NCERT Notes For Class 11 History Chapter 6 In Hindi तीन वर्ग

Class 11 History Chapter 6 In Hindi तीन वर्ग

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NCERT Notes For Class 11 History Chapter 6 In Hindi तीन वर्ग

 

  • नौवीं और सोलहवीं सदी के मध्य पश्चिमी यूरोप में होने वाले सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक परिवर्तन
  • तीन वर्ग का केंद्र बिंदु है , से हमारा अभिप्राय तीन सामाजिक श्रेणियों से है ईसाई पादरी , भूमिधारक अभिजात वर्ग और कृषक

मध्ययुगीन यूरोपीय समाज को समझने के लिए स्रोत

  • भू – स्वामिता के विवरणों , मूल्यों और कानूनी मुकदमों जैसी बहुत सारी सामग्री दस्तावेजों के रूप में उपलब्ध थी ।
  • चर्चा में मिलने वाले जन्म मृत्यु और विवाह के अभिलेखों की मदद से ही परिवारों और जनसंख्या की संरचना को समझा जा सका ।
  • अभिलेखों ने व्यापारिक संस्थाओं के बारे में सूचना दी और गीत व कहानियों द्वारा हमे त्योहारों और सामुदायिक गतिविधियों के बारे में बोध हुआ ।
  • इन सभी का उपयोग इतिहासकार द्वारा आर्थिक एवं सामाजिक जीवन दीर्घकालीन अथवा अल्पकालीन परिवर्तनों को समझने में किया जा सकता है ।

मार्क ब्लॉक फ्रांस के विद्वानों के उस वर्ग से थे । जिनका यह तर्क था कि इतिहास को विषयवस्तु राजनीतिक इतिहास अंतर्राष्ट्रीय संबंध और महान व्यक्तियों की जीवनियों से कुछ अधिक है । उन्होंने भूगोल के महत्व द्वारा मानव इतिहास को गढ़ने पर जोर दिया जिससे कि लोगों के समूहों का व्यवहार और रख समझा जा सके ।

 

सामंतवाद का परिचय

  • सामंतवाद की जड़े रोमन साम्राज्य में विद्यमान प्रथाओं और फ्रांस के राजा शॉर्लमेन के काल में पाई गई ,
  • तथापि ऐसा कहा जाता है कि जीवन के सुनिश्चित तरीके के रूप में सामंतवाद की उत्पत्ति यूरोप के अनेक भागों में ग्यारहवीं सदी के उत्तरार्ध में हुई ।
  • यह जर्मन शब्द ‘ फ़्यूड ‘ से बना है जिसका अर्थ ‘ एक भूमि का टुकड़ा है ‘
  • यह एक ऐसे समाज को इंगित करता है जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैंड और दक्षिणी इटली में भी विकसित हुआ ।
  • इतिहासकारों द्वारा ‘ सामंतवाद ‘ शब्द का प्रयोग मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक , विधि क , राजनीतिक और सामाजिक संबंधों का वर्णन करने के लिए किया जाता रहा है ।

सामंतवाद की विशेषताएं

  • आर्थिक संदर्भ में सामंतवाद एक तरह के कृषि उत्पादन को इंगित करता है जो सामंत और कृषकों के संबंधों पर आधारित है ।
  • कृषक , अपने खेतों के साथ – साथ लॉर्ड के खेतों पर कार्य करते थे ।
  • कृषक लॉर्ड को श्रम – सेवा प्रदान करते थे और बदले में वे उन्हें सैनिक सुरक्षा देते थे ।
  • लॉर्ड के कृषकों पर व्यापक न्यायिक अधिकार भी थे ।
  • सामंतवाद ने जीवन के न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी अधिकार कर लिया ।

 

फ्रांस और इंग्लैंड गॉल

‘फ्रांस’ नाम का इतिहास

  • ( Gaul ) , जो रोमन साम्राज्य का एक प्रांत था , में दो विस्तृत तट – रेखाएँ , पर्वत श्रेणियाँ , लंबी नदियाँ , वन और कृषि करने के लिए उपयुक्त विस्तृत मैदान थे ।
  • जर्मनी की एक जनजाति , फ्रैंक ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया ।
  • छठी सदी से यह प्रदेश फ्रैंकिश अथवा फ्रांस के ईसाई राजाओं द्वारा शासित राज्य था ।
  • फ्रांसीसियों के चर्च के साथ प्रगाढ़ संबंध थे जो पोप द्वारा राजा शॉर्लमेन से समर्थन प्राप्त करने के लिए उसे पवित्र रोमन सम्राट की उपाधि दिए जाने पर और अधिक मजबूत हो गए ।

 

तीन वर्ग

  • फ्रांसीसी पादरी इस अवधारणा में विश्वास रखते थे कि प्रत्येक व्यक्ति कार्य के आधार पर तीन वर्गों में से किसी एक का सदस्य होता है ।
  • एक बिशप ने कहा “ यहाँ वर्ग क्रम में कुछ प्रार्थना करते हैं , दूसरे लड़ते हैं और शेष अन्य कार्य करते हैं “
  • इस तरह समाज मुख्य रूप से तीन वर्ग पादरी , अभिजात और कृषक वर्ग से बना था ।

प्रथम वर्ग- पादरी वर्ग

  • यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था जो प्रथम वर्ग के अंग थे
  • पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष पोप थे , जो रोम में रहते थे ।
  • कैथोलिक चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी जो राजा पर निर्भर नहीं थी ।
  • कैथोलिक चर्च के अपने नियम थे , राजा द्वारा दी गई भूमियाँ थीं जिनसे वे कर उगाह सकते थे ।
  • अधिकतर गाँवों में अपने चर्च हुआ करते थे जहाँ प्रत्येक रविवार लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा होते थे ।
  • जो पुरुष पादरी बनते थे वे शादी नहीं कर सकते थे ।
  • प्रत्येक व्यक्ति पादरी नहीं हो सकता था जैसे कृषि दास पर प्रतिबंध था शारीरिक रूप से बाधित व्यक्तियों पर और स्त्रियों पर भी प्रतिबंध था ।
  • बिशपों के पास भी लॉर्ड की तरह विस्तृत जागीरें थीं और वे शानदार महलों में रहते थे ।
  • चर्च को एक वर्ष के अंतराल में कृषक से उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था जिसे ‘ टीथ ‘ कहते थे
  • अमीरों द्वारा अपने कल्याण और मरणोपरांत अपने रिश्तेदारों के कल्याण हेतु दिया जाने वाला दान भी आय का एक स्रोत था ।
  • चर्च के औपचारिक रीति – रिवाज की कुछ महत्त्वपूर्ण रस्में , सामंती कुलीनों की नकल थीं ।
  • प्रार्थना करते वक्त हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकना , नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लॉर्ड के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेते वक्त अपनाए गए तरीके की नकल था ।
  • इसी प्रकार ईश्वर के लिए लॉर्ड शब्द का प्रचलन एक उदाहरण था जिसके द्वारा सामंती संस्कृति चर्च के उपासना कक्षों में प्रवेश करने लगी ।
  • इस प्रकार अनेक सांस्कृतिक सामंती रीति – रिवाजों चर्च की दुनिया में अपना लिया गया था ।

 

भिक्षु और मठ

  • कुछ विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक दूसरी तरह की संस्था थी और वे भिक्षु कहलाते थे ।
  • पादरियों के विपरीत वे लोगों के बीच में नगरों और गाँवों में रहते थे , एकांत जिंदगी जीना पसंद करते थे
  • वे धार्मिक समुदायों में रहते थे जिन्हें ऐबी ( Abbeys ) या मठ कहते थे और जो अधिकतर मनुष्य की आम आबादी से बहुत दूर होते थे ।
  • भिक्षु अपना सारा जीवन आँबे में रहने और समय प्रार्थना करने अध्ययन और कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेता था ।
  • पादरी कार्य के विपरीत भिक्षु की जिंदगी पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही अपना सकते थे
  • ऐसे पुरुषों को मोंक ( Monk ) तथा स्त्रियाँ नन ( Nun ) कहलाती थीं ।
  • कुछ आँबों को छोड़कर ज्यादातर में एक ही लिंग के व्यक्ति रह सकते थे ।
  • पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग – अलग ऑबे थे ।
  • पादरियों की तरह भिक्षु और भिक्षुणियाँ भी विवाह नहीं कर सकती थे ।
  • दो सबसे अधिक प्रसिद्ध मठ 529 में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट था और दूसरा 910 में बरगंडी में स्थापित क्लूनी ( Cluny ) था ।

 

चर्च और समाज

  • यूरोपवासी ईसाई बन गए थे
  • पर उन्होंने अभी भी चमत्कार और रीति – रिवाजों से जुड़े अपने पुराने विश्वासों को नहीं छोड़ा था ।
  • चौथी सदी से ही क्रिसमस और ईस्टर कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए थे ।
  • 25 दिसम्बर को मनाए जाने वाले ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक पुराने पूर्व – रोमन त्योहार का स्थान ले लिया ।
  • इस तिथि की गणना सौर पंचांग के आधार पर की गई थी ।
  • ईस्टर ईसा के शूलारोपण और उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था ।
  • इसने चन्द्र पंचांग ( lunar calendar ) पर आधारित एक प्राचीन त्योहार का स्थान लिया था जो लंबी सर्दी के पश्चात् बसंत के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाया जाता था ।
  • परंपरागत रूप में , उस दिन प्रत्येक गाँव के व्यक्ति अपने गाँव की भूमि का दौरा करते थे ।
  • काम से दबे कृषक इन पवित्र दिनों / छुट्टियों का स्वागत इसलिए करते थे क्योंकि इन दिनों उन्हें कोई काम नहीं करना पड़ता था ।
  • इसका अधिकतर समय मौज – मस्ती करने और दावतों में बिताते थे ।

 

दूसरा वर्ग- अभिजात वर्ग

  • सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी ।
  • भूमि पर उनके नियंत्रण के कारण था , यह वैसलेज ( Vassalage ) नामक एक प्रथा के विकास के कारण हुआ ।
  • बड़े भू – स्वामी और अभिजात वर्ग राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक भू स्वामियों के अधीन होते थे ।
  • फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव एक प्रथा के कारण था जिसे ‘ वैसलेज ‘ कहते थे
  • और यह प्रथा जर्मन मूल के लोगों , जिनमें से फ्रैंक लोग भी एक थे , में समान रूप से विद्यमान थी ।
  • ‘ वैसलेज ‘ प्रथा में अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी मान लेता था और वे आपस में वचनबद्ध होते थे- लॉर्ड दास ( Vassal ) की रक्षा करता था और बदले में वह उसके प्रति निष्ठावान रहता था ।
  • जो कि चर्च में बाईबल की शपथ लेकर की जाती थी ।
  • इस समारोह में दास को उस भूमि के प्रतीक रूप में , जो कि उसके मालिक द्वारा एक लिखित अधिकार पत्र या एक छड़ी ( staff ) या केवल एक मिट्टी का डला दिया जाता था ।
  • अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी ।
  • वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे और यहाँ तक कि अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे ।
  • वह अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे ( जो सामंती सेना , feudal levies , कहलाती थी ) ।
  • वे अपनी भूमि पर बसे सभी व्यक्तियों के मालिक थे ।
  • वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी थे जिसमें उनके घर , उनके निजी खेत जोत व चरागाह और उनके असामी कृषकों ( Tenant – peasant ) के घर और खेत होते थे ।
  • उनका घर ‘ मेनर ‘ कहलाता था ।
  • उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी जिनको आवश्यकता पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था और साथ ही साथ अपने खेतों पर भी काम करता पड़ता था ।

 

मेनर की जागीर

  • लॉर्ड का अपना मेनर भवन होता था जो सामंती समाज में उनका घर ‘ मेनर ‘ कहलाता था ।
  • लॉर्ड गाँवों पर नियंत्रण रखता था कुछ लॉर्ड , अनेक गाँवों के मालिक थे ।
  • किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर और बड़ी जागीर में 50 या 60 परिवार हो सकते थे ।
  • प्रतिदिन के उपभोग की प्रत्येक वस्तु जागीर पर मिलती थी
  • अनाज खेतों में उगाये जाते थे , लोहार और बढ़ई लॉर्ड के औज़ारों की देखभाल और हथियारों की मरम्मत करते थे , जबकि राजमिस्त्री उनकी इमारतों की देखभाल करते थे
  • औरतें वस्त्र कातती एवं बुनती थीं और बच्चे लॉर्ड की मदिरा सम्पीडक में कार्य करते थे ।
  • जागीरों में विस्तृत अरण्यभूमि और वन होते थे जहाँ लॉर्ड शिकार करते थे ।
  • उनके यहाँ चरागाह होते थे जहाँ उनके पशु और घोड़े चरते थे ।
  • वहाँ पर एक चर्च और सुरक्षा के लिए एक दुर्ग होता था ।
  • कुछ दुर्गों को बड़ा बनाया जाने लगा जिससे वे नाइट ( knight ) के परिवार का निवास स्थान बन सकें ।
  • इंग्लैंड में दुर्गों में विकास सामंत प्रथा के तहत राजनीतिक प्रशासन और सैनिक शक्ति के केंद्रों के रूप में हुआ था ।

 

नाइट

  • यूरोप में स्थानीय युद्ध प्रायः होते रहते थे ।
  • शौकिया कृषक सैनिक पर्याप्त नहीं थे और कुशल अश्वसेना की आवश्यकता थी । इसने एक नए वर्ग को बढ़ावा दिया जो नाइट्स ( Knights ) कहलाते थे ।
  • वे लॉर्ड से उसी प्रकार सम्बद्ध थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा से सम्बद्ध था ।
  • लॉर्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग ( जिसे फ़ीफ़ कहा गया ) दिया और उसकी रक्षा करने का वचन दिया
  • फ़ीफ़ ( fief ) को उत्तराधिकार में पाया जा सकता था ।
  • यह 1000-2000 एकड़ या उससे अधिक में फैली हुई हो सकती थी जिसमें नाइट और उसके परिवार के लिए एक पनचक्की और मदिरा संपीडक के अतिरिक्त , उसके व उसके परिवार के लिए घर , चर्च व्यवस्था शामिल थी ।
  • सामंती मेनर की तरह फ़ीफ़ की भूमि को कृषक जोतते थे ।
  • बदले में नाइट अपने लॉर्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था ।
  • नाइट अपनी सेवाएँ अन्य लॉडों को भी दे सकता था पर उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के लिए ही होती थी ।

 

तीसरा वर्ग- किसान , स्वतंत्र और बंधक

  • तीसरे वर्ग में अधिकांश लोग शामिल थे जो मुख्य रूप से किसान थे।
  • काश्तकार दो तरह के होते थे , स्वतंत्र किसान और सर्फ़ जिन्हें कृषि – दास कहा जाता है ।
  • स्वतंत्र कृषक अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार के रूप में देखते थे ।
  • पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था ( वर्ष में कम से कम चालीस दिन ) ।
  • कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे ।
  • इसके अतिरिक्त , जैसे गड्ढे खोदना , जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करना , बाड़ बनाना और सड़कें व इमारतों की मरम्मत करने की भी उम्मीद की जाती थी और इनके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी
  • खेतों में मदद करने के अतिरिक्त , स्त्रियों व बच्चों को अन्य कार्य भी करने पड़ते थे ।
  • वे सूत कातते कपड़ा बुनते , मोमबत्ती बनाते और लॉर्ड के उपयोग हेतु अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा तैयार करते थे ।
  • इसके साथ ही एक प्रत्यक्ष कर ‘ टैली ‘ ( Taille ) था जिसे राजा कृषकों पर कभी – कभी लगाते थे । ( पादरी और अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे ) ।
  • कृषिदास अपने गुजारे के लिए जिन भूखंडों पर कृषि करते थे वो लॉर्ड के स्वामित्व में थे । इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लॉर्ड को ही मिलती थी ।
  • वे उन भूखंडों पर भी कृषि करते थे जो केवल लॉर्ड के स्वामित्व में थी । इसके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी और वे लॉर्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे ।
  • सर्फ़ केवल अपने लॉर्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे , उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे और उनकी मदिरा संपीडक में ही आसवन – मदिरा और बीयर तैयार कर सकते थे ।
  • लॉर्ड यह तय कर सकता था कि कृषिदास को किसके साथ विवाह करना चाहिए या फिर कृषिदास की पसंद को ही अपना आशीर्वाद दे सकता था , परन्तु इसके लिए वह शुल्क लेता था ।

 

इंग्लैंड ‘ एजिल लैंड ‘

  • छठी सदी में मध्य यूरोप से एंजिल ( Angles ) और सैक्सन ( Saxons ) इंग्लैंड में आकर बस गए ।
  • इंग्लैंड देश का नाम ‘ एजिल लैंड ‘ का रूपांतरण है । इंग्लैंड में एंगल्स का निवास था।

 

सामाजिक और आर्थिक संबंधों को प्रभावित करने वाले कारक

  • ऐसी कई प्रक्रियाएँ थीं जो सामाजिक और आर्थिक संबंधों को प्रभावित कर रही थीं ।

 

पर्यावरण

  • पाँचवीं से दसवीं सदी तक यूरोप का अधिकांश भाग तीव्र ठंड से घिरा हुआ था । इस समय यूरोप में तीव्र ठंड का दौर चल रहा था ।
  • फसलों का उपज काल छोटा हो गया और इसके कारण कृषि की पैदावार कम हो गई ।
  • ग्यारहवीं सदी से यूरोप में एक गर्माहट का दौर शुरू हो गया और औसत तापमान बढ़ गया जिससे कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा ।
  • कृषकों को कृषि के लिए अब लंबी अवधि मिलने लगी ।
  • फलस्वरूप कृषि भूमि का विस्तार हुआ ।

 

भूमि का उपयोग

  • प्रारंभ में , कृषि प्रौद्योगिकी बहुत आदिम किस्म थी ।
  • कृषक को मिलने वाली यांत्रिक मदद केवल बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था ।
  • यह हल केवल पृथ्वी की सतह को खुरच सकता था ।
  • यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था ।
  • इसलिए कृषि में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था ।
  • भूमि को प्रायः चार वर्ष में एक बार हाथ से खोदा जाता था और उसमें अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती थी ।
  • साथ ही फ़सल चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो रहा था । भूमि को दो भागों में बाँट दिया जाता था ।
  • एक भाग में शरद ऋतु में सर्दी का गेहूँ बोया जाता था , जबकि दूसरी भूमि ,को परती या खाली रखा जाता था ।
  • अगले वर्ष परती भूमि पर राई बोई जाती थी जबकि दूसरा आधा भाग खाली रखा जाता था ।
  • इस व्यवस्था के कारण , मिट्टी की उर्वरता का धीरे – धीरे हास होने लगा और प्राय: अकाल पड़ने लगे ।
  • दीर्घकालिक कुपोषण और विनाशकारी अकाल बारी – बारी से पड़ने लगे जिससे गरीबों के लिए जीवन अत्यंत दुष्कर हो गया ।
  • भूमि के उत्पादन को बढ़ाना संभव नहीं था , इसलिए कृषकों को मेनरों की जागीर ( Manorial estate ) की समस्त भूमि को कृषिगत बनाने के लिए बाध्य होना पड़ता था
  • और इस कार्य को करने के लिए उन्हें निर्धारित समय से अधिक समय देना पड़ता था ।

 

नयी कृषि प्रौद्योगिकी

ग्याहरवीं सदी में विभिन्न प्रौद्योगिकियों में बदलाव के प्रमाण मिलते हैं ।

  • मूल रूप से लकड़ी से बने हल के स्थान पर लोहे की भारी नोक वाले हल और साँचेदार पटरे का उपयोग होने लगा ।
  • ऐसे हल अधिक गहरा खोद सकते थे और साँचेदार पटरे सही ढंग से उपरि मृदा को पलट सकते थे ।
  • इसके फलस्वरूप भूमि में व्याप्त पौष्टिक तत्वों का बेहतर उपयोग होने लगा ।
  • पशुओं को हलों में जोतने के तरीकों में सुधार हुआ
  • गले ( Neck harness ) के स्थान पर जुआ अब कंधे पर बाँधा जाने लगा । इससे पशुओं को अधिक शक्ति मिलने लगी ।
  • घोड़े के खुरों पर अब लोहे की नाल लगाई जाने लगी जिससे उनके खुर सुरक्षित हो गए ।
  • कृषि के लिए वायु और जल शक्ति का उपयोग बहुतायत में होने लगा ।
  • यूरोप में अन्न को पीसने और अंगूरों को निचोड़ने के लिए अधिक जलशक्ति और वायुशक्ति से चलने वाले कारखाने स्थापित हो रहे थे ।
  • भूमि के उपयोग के तरीके में भी बदलाव आया
  • दो खेतों वाली व्यवस्था से तीन खेतों वाली व्यवस्था में परिवर्तन इस व्यवस्था में कृषक तीन वर्षों में से दो वर्ष अपने खेत का उपयोग कर सकता था
  • बशर्ते वह एक फ़सल शरत् ऋतु में और उसके डेढ़ वर्ष पश्चात दूसरी बसंत में बोता ।
  • वे मानव उपभोग के लिए एक खेत में शरत ऋतु में गेहूँ या राई बो सकते थे ।
  • दूसरे में बसंत ऋतु में मटर , सेम और मसूर तथा घोड़ों के लिए जौ और बाजरा बो सकते थे ,
  • तीसरा खेत परती यानि खाली रखा जाता था । प्रत्येक वर्ष वे तीनों खेतों का प्रयोग बदल – बदल कर करते थे ।
  • इन सुधारों के कारण , भूमि की प्रत्येक इकाई में होने वाले उत्पादन में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई ।
  • मटर और सेम जैसे पौधों का अधिक उपयोग एक औसत यूरोपीय के आहार में अधिक प्रोटीन का तथा उनके पशुओं के लिए अच्छे चारे का स्रोत बन गया ।
  • फलस्वरूप कृषक अब कम भूमि पर अधिक भोजन का उत्पादन कर सकते थे ।
  • एक कृषक के खेत का औसत आकार सौ एकड़ से घटकर बीस से तीस एकड़ तक रह गया ।
  • छोटी जोतों पर अधिक कुशलता से कृषि की जा सकती थी और उसमें कम श्रम की आवश्यकता थी । इससे कृषकों को अन्य गतिविधियों के लिए समय मिला ।
  • ग्यारहवीं सदी से व्यक्तिगत संबंध , जो सामंतवाद का आधार थे कमज़ोर पड़ने लगे
  • क्योंकि आर्थिक लेन – देन अधिक से अधिक मुद्रा पर आधारित होने लगा ।
  • लॉडों को लगान , उनकी सेवाओं के बजाए नकदी में लेना अधिक सुविधाजनक लगने लगा
  • और कृषकों ने अपनी फ़सल व्यापारियों को मुद्रा में बेचना शुरू कर दिया | धन का बढ़ता उपयोग कीमतों को प्रभावित करने लगा जो खराब फसल के समय बहुत अधिक हो जाती थीं ।

 

चौथा वर्ग ? नए नगर और नगरवासी

  • कृषि में विस्तार के साथ ही तीन क्षेत्रों में जनसंख्या व्यापार और नगरों का विस्तार हुआ ।
  • यूरोप की जनसंख्या जो 1000 में लगभग 420 लाख थी बढ़कर 1200 में लगभग 620 लाख और 1300 में 730 लाख हो गई ।
  • बेहतर आहार का अर्थ लंबी जीवन अवधि था ।
  • एक औसत यूरोपीय आठवीं सदी की तुलना में दस वर्ष अधिक जी सकता था ।
  • पुरुषों की तुलना में स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन अवधि छोटी होती थी क्योंकि पुरुष बेहतर भोजन करते थे ।
  • जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप रोमन साम्राज्य में नगरों का विकास हुआ
  • जिन कृषकों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न होता था , उन्हें एक ऐसे स्थान की आवश्यकता महसूस हुई जहाँ वे अपना एक बिक्री केन्द्र स्थापित कर सकें और जहाँ से वे अपने उपकरण और कपड़े खरीद सकें ।
  • इस ज़रूरत ने मियादी हाट मेलों को बढ़ावा दिया और छोटे विपणन केन्द्रों का विकास किया जिनमें धीरे – धीरे नगरों के लक्षण विकसित होने लगे एक नगर चौक , चर्च , सड़कें जहाँ पर व्यापारी , घर और दुकानों का निर्माण कर सकें
  • और एक कार्यालय जहाँ से नगर पर शासन करने वाले व्यक्ति मिल सकें ।
  • दूसरे स्थानों पर नगरों का विकास , बड़े दुर्गों , बिशपों की जागीरों और बड़े चर्चा के चारों तरफ होने लगा ।
  • नगरों में लोग , सेवा के स्थान पर , उन लॉडों को जिनकी भूमि पर नगर बसे थे , कर देने लगे ।
  • नगरों ने कृषक परिवारों के जवान लोगों को वैतनिक कार्य और लॉर्ड के नियंत्रण से मुक्ति की अधिक संभावनाएँ प्रदान कीं ।
  • नगर की हवा स्वतंत्र बनाती है । एक प्रसिद्ध कहावत थी ।
  • अपने लॉर्ड की नज़रों से एक वर्ष व एक दिन तक छिपे रहने में सफल रहने वाला कृषिदास एक स्वाधीन नागरिक बन जाता था ।
  • दुकानदार और व्यापारी बहुतायत में थे । बाद में विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों जैसे साहूकार और वकीलों की आवश्यकता हुई ।
  • बड़े नगरों की जनसंख्या लगभग तीस हज़ार होती थी । ये कहा जा सकता है कि उन्होंने समाज में एक चौथा वर्ग बना लिया था ।

 

कथीडूल – नगर

  • बड़े चर्चों को कहा कथीड्ल जाता था ।
  • बारहवीं सदी से फ्रांस में कथीड्ल का निर्माण होने लगा ।
  • यद्यपि वे मठों की संपत्ति थे पर लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम , वस्तुओं और धन से उनके निर्माण में सहयोग दिया ।
  • कथीड्ल कथील पत्थर के बने होते थे और उन्हें पूरा करने में अनेक वर्ष लगते थे ।
  • कथीडूल के आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया और जब उनका निर्माण पूर्ण हुआ तो वे स्थान तीर्थ स्थल बन गए ।
  • इस प्रकार , उनके चारों तरफ छोटे नगर विकसित हुए ।
  • कथील इस प्रकार बनाए गए थे कि पादरी की आवाज़ लोगों के जमा होने वाले सभागार में साफ सुनाई पड़ सके
  • और भिक्षुओं का गायन भी अधिक मधुर सुनाई पड़े
  • साथ ही लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घंटियाँ दूर तक सुनाई पड़ सकें ।
  • खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग होता था ।
  • दिन के वक्त सूरज की रोशनी उन्हें कथीड्रल के अंदर के व्यक्तियों के लिए चमकदार बना देती थी और सूर्यास्त के पश्चात मोमबत्तियों की रो उन्हें बाहर के व्यक्तियों के लिए दृश्यमान बनाती थी ।
  • अभिरंजित काँच की खिड़कियों पर बने चित्र बाईबल की कथाओं का वर्णन करते थे जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति भी ‘ पढ़ ‘ सकते थे ।

 

चौदहवीं सदी का संकट

  • चौदहवीं सदी की शुरुआत तक , यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ गया ।
  • तेरहवीं सदी में पिछले तीन सौ वर्षों की तेज़ ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठंडी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया था
  • पैदावार वाले मौसम छोटे हो गए और ऊँची भूमि पर फसल उगाना कठिन हो गया ।
  • तूफानों और सागरीय बाढ़ों ने अनेक फार्म प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया जिसके परिणामस्वरूप सरकार को करों द्वारा कम आमदनी हुई
  • जनसंख्या वृद्धि इतनी तेजी से हुई कि उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए जिसका तात्कालिक परिणाम था अकाल
  • ऑस्ट्रिया और सर्बिया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी के कारण धातु मुद्रा में भारी कमी आई जिससे व्यापार प्रभावित हुआ ।
  • पोतों के साथ – साथ चूहे आए जो अपने साथ ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण ( Black death ) लाए ।
  • इस विनाशलीला के साथ आर्थिक मंदी के जुड़ने से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ ।
  • कृषि और उत्पादन के बीच गंभीर असंतुलन उत्पन्न हो गया

 

सामाजिक असंतोष

  • लॉडों की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई ।
  • मजदूरी की दरें बढ़ने तथा कृषि संबंधी मूल्यों की गिरावट ने अभिजात वर्ग की आमदनी को घटा दिया ।
  • निराशा में उन्होंने उन धन संबंधी अनुबंधों को तोड़ दिया और उन्होंने पुरानी मज़दूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया ।
  • इसका कृषकों विशेषकर पढ़े – लिखे और समृद्ध कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया ।
  • 1323 में कृषकों ने फ्लैंडर्स ( Flanders ) में 1358 में फ्रांस में और 1381 में इंग्लैंड में विद्रोह किए ।
  • यद्यपि इन विद्रोहों का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया पर महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये विद्रोह सर्वाधिक हिंसक तरीकों से उन स्थानों पर हुए जहाँ पर आर्थिक विस्तार के कारण समृद्धि हुई थी ।
  • यह इस बात का संकेत था कि कृषक पिछली सदियों में हुए लाभों को बचाने का प्रयास कर रहे थे ।
  • तीव्र दमन के बावजूद कृषक विद्रोहों की तीव्रता ने यह सुनिश्चित कर दिया कि सामंती रिश्तों को पुनः लादा नहीं जा सकता ।
  • लॉर्ड विद्रोहों का दमन करने में सफल रहे , परन्तु कृषकों ने यह सुनिश्चित कर लिया कि दासता के पुराने दिन फिर नहीं लौटेंगे ।

पंद्रहवीं और सोलहवीं सदि में राजनीतिक परिवर्तन

  • राजनीतिक हलकों में हुए विकास , सामाजिक प्रक्रियाओं के साथ – साथ होते रहे ।
  • पंद्रहवीं और सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति को बढ़ाया ।
  • बारहवीं और तेरहवीं सदी में होने वाला सामाजिक परिवर्तन राजतंत्रों की सफलता का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण था ।
  • यूरोप के लिए उनके द्वारा बनाए गए नए शक्तिशाली राज्य उस समय होने वाले आर्थिक बदलावों के समान ही महत्त्वपूर्ण थे ।
  • इतिहासकार इन राजाओं को ‘ नए शासक ‘ ( the new monarchs ) कहने लगे ।
  • फ्रांस में लुई ग्यारहवें आस्ट्रिया में मैक्समिलन , इंग्लैंड में हेनरी सप्तम और स्पेन में ईसाबेला और फरडीनेंड , निरकुंश शासक थे
  • जिन्होंने संगठित स्थायी सेनाओं की प्रक्रिया एक स्थायी नौकरशाही और राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया को शुरू किया ।
  • स्पेन और पुर्तगाल ने यूरोप के समुद्र पार विस्तार की नयी संभावनाओं की शुरुआत की ।
  • शासकों ने सामंतों से अपनी सेना के लिए कर लेना बंद कर दिया और उसके स्थान पर बंदूकों और बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना बनाई जो पूर्ण रूप से उनके अधीन थी ।
  • अभिजात वर्ग का विरोध राजाओं की गोली के शक्ति प्रदर्शन के समक्ष टुकड़े – टुकड़े हो गया ।
  • केंद्रीकृत शक्ति ने अभिजात वर्ग के टकराव को आसानी से स्थापित नहीं किया।
  • अभिजात वर्ग ने अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए एक चतुरतापूर्ण परिवर्तन किया ।
  • नई शासन व्यवस्था के विरोधी रहने के स्थान पर उन्होंने जल्दी ही अपने को राजभक्तों में बदल – लिया
  • शासक अब उस पिरामिड के शिखर पर नहीं था जहाँ राजभक्ति विश्वास और आपसी निर्भरता पर टिकी थी ।
  • वह अब व्यापक दरबारी समाज और आश्रयदाता अनुयायी तंत्र का केंद्र बिंदु था ।
  • सभी राजतंत्र , चाहे वे कितने भी कमजोर या शक्तिशाली हों , उन व्यक्तियों का सहयोग चाहते थे , जिनके पास सत्ता हो ।
  • धन इस प्रकार के सहयोग को सुनिश्चित करने का साधन बन गया समर्थन धन के माध्यम से दिया या प्राप्त किया जा सकता था ।
  • इसलिए , धन ग़ैर – अभिजात वर्गों जैसे व्यापारियों और साहूकारों के लिए दरबार में प्रवेश करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बन गया ।
  • वे राजाओं को धन उधार देते थे जो इसका उपयोग सैनिकों को वेतन देने के लिए करते थे । शासकों ने इस प्रकार राज्य व्यवस्था में ग़ैर सामंती तत्त्वों के लिए स्थान बना दिया ।
  • फ्रांस और इंग्लैंड का बाद का इतिहास इन शक्ति संरचनाओं में हो रहे परिवर्तनों से बनना था ।

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