से विकसित करता है ।
  • इन क्रांतिकारी विचारों ने अनेक विश्वविद्यालयों का ध्यान आकर्षित किया ।
  • इनमें एक नया नया स्थापित विश्वविद्यालय फ़्लोरेंस भी था जो पेट्रार्क का स्थायी नगर निवास था ।
  • इस नगर ने तेरहवीं शताब्दी के अंत तक व्यापार या शिक्षा के क्षेत्र में कोई विशेष तरक्की नहीं की थी पर पंद्रहवीं शताब्दी में सब कुछ पूरी तरह बदल गया ।
  • किसी भी नगर की पहचान उसके महान नागरिकों के साथ – साथ उसकी संपन्नता से बनती है ।
  • फ़्लोरेंस की प्रसिद्धि में दो लोगों का बड़ा हाथ था ।
  • इनमें से एक व्यक्ति थे दाँते अलिगहियरी ( Dante Alighieri 1265-1321 ) जो किसी धार्मिक संप्रदाय विशेष से संबंधित नहीं थे पर उन्होंने अपनी कलम धार्मिक विषयों पर चलायी थी ।
  • दूसरे व्यक्ति थे कलाकार जोटो ( Giotto . 1267-1337 ) जिन्होंने जीते – जागते रूपचित्र JERRIA ( Portrait ) बनाए ।
  • उनके बनाए रूपचित्र पहले के कलाकारों की तरह बेजान नहीं थे । इसके बाद धीरे – धीरे फ़्लोरेंस , इटली के सबसे जीवंत बौद्धिक नगर के रूप में जाना जाने लगा और कलात्मक जोटो द्वारा रचित चित्र , असिसी कृतियों के सृजन का केन्द्र बन गया ।

 

इतिहास का मानवतावादी दृष्टिकोण

  • मानवतावादी समझते थे कि वह अंधकार की कई शब्तादियों बाद सभ्यता के सही रूप को पुनः स्थापित कर रहे हैं ।
  • इसके पीछे यह मान्यता थी कि रोमन साम्राज्य के टूटने के बाद ‘ अंधकारयुग ‘ शुरू हुआ ।
  • मानवतावादियों की भाँति बाद के विद्वानों ने मान लिया कि [ यूरोप में चौदहवीं शताब्दी के बाद ‘ नये युग ‘ का जन्म हुआ ।
  • ‘ मध्यकाल ‘ जैसी संज्ञाओं का प्रयोग रोम साम्राज्य के पतन के बाद एक हजार वर्ष की समयावधि के लिए किया गया ।
  • उनके यह तर्क थे कि ‘ मध्ययुग ‘ में चर्च ने लोगों की सोच को इस तरह जकड़ रखा था कि यूनान और रोमवासियों का समस्त ज्ञान उनके दिमाग से निकल चुका था ।
  • मानवतावादियों ने आधुनिक ‘ शब्द का प्रयोग पंद्रहवीं शताब्दी से शुरू होने वाले काल के लिए किया ।
  • किसी भी काल को अंधकार युग ‘ की संज्ञा देना उन्हें अनुचित लगा ।

मानवतावादियों और बाद के विद्वानों द्वारा प्रयुक्त कालक्रम ( Periodisation ) |

5-14 शताब्दी मध्य युग

5-9 शताब्दी अंधकार युग

9-11 शताब्दी आरंभिक मध्य युग

11-14 शताब्दी उत्तर मध्य युग

15 शताब्दी से आधुनिक युग

 

विज्ञान और दर्शन- अरबीयों का योगदान

  • पूरे मध्यकाल में ईसाई गिरजाघरों और मठों के विद्वान यूनानी और रोमन विद्वानों की कृतियों से परिचित थे । पर इन लोगों ने इन रचनाओं का प्रचार प्रसार नहीं किया ।
  • चौदहवीं शताब्दी में अनेक विद्वानों ने प्लेटो और अरस्तू के ग्रंथों से अनुवादों को पढ़ना शुरू किया ।
  • अरब के अनुवादकों ने अतीत की पांडुलिपियों का संरक्षण और अनुवाद सावधानीपूर्वक किया था ।
  • एक ओर यूरोप के विद्वान यूनानी ग्रंथों के अरबी अनुवादों का अध्ययन कर रहे थे
  • दूसरी ओर यूनानी विद्वान अरबी और फ़ारसी विद्वानों की कृतियों को अन्य यूरोपीय लोगों के बीच प्रसार के लिए अनुवाद कर रहे थे ।
  • ये ग्रंथ प्राकृतिक विज्ञान , गणित , खगोल विज्ञान ( astronomy ) , औषधि विज्ञान और रसायन विज्ञान से संबंधित थे ।
  • टॉलेमी के अलमजेस्ट ( खगोल शास्त्र पर रचित ग्रंथ 140 ई . के पूर्व यूनानी भाषा में लिखा गया था और बाद में इसका अरबी में अनुवाद भी हुआ ) में अरबी भाषा के विशेष उपपद ‘ अल ‘ का उल्लेख है जो कि यूनानी और अरबी भाषा के बीच रहे संबंधों को दर्शाता है ।
  • मुसलमान लेखकों , जिन्हें इतालवी दुनिया में ज्ञानी माना जाता था , में अरबी के हकीम और मध्य एशिया के बुखारा के दार्शनिक इब्न – सिना ( Ibn Sina) और आयुर्विज्ञान विश्वकोश के लेखक अल – राजी ( रेजेस ) सम्मिलित थे ।
  • स्पेन के अरबी दर्शानिक इब्न रूश्द ने दार्शनिक ज्ञान ( फैलसुफ़ ) और धार्मिक विश्वासों के बीच रहे तनावों को सुलझाने की चेष्टा की । उनकी पद्धति को ईसाई चिंतकों द्वारा अपनाया गया ।

 

कलाकार और यथार्थवाद

  • मानवतावाद का प्रचार केवल शिक्षा के माध्यम से ही नहीं बल्कि कला, स्थापत्य और पुस्तकों के द्वारा भी हुआ।
  • पहले के कलाकारों द्वारा बनाए गए चित्रों के अध्ययन से नए कलाकारों को प्रेरणा मिली ।
  • रोमन संस्कृति के भौतिक अवशेष प्राचीन रोम और उसके उजाड़ नगरों के खंडहरों में कलात्मक वस्तुएँ मिलीं ।
  • अनेक शताब्दियों पहले बनी आदमी और औरतों की ‘ संतुलित ‘ मूर्तियों ने इतालवी वास्तुविदों को प्रोत्साहित किया । दोनातल्लो ( Donatello) ने सजीव मूर्तियाँ बनाकर नयी परंपरा कायम की ।
  • कलाकारों द्वारा हूबहू मूल आकृति जैसी मूर्तियों को बनाने की चाह को वैज्ञानिकों के कार्यों से सहायता मिली ।
  • नर कंकालों का अध्ययन करने के लिए कलाकर आयुर्विज्ञान कॉलेजों की प्रयोगशालाओं में गए ।
  • बेल्जियम मूल के आन्ड्रीयस वेसेलियस ( Andreas Vesalius ) पादुआ विश्वविद्यालय में आयुर्विज्ञान के प्राध्यापक थे ।
  • ये पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सूक्ष्म परीक्षण के लिए मनुष्य के शरीर की चीर – फाड़ ( dissection ) की । इसी समय से आधुनिक शरीर क्रिया विज्ञान ( Physiology ) का प्रारंभ हुआ ।
  • चित्रकारों के लिए नमूने के तौर पर प्राचीन कृतियाँ नहीं थीं ।
  • लेकिन मूर्तिकारों की तरह उन्होंने यथार्थ चित्र बनाने की कोशिश की ।
  • उन्हें अब यह मालूम हो गया कि रेखागणित ( geometry ) के ज्ञान से चित्रकार अपने परिदृश्य ( Perspective ) को ठीक तरह से समझ सकता है तथा प्रकाश के बदलते गुणों का अध्ययन करने से उनके चित्रों में त्रि – आयामी ( three dimentional ) रूप दिया जा सकता है ।
  • इस तरह शरीर विज्ञान , रेखागणित , भौतिकी और सौंदर्य की उत्कृष्ट भावना ने इतालवी कला को नया रूप दिया जिसे बाद में ‘ यथार्थवाद ‘ ( realism ) कहा गया ।
  • यथार्थवाद की यह परंपरा उन्नीसवीं शताब्दी तक चलती रही ।

 

वास्तुकला का विकास

  • पंद्रहवीं शताब्दी में रोम नगर भव्य रूप से पुनर्जीवित हो उठा ।
  • 1417 से पोप राजनैतिक दृष्टि से भवनों की विशिष्टताओं की शक्तिशाली बन गए क्योंकि 1378 से दो प्रतिस्पर्धी पोप के निर्वाचन से जन्मी दुर्बलता का अंत हो गया था ।
  • उन्होंने रोम के इतिहास के अध्ययन को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया । पु
  • वास्तुकला की एक ‘ नयी शैली ‘ को प्रोत्साहित किया जो वास्तव में रोम साम्राज्य कालीन शैली का पुनरूद्धार थी जिसे अब ‘ शास्त्रीय ‘ शैली कहा गया ।
  • पोप धनी व्यापारियों और अभिजात वर्ग के लोगों ने उन वास्तुविदों ( architect ) को अपने भवनों को बनाने के लिए नियुक्त किया जो शास्त्रीय वास्तुकला से परिचित थे ।
  • चित्रकारों और शिल्पकारों ने भवनों को लेपचित्रों , मूर्तियों और उभरे चित्रों से भी सुसज्जित किया ।
  • इस काल में कुछ ऐसे भी लोग हुए जो कुशल चित्रकार , मूर्तिकार और वास्तुकार , सभी कुछ थे ।
  • इसका सबसे श्रेष्ठ उदाहरण माईकल ऐंजेलो बुआनारोत्ती ( Michael Angelo Buonarroti) हैं जिन्होंने पोप के सिस्टीन चैपल की भीतरी छत में लेपचित्र ‘ दि पाइटा ‘ नामक प्रतिमा , और सेंट पीटर गिरजे के गुम्बद का डिज़ाइन बनाया और इनकी वजह से माईकल ऐंजेलो अमर हो गए ।
  • वास्तुकार फिलिप्पो ब्रूनेलेशी ( Philippo Brunelleschi) जिन्होंने फ़्लोरेंस के भव्य गुम्बद ( Duomo ) का परिरूप प्रस्तुत किया था , ने अपना पेशा एक मूर्तिकार के रूप में शुरू किया ।
  • इस काल में एक और अनोखा बदलाव आया । अब कलाकार की पहचान उसके नाम से होने लगी , न कि पहले की तरह उसके संघ या श्रेणी ( गिल्ड ) के नाम से ।

 

मनुष्य की एक नयी संकल्पना

  • मानवतावादी संस्कृति की विशेषताओं में से एक था मानव जीवन पर धर्म का नियंत्रण कमजोर होना ।
  • इटली के निवासी भौतिक संपत्ति , शक्ति और गौरव से बहुत ज्यादा आकृष्ट थे ।
  • वेनिस के मानवतावादी फ्रेन्चेस्को बरबारो ( Francesco Barbaro) ने अपनी एक पुस्तिका में संपत्ति अधिग्रहण करने को एक विशेष गुण कहकर उसकी तरफ़दारी की ।
  • लोरेन्ज़ो वल्ला ( Lorenzo Valla ) विश्वास करते थे कि इतिहास का अध्ययन मुनष्य को पूर्णतया जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करता है ,
  • उन्होंने अपनी पुस्तक ऑनप्लेज़र में भोग – विलास पर लगाई गई ईसाई धर्म की निषेधाज्ञा की आलोचना की ।
  • इस समय लोगों में अच्छे व्यवहारों के प्रति दिलचस्पी थी व्यक्ति को किस तरह विनम्रता से बोलना चाहिए कैसे कपड़े पहनने चाहिए और एक सभ्य व्यक्ति को किसमें दक्षता हासिल करनी चाहिए ।
  • मानवतावाद का मतलब यह भी था कि व्यक्ति विशेष सत्ता और दौलत की होड़ को छोड़कर अन्य कई माध्यमों से अपने जीवन को रूप दे सकता था ।
  • यह आदर्श इस विश्वास के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा था कि मनुष्य का स्वभाव बहुमुखी है जो कि तीन भिन्न – भिन्न वर्गों जिसमें सामंती समाज विश्वास करता था ।
  • मैक्यिावेली यह मानते थे कि ‘ सभी मनुष्य बुरे हैं और वह अपने दुष्ट स्वभाव को प्रदर्शित करने में सदैव तत्पर रहते हैं क्योंकि कुछ हद तक मनुष्य की इच्छाएँ अपूर्ण रह जाती हैं इसके पीछे प्रमुख कारण है कि मनुष्य अपने समस्त कार्यों में अपना स्वार्थ देखता है ।

 

महिलाओं की आकांक्षाएँ

  • वैयक्तिकता ( individuality ) और नागरिकता के नए विचारों से महिलाओं को दूर रखा गया ।
  • सार्वजनिक जीवन में अभिजात व संपन्न परिवार के पुरुषों का प्रभुत्व था और घर – परिवार के मामले में भी वे ही निर्णय लेते थे ।
  • उस समय लोग अपने लड़कों को ही शिक्षा देते थे जिससे उनके बाद वे उनके खानदानी पेशे या जीवन की आम ज़िम्मेदारियों को उठा सकें ।
  • कभी – कभी वे अपने छोटे लड़कों को धार्मिक कार्य के लिए चर्च को सौंप देते थे
  • विवाह में प्राप्त महिलाओं के दहेज़ को वे अपने पारिवारिक कारोबारों में लगा देते थे , महिलाओं को यह अधिकार नहीं था कि वे अपने पति को कारोबार चलाने के बारे में कोई राय दें ।
  • प्रायः कारोबारी मैत्री को सुदृढ़ करने के लिए दो परिवारों में आपस में विवाह संबंध होते थे ।
  • अगर पर्याप्त दहेज का प्रबंध नहीं हो पाता था तो शादीशुदा लड़कियों को ईसाई मठों में भिक्षुणी ( Nun ) का जीवन बिताने के लिए भेज दिया जाता था ।
  • आम तौर पर सार्वजनिक जीवन में महिलाओं को घर – परिवार को चलाने वाले के रूप में देखा जाता था ।
  • व्यापारी परिवारों में महिलाओं की स्थिति कुछ भिन्न थी । दुकानदारों की स्त्रियाँ दुकानों को चलाने में प्राय : उनकी सहायता करती थीं ।
  • व्यापारी और साहूकार परिवारों की पत्नियाँ परिवार के कारोबार को उस स्थिति में सँभालती थीं जब उनके पति लंबे समय के लिए दूर – दराज स्थानों को व्यापार के लिए जाते थे ।
  • व्यापारी परिवारों में यदि व्यापारी की कम आयु में मृत्यु हो जाती थी तो उसकी पत्नी सार्वजनिक जीवन में बड़ी भूमिका निभाने के लिए बाध्य होती थी ।
  • कुछ महिलाएँ रचनात्मक थीं और मानवतावादी शिक्षा की भूमिका के बारे में संवेदनशील थीं ।
  • वेनिस निवासी कसान्द्रा फेदेले ( Cassandra Fedele) ने लिखा , “ महिला को सभी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने की इच्छा रखनी चाहिए और उसे ग्रहण करना चाहिए ।
  • फेदेले का नाम यूनानी और लातिनी भाषा के विद्वानों के रूप में विख्यात था ।
  • उन्हें पादुआ विश्वविद्यालय में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था ।
  • फेदेले की रचनाओं से यह बात सामने आती है कि इस काल में सब लोग शिक्षा को बहुत महत्त्व देते थे ।
  • वे वेनिस की अनेक लेखिकाओं में से एक थीं जिन्होंने गणतंत्र की आलोचना की , जो महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों की इच्छा का ज्यादा समर्थन करती थी ।
  • ” एक अन्य प्रतिभाशाली महिला मंटुआ की मार्चिसा ईसाबला दि इस्ते ( Isabella d ‘ Este .) थीं ।
  • उन्होंने अपने पति की अनुपस्थिति में अपने राज्य पर शासन किया ।
  • मंटुआ , एक छोटा राज्य था तथापि उसका राजदरबार अपनी बौद्धिक प्रतिभा के लिए प्रसिद्ध था ।
  • महिलाओं की रचनाओं से उनके इस दृढ़ विश्वास का पता चलता है कि उन्हें पुरुष प्रधान समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए अधिक आर्थिक स्वायत्तता , संपत्ति और शिक्षा मिलनी चाहिए ।

 

ईसाई धर्म के अंतर्गत वाद – विवाद

  • पंद्रहवीं और आरंभिक सोलहवीं शताब्दियों में उत्तरी यूरोप के विश्वविद्यालयों के अनेक विद्वान मानवतावादी विचारों की ओर आकर्षित हुए ।
  • इतालवी सहकर्मियों की तरह उन्होंने भी यूनान और रोम के क्लासिक ग्रंथों और ईसाई धर्मग्रंथों के अध्ययन पर अधिक ध्यान दिया ।
  • पेशेवर विद्वान मानवतावादी आंदोलन पर हावी रहे , उत्तरी यूरोप में मानवतावाद ने ईसाई चर्च के अनेक सदस्यों को आकर्षित किया ।
  • उन्होंने ईसाइयों को अपने पुराने धर्मग्रंथों में बताए गए तरीकों से धर्म का पालन करने का आह्वान किया ।
  • साथ ही उन्होंने अनावश्यक कर्मकांडों को त्यागने की बात की और उनकी यह निंदा की।
  • ईसाई मानवतावादी जैसे कि इंग्लैंड के टॉमस मोर ( Thomas More) और हालैंड के इरेस्मस ( Erasmus.) का यह मानना था कि चर्च एक लालची और साधारण लोगों से बात – बात पर लूट – खसोट करने वाली संस्था बन गई ।
  • पादरियों का लोगों से धन ठगने का सबसे सरल तरीका ‘ पाप स्वीकारोक्ति ‘ ( indulgences ) नामक दस्तावेज़ था जो व्यक्ति को उसके सारे किए गए पापों से छुटकारा दिला सकता था ।
  • ईसाइयों को बाईबल के स्थानीय भाषाओं में छपे अनुवाद से यह ज्ञात हो गया कि उनका धर्म इस प्रकार की प्रथाओं के प्रचलन की आज्ञा नहीं देता है ।
  • यूरोप के लगभग प्रत्येक भाग में किसानों ने चर्च द्वारा लगाए गए इस प्रकार के अनेक करों का विरोध किया ।
  • इसके साथ – साथ राजा भी राज – काज में चर्च की दखलअंदाजी से चिढ़ते थे ।
  • 1517 में एक जर्मन युवा भिक्षु मार्टिन लूथर ( Martin Luther , 1483-1546 ) ने कैथलिक चर्च के विरुद्ध अभियान छेड़ा
  • और इसके लिए उसने दलील पेश की कि मनुष्य को ईश्वर से संपर्क साधने के लिए पादरी की आवश्यकता नहीं है ।
  • इस आंदोलन को प्रोटेस्टेंट सुधारवाद नाम दिया गया जिसके कारण जर्मनी और स्विटज़रलैंड के चर्च ने पोप तथा कैथलिक चर्च से अपने संबंध समाप्त कर दिए ।
  • स्विटज़रलैंड में लूथर के विचारों को उलरिक ज्विंगलीन्यू टेस्टामेंट और उसके बाद जौं कैल्विन ( Jean Calvin 1509-64 ) ने काफी लोकप्रिय बनाया ।
  • व्यापारियों से समर्थन मिलने के कारण सुधारकों की लोकप्रियता शहरों में अधिक थी ।
  • अन्य जर्मन सुधारक जैसे कि एनावेपटिस्ट सम्प्रदाय के नेता इनसे कहीं अधिक उग्र सुधारक थे ।
  • उन्होंने मोक्ष ( salvation ) के विचार को हर तरह के सामाजिक उत्पीड़न के अंत होने के साथ जोड़ दिया ।
  • उनका कहना था कि क्योंकि ईश्वर ने सभी इनसानों को एक जैसा बनाया है इसलिए उनसे कर देने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए और उन्हें अपना पादरी चुनने का अधिकार होना चाहिए ।
  • इसने सामंतवाद द्वारा उत्पीड़ित किसानों को आकर्षित किया ।
  • लूथर ने आमूल परिवर्तनवाद ( Radicalism ) का समर्थन नहीं किया । उन्होंने आह्वान किया कि जर्मन शासक समकालीन किसान विद्रोह का दमन करें ।
  • इंग्लैंड के शासकों ने पोप से अपने संबंध तोड़ दिए ।
  • इसके उपरांत राजा / रानी इंग्लैंड के चर्च के प्रमुख बन गए ।
  • स्पेन में प्रोटैस्टेंट लोगों से संघर्ष करने के लिए इग्नेशियस लोयोला ( Ignatius Loyala ) ने 1540 में सोसाइटी ऑफ जीसस ‘ नामक संस्था की स्थापना की ।
  • उनके अनुयायी जेसुइट कहलाते थे
  • और उनका ध्येय निर्धनों की सेवा करना और दूसरी संस्कृतियों के बारे में अपने ज्ञान को ज्यादा व्यापक बनाना था ।

विज्ञान और खगोल विज्ञान में विकास (कोपरनिकन क्रांति)

  • यूरोपीय विज्ञान के क्षेत्र में एक युगांतरकारी परिवर्तन मॉर्टिन लूथर के समकालीन कोपरनिकस ( 1473-1543 ) के काम से आया ।
  • ईसाइयों का यह विश्वास था कि पृथ्वी पापों से भरी हुई है और पापों की अधिकता के कारण वह स्थिर है
  • पृथ्वी , ब्रह्मांड ( universe ) के बीच में स्थिर है जिसके चारों और खगोलीय गृह ( celestial planets ) घूम रहे हैं ।
  • कोपरनिकस ने यह घोषणा की कि पृथ्वी समेत सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं ।
  • कोपरनिकस एक निष्ठावान ईसाई थे और वह इस बात से भयभीत थे कि उनकी इस नयी खोज से परंपरावादी ईसाई धर्माधिकारियों में घोर प्रतिक्रिया उत्पन्न हो सकती है ।
  • यही कारण था कि वह अपनी पाण्डुलिपि दि रिवल्यूशनिबस ( De revolutionibus परिभ्रमण ) को प्रकाशित नहीं कराना चाहते थे ।
  • जब वह अपनी मृत्यु -शैया पर पड़े थे तब उन्होंने यह पाण्डुलिपि अपने अनुयायी जोशिम रिटिक्स ( Joachim Rheticus ) को सौंप दी ।
  • उनके इन विचारों को ग्रहण करने में लोगों को थोड़ा समय लगा ।
  • खगोलशास्त्री जोहानेस कैप्लर ( Johannes Kepler) तथा गैलिलियो गैलिली ( Galileo Galilel ) ने अपने लेखों द्वारा ‘ स्वर्ग ‘ और ‘ पृथ्वी ‘ के अंतर को समाप्त कर दिया ।
  • कैप्लर ने अपने ग्रंथ कॉस्मोग्राफ़िकल मिस्ट्री ( Cosmographical Mystery- खगोलीय रहस्य ) में कोपरनिकस के सूर्य – केंद्रित सौरमंडलीय सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया
  • जिससे यह सिद्ध हुआ कि सारे ग्रह सूर्य के चारों ओर वृत्ताकार ( circles ) रूप में नहीं बल्कि दीर्घ वृत्ताकार ( ellipses ) मार्ग पर परिक्रमा करते हैं ।
  • गैलिलियो ने अपने ग्रंथ दि मोशन ( The Motion) में गतिशील विश्व के सिद्धांतों की पुष्टि की ।
  • विज्ञान के जगत में इस क्रांति ने न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के साथ अपनी पराकाष्ठा की ऊँचाई को छू लिया ।
  • जैसे – जैसे इन वैज्ञानिकों ने ज्ञान की खोज का रास्ता दिखाया वैसे – वैसे भौतिकी , रसायन शास्त्र और जीव विज्ञान के क्षेत्र में अनेक प्रयोग और अन्वेषण कार्य बहुत तेजी से पनपने लगे ।
  • इतिहासकारों ने मनुष्य और प्रकृति के ज्ञान के इस नए दृष्टिकोण को वैज्ञानिक क्रांति का नाम दिया
  • परिणामस्वरूप संदेहवादियों और नास्तिकों के मन में सारी सृष्टि की रचना के स्रोत के रूप में प्रकृति ईश्वर का स्थान लेने लगी ।
  • जिन्होंने ईश्वर में अपने विश्वास को बरकरार रखा वे भी एक दूरस्थ ईश्वर की बात करने लगे जो भौतिक दुनिया में जीवन को प्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं करता था ।
  • इस प्रकार के विचारों को वैज्ञानिक संस्थाओं के माध्यम से लोकप्रिय बनाया गया जिससे सार्वजनिक क्षेत्र में एक नयी वैज्ञानिक संस्कृति की स्थापना हुई ।
  • 1670 में बनी पेरिस अकादमी और 1662 में वास्तविक ज्ञान के प्रसार के लिए लंदन में गठित रॉयल सोसाइटी ने लोगों की जानकारी के लिए व्याख्यानों का आयोजन किया और सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए प्रयोग करवाए ।

पुनर्जागरण की अवधारणा

  • इंग्लैंड के पीटर बर्क ( Peter Burke ) जैसे हाल ही के लेखकों का यह सुझाव है कि बर्कहार्ट के ये विचार अतिशयोक्तिपूर्ण हैं ।
  • बर्कहार्ट इस काल और इससे पहले के कालों के फ़र्कों को कुछ बढ़ा – चढ़ा कर पेश कर रहे थे । ऐसा करने में उन्होंने पुनर्जागरण शब्द का प्रयोग किया ।
  • इस शब्द में यह अंतर्निहित है कि यूनानी और रोमन सभ्यताओं का चौदहवीं शताब्दी में पुनर्जन्म हुआ और समकालीन विद्वानों और कलाकारों में ईसाई विश्वदृष्टि की जगह पूर्व ईसाई विश्वदृष्टि का प्रचार – प्रसार किया ।
  • दोनों ही तर्क अतिशयोक्तिपूर्ण थे ।
  • यह कहना कि पुनर्जागरण , गतिशीलता और कलात्मक सृजनशीलता का काल था और इसके विपरीत , मध्यकाल अंधकारमय काल था जिसमें किसी प्रकार का विकास नहीं हुआ था , ज़रूरत से ज्यादा सरलीकरण है ।
  • इटली में पुनर्जागरण से जुड़े अनेक तत्व बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी में पाए जा सकते हैं ।
  • फ्रांस में इसी प्रकार के साहित्यिक और कलात्मक रचनाओं के विचार पनपे ।
  • रोमन संस्कृति के पुरातात्त्विक और साहित्यिक पुनरुद्धार ने भी इस सभ्यता के प्रति बहुत अधिक प्रशंसा के भाव उभारे ।
  • एशिया में प्रौद्योगिकी और कार्य -कुशलता यूनानी और रोमन लोगों की तुलना में काफी विकसित थी ।
  • विश्व का बहुत बड़ा क्षेत्र आपस में सम्बद्ध हो चुका था और नौसंचालन ( navigation ) की नयी तकनीकों ने लोगों के लिए पहले की तुलना में दूरदराज़ के क्षेत्रों की जलयात्रा को संभव बनाया ।
  • इस्लाम के विस्तार और मंगोलों की विजयों ने एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका को यूरोप के साथ राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि व्यापार और कार्य कुशलता के ज्ञान को सीखने के लिए आपस में जोड़ दिया
  • यूरोपियों ने न केवल यूनानियों और रोमवासियों से सीखा बल्कि भारत , अरब , ईरान , मध्य एशिया और चीन से भी ज्ञान प्राप्त किया ।
  • बहुत लंबे समय तक इन ऋणों को स्वीकार नहीं किया गया
  • इस काल में जो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए उनमें धीरे – धीरे ‘ निजी ‘ और ‘ सार्वजनिक ‘ दो अलग – अलग क्षेत्र बनने लगे ।
  • जीवन के सार्वजनिक क्षेत्र का तात्पर्य सरकार के कार्यक्षेत्र और औपचारिक धर्म से संबंधित था और निजी क्षेत्र में परिवार और व्यक्ति का निजी धर्म था ।
  • अठारहवीं शताब्दी में व्यक्ति की इस पहचान को राजनीतिक रूप में अभिव्यक्त किया गया , इस विश्वास के साथ कि प्रत्येक व्यक्ति के एकसमान राजनीतिक अधिकार हैं ।
  • पहले , आंशिक रूप से रोमन साम्राज्य द्वारा और बाद में लातिनी भाषा और ईसाई धर्म द्वारा जुड़ा यूरोप अब अलग – अलग राज्यों में बँटने लगा ।
  • इन राज्यों के आंतरिक जुड़ाव का कारण समान भाषा का होना था ।

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