NCERT Notes For Class 11 History Chapter 4 In Hindi इस्लाम का उदय और विस्तार – लगभग 570-1200 ई.

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NCERT Notes For Class 11 History Chapter 4 In Hindi इस्लाम का उदय और विस्तार – लगभग 570-1200 ई.

 

केंद्रीय इस्लामी भूमि को समझने के लिए स्रोत

  • 600 से 1200 तक के इतिहास के बारे में हमारी समझ इतिवृत्तों अथवा तवारीख पर ( जिसमें घटनाओं का वृत्तात कालक्रम के अनुसार दिया जाता है ) और अर्ध ऐतिहासिक कृतियों पर आधारित है ,
  • जैसे जीवन चरित ( सिरा ) , पैगम्बर के कथनों और कृत्यों के अभिलेख ( हृदांथ ) और क़ुरान के बारे में टीकाएँ ( तफसीर ) |
  • प्रत्यक्षदर्शी वृत्तातों ( अखबार ) का बहुत बड़ा संग्रह था , मौखिक रूप से बताकर अथवा कागज पर लिखित रूप में लोगों तक पहुँचे ।
  • ऐसी प्रत्येक सूचना ( ख़बर ) की प्रामाणिकता की जाँच एक आलोचनात्मक तरीके से की जाती थी , जिसमें सूचना भेजने ( इस्नाद ) को श्रृंखला का पता लगाया जाता था
  • सीरियाक में लिखे ईसाई वृत्तांत ग्रंथ कम हैं , लेकिन उनसे प्रारंभिक इस्लाम के इतिहास पर महत्त्वपूर्ण रोशनी पड़ती है ।
  • इतिवृत्तों के अलावा , हमें कानूनी पुस्तकें , भूगोल , यात्रा वृत्तांत और साहित्यिक रचनाएँ जैसे कहानियाँ और कविताएँ प्राप्त होती हैं ।

 

अरब में इस्लाम का उदय

मुहम्मद से पहले अरब

  • मुहम्मद से पहले अरब लोग कबीलों में बँटे हुए थे ।
  • प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था , जो कुछ हद तक पारिवारिक संबंधों के आधार पर , लेकिन ज्यादातर व्यक्तिगत साहस , बुद्धिमत्ता और उदारता ( मुरव्वा ) के आधार पर चुना जाता था ।
  • ( बदू यानी बेदूइन ) होते थे , जो खाद्य ( मुख्यतः खजूर ) और अपने ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान में सूखे क्षेत्रों से हरे – भरे क्षेत्रों ( नखलिस्तानों ) की ओर जाते रहते थे ।
  • कुछ शहरों में बस गए थे और व्यापार अथवा खेती का काम करने लगे थे ।

मक्का का महत्व

  • पैगम्बर मुहम्मद का अपना कबीला , कुरैश , मक्का में रहता था और उसका वहाँ के मुख्य धर्मस्थल पर नियंत्रण था । इस स्थल ‘ काबा ‘ कहा जाता था , जिसमें बुत रखे हुए थे ।
  • मक्का के बाहर के कबीले भी काबा को पवित्र मानते थे , वे इस में अपने भी बुत रखते थे और हर वर्ष इस इबादतगाह की धार्मिक यात्रा ( हज ) करते थे ।
  • मक्का यमन और सीरिया के बीच के व्यापारी मार्गों के एक चौराहे पर स्थित था , जिससे शहर का महत्त्व और बढ़ गया था

पैगंबर मुहम्मद के सिद्धांत और संदेश

  • पैगम्बर मुहम्मद सौदागर थे और भाषा तथा संस्कृति की दृष्टि से अरबी थे ।
  • पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का संदेशवाहक ( रसूल ) घोषित किया , जिन्हें यह प्रचार करने का आदेश दिया गया था कि केवल अल्लाह की ही इबादत यानी आराधना की जानी चाहिए ।
  • इबादत की विधियाँ बड़ी सरल थीं , जैसे दैनिक प्रार्थना ( सलात ) और नैतिक सिद्धांत , जैसे खैरात बाँटना और चोरी न करना ।
  • पैगम्बर मुहम्मद ने बताया कि उन्हें आस्तिकों ( उम्मा ) के ऐसे समाज की स्थापना करनी है , जो सामान्य धार्मिक विश्वासों के ज़रिये आपस में जुड़े हुए हों ।
  • जो इस धर्म – सिद्धांत को स्वीकार कर लेते थे , उन्हें मुसलमान ( मुस्लिम ) कहा जाता था
  • उन्हें कयामत के दिन मुक्ति और धरती पर रहते हुए समाज के संसाधनों में हिस्सा देने का आश्वासन दिया जाता था ।

सन् 622 में , पैगम्बर मुहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मदीना कूचकर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा । पैगम्बर मुहम्मद की इस यात्रा ( हिजरा ) से इस्लाम के इतिहास में एक नया मोड़ आया । जिस वर्ष उनका आगमन मदीना में हुआ उस वर्ष से मुस्लिम कैलेंडर यानी हिजरी सन् की शुरुआत हुई ।

इस्लामी कैलेंडर

  • हिजरी सन् की स्थापना उमर की खिलाफत के समय की गई थी , जिसका पहला वर्ष 622 ई . में पड़ता था ।
  • हिजरी सन् की तारीख को जब अंग्रेज़ी में लिखा जाता है तो वर्ष के बाद ए.एच. लगाया जाता है ।
  • हिजरी वर्ष चन्द्र वर्ष हैं , जिसमें 354 दिन , 29 अथवा 30 दिनों के 12 महीने होते हैं ।
  • प्रत्येक दिन सूर्यास्त के समय से और प्रत्येक महीना अर्धचन्द्र के दिन से शुरू होता है
  • हिजरी वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन कम होता है ।
  • अतः हिजरी का कोई भी धार्मिक त्योहार मौसम के अनुरूप नहीं होता ।

खिलाफत और उसके उद्देश्य

  • सन् 632 में पैगम्बर मुहम्मद के देहांत के बाद कोई भी इस्लाम का अगला पैगम्बर होने का दावा नहीं कर सकता था ।
  • इसके परिणामस्वरूप उनकी राजनैतिक सत्ता , उत्तराधिकार के किसी सुस्थापित सिद्धांत के अभाव में उम्मा को अंतरित कर दी गई ।
  • इससे नवाचारों के लिए अवसर उत्पन्न हुए , सबसे बड़ा नव – परिवर्तन यह हुआ कि खिलाफ़त की संस्था का निर्माण हुआ ,
  • जिसमें समुदाय का नेता ( अमीर अल – मोमिनिन ) पैगम्बर का प्रतिनिधि ( खलीफ़ा ) बन गया ।
  • खिलाफ़त के दो प्रमुख उद्देश्य थे :
  • एक तो कबीलों पर नियंत्रण कायम करना , जिनसे मिलकर उस्मा का गठन हुआ था
  • दूसरा , राज्य के लिए संसाधन जुटाना ।

पहले चार ख़लीफ़ा

  • पहले खलीफ़ा अबू बकर ने अनेक अभियानों द्वारा विद्रोहों का दमन किया ।
  • दूसरे खलीफा उमर ने उम्मा की सत्ता के विस्तार की नीति को रूप प्रदान किया ।
  • तीसरा खलीफ़ा , उथमान ( 644-56 ) भी एक कुरैश था और उसने अधिक नियंत्रण प्राप्त करने के लिए प्रशासन को अपने ही आदमियों से भर दिया । और इससे इराक और मिस्र में विरोध हुआ |
  • अली को चौथा खलीफ़ा नियुक्त किया गया । अली के समर्थक और दुश्मन बाद में इस्लाम के दो मुख्य संप्रदाय बन गए: शिया और सुन्नी

खलीफाओं द्वारा विजित प्रदेशों का प्रशासन

  • जीते गए सभी प्रांतों में खलीफ़ाओं ने नया प्रशासनिक ढाँचा लागू किया , जिनके अध्यक्ष गवर्नर ( अमीर ) और कबीलों के मुखिया ( अशरफ ) थे ।
  • केंद्रीय राजकोष ( बैत अल – माल ) अपना राजस्व मुसलमानों द्वारा अदा किए जाने वाले करों से और इसके अलावा धावों से मिलने वाली लूट में अपने हिस्से से प्राप्त करता था ।
  • खलीफ़ा के सैनिक , जिनमें अधिकतर बेदुइन थे , रेगिस्तान के किनारों पर बसे शहरों , जैसे कुफ़ा और बसरा में शिविरों में रहते थे ,
  • ताकि वे अपने प्राकृतिक आवास स्थलों के निकट और खलीफ़ा की कमान के अंतर्गत बने रहें ।
  • शासक वर्ग और सैनिकों को लूट में हिस्सा मिलता था और मासिक अदायगियाँ ( अता ) प्राप्त होती थीं
  • ग़ैर – मुस्लिम लोगों द्वारा करों ( खराज और जिज़िया ) को अदा करने पर उनका सम्पत्ति का और धार्मिक कार्यों को संपन्न करने का अधिकार बना रहता था ।
  • यहूदी और ईसाई राज्य के संरक्षित लोग ( धिम्मीस ) घोषित किए गए और अपने सामुदायिक कार्यों को करने के लिए उन्हें काफ़ी अधिक स्वायत्तता दी गई थी ।

उमय्यद और उमय्यदों द्वारा राजनीति या प्रशासन में पेश किए गए परिवर्तन

  • मुआविया ने 661 में अपने आपको अगला खलीफा घोषित कर दिया और उमय्यद वंश की स्थापना की , जो 750 तक चलता रहा ।
  • उमय्यद, कुरैश कबीले का एक समृद्ध वंश था |
  • उमय्यदों ने ऐसे बहुत से राजनीतिक उपाय किए जिनसे उम्मा के भीतर उनका नेतृत्व सुदृढ़ हो गया ।
  • पहले उमय्यद खलीफा मुआविया ने दमिश्क को अपनी राजधानी बनाया और फिर बाइजेंटाइन साम्राज्य की राजदरबारी रस्मों और प्रशासनिक संस्थाओं को अपना लिया ।
  • उसने वंशगत उत्तराधिकार की परंपरा भी प्रारंभ की और प्रमुख मुसलमानों को मना लिया कि वे उसके पुत्र को उसका वारिस स्वीकार करें ।
  • प्रशासन में ईसाई सलाहकार और इसके अलावा जरतुश्त लिपिक और अधिकारी भी शामिल थे । लेकिन , इस्लाम उमय्यद शासन को वैधता प्रदान करता रहा ।
  • उमय्यद राज्य अब एक साम्राज्यिक शक्ति बन चुका था ; अब वह सीधे इस्लाम पर आधारित नहीं था , बल्कि वह शासन कला और सीरियाई सैनिकों की बफादारी के बल पर चल रहा था ।
  • उमय्यद हमेशा एकता के लिए अनुरोध करते रहे और विद्रोहों को इस्लाम के नाम पर दबाते रहे ।

अब्द-अल-मलिक का योगदान

  • अब्द अल – मलिक और उसके उत्तराधिकारियों के शासनकाल में अरब और इस्लाम दोनों पहचानों पर मजबूती से बल दिया जाता रहा ।
  • अब्द अल – मलिक ने जो नीतियाँ अपनाई , उनमें अरबी को प्रशासन की भाषा के रूप में अपनाना और इस्लामी सिक्कों को जारी करना शामिल था ।
  • अब्द अल – मलिक द्वारा जेरुसलम में निर्मित चट्टान का गुम्बद अरब इस्लामी वास्तुकला का यह पहला बड़ा नमूना है ।
  • खिलाफत में जो सोने के दीनार और चाँदी के दिरहम चल रहे थे . वे रोमन और ईरानी सिक्कों ( दिनारियस और द्राख्मा ) की अनुकृतियाँ थे , जिन पर सलीब और अग्नि – वेदी के चिह्न बने होते थे और यूनानी और पहलवी ( ईरान की भाषा ) भाषा में लेख अंकित होते थे ।

 

अब्बासी क्रांति

  • उमय्यद वंश को भारी कीमत चुकानी पड़ी , दवा नामक एक सुनियोजित आंदोलन ने उमय्यद वंश को उखाड़ फेंका ।
  • 750 में इस वंश की जगह अब्बासियों ने ले ली जो मक्का के ही थे
  • अब्बासियों ने उमय्यद शासन को दुष्ट बताया और यह दावा किया कि वे पैगम्बर मुहम्मद के मूल इस्लाम की पुनस्थापना करेंगे ।
  • उनकी सेना का नेतृत्व एक ईरानी गुलाम अबू मुस्लिम ने किया , जिसने अंतिम उमय्यद खलीफा , मारवान को जब नदी पर हुई लड़ाई में हराया ।

अब्बासी शासन

  • अब्बासी शासन के अंतर्गत अरबों के प्रभाव में गिरावट आई . जबकि ईरानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया ।
  • अब्बासियों ने अपनी राजधानी, बगदाद में स्थापित की ।
  • इराक और खुरासान की अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए , सेना और नौकरशाही का पुनर्गठन गैर – कबीलाई आधार पर किया गया ।
  • अब्बासी शासकों ने खिलाफ़त की धार्मिक स्थिति और कार्यों को मजबूत बनाया और इस्लामी संस्थाओं और विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया ।
  • लेकिन सरकार और साम्राज्य की जरूरतों ने उन्हें राज्य के केंद्रीय स्वरूप को बनाए रखने के लिए मजबूर किया ।
  • उन्होंने उमय्यदों के शानदार शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपराओं को बराबर कायम रखा ।

 

खिलाफ़त का विघटन और सल्तनतों का उदय

  • अब्बासी राज्य नौवीं शताब्दी से कमज़ोर होता गया , क्योंकि दूर के प्रांतों पर बग़दाद का नियंत्रण कम हो गया था
  • इसका एक कारण यह भी था कि सेना और नौकरशाही में अरब समर्थक और ईरान समर्थक गुटों में आपस में झगड़ा हो गया था ।
  • सन् 810 में , खलीफ़ा हारुन अल रशीद के पुत्रों , अमीन और मामुन के समर्थकों के बीच गृह युद्ध शुरू हो गया , जिससे गुटबन्दी और गहरी हो गई और तुर्की गुलाम अधिकारियों ( मामलुक ) का एक नया शक्ति गुट बन गया ।
  • बहुत से नए छोटे राजवंश उत्पन्न हो गए अब्बासियों की सत्ता जल्दी हो मध्य इराक और पश्चिमी ईरान तक सीमित रह गई ।
  • सन् 945, में जब ईरान के कैस्पियन क्षेत्र ( ईलाम ) के बुवाही नामक शिया वंश ने बग़दाद पर कब्जा कर लिया । उन्होंने अब्बासी खलीफ़ा को अपने सुन्नी प्रजाजनों के प्रतीकात्मक मुखिया के रूप में बनाए रखा । gfdd
  • फ़ातिमी – फ़ातिमी का संबंध शिया सम्प्रदाय के एक उप – सम्प्रदाय इस्माइली से था और उनका दावा था कि वे पैगम्बर की बेटी , फ़ातिमा , के वंशज हैं और इसलिए वे इस्लाम के एकमात्र न्यायसंगत शासक हैं । उत्तरी अफ्रीका में अपने अड्डे से , उन्होंने 969 में मिस्र को जीता और फ़ातिमी खिलाफ़त की स्थापना की । मिस्र के नए शहर , काहिरा को राजधानी बनाया गया ,
  • तुर्क – तुर्क , तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के मैदानों के खानाबदोश कबाइली लोग थे , जिन्होंने धीरे – धीरे इस्लामको अपना लिया । वे कुशल सवार और योद्धा थे और वे गुलामों और सैनिकों के रूप में अब्बासी , समानी और बुवाही प्रशासनों में शामिल हो गए और अपनी वफ़ादारी तथा सैनिक योग्यताओं के कारण तरक्की करके उच्च पदों पर पहुँच गए ।

सल्तनत का उदय

  • गजनी सल्तनत की स्थापना अल्पतिगिन ( 961 ) द्वारा की गई थी और उसे गज़नी के महमूद द्वारा मज़बूत किया गया ।
  • गज़नवी एक सैनिक वंश था , जिनके पास तुर्कों और भारतीयों जैसी पेशेवर सेना थी
  • लेकिन उनकी सत्ता और शक्ति का केंद्र खुरासान और अफ़गानिस्तान में था और उनके लिए अब्बासी ख़लीफ़े प्रतिद्वंदी नहीं थे , बल्कि उनकी वैधता के स्रोत थे ।
  • महमूद ख़लीफ़ा से सुलतान की उपाधि प्राप्त करने के लिए बहुत इच्छुक था ।
  • खलीफ़ा शिया सत्ता के प्रति संतुलनकारी घड़े के रूप में गज़नवी को , जो सुन्नी था , समर्थन देने के लिए राज़ी था ।
  • सलजुक तुर्क समानियों और काराखानियों की सेनाओं में सैनिकों के रूप में तुरान में दाखिल हो गए ।
  • उन्होंने बाद में अपने आपको दो भाइयों , तुगरिल और छागरी बेग के नेतृत्व में एक शक्तिशाली समूह के रूप में स्थापित कर लिया
  • गज़नी के की मृत्यु के बाद सल्जुकों ने 1037 में खुरासान को जीत लिया और निशापुर को अपनी पहली राजधानी बनाया ।
  • इसके बाद सल्जुकों ने अपना ध्यान पश्चिमी फारस और इराक की ओर दिया और 1055 में बग़दाद को पुनः सुन्नी शासन के अधीन कर दिया ।
  • खलीफ़ा अल – क़ायम ने तुगरिल बैग को सुलतान की उपाधि प्रदान की , दोनों सल्जुन भाइयों ने इकट्ठे मिल कर शासन किया ।

 

धर्मयुद्ध

  • मध्यकाल के इस्लामी समाजों में ईसाइयों को पुस्तक वाले लोग समझा जाता था , क्योंकि उनके पास उनका अपना धर्मग्रंथ था ।
  • व्यापारियों , तीर्थयात्रियों , राजदूतों और यात्रियों के रूप में मुस्लिम राज्यों में आने वाले ईसाइयों को सुरक्षा ( अमन ) प्रदान की जाती थी ।
  • इन क्षेत्रों में वे क्षेत्र भी शामिल थे , जिन पर कभी बाइजेंटाइन साम्राज्य का कब्ज़ा था , विशेष रूप से फिलिस्तीन की पवित्र भूमि अरबों ने जेरूसलम को 638 में जीत लिया था ,
  • ईसाई यूरोप में मुस्लिम जगत की छवि के निर्माण में यह एक महत्त्वपूर्ण तत्व था ।
  • 1092 में बादाद के सलजुक सुलतान . मलिक शाह की मृत्यु के बाद उसके साम्राज्य का विघटन हो गया ।
  • इससे बाइजेंटाइन सम्राट एलेक्सियस प्रथम ( Alexius I ) को एशिया माइनर और उत्तरी सीरिया को फिर से हथियाने का मौका मिल गया ।
  • पोप अर्बन द्वितीय ने बाइजेंटाइन सम्राट के साथ मिलकर पुण्य देश ( होली लँड ) को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर युद्ध के लिए आहवान कर लिया ।
  • 1095 और 1291 के बीच पश्चिमी यूरोपीय ईसाइयों में लगातार अनेक युद्ध लड़े गए । इन लड़ाइयों को बाद में ‘ धर्मयुद्ध का नाम दिया गया ।

I, II और III धर्मयुद्ध युद्ध

  • प्रथम धर्मयुद्ध ( 1098-1099 ) में फ्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओक और जेरूसलम पर कब्ज़ा कर लिया । शहर में मुसलमानों और यहूदियों की विद्वेषपूर्ण हत्याएँ की गईं और शहर पर विजय प्राप्त कर ली गई ,
  • ईसाइयों ने सीरिया- फिलिस्तीन के क्षेत्र में जल्दी ही धर्मयुद्ध द्वारा जीते गए चार राज्य स्थापित कर लिए । इन क्षेत्रों को सामूहिक रूप से ‘ आउटरैमर ‘ ( समुद्रपारीय भूमि ) कहा जाता था
  • जब तुर्कों ने 1144 में एडेस्सा पर कब्ज़ा कर लिया तो पोप ने एक दूसरे धर्मयुद्ध ( 1145-1149 ) के लिए अपील की ।
  • एक जर्मन और फ्रांसीसी सेना ने दमिश्क पर कब्ज़ा करने की कोशिश की , लेकिन उन्हें हरा कर घर लौटने के लिए मजबूर कर दिया गया ।
  • इसके बाद आउटरैमर की शक्ति धीरे – धीरे क्षीण होती गई ।
  • सलाह अल – दीन ( सलादीन ) ने एक मिस्री – सीरियाई साम्राज्य स्थापितः किया और ईसाइयों के विरुद्ध धर्मयुद्ध करने का आह्वान किया और उन्हें 1187 में पराजित कर दिया । उसने पहले धर्मयुद्ध के लगभग एक शताब्दी बाद , जेरूसलम पर फिर से कब्जा कर लिया ।
  • इस शहर के छिन जाने से 1189 में तीसरे धर्मयुद्ध के लिए प्रोत्साहन मिला , लेकिन धर्मयुद्ध करने वाले फिलिस्तीन में कुछ तटवर्ती शहरों और ईसाई तीर्थयात्रियों के लिए जेरूसलम में मुक्त रूप से प्रवेश के सिवाय और कुछ प्राप्त नहीं कर सके ।
  • मिस्र शासकों , मामलुकों ने अंतत: 1291 में धर्मयुद्ध करने वाले सभी ईसाइयों को समूचे फिलिस्तीन से बाहर निकाल दिया ।
  • इन धर्मयुद्धों ने ईसाई मुस्लिम संबंधों के दो पहलुओं पर स्थायी प्रभाव छोड़ा ।
  • इनमें से एक था , मुस्लिम राज्यों का अपने ईसाई प्रजाजनों की ओर कठोर रुख , जो लड़ाइयों की कड़वी यादों और मिली – जुली आबादी वाले इलाकों में सुरक्षा की जरूरतों का परिणाम था ।
  • दूसरा था , मुस्लिम सत्ता की बहाली के बाद भी पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार में इटली के व्यापारिक समुदायों

 

अर्थव्यवस्था कृषि , शहरीकरण और वाणिज्य

कृषि

  • नए जीते गए क्षेत्रों में बसे हुए लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था
  • कृषि भूमि का सर्वोपरि नियंत्रण राज्य के हाथों में था ,जो विजय का काम पूरा होने पर अपनी अधिकांश आय भू – राजस्व से प्राप्त करता था ।
  • अरबों द्वारा जीती गई भूमि पर , जो मालिकों के हाथों में रहती थी , कर ( खराज ) लगता था , जो पैदावार के आधे से लेकर उसके पांचवें हिस्से के बराबर होता था
  • जो ज़मीन मुसलमानों की थी अथवा जिसमें उनके द्वारा खेती की जाती थी , उस पर उपज के दसवें हिस्से के बराबर कर लगता था ।
  • जब ग़ैर – मुसलमान कम कर देने के उद्देश्य से मुसलमान बनने लगे तो उससे राज्य की आय कम हो गई ।
  • इस कमी को पूरा करने के लिए खलीफ़ाओं ने पहले तो धर्मांतरण को निरुत्साहित किया
  • और बाद में कराधान की एकसमान नीति अपनाई
  • 10 वीं शताब्दी से राज्य ने अधिकारियों को अपना वेतन भूमियों के कृषि राजस्व से , जिसे इक्ता कहा जाता था , लेने के लिए प्राधिकृत किया ।
  • बहुत से क्षेत्रों में राज्य ने सिंचाई प्रणालियों , बाँधों और नहरों के निर्माण , कुओं की खुदाई के लिए सहायता दी ।
  • इस्लामी कानून में उन लोगों को कर में रियायत दी गई जो जमीन को पहली बार खेती के काम में लाते थे ।
  • किसानों की पहल और राज्य के समर्थन के ज़रिए खेती योग्य भूमि का विस्तार हुआ और प्रमुख प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों के अभाव की स्थिति में भी उत्पादकता में वृद्धि हुई ।
  • नयी फ़सलों ; जैसे- कपास , संतरा , केला , तरबूज , पालक और बैंगन की खेती की गई और यूरोप को उनका निर्यात भी किया गया ।

शहरीकरण

  • जैसे – जैसे शहरों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई , वैसे ही इस्लामी सभ्यता फली फूली
  • बहुत से नए शहरों की स्थापना की गई, जिनका उद्देश्य मुख्य रूप से अरब सैनिकों को बसाना था । इस श्रेणी के फौजी शहरों में जिन्हें मिस्र कहा जाता था, कुफा और बसरा इराक़ में और फुस्तात तथा काहिरा मिस्र में थे ।
  • शहर के केंद्र में दो भवन – समूह होते थे : उनमें एक मस्जिद होती थी, यह इतनी बड़ी होती थी कि दूर से दिखाई दे सकती थी ।
  • दूसरा भवन समूह केंद्रीय मंडी था , जिसमें दुकानों की कतारें होती थीं . व्यापारियों के आवास और सरफ़ का कार्यालय होता था ।
  • प्रशासकों और विद्वानों और व्यापारियों केंद्र के निकट रहते थे ।
  • सामान्य नागरिकों और सैनिकों के रहने के क्वार्टर बाहरी घेरे में होते थे , और प्रत्येक में अपनी मस्जिद , गिरजाघर अथवा सिनेगोग, छोटी मंडी और सार्वजनिक स्नानघर था ।
  • शहर के बाहरी इलाकों में शहरी गरीबों के मकान , देहातों से लाई जाने वाली हरी सब्जियों और फलों के लिए बाजार , काफिलों के ठिकाने और ‘ अस्वच्छ ‘ दुकानें , जैसे चमड़ा साफ करने या रँगने की दुकानें और कसाई की दुकानें होती थीं ।
  • शहर की दीवारों के बाहर कब्रिस्तान और सराय होते थे ।

वाणिज्य

  • भूगोल ने मुस्लिम साम्राज्य की सहायता की , जो हिंद महासागर और भूमध्यसागर के व्यापारिक क्षेत्रों के बीच फैल गया ।
  • पाँच शताब्दियों तक , अरब और ईरानी व्यापारियों चीन , भारत और यूरोप के बीच के समुद्री व्यापार पर एकाधिकार रहा ।
  • यह व्यापार दो मुख्य रास्तों यानी लाल सागर और फारस की खाड़ी से होता था ।
  • लंबी दूरी के व्यापार के लिए उपयुक्त और उच्च मूल्य वाली वस्तुओं ; जैसे मसालों , कपड़ों , चीनी मिट्टी की चीज़ों और बारूद को भारत और चीन से लाल सागर के पत्तनों अर्थात् अदन और ऐधाव तक और सिराफ और बसरा तक जहाज पर लाया जाता था ।
  • यहाँ से माल को ज़मीन पर ऊँटों के काफिलों के द्वारा बग़दाद , दमिश्क और एलेप्पो के भंडारगृहों तक स्थानीय खपत के लिए के लिए ले जाया जाता था ।
  • इन व्यापारिक मार्गों के भूमध्यसागर के सिरे पर सिकंदरिया के पत्तन से यूरोप को किए जाने वाले निर्यात को यहूदी व्यापारियों द्वारा संभाला जाता था ,
  • जिनमें से कुछ भारत से सीधे व्यापार करते थे ,
  • किंतु , चौथी शताब्दी से , व्यापार और शक्ति के केंद्र के रूप में काहिरा के उभर आने के कारण और इटली के व्यापारिक शहरों से पूर्वी माल की बढ़ती हुई
  • माँग के कारण लाल सागर के मार्ग ने अधिक महत्त्व प्राप्त कर लिया ।
  • ईरानी व्यापारी मध्य एशियाई और चीनी वस्तुएँ , जिनमें कागज़ भी शामिल था , लाने के लिए बग़दाद से बुखारा और समरकंद होते हुए रेशम मार्ग से चीन जाते थे ।
  • तुरान भी वाणिज्यिक तंत्र में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी था । यह तंत्र यूरोपीय वस्तुओं , मुख्यतः फर और स्लाव गुलामों के व्यापार के लिए उत्तर में रूस और स्कैंडीनेविया तक फैला हुआ था ।
  • इन वस्तुओं की अदायगी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस्लामी सिक्के पाए गए हैं ।
  • इन बाज़ारों में तुर्क गुलाम ( दास – दासियाँ ) खलीफ़ाओं और सुलतानों के दरबारों के लिए खरीदे जाते थे ।
  • राजकोषीय प्रणाली और बाज़ार के लेन – देन ने इस्लामी देशों में धन के महत्त्व को बढ़ा दिया था ।
  • सोने , चाँदी और ताँबे के सिक्के वस्तुओं और सेवाओं की अदायगी के लिए बनाए जाते थे
  • मध्यकालीन आर्थिक जीवन में मुस्लिम जगत का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने अदायगी और व्यापार व्यवस्था के बढ़िया तरीकों को विकसित किया ।
  • साख – पत्रों (चैक व हिंदी शब्द साख का मूल है ) और हुडियों का उपयोग व्यापारियों , साहूकारों द्वारा धन को एक जगह से दूसरी जगह और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अंतरित करने के लिए किया जाता था ।
  • वाणिज्यिक पत्रों के व्यापक उपयोग से व्यापारियों को हर स्थान पर नकद मुद्रा अपने साथ ले जाने से मुक्ति मिल गई और इससे उनकी यात्राएँ भी ज़्यादा सुरक्षित हो गई ।
  • खलीफ़ा भी वेतन अदा करने अथवा कवियों और चारणों को इनाम देने के लिए सक्क (चैक) का इस्तेमाल करते थे ।
  • इस्लाम लोगों को धन कमाने से नहीं रोकता था , बशर्ते कि कुछ निषेध संबंधी नियमों का पालन किया जाए ।
  • उदाहरण के लिए , ब्याज लेन – देन गैर – कानूनी थे

कुरान – अरबी भाषा में रचित कुरान 114 अध्यायों में विभाजित है ,

  • क़ुरान उन संदेशों का संग्रह है , जो खुदा ने पैगम्बर मुहम्मद पहले मक्का में और फिर मदीना में दिए थे ।
  • कुरान प्राय : रूपकों में बात करता है और यह घटनाओं का वर्णन नहीं करता
  • क़ुरान को पढ़ने – समझने लिए कई हदीय लिखे गए ।

 

विद्या और संस्कृति

  • धार्मिक विद्वानों ( उलमा ) के लिए क़ुरान से प्राप्त ज्ञान ( इल्म ) और पैगम्बर का आदर्श व्यवहार ( सुन्ना ) ईश्वर की इच्छा को जानने का एकमात्र तरीका है
  • उलमा अपना समय क़ुरान पर टीका तफ़सीर और मुहम्मद की प्रामाणिक उक्तियों और कार्यों को लेखबद्ध ( हदीथ ) करने में लगाते थे ।
  • शरीआ – कुछ उलमा ने कर्मकांडों ( इबादत ) के ज़रिए ईश्वर के साथ मुसलमानों के संबंध को नियंत्रित करने और सामाजिक कार्यों के ज़रिए बाकी इनसानों के साथ मुसलमानों के संबंधों को नियंत्रित करने के लिए कानून अथवा शरीआ तैयार करने का काम किया ।
  • शरीआ ने सुन्नी समाज के भीतर सभी संभव कानूनी मुद्दों के बारे में मार्गदर्शन प्रदान किया था यह वाणिज्यिक अथवा दाण्डिक और संवैधानिक मुद्दों की अपेक्षा वैयक्तिक स्थिति ( विवाह , तलाक और विरासत ) के प्रश्नों के बारे में अधिक सुस्पष्ट था ।
  • अंतिम रूप लेने से पहले , शरीआ को विभिन्न क्षेत्रों के रीति – रिवाज़ों पर आधारित कानूनों और राजनीतिक तथा सामाजिक व्यवस्था के बारे में राज्य के कानूनों ( सियासा शरीआ ) को ध्यान में रखते हुए समायोजित किया गया था ।
  • क़ुरान और हदीथ में हर चीज़ प्रत्यक्ष नहीं थी और शहरीकरण के कारण जीवन उत्तरोत्तर जटिल बन गया था ।
  • आठवीं और नौवीं शताब्दी में कानून की चार शाखाएँ बन गई ये मलिकी , हनफी , शफीई और हनबली थीं , जिनमें से प्रत्येक का नाम एक प्रमुख विधि वेत्ता के नाम पर रखा गया था ,
  • सूफ़ी- मध्यकालीन इस्लाम के धार्मिक विचारों वाले लोगों का एक समूह बन गया था जिन्हें सूफ़ी कहा जाता है । ये लोग तपश्चर्या और रहस्यवाद के ज़रिए खुदा का अधिक गहरा और अधिक वैयक्तिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे ।
  • समाज जितना अधिक भौतिक पदार्थों और सुखों की ओर लालायित होता था , सूफ़ी लोग संसार का त्याग उतना अधिक करना चाहते थे और केवल खुदा पर भरोसा ( तवक्कुल ) करना चाहते थे ।
  • सूफ़ी आनंद उत्पन्न करने और प्रेम तथा भावावेश उदीप्त करने के लिए संगीत समारोहों ( समा ) का उपयोग करते थे
  • बयाज़िद विस्तामी, जो एक ईरानी सूफ़ी था , पहला व्यक्ति था , जिसने अपने आपको खुदा में लीन करने का उपदेश दिया था ।
  • ईश्वर से मिलन , ईश्वर के साथ तीव्र प्रेम के ज़रिए ही प्राप्त किया जा सकता है । इस इश्क़ का उपदेश एक महिला संत बसरा की राबिया द्वारा अपनी शायरी में दिया गया था ।
  • सूफीवाद का द्वार सबके लिए खुला है , चाहे वह किसी भी धर्म , हैसियत अथवा लिंग का हो
  • सूफीवाद ने इस्लाम को निजी अधिक और संस्थात्मक कम बना दिया और इस प्रकार उसने लोकप्रियता प्राप्त की और रूढ़िवादी इस्लाम के समक्ष चुनौती पेश की ।

यूनानी दर्शन और विज्ञान के प्रभाव

  • सिकंदरिया , सीरिया और मेसोपोटामिया के स्कूलों में , यूनानी दर्शन , गणित और चिकित्सा की शिक्षा दी जाती थी ।
  • उमय्यद और अब्बासी खलीफ़ाओं ने ईसाई विद्वानों से यूनानी और सीरियाक भाषा की किताबों का अनुवाद कराया । अनुवाद एक सुनियोजित क्रियाकलाप बन गया था ।
  • उसने बग़दाद में पुस्तकालय व विज्ञान संस्थान ( बायत अल – हिक्मा ) को जहाँ विद्वान काम करते थे , सहायता दी थी ।
  • अरस्तु की कृतियों , यूक्लिड की एलीमेंट्स और टोलेमी की पुस्तक एल्मागेस्ट की ओर अरबी पढ़ने वाले विद्वानों का ध्यान दिलाया गया ।
  • खगोल विज्ञान , गणित और चिकित्सा के बारे में भारतीय पुस्तकों का अनुवाद भी इसी काल में अरबी में किया गया ।
  • ये रचनाएँ यूरोप में पहुँची और इनसे दर्शनशास्त्र और विज्ञान में रुचि उत्पन्न हुई ।
  • नए विषयों के अध्ययन ने आलोचनात्मक जिज्ञासा को बढ़ावा दिया और इस्लामी बौद्धिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला धर्म वैज्ञानिक और दार्शनिकों ( फलसिफा ) ने व्यापक प्रश्न प्रस्तुत किए और उनके नए उत्तर प्रदान किए ।

अल – क़ानून फिल तिब ( चिकित्सा के सिद्धांत )

  • इब्न सिना, जो व्यवसाय की दृष्टि से एक चिकित्सक और दार्शनिक था, चिकित्सा संबंधी उनके लेख व्यापक रूप से पढ़े जाते थे ।
  • उनकी सबसे प्रभावशाली पुस्तक चिकित्सा के सिद्धांत ( अल – क़ानून फिल तिब ) थी . जो दस लाख शब्दों वाली पांडुलिपि थी , जिसमें उस समय के औषधशास्त्रियों द्वारा बेची जाने वाली 760 औषधियों का उल्लेख किया गया है और उसके द्वारा अस्पतालों में किए गए प्रयोगों तथा अनुभवों की जानकारी भी दी गई है । इस पुस्तक में आहार – विज्ञान के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है । यह बताया गया है कि जलवायु और पर्यावरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है , और कुछ रोगों के संक्रामक स्वरूप की जानकारी दी गई है । इस पुस्तक का उपयोग यूरोप में एक पाठ्यपुस्तक के रूप में किया जाता था जहाँ लेखक को एविसेन्ना के नाम से जाना जाता था । यह कहा जाता है कि वैज्ञानिक और कवि उमर खय्याम अपनी मृत्यु से ठीक पहले यह पुस्तक पढ़ रहे थे ।
  • मध्यकालीन इस्लामी समाजों में बढ़िया भाषा और सृजनात्मक कल्पना को किसी व्यक्ति के सर्वाधिक सराहनीय गुणों में शामिल किया जाता था
  • ‘ अदब ‘ जिसका अर्थ है साहित्यिक और सांस्कृतिक परिष्कार | अदब रूपी अभिव्यक्तियों में पद्य और गद्य शामिल थे और यह अपेक्षा की जाती थी कि उन्हें कंठस्थ कर लिया जाएगा और अवसर आने पर उनका उपयोग किया जाएगा ।
  • अबु नुवास जो फ़ारसी मूल का था , ने इस्लाम द्वारा वर्जित आनंद मनाने के इरादे से शराब और पुरुष प्रेम जैसे नए विषयों पर उत्कृष्ट श्रेणी की कविताओं की रचना करके नया मार्ग चुना ।
  • जब अरबों ने ईरान पर विजय प्राप्त की , तब पहलवी पतन की स्थिति में थी । शीघ्र ही पहलवी का एक और रूप , जिसे नयी फारसी कहा जाता है , विकसित हुआ , जिसमें अरबी के शब्दों की संख्या बहुत अधिक थी ।
  • रुबाई कुछ चार पंक्तियों वाला छंद होता है , जिसमें पहली दो पंक्तियाँ भूमिका बाँध देती हैं , तीसरी पंक्ति बढ़िया तरीके से सधी होती है , और चौथी पंक्ति मुख्य बात प्रस्तुत करती है । रुबाई की विषय – वस्तु अप्रतिबंधित होती है ।
  • रुबाई उमर खय्याम के हाथों अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गई ।
  • ग्याहरवीं शताब्दी के प्रारंभ में , गजनी फ़ारसी साहित्यिक जीवन का केंद्र बन गया था ।
  • गज़नी के महमूद ने अपने चारों ओर कवियों का एक समूह एकत्र कर लिया था , जिन्होंने काव्य संग्रहों और महाकाव्यों की रचना की । इनमें सबसे अधिक प्रसिद्ध फिरदौसी शाहनामा ( राजाओं का जीवनचरित ) था,

शाहनामा – इस पुस्तक में 50,000 पद हैं और यह इस्लामी साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति मानी जाती है । शाहनामा परंपराओं और आख्यानों का संग्रह है, जिसमें प्रारंभ से लेकर अरबों की विजय तक ईरान का चित्रण काव्यात्मक शैली में किया गया है ।

पुस्तक सूची ( किताब अल – फिहरिस्त )

  • बग़दाद के एक पुस्तक विक्रेता , इब्न नदीम की पुस्तक सूची में ऐसी बहुत सी पुस्तकों का उल्लेख है , जो पाठकों की नैतिक शिक्षा और उनके मनोरंजन के लिए लिखी गई थीं । इनमें सबसे पुरानी पुस्तक जानवरों की कहानियों का संग्रह है , जिसका नाम कलीला व दिमना है । यह पुस्तक पंचतंत्र अरबी अनुवाद है । सबसे अधिक प्रचलित और स्थायी रचनाएँ वीर साहसियों की कहानियाँ हैं , जैसे अल – सिकंदर और सिन्दबाद और दुखी प्रेमियों ( जिसे मजनू यानि कि पागल व्यक्ति कहा जाता था ) की कहानियाँ ।
  • ‘ एक हज़ार एक रातें ‘ कहानियों का एक अन्य संग्रह है । ये कहानियाँ एक ही वाचिका , शहरज़ाद द्वारा अपने पति को एक के बाद दूसरी रात को सुनाई गई थीं । ये संग्रह मूल रूप से भारतीय फ़ारसी भाषा में था इसका अनुवाद अरबी भाषा में किया गया था ।
  • नौवीं शताब्दी से अदब के दायरे का विस्तार किया गया और उसमें जीवनियों , आचार संहिताओं, , इतिहास और भूगोल को शामिल किया गया । इतिहास शासकों और अधिकारियों के लिए किसी वंश की कीर्ति बढ़ाने वाले कारनामों और उपलब्धियों का अच्छा विवरण और प्रशासन की तकनीकों के उदाहरण प्रस्तुत करता था ।
  • अल्बरुनी की प्रसिद्ध पुस्तक तहकीक मा लिल – हिंद ( भारत का ( इतिहास ) ग्याहरवीं शताब्दी के एक मुस्लिम लेखक का इस्लाम की दुनिया से बाहर देखने और यह जानने का सबसे बड़ा प्रयास था।

10 वीं शताब्दी की इस्लामी दुनिया की वास्तुकला

  • धार्मिक इमारतें इस दुनिया की सबसे बड़ी बाहरी थीं ।
  • स्पेन से मध्य एशिया तक फैली हुई मस्जिदें , इबादतगाह और मकबरों का बुनियादी नमूना एक जैसा था मेहराबें , गुम्बद , मीनार और खुले सहन
  • इस्लाम की पहली शताब्दी में , मस्जिद ने एक विशिष्ट वास्तुशिल्पीय रूप ( खंभों के सहारे वाली छत ) प्राप्त कर लिया था जो प्रादेशिक विभिन्नताओं से परे था
  • मस्जिद में एक खुला सबसे बड़ा प्रांगण सहन होता था , जहाँ पर एक फव्वारा अथवा जलाशय बनाया जाता था
  • यह प्राँगण एक बड़े कमरे की ओर खुलता , जिसमें प्रार्थना करने वाले लोगों की लंबी पंक्तियों और प्रार्थना ( नमाज़ ) का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति ( इमाम ) के लिए पर्याप्त स्थान होता था ।
  • बड़े कमरे की दो विशेषताएँ थीं एक मेहराब , जो मक्का ( किबला ) की दिशा का संकेत देती है और एक मंच ( मिम्बर ) जहाँ से शुक्रवार को दोपहर की नमाज़ के समय प्रवचन दिए जाते हैं ।
  • इमारत में एक मीनार जुड़ी होती है जिसका उपयोग नियत समयों पर प्रार्थना हेतु लोगों को बुलाने के लिए किया जाता है ।
  • मीनार नए धर्म के अस्तित्व का प्रतीक है ।
  • शहरों और गाँवों में लोग समय का अंदाजा पाँच दैनिक प्रार्थनाओं और साप्ताहिक प्रवचनों की सहायता से लगाते थे ।
  • केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर निर्मित इमारतों के निर्माण का वही स्वरूप मस्जिदों और मकबरों में , काफिलों की सरायों , अस्पतालों और महलों में भी पाया जाता था ।
  • उमय्यदों ने नखलिस्तानों में ‘ मरुस्थली महल ‘ बनाए , और वास्तुशिल्प के तरीके से बनाए गए थे , लोगों के चित्रों , प्रतिमाओं और पच्चीकारी से भव्य रूप से सजाया जाता था ।
  • इस्लामी धार्मिक कला में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के दो रूपों को बढ़ावा मिला :
  • खुशनवीसी ( खताती अथवा सुन्दर लिखने की कला ) और
  • अरबेस्क ( ज्यामितीय और वनस्पतीय डिज़ाइन )
  • इमारतों ( वास्तुशिल्प ) को सजाने के लिए आमतौर पर धार्मिक उद्धरणों का छोटे और बड़े शिलालेखों में उपयोग किया जाता था ।
  • कुरान की आठवीं और नौवीं शताब्दियों की पांडुलिपियों में खुशनवीसी की कला को सर्वोत्तम रूप में सुरक्षित रखा गया है और साहित्यिक कृतियों को लघुचित्रों से सजाया गया था ।
  • इमारतों और पुस्तकों के चित्रण में उद्यान की कल्पना पर आधारित पौधों और फूलों के नमूनों का उपयोग किया जाता था ।

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