NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 15 Summary खुशबू रचते हैं हाथ

Hindi Sparsh Chapter 15 Summary खुशबू रचते हैं हाथ

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 15 Summary खुशबू रचते हैं हाथ, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 15 Summary खुशबू रचते हैं हाथ

 

पाठ का सार

  1. खुशबू रचते हैं हाथ

कवि ने इस कविता में मज़दूरों , गरीबों , कारीगरों की दुर्दशा का मार्मिक वर्णन किया है । ये लोग स्वयं गंदी नालियों के बीच रहकर दूसरों के लिए खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं और लोगों के जीवन में सुगंध बिखेरते हैं , परंतु इनके जीवन में बदबू का निवास होता है । इनके आस – पास कूड़े के ढेर बने होते हैं । इनकी शारीरिक अवस्था ठीक नहीं होती । इनके हाथ काम करते – करते जख्मी हो जाते हैं पर फिर भी वे खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते रहते हैं । चाहे उभरी हुई नसों वाली बूढ़ी महिलाएँ हों या जख्म से फटे हुए हाथोंवाले गरीब , या कोमल हाथोंवाली नन्हीं बालिकाएँ सभी गरीब मज़बूरी के कारण कूड़े – करकट के ढेर के पास रहते हैं और संसार भर को खुशबू देनेवाली अगरबत्तियाँ बनाते हैं । यह मजदूरों का दुर्भाग्य है ।

भावार्थ

1. खुशबू रचते हैं हाथ

1. कई गलियों के बीच

कई नालों के पार

कूड़े – करकट के

ढेरों के बाद

बदबू से फटते जाते इस

टोले के अंदर

खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ ।

शब्दार्थ-

नाला- गंदे पानी के बहाव के लिए बनाया गाया रास्ता

कूड़ा – करकट – कचरा

टोला – छोटी बस्ती

भावार्थ- कवि के अनुसार सुगंधित वस्तुओं का निर्माण करनेवालों का जीवनयापन निम्न स्तर का है । इसी के विषय में बताते हुए कवि कहते हैं कि जो हाथ खुशबू फैलानेवाली अगरबत्तियों का निर्माण करते हैं , वे स्वयं कैसी बदबूदार बस्तियों में रहते हैं । वे लोग कई बस्तियों के बीच रहते हैं । कई नालों को पार करने के बाद कूड़े – करकट और गंदगी के ढेरों के आसपास उन्हें रहना पड़ता है , जहाँ उनकी नाक बदबू के मारे फटने को हो जाती है । इस प्रकार के स्थान पर टोला बनाकर बस्ती बनाकर ये लोग रहते हैं । इनकी यह विशेषता है कि ये स्वयं बदबूदार वातावरण में रहकर भी अपने हाथों से दूसरों के लिए सुगंधित अगरबत्तियाँ बनाते हैं । दूसरों के जीवन को सुविधाओं से भर देते हैं ।

शिल्प- सौंदर्य –

1. मानवीय जीवन की विषमता को दर्शाया गया है तथा मजदूरों की गंदी बस्ती का वास्तविक चित्रण प्रस्तुत किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है ।

3. भाषा सरल , सरस व रोचक है ।

4. चित्रात्मक व वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है ।

5. जीवन के विविध क्षेत्रों का चित्रण किया गया है ।

6. अतुकांत व छंदहीन भाषा का प्रयोग हुआ है ।

7. ‘ हाथ ‘ की आवृत्ति प्रभावित करती है ।

 

2. उभरी नसोंवाले हाथ

घिसे नाखूनोंवाले हाथ

पीपल के पत्ते – से – नए – नए हाथ

जूही की डाल से खुशबूदार हाथ

गंदे कटे – पिटे हाथ

ज़ख्म से फटे हुए हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ |

शब्दार्थ-

जूही- एक फूल

जख्म – घाव

भावार्थ – लोगों के जीवन में खुशबू बिखेरनेवाले हाथ भयावह स्थितियों में जीवन बिता रहे हैं । जीवन की इसी दशा का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि जो मज़दूर खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं और सारे संसार को खुशबू से महका देते हैं , उनमें बूढ़े- बुढ़ियाँ भी हैं । जिनके हाथों की नसें उभर चुकी हैं या जिनके हाथों के नाखून काम करते – करते घिस चुके हैं । अगरबत्तियाँ बनाने वालों में वे नन्हे बालक – बालिकाएँ भी हैं जिनके हाथ पीपल के पत्तों के समान कोमल हैं । उनमें नवयुवतियाँ भी हैं । इनके हाथ जूही के फूल की डाली के समान खुशबूदार हैं । इनमें काम की अधिकता के कारण गंदे हाथोंवाले और कटे हाथोंवाले मज़दूर भी हैं और अपने मालिक , पति या पिता की मार खाए हुए हाथ भी हैं । कुछ मजदूर ऐसे हैं , जिनके हाथों में घाव हो चुका है । ‘ फिर भी वे काम किए जा रहे हैं । इतनी विपत्तियों के बावजूद ये काम करते चले जा रहे हैं ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. उपेक्षित वर्ग की दयनीय स्थिति का वर्णन किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है ।

3. भाषा सरल , सरस व रोचक है ।

4. चित्रात्मक व वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है ।

5. जीवन के विविध क्षेत्रों का चित्रण किया गया है ।

6. आम प्रचलित उर्दू शब्दों का प्रयोग अधिक हुआ है ।

7. हाथ की आवृत्ति प्रभावित करती है ।

8. ‘ पीपल के पत्ते – से नए – नए हाथ ‘ तथा ‘ जूही की डाल से खूशबूदार हाथ ‘ में उपमा अलंकार है ।

3. यहीं इस गली में बनती हैं

मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ

इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग

बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी

अगरबत्तियाँ

दुनिया की सारी गंदगी के बीच

दुनिया की सारी खुशबू

रचते रहते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ

खुशबू रचते हैं हाथ

शब्दार्थ –

मुल्क – देश

केवड़ा – एक छोटा पेड़ जिसके फूल खुशबूदार होते हैं

रातरानी – एक फूल

भावार्थ – कवि कहता है कि देश की प्रसिद्ध अगरबत्तियाँ इस गंदी , तंग , बदबूदार गली में बनती हैं । इन्हीं गंदे मुहल्लों में रहने वाले गंदे लोग सुगंधित केवड़ा , गुलाब , पोस्ता और रात – रानी की सुगंध वाली महकती अगरबत्तियाँ बनाते हैं । यद्यपि वे खुद दुनिया भर की गंदगी के बीचोंबीच रहकर जीते हैं तथापि अपने हाथों से दुनिया को महकाने वाली खुशबूदार अगरब . त्तियाँ बनाते हैं । इस प्रकार वे स्वयं गंदे रहकर भी खुशबू बाँटते हैं । यही श्रमिक खुशबू पैदा करते हैं । खुशबूदार अगरबत्तियाँ बनाते हैं और सुगंध बिखेरते हैं ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. कवि ने मजदूरों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है ।

3. भाषा सरल , सरस व रोचक है ।

4. चित्रात्मक व वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है ।

5. जीवन के विविध क्षेत्रों का चित्रण किया गया है ।

6. आम प्रचलित उर्दू शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है ।

7. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है ।

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