NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 15 Summary नए इलाके में

Hindi Sparsh Chapter 15 Summary नए इलाके में

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 15 Summary नए इलाके में, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT Summary for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 9 Hindi Sparsh Chapter 15 Summary नए इलाके में

 

पाठ का सार

नए इलाके में

अरुण कमल द्वारा रचित कविता ‘ नए इलाके में इस तथ्य की ओर संकेत करती है कि जीवन में सब कुछ परिवर्तनशील है , कवि नए बसते हुए क्षेत्रों में जाकर अकसर रास्ता भूल जाता है क्योंकि वहाँ प्रतिदिन कोई न कोई नया मकान बन जाता है । वह उन निशानियों को ढूँढ़ता रह जाता है कि जिनके सहारे उसने अपनी मंजिल पर जाना था । प्रतिदिन बदलनेवाले इस क्षेत्र में उसकी स्मृतियाँ भी उसे धोखा दे जाती हैं और जहाँ जाना चाहता है उससे दो घर आगे या पीछे पहुँच जाता है । उसे लगता है कि उसे हर द्वार खटखटाकर पूछना पड़ेगा कि क्या यही वह घर जहाँ उसे जाना था , या कोई उसे पहचानकर ही उसे पुकार लेगा कि इधर आओ , तुम्हें यहीं आना था ।

भावार्थ

1. नए इलाके में

1. इन नए बसते इलाकों में

जहाँ रोज़ बन रहे हैं नए – नए मकान

मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ

धोखा दे जाते हैं पुराने निशान

खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़

खोजता हूँ ढहा हुआ घर

और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ

मुड़ना था मुझे

फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का

घर था इकमंज़िला

और मैं हर बार एक घर पीछे

चल देता हूँ

या दो घर आगे ठकमकाता ।

शब्दार्थ

इलाका – क्षेत्र

ढहा – गिरा हुआ

ठकमकाता- धीरे धीरे डगमगाते हुए ।

भावार्थ – प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने नए इलाकों में हो रहे नए निर्माण के गति के साथ – साथ उससे उत्पन्न पहचान के संकट का यथार्थ चित्रण किया है । कवि किसी नई बस्ती में पहुँचता है तो प्रायः रास्ता भूल जाता है कारण यह है कि वहाँ रोज नए – नए मकान बन रहे हैं । उन नए मकानों की भूल – भुलैया में वह अकसर रास्ता भूल जाता है । इसलिए उसने ठिकानों तक पहुँचने के लिए आने – जाने के रास्तों पर निशान बनाए थे , वो भी काम नहीं आते । पुराने रास्ते भ्रम में डालते हैं । वि कहता है कि गंतव्य तक पहुँचने के लिए रास्ते में हमने जिस पीपल के पेड़ को , ढहे हुए घर को और खाली जमीन के टुकड़े को जहाँ से मुझे बाएँ मुड़कर दो मकान बाद इकमंजिला बिना रंगोंवाले फाटक लगे घर को निशान के रूप में याद किया था , वे सब के सब इस परिवर्तनशील संसार में हमें धोखा दे जाते हैं । यानी कि इनका अब कहीं नामों – निशान नहीं रह गया है । उसे हर बार ऐसा लगता है जैसे वह एक घर पीछे आ गया है या फिर दो घर डगमगाते हुए आगे बढ़ गया है ।

शिल्प- सौंदर्य –

1. कवि के अनुसार पल पल बनती बिगड़ती दुनिया में स्मृतियों के भरोसे नहीं जिया जा सकता ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा स्वाभाविक व रोचक है ।

4. चित्रात्मक व वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है ।

5. कहीं – कहीं भावात्मक शैली का प्रयोग हुआ है ।

6. आम बोलचाल की भाषा का प्रभाव दिखाई देता है ।

7. ( i ) ‘ नए – नए ‘ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है ।

( ii ) ‘ पुराने- निशान ‘ में अनुप्रास अलंकार है ।

2. यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है

रोज़ कुछ घट रहा है

यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं

एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया

जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ

जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ

अब यही है उपाय कि हर दरवाजा खटखटाओ

और पूछो – क्या यही है वो घर ?

समय बहुत कम है तुम्हारे पास

आ चला पानी ढहा आ रहा अकास

शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर ।

शब्दार्थ –

घट – घटित होना

स्मृति – याद

वसंत – एक मनमोहक ऋतु

पतझड़ – एक ऋतु जिसमें पत्ते झड़ जाते हैं

बैसाख- चैत्र के बाद वाला महीना

भादों – सावन के बाद आनेवाला महीना ।

भावार्थ- स्मृति पर भरोसा न करते हुए नित्य घटनेवाली घटनाओं का चित्रण करते हुए कवि कहते हैं कि प्रत्येक दिन मुझे परिवर्तन का आभास दिलाता है , कुछ न कुछ नवीन बनता रहता है । प्रत्येक दिन कुछ नवीन घटता रहता है । मनुष्य को अपनी स्मरण शक्ति पर भरोसा नहीं है । पुरानी यादें एक ही दिन में मिट जाती हैं । स्मृतियाँ पुरानी पड़ जाती हैं । ऐसा प्रतीत होता है जैसे वसंत ऋतु में जाने के पश्चात् पतझड़ में लौटा हूँ अर्थात् दीर्घकाल के बाद ( लगभग एक साल बाद ) लौटकर आया हूँ । ऐसा प्रतीत होने लगता है कि जैसे बैसाख के महीने में जाकर भादों को लौटा हूँ अर्थात् पाँच माह की दीर्घ अवधि के बाद वापिस लौटा हूँ । यही उपाय शेष है कि प्रत्येक दरवाज़े को टखटाकर यह पूछा जाए कि क्या यही वह है जिसे मैं ढूँढ़ रहा हूँ । जीवन में समय बहुत कम है ऐसा लगता हैं कि जैसे आकाश सिर पर गिरा चला रहा हो । ऐसा लगता है कि शायद कोई पहचाना हुआ पुकार ले |

शिल्प – सौंदर्य –

1. जीवन की गति परिवर्तनशील है । जीवन के इस सत्य की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा स्वाभाविक व रोचक है ।

4. चित्रात्मक व वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है ।

5. कहीं – कहीं भावात्मक शैली का प्रयोग हुआ है ।

6. आम बोलचाल की भाषा का प्रभाव दिखाई देता है ।

7. ‘ जैसे बसंत …. लौटा हूँ ‘ में उत्प्रेक्षा अलंकार है ।

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