NCERT Notes For Class 11 History Chapter 3 In Hindi तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

Class 11 History Chapter 3 In Hindi तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

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NCERT Notes For Class 11 History Chapter 3 In Hindi तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य

 

रोमन साम्राज्य को समझने के लिए स्रोत

  • स्रोत सामग्री को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है ( क ) पाठ्य सामग्री ( ख ) प्रलेख दस्तावेज़ और ( ग ) भौतिक अवशेष पाठ्य स्रोतों में शामिल हैं |
  • समकालीन व्यक्तियों द्वारा लिखा गया उस काल का हास ( जिसे वर्ष वृत्तांत ( Annals ) कहा जाता था क्योंकि वृत्तांत प्रतिवर्ष लिखे जाते थे ) , पत्र , व्याख्यान , प्रवचन , कानून , आदि ।
  • दस्तावेज़ी स्रोत मुख्य रूप से उत्कीर्ण अभिलेखों या पैपाइरस पेड़ के पत्तों आदि पर लिखी गई पांडुलिपियों के रूप में मिलते हैं । उत्कीर्ण अभिलेख आमतौर पर पत्थर को शिलाओं पर खोदे जाते थे , इसलिए वे नष्ट नहीं हुए और बहुत बड़ी मात्रा में यूनानी और लातिनी में पाए गए ।
  • पैपाइरस एक सरकंडा जैसा पौधा नील नदी के किनारे उगा करता और उसी से लेखन सामग्री तैयार की जाती थी ।
  • भौतिक अवशेषों में अनेक प्रकार की चीजें शामिल हैं जैसे- इमारतें , स्मारक और अन्य प्रकार की संरचनाएँ , मिट्टी के बर्तन , सिक्के , पच्चीकारी का सामान , यहाँ तक कि संपूर्ण भू – दृश्य ।

दो सशक्त साम्राज्यों

  • ईसा मसीह के जन्म से लेकर सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में 630 के दशक तक अधिकांश यूरोप , उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के विशाल क्षेत्र में दो सशक्त साम्राज्यों का शासन था । ये दो साम्राज्य रोम और ईरान के थे ।
  • रोम तथा ईरान के लोग आपस में प्रतिद्वंद्वी थे और अपने इतिहास के अधिकांश काल में वे आपस में लड़ते रहे ।
  • उनके साम्राज्य एक दूसरे के बिलकुल पास थे , उन्हें भूमि की एक संकरी पट्टी जिसके किनारे फ़रात नदी बहा करती थी अलग करती थी ।
  • भूमध्यसागर उन दिनों रोम साम्राज्य का हृदय था ।
  • उत्तर में साम्राज्य की सीमा का निर्धारण दो महान नदियों राइन और डैन्यूब से होता था और दक्षिणी सीमा सहारा नामक अति विस्तृत रेगिस्तान से बनती थी ।
  • दूसरी ओर , कैस्पियन सागर के दक्षिण से पूर्वी अरब तक का समूचा इलाका और कभी – कभी अफ़गानिस्तान के कुछ हिस्से भी ईरान के नियंत्रण में थे ।

 

साम्राज्य का आरंभिक काल

  • रोमन साम्राज्य को मोटे तौर पर दो चरणों में बाँटा जा सकता है , जिन्हें ‘ पूर्ववर्ती ‘ और ‘ परवर्ती ‘ चरण कह सकते हैं ।इन दोनों चरणों के बीच तीसरी शताब्दी का समय आता है जो उन्हें दो ऐतिहासिक भागों में विभाजित करता है ।
  • दूसरे शब्दों में कहें तो तीसरी शताब्दी के मुख्य भाग तक की संपूर्ण अवधि को ‘ पूर्ववर्ती साम्राज्य ‘ और उसके बाद की अवधि को ‘ परवर्ती साम्राज्य ‘ कहा जा सकता है ।

दो महाशक्तियों में अंतर

  • रोमन साम्राज्य सांस्कृतिक दृष्टि से ईरान की तुलना में कहीं अधिक विविधतापूर्ण था ।
  • इस अवधि के दौरान पार्थियाई तथा बाद में ससानी राजवंशों ने ईरान पर शासन किया , जिन लोगों पर शासन हुआ उनमें अधिकतर ईरानी थे ।
  • इसके विपरीत , रोमन साम्राज्य ऐसे क्षेत्रों तथा संस्कृतियों का एक मिलाजुला रूप था जो कि मुख्यतः सरकार की एक साझी प्रणाली द्वारा एक दूसरे के साथ जुड़े हुए थे ।
  • रोमन साम्राज्य में अनेक भाषाएँ बोली जाती थीं लेकिन प्रशासन के प्रयोजन हेतु लातिनी तथा यूनानी भाषाओं का ही प्रयोग होता था । पूर्वी भाग के उच्चतर वर्ग यूनानी भाषा और पश्चिम भाग के लोग लातिनी भाषा बोलते और लिखते थे ।
  • जो लोग रोमन साम्राज्य में रहते थे वे सभी एकमात्र , शासक यानी सम्राट की ही प्रजा थे , चाहे कहीं भी रहते हों और कोई भी भाषा बोलते हों ।

रोम साम्राज्य का राजनीतिक इतिहास

  • प्रथम सम्राट , ऑगस्टस ने 27 ई.पू. में जो राज्य स्थापित किया था उसे ‘ प्रिंसिपेट ‘ कहा जाता था ।
  • यद्यपि ऑगस्टस एकछत्र शासक और सत्ता का वास्तविक स्रोत था तथापि इस कल्पना को जीवित रखा गया कि वह केवल एक प्रमुख नागरिक ‘ ( लातिनी भाषा में प्रिंसेप्स ) था , निरंकुश शासक नहीं था । ऐसा ‘ सैनेट ‘ को सम्मान प्रदान करने के लिए किया गया था |
  • सैनेट वह निकाय था जिसने उन दिनों में जब रोम एक ‘ रिपब्लिक ‘ यानी गणतंत्र था , सत्ता पर अपना नियंत्रण रखा था ।
  • रोम में सैनेट नामक संस्था का अस्तित्व कई शताब्दियों तक रहा था ।
  • वह एक ऐसी संस्था थी जिसमें कुलीन एवं अभिजात वर्गों यानी मुख्यत: रोम के धनी परिवारों का प्रतिनिधित्व था । लेकिन आगे चलकर उसमें इतालवी मूल के ज़मींदारों को भी शामिल कर लिया गया था ।
  • सम्राट और सैनेट के बाद साम्राज्यिक शासन की एक अन्य प्रमुख संस्था सेना थी । फ़ारस के साम्राज्य में तो बलात् ” भर्ती वाली सेना थी लेकिन रोम की सेना एक व्यावसायिक सेना थी जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था और न्यूनतम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी ।
  • एक वेतनभोगी सेना का होना निस्संदेह रोमन साम्राज्य की अपनी एक खास विशेषता थी । सेना साम्राज्य में सबसे बड़ा एकल संगठित निकाय थी जिसमें चौथी शताब्दी तक 6,00,000 सैनिक थे ) और उसके पास निश्चित रूप से सम्राटों का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति थी ।
  • सैनिक बेहतर वेतन और सेवा शर्तों के लिए लगातार आंदोलन करते रहते थे ।
  • सैनेट सेना से घृणा करती थी और उससे डरती थी , क्योंकि वह प्रायः अप्रत्याशित हिंसा का स्रोत थी ।
  • संक्षेप में , सम्राट , अभिजात वर्ग और सेना साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास में तीन तीन मुख्य ‘ खिलाड़ी ‘ थे । अलग – अलग सम्राटों की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि वे सेना पर कितना नियंत्रण रख पाते हैं और जब सेनाएँ विभाजित हो जाती थीं तो इसका परिणाम सामान्यत : गृहयुद्ध होता था ।
  • प्रथम शताब्दियों में अन्य देशों के साथ युद्ध भी बहुत कम हुए ऑगस्टस से टिबेरियस द्वारा प्राप्त किया गया साम्राज्य पहले ही इतना लंबा चौड़ा था कि इसमें और अधिक विस्तार करना । अनावश्यक प्रतीत होता था ।
  • साम्राज्य के प्रारंभिक विस्तार में एकमात्र अभियान सम्राट त्राजान ने 113-17 ईस्वी में चलाया जिसके द्वारा उसने फ़रात नदी के पार के क्षेत्रों पर निरर्थक कब्जा कर लिया था ; लेकिन उसके उत्तराधिकारियों ने उन इलाकों को छोड़ दिया ।
  • अनेक आश्रित राज्यों को रोम के प्रांतीय राज्य क्षेत्र में मिला लिया गया निकटवर्ती पूर्व ऐसे राज्यों से भरा पड़ा था लेकिन दूसरी शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक जो राज्य फ़रात नदी के पश्चिम में ( रोम राज्य क्षेत्र की ओर ) पड़ते थे उन्हें भी रोम द्वारा हड़प लिया गया ।
  • एक नया संभ्रांत वर्ग बन गया जो कि सैनेट के सदस्यों की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली था क्योंकि उसे सम्राटों का समर्थन प्राप्त था । जैसे – जैसे यह नया समूह उभर कर सामने आया , सम्राट गैलीनस ( 253-68 ) ने सैनेटरों को सैनिक कमान हटा कर इस नए कर इस नए वर्ग को सुदृढ़ बना दिया ।

रोम के संदर्भ नगर

रोम के संदर्भ में नगर एक ऐसा शहरी केंद्र था , जिसके अपने दंडनायक ( मजिस्ट्रेट ) , नगर परिषद ( सिटी काउंसिल ) और अपना एक सुनिश्चित राज्य – क्षेत्र था जिसमें उसके अधिकार क्षेत्र में आने वाले कई ग्राम शामिल थे । इस प्रकार किसी भी शहर के अधिकार क्षेत्र में कोई दूसरा शहर नहीं हो सकता था , किन्तु उसके तहत कई गाँव लगभग हमेशा ही होते थे ।

रोम शहर में रहने का लाभ

  • किसी शहर में रहने का लाभ यही था कि खाने की कमी और अकाल के दिनों में भी इसमें ग्रामीण इलाकों की तुलना में बेहतर सुविधाएँ प्राप्त होने की संभावना रहती थी ।
  • शहरी लोगों को उच्च स्तर के मनोरंजन उपलब्ध थे । उदाहरणार्थ , एक कैलेंडर से हमें पता चलता है कि एक वर्ष में कम से कम 176 दिन वहाँ कोई – न – कोई मनोरंजक कार्यक्रम या प्रदर्शन ( Spectacula ) अवश्य होता था !

 

तीसरी शताब्दी का संकट

  • 230 के दशक से साम्राज्य ने स्वयं को कई मोचों पर जूझता पाया । ईरान में , 225 ईस्वी में एक अधिक आक्रामक वंश उभर कर सामने आया ( इस वंश के लोग स्वयं को ‘ ससानी ‘ कहते थे ) और केवल 15 वर्षों के भीतर यह तेज़ी से फ़रात की दिशा में फैल गया ।
  • कई जर्मन मूल की जनजातियों अथवा राज्य समुदायों ( जिनमें से प्रमुख एलमन्नाइ , फ्रैंक और गोथ थे ) ने राइन तथा डैन्यूब नदी की सीमाओं की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और 233 से 280 तक की समूची अवधि में उन प्रांतों की पूरी सीमा पर बार – बार आक्रमण हुए जो काला • सागर से लेकर आल्पस और दक्षिणी जर्मनी तक फैले हुए थे ।
  • रोमवासियों को डैन्यूब से आगे का क्षेत्र छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा , जबकि इस काल के सम्राट उन लोगों के विरुद्ध लगातार युद्ध करते रहे , जिन्हें रोमवासी विदेशी बर्बर ‘ ( Barbarlan ) कहा करते थे ।
  • तीसरी शताब्दी में थोड़े – थोड़े अंतर से अनेक सम्राट ( 47 वर्षों में 25 सम्राट ) सत्तासीन हुए जो इस तथ्य का स्पष्ट सूचक है कि इस अवधि में साम्राज्य को बेहद तनाव की स्थिति से गुज़रना पड़ा ।

 

लिंग , साक्षरता , संस्कृति

  • रोमन समाज की विशेषताओं में से एक विशेषता यह थी कि उन दिनों ‘ एकल परिवार ( Nuclear family ) का व्यापक रूप से चलन था वयस्क पुत्र अपने पिता के परिवारों के साथ नहीं रहते थे ।
  • दूसरी ओर , दासों को परिवार में सम्मिलित किया जाता था क्योंकि रोमवासियों के लिए परिवार की यही अवधारणा थी ।
  • विवाह का रूप ऐसा था कि पत्नी अपने पति को अपनी संपत्ति हस्तांतरित नहीं किया करती थी किंतु अपने पैतृक परिवार में वह अपने पूरे अधिकार बनाए रखती थी महिला का दहेज वैवाहिक अवधि के दौरान उसके पति के पास चला जाता था , किन्तु महिला अपने पिता की मुख्य उत्तराधिकारी बनी रहती थी और अपने पिता की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति की स्वतंत्र मालिक बन जाती थी ।
  • तलाक देना अपेक्षाकृत आसान था और इसके लिए पति अथवा पत्नी द्वारा केवल विवाह भंग करने के इरादे की सूचना देना ही काफी था ।
  • दूसरी और पुरुष 28 29 30-32 की आयु में विवाह करते थे , जबकि लड़कियों की शादी 16-18 व 22-23 साल की आयु में की जाती थी । इससे असमानता को कुछ बढ़ावा मिला होगा ।
  • विवाह आम तौर पर परिवार द्वारा नियोजित होते थे और इसमें कोई संदेह नहीं कि महिलाओं पर उनके पति अक्सर हावी रहते थे ।
  • पिताओं का अपने बच्चों पर अत्यधिक कानूनी नियंत्रण होता था

साक्षरता

  • यह निश्चित है कि कामचलाऊ साक्षरता की दरें साम्राज्य के विभिन्न भागों में काफी अलग – अलग थीं ।
  • पोम्पेई की मुख्य गलियों की दीवारों पर अंकित विज्ञापन र समूचे शहर में अभिरेखण ( Graffiti ) पाए गए हैं ।
  • यहाँ भी साक्षरता निश्चित रूप से कुछ वर्गों के लोगों में अपेक्षाकृत अधिक व्यापक थी , जैसे कि सैनिकों , फौजी अफ़सरों और सम्पदा प्रबंधकों में

सांस्कृतिक विविधता

  • रोमन साम्राज्य में सांस्कृतिक विविधता कई रूपों एवं स्तरों पर दिखाई देती है ,
  • जैसे , धार्मि सम्प्रदायों तथा स्थानीय देवी – देवताओं की भरपूर विविधता
  • बोलचाल की अनेक भाषाएँ : वेशभूषा की विविध शैलियाँ ; तरह – तरह के भोजन : सामाजिक संगठनों के रूप ( जनजातीय और अन्य ) ; यहाँ तक कि उनकी बस्तियों के अनेक रूप |
  • अरामाइक निकटवर्ती पूर्व प्रमुख भाषा समूह था , मिस्र में कॉप्टिक , उत्तरी अफ्रीका में प्यूनिक तथा बरबर ( Berber ) और स्पेन तथा उत्तर पश्चिमी में कैल्टिक भाषा बोली जाती थी ।
  • बहुत सी भाषाई संस्कृतियाँ पूर्णतः मौखिक थीं , वे कम से कम तब तक मौखिक रहीं जब तक उनके लिए एक लिपि का आविष्कार नहीं किया गया ।
  • कई स्थानों पर लातिनी भाषा के प्रसार ने उन भाषाओं के लिखित रूप का स्थान ग्रहण कर लिया जिनका पहले से ही व्यापक प्रसार था ।

 

आर्थिक विस्तार

  • साम्राज्य में बंदरगाहों , खानों , खदानों , ईंट – भट्ठों , जैतून के तेल की फैक्टरियों आदि की संख्या काफी अधिक थी , जिनसे उसका आर्थिक आधारभूत ढाँचा काफी मज़बूत था ।
  • गेहूँ , अंगूरी शराब तथा जैतून का तेल मुख्य व्यापारिक मदें थीं जिनका अधिक मात्रा में उपयोग होता था और ये मुख्यतः स्पेन , गैलिक प्रांतों , उत्तरी अफ्रीका , मिस्त्र तथा अपेक्षाकृत कम मात्रा में इटली से थीं|
  • शराब , जैतून का तेल तथा अन्य तरल पदार्थों की ढलाई ऐसे मटकों या कंटेनरों में होती थी जिन्हें ” एमकोरा ( Amphora ) कहते थे ।
  • स्पेन में जैतून का तेल निकालने का उद्यम 140-160 ईस्वी के वर्षों में अपने चरमोत्कर्ष पर था । उन दिनों स्पेन में उत्पादित जैतून का तेल मुख्य रूप से ऐसे कंटेनरों में ले जाया जाता था जिन्हें ‘ ड्रेसल -20 ‘ कहते थे ।
  • इसका यह नाम हेनरिक ड्रेसल नामक पुरातत्त्वविद के नाम पर आधारित है जिसने इस किस्म के कंटनेरों का रूप सुनिश्चित किया था ।
  • प्रसिद्ध साम्राज्य के अंतर्गत ऐसे बहुत से क्षेत्र आते थे जो अपनी असाधारण उर्वरता के कारण बहुत जैसे इटली में कैम्पैनिया , सिसिली , मिस्र में फैय्यूम गैलिली बाइजैकियम ( ट्यूनीसिया ) , दक्षिणी गॉल ( जिसे गैलिया नार्बोनेसिस कहते थे ) तथा बाएटिका ( दक्षिणी स्पेन ) ।
  • सबसे बढ़िया किस्म की अंगूरी शराब कैम्पैनिया से आती थी । सिसिली और बाइजैंकियम रोम को भारी मात्रा में गेहूँ का निर्यात करते थे ।
  • दूसरी ओर , रोम क्षेत्र के अनेक बड़े – बड़े हिस्से बहुत कम उन्नत अवस्था में थे चरवाहे तथा अर्थ यायावर अपने साथ में अवन ( oven ) आकार की झोंपड़ियाँ ( जिन्हें मैपालिया कहते थे ) उठाए इधर – उधर घूमते – फिरते रहते थे । लेकिन जब उत्तरी अफ्रीका में रोमन जागीरों का विस्तार हुआ तो वहाँ चरागाहों की संख्या में भारी कमी आई और खानाबदोश चरवाहों की आवाजाही पहले से अधिक नियंत्रित हो गई ।
  • भूमध्यसागर के आसपास पानी की शक्ति का तरह – तरह से इस्तेमाल किया जाता था । स्पेन की सोने और चाँदी की खानों में जल शक्ति से खुदाई की जाती थी ।
  • समय सुगठित वाणिज्यिक और बैंकिंग व्यवस्था थी और धन का व्यापक रूप से प्रयोग होता था । इन सभी बातों यह संकेत मिलता है कि हममें रोम की समुन्नत अर्थव्यवस्था को कम आँकने की प्रवृत्ति कितनी अधिक है ।

 

श्रमिकों पर नियंत्रण

  • भूमध्यसागर और निकटवर्ती पूर्व दोनों ही क्षेत्रों में दासता की जड़े बहुत गहरी थीं और रोम की अर्थव्यवस्था में अधिकांश श्रम , दासों द्वारा ही किया जाता था ।
  • जहाँ ऑगस्टस के शासनकाल में इटली की कुल 75 लाख की आबादी में 30 लाख दास थे ।
  • उन दिनों दासों को पूँजी – निवेश साका की दृष्टि से देखा जाता था । विचार दासों के प्रति सहानुभूति पर नहीं बल्कि हिसाब – किताब पर आधारित थे ।
  • एक ओर जहाँ उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति प्रायः क्रूरतापूर्ण व्यवहार करते थे , वहीं दूसरी ओर साधारण लोग उनके प्रति अधिक नति रख सकते थे ।
  • जब पहली शताब्दी में शांति स्थापित होने के साथ लड़ाई झगड़े कम गए तो दासों की आपूर्ति में कमी आने लगी और दास श्रम करने वालों को दास प्रजनन ( Slave Breeding ) अथवा वेतनभोगी मज़दूरों जैसे विकल्पों का सहारा लेना पड़ा ।
  • बैतनभोगी मज़दूर सस्ते तो पड़ते ही थे , उन्हें आसानी से छोड़ा और रखा जा सकता था ।
  • रोम में सरकारी निर्माण कार्यों पर , स्पष्ट रूप से मुक्त श्रमिकों का व्यापक प्रयोग किया जाता था क्योंकि दास श्रम का बहुतायत प्रयोग बहुत मँहगा पड़ता था ।
  • भाड़े के मज़दूरों के विपरीत , गुलाम श्रमिकों को रखने के लिए भोजन देना पड़ता था और उनके अन्य खर्चे भी उठाने पड़ते थे , जिससे इन श्रमिकों को रखने की लागत बढ़ जाती थी । इसीलिए संभवतः बाद की अवधि में कृषि – क्षेत्र में अधिक संख्या में गुलाम मज़दूर नहीं रहे
  • इन दासों और मुक्त व्यक्तियों ( अर्थात ऐसे दास जिन्हें उनके मालिकों ने मुक्त कर दिया था ) को व्यापार प्रबंधकों के रूप में व्यापक रूप से नियुक्त किया जाने लगा , यहाँ स्पष्टतः उनको आवश्यकता नहीं थी ।
  • नियोक्ताओं की यह आम धारणा थी कि निरीक्षण यानी देखभाल के बिना कभी भी कोई काम ठीक से नहीं करवाया जा सकता । इसलिए मुक्त तथा दास , दोनों प्रकार के श्रमिकों के लिए निरीक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू था ।
  • कोलूमेल्ला दस – दस श्रमिकों के समूह बनाने की सिफारिश कि और यह दावा किया कि इन छोटे समूहों में अपेक्षाकृत आसान होता है कि उनमें से काम कर रहा है और कौन कामचोरी ।
  • वरिष्ठ प्लिनी एक प्रसिद्ध प्रकृति विज्ञान के लेखक ने दास समूहों के प्रयोग की यह कहकर निंदा की कि यह उत्पादन आयोजित करने का सबसे खराब तरीका है क्योंकि इस प्रकार अलग – अलग समूह में काम करने वाले दासों को आमतौर पर पैरों में जंजीर डालकर एक साथ रखा जाता था ।
  • ऐसे तरीके कठोर और क्रूर प्रतीत होते हैं , लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि आज विश्व में अधिकांश फैक्ट्रियाँ श्रम नियंत्रण के कुछ ऐसे ही सिद्धांत लागू करती हैं ।
  • ऋण – संविदा – कई निजी मालिक कामगारों के साथ ऋण – संविदा के रूप में करार कर लेते थे ताकि वे यह दावा कर सकें कि उनके कर्मचारी उनके कर्जदार हैं , और इस प्रकार से नियंत्रण रखते थे ।

 

सामाजिक श्रेणियाँ

  • इतिहासकार टैसिटस ने प्रारंभिक साम्राज्य के प्रमुख सामाजिक समूहों का वर्णन इस प्रकार किया है : सैनेटर ; अश्वारोही वर्ग के प्रमुख सदस्य ; जनता का सम्माननीय वर्ग , जिनका संबंध महान घरानों से था ; फूहड़ निम्नतर वर्ग यानी कमी ( प्लेब्स सोर्डिडा ) , जो उनके अनुसार , सर्कस और थिएटर तमाशे देखने के आदी थे ; और अंततः दास ।
  • चौथी शताब्दी के प्रारंभिक भाग में कॉन्स्टैनटाइन प्रथम के शासन काल से आरंभ हुआ, टैसिटस: द्वारा उल्लिखित पहले दो समूह ( सैनेटर और नाइट या अश्वारोही) एकीकृत होकर एक विस्तृत अभिजात वर्ग ( Aristocracy ) बन चुके थे ।
  • अभिजात वर्ग अत्यधिक धनवान था किन्तु कई तरीकों से यह विशुद्ध सैनिक संभ्रांत वर्ग से कम शक्तिशाली था , जिनकी पृष्ठभूमि अधिकतर अभिजात वर्गीय नहीं थीं ।
  • ‘ मध्यम ‘ वर्गों में अब नौकरशाही और सेना की सेवा से जुड़े आम लोग शामिल थे , किन्तु इसमें अपेक्षाकृत अधिक समृद्ध थे ।
  • टैसिटस ने इस वर्ग का महान सीनेट गृहों के आश्रितों ( clients ) के रूप में वर्णन किया है ।
  • मध्यम वर्ग से नीचे निम्नतर वर्गों का एक विशाल समूह था , जिन्हें सामूहिक रूप से हामिलिओरिस यानी “ निम्नतर वर्ग ” कहा जाता था । इनमें ग्रामीण श्रमिक शामिल थे ।
  • पाँचवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल के एक इतिहासकार ओलिंपिओडोरस ( Olympiodorus ) ने , जो एक राजदूत भी था , लिखा है कि रोम नगर में रहने वाले कुलीन परिवारों को उनकी संपदाओं से वार्षिक आय 4000 पाउंड सोने के बराबर होती थी ; इसमें वह उपज शामिल नहीं थी जिसका उपभोग सीधे कर लेते थे

परवर्ती साम्राज्य कि मौद्रिक प्रणाली

  • प्रथम तीन शताब्दियों से प्रचलित चाँदी – आधारित मौद्रिक प्रणाली समाप्त हो गई क्योंकि स्पेन को खानों से चाँदी मिलनी बंद हो गयी थी और सरकार के पास चाँदी की मुद्रा के प्रचलन के लिए पर्याप्त चाँदी नहीं रह गई थी ।
  • कांस्टैनटाइन ने सोने पर आधारित मौद्रिक प्रणाली स्थापित की और परवर्ती समूचे पुराकाल में इन मुद्राओं का भारी मात्रा में प्रचलन रहा ।

परवर्ती काल में रोम साम्राज्य की नौकरशाही

  • रोम साम्राज्य के परवर्ती काल में , वहाँ की नौकरशाही के उच्च तथा मध्य वर्ग अपेक्षाकृत बहुत धनी थे क्योंकि उन्हें अपना वेतन सोने के रूप में मिलता था । इसके अतिरिक्त अपना वेतन जमीन जैसी परिसंपत्तियाँ खरीदने में लगाते थे ।
  • इसके अतिरिक्त साम्राज्य में भ्रष्टाचार बहुत फैला हुआ था विशेष रूप न्याय प्रणाली और प्रशासन में |
  • उच्च अधिकारी और गवर्नर लूट – खसोट और लालच के लिए कुख्यात हो गए ।
  • लेकिन सरकार ने इस प्रकार के भ्रष्टाचारों को रोकने के लिए बारम्बार हस्तक्षेप किया । सरकार द्वारा अनेक कानून बनाए गए और इतिहासविदों तथा अन्य बुद्धिजीवियों ने ऐसे भ्रष्ट कारनामों की आलोचना की |
  • रोमन राज्य तानाशाही पर आधारित था । आमतौर पर सरकार विरोध का उत्तर , हिंसात्मक कार्रवाई से देती थी ।
  • चौथी शताब्दी आते – आते रोमन कानून की एक प्रबल परंपरा का उद्भव हो चुका था और उसने सर्वाधिक भयंकर सम्राटों पर भी अंकुश लगाने का काम किया था ।
  • सम्राट लोग अपनी मनमानी नहीं कर सकते थे और नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए कानून का सक्रिय रूप से प्रयोग किया जाता था ।
  • इसीलिए चौथी शताब्दी के अंतिम दशकों में ऐम्ब्रोस जैसे शक्तिशाली बिशपों के लिए यह संभव हो पाया कि यदि सम्राट आम जनता के प्रति अत्यधिक कठोर या दमनकारी हो जाएँ तो ये बिशप भी उतनी ही अधिक शक्ति से उनका मुकाबला करें ।

 

परवर्ती पुराकाल

  • ‘ परवर्ती पुराकाल ‘ शब्द का प्रयोग रोम साम्राज्य के उद्भव , विकास और पतन के इतिहास की उस अंतिम दिलचस्प अवधि का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो मो तौर पर चौथी से सातवीं शताब्दी तक फैली हुई थी ।
  • चौथी शताब्दी अनेक सांस्कृतिक और आर्थिक हलचलों से परिपूर्ण थी ।
  • सांस्कृतिक स्तर पर , इस अवधि में लोगों के धार्मिक जीवन में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए , जिनमें से एक था सम्राट कॉन्स्टैनटाइन द्वारा ईसाई धर्म को राजधर्म बना लेने का निर्णय , और दूसरा सातवीं शताब्दी में इस्लाम का उदय ।

सम्राट डायोक्लीशियन के समय में हुए प्रारंभ हुए परिवर्तन

  • सम्राट डायोक्लीशियन ने देखा कि साम्राज्य का विस्तार बहुत ज्यादा हो चुका है और उसके अनेक प्रदेशों का सामरिक या आर्थिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है इसलिए उसने उन हिस्सों को छोड़कर साम्राज्य को थोड़ा छोटा बना लिया ।
  • उसने साम्राज्य की सीमाओं पर क़िले बनवाए , प्रांतों का पुनर्गठन किया और असैनिक कार्यों को सैनिक कार्यों से अलग कर दिया साथ ही उसने सेनापतियों ( Duces ) को अधिक स्वायत्तता प्रदान कर दी , जिससे ये सैन्य अधिकारी अधिक शक्तिशाली समूह के रूप में उभर आए ।

 

कॉन्स्टैनटाइन द्वारा मुख्य रूप से मौद्रिक क्षेत्र में परिवर्तन

  • उसने सॉलिडस ( Solidus ) नाम का एक नया सिक्का चलाया जो 4.5 ग्राम शुद्ध सोने का बना हुआ था । यह सिक्का रोम साम्राज्य समाप्त होने के बाद भी चलता रहा । ये सॉलिडस सिक्के बहुत बड़े पैमाने पर ढाले जाते थे और लाखों करोड़ों संख्या में चलन में थे ।
  • कॉन्स्टैनटाइन का एक अन्य नवाचार था एक दूसरी राजधानी ( Constantinople ) का निर्माण ।

आर्थिक परिवर्तन

  • मौद्रिक स्थायित्व और बढ़ हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक विकास में तेजी आई ।
  • पुरातत्त्वीय से अभिलेखों से पता चलता है कि औद्योगिक प्रतिष्ठानों सहित ग्रामीण उद्योग – धंधों में व्यापार के विकास में पर्याप्त मात्रा में पूँजी लगाई गई । इनमें तेल की मिलें और शीशे के कारखाने , पेंच की प्रेसें तथा कास क तरह – तरह की पानी की मिलें जैसी नयी प्रौद्योगिकियाँ महत्वपूर्ण हैं ।
  • धन का अच्छा खासा निवेश पूर्व के देशों के साथ लम्बी दूरी के व्यापार में किया गया जिससे ऐसे व्यापार का पुनरुस्थान हुआ ।
  • नए – नए रूप विकसित हुए और भोग – विलास के साधनों में भरपूर तेजी आई । शासन करने वाले कुलीन पहले से कहीं अधिक धन संपन्न और शक्तिशाली हो गए ।

संस्कृति परिवर्तन

  • पाँचवीं और छठी शताब्दियों में इसी सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर इस अवधि में आगे चलकर अनेक सांस्कृतिक परिवर्तन हुए ।
  • यूनान और रोमवासियों की पारंपरिक धार्मिक संस्कृति बहुदेववादी थी ।
  • ये उपासना पद्धतियों में विश्वास रखते थे और जूपिटर , जूनो , मिनर्वा और मॉर्स जैसे अनेक रोमन इतालवी देवों और यूनानी तथा पूर्वी देवी – देवताओं की पूजा किया करते थे
  • ये बहुदेववादी स्वयं को किसी एक नाम से नहीं पुकारते थे ।
  • रोमन साम्राज्य का एक अन्य बड़ा धर्म यहूदी धर्म ( Judaism ) था । लेकिन यहूदी धर्म भी ‘ एकाश्म ‘ ‘ ( Monolith ) यानी विविधताहीन नहीं था ।
  • अत : चौथी या पाँचवीं शताब्दियों में साम्राज्य का ईसाईकरण ** एक क्रमिक एवं जटिल प्रक्रिया के रूप में हुआ ।
  • चौथी शताब्दी में भिन्न – भिन्न धार्मिक समुदायों के बीच की सीमाएँ इतनी कठोर एवं गहरी नहीं थीं जितनी कि आगे चलकर हो गईं |

रोमन साम्राज्य का पतन

  • पश्चिम में साम्राज्य राजनीतिक दृष्टि से विखंडित हो गया क्योंकि उत्तर से आने वाले जर्मन मूल के समूहों ने ( गोथ , बैंडल , लोंबार्ड आदि ) ने सभी बड़े प्रांतों को अपने कब्ज़े में ले लिया था | और अपने – अपने राज्य स्थापित कर लिए थे जिन्हें ‘ रोमोत्तर ‘ ( Post Roman ) राज्य कहा जा सकता है ।
  • सातवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों तक आते – आते रोम और ईरान के बीच लड़ाई फिर छिड़ गई ।
  • ससानी शासकों ( जो तीसरी शताब्दी से ईरान पर शासन कर रहे थे ) ने मिस्र सहित सभी विशाल पूर्वी से बड़े पैमाने पर आक्रमण कर दिया ।
  • बाइज्जेंटियम ( अब रोम साम्राज्य को ज़्यादातर इसी नाम से जाना जाता था ) ने 620 के दशक में इन प्रांतों पर फिर से अपना कब्ज़ा कर लिया , लेकिन उसके कुछ ही वर्ष बाद उसे दक्षिण – पूर्व की ओर से एक बहुत जोरदार अंतिम धक्का लगा जिसे वह सहन नहीं कर सका ।
  • अरब प्रदेश से शुरू होने वाले इस्लाम के विस्तार को प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रांति ‘ कहा जाता है ।
  • 642 तक , पूर्वी रोमन और ससानी दोनों राज्यों के बड़े – बड़े भाग भीषण युद्ध के बाद अरबों के कब्ज़े में आ गए ।
  • रान ) बुखारा पड़ाव समरकंद अफ़गानिस्तान अरब सागर

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