NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 7 Summary मेरे बचपन के दिन

Hindi Kshitij Chapter 7 Summary मेरे बचपन के दिन

NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 7 Summary मेरे बचपन के दिन, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 7 Summary मेरे बचपन के दिन

 

लेखिका परिचय

जीवन परिचय – हिंदी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म सन 1907 में उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद शहर में हुआ था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई । उनका विवाह बारह वर्ष की में हुआ , जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया । उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी . ए . तथा संस्कृत में एम . ए . किया । उनकी नियुक्ति प्रयाग महिला विद्यापीठ में हो गई । वहाँ वे लंबे समय तक प्राचार्य पद पर कार्य करती रहीं । उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया । वे साहित्य और संगीत के अलावा चित्रकला में भी रुचि रखती थीं । उनकी साहित्य साधना के लिए उन्हें पद्मभूषण तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया । उनका देहांत सन 1987 में हुआ ।

रचना परिचय – महादेवी वर्मा ने गद्य एवं काव्य दोनों ही विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई । उनकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

गद्य रचना – पथ के साथी , अतीत के चलचित्र , स्मृति की रेखाएँ , शृंखला की कड़ियाँ ।

काव्य रचना – निहार , रश्मि , नीरजा , सांध्यगीत और दीपशिखा ।

साहित्यिक विशेषताएँ – महादेवी वर्मा की साहित्य साधना के पीछे एक ओर आज़ादी के आंदोलन की प्रेरणा है तो दूसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध भी है । उन्होंने हिंदी गद्य साहित्य में संस्मरण एवं रेखाचित्र को बुलंदियों तक पहुँचाया । उनके संस्मरण और रेखाचित्रों में शोषित पीड़ित लोगों के प्रति ही नहीं , बल्कि पशु – पक्षियों के लिए भी आत्मीयता एवं अक्षय करुणा प्रकट हुई है ।

भाषा – शैली – महादेवी वर्मा की भाषा – शैली सरल एवं स्पष्ट है । उनका शब्द – चयन प्रभावपूर्ण है । उन्होंने संस्कृत शब्दों का भी प्रयोग किया है । उनकी भाषा में लाक्षणिकता तथा प्रतीकात्मकता का सौंदर्य निहित रहता है।

 

पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ ‘ मेरे बचपन के दिन ‘ में उस समय की स्मृतियों का सजीव चित्रण है जब वे अपनी सहेली सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ विद्यालय में पढ़ा करती थीं । इसमें उन्होंने लड़कियों के प्रति सामाजिक रवैये , विद्यालय में उनकी सहपाठिनों , छात्रावास का जीवन , तत्कालीन सौहार्द्रपूर्ण वातावरण , आपसी प्रेमभाव , स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति विद्यार्थियों का दृष्टिकोण , गाँधी जी के साथ अपनी मुलाकात तथा कवि सम्मेलनों में अपनी उपलब्धियों का सजीव चित्रण किया है ।

अपने बचपन की स्मृतियों को तरोताजा करती हुई लेखिका महादेवी वर्मा कहती हैं कि उनका जन्म कई पीढ़ियों के बाद हुआ था क्योंकि उनके परिवार में दो सौ वर्षों तक किसी लड़की का जन्म नहीं हुआ । उससे पहले उस परिवार में पैदा होते ही लड़कियों को मार दिया जाता था । उनके बाबा ने दुर्गा देवी की आराधना की जिसके फलस्वरूप महादेवी वर्मा का जन्म हुआ और उनका खूब आदर – सत्कार हुआ । उन्हें पहले जैसी लड़कियों की स्थिति से नहीं गुज़रना पड़ा । उनकी माता जबलपुर की थीं , उन्हें हिंदी से लगाव था । उन्होंने ही लेखिका को पंचतंत्र पढ़ाया । उनके बाबा उसे विदुषी बनाना चाहते थे । लेखिका ने पंचतंत्र के साथ – साथ संस्कृत भी पढ़ी । उर्दू – फारसी में रुचि न होने के कारण लेखिका उर्दू – फारसी न सीख सकी । लेखिका को मिशन स्कूल भेजा गया । यहाँ नए वातावरण में उसका मन न लगा । उसे क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में पाँचवीं कक्षा में प्रवेश दिलाया गया । यहाँ विभिन्न धर्मों की लड़कियाँ थीं । वे सभी एक साथ मेस में खाना खाती थीं ।

लेखिका को छात्रावास के कमरे में चार लड़कियों के साथ रहना पड़ा । जिसमें उसकी पहली साथिन के रूप में सुभद्रा कुमारी चौहान मिली जो उससे दो साल बड़ी थी । संयोग से दोनों ही कविताएँ लिखती थीं । लेखिका की माँ भी कविता रचना करती थी ।

बह सवेरे ‘ प्रभाती ’ तथा सायंकाल मीरा के ‘ पद ‘ गाती करती थी । यही सब सुनकर लेखिका ने ब्रज भाषा में लिखना शुरू कर दिया था परंतु छात्रावास में सुभद्रा कुमारी को देख खड़ी बोली में लिखने लगी । वह अपने से सीनियर सुभद्रा से छिपाकर लिखती थी , पर जब उसकी लिखी कविता सुभद्रा कुमारी को मिल गई तो उन्होंने पूरे हॉस्टल में सबको दिखा दिया । इसके बाद दोनों में मित्रता हो गई । दोनों साथ – साथ रचनाएँ करतीं और स्त्री दर्पण पत्रिका में छपने को दे देतीं । लेखिका यहाँ 1917 में आई थी । उसके बाद गाँधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया और आनंदभवन स्वतंत्रता संघर्ष का केंद्र बन गया । वह कवि सम्मेलनों में मैडम के साथ जाती जहाँ हरिऔध , श्रीधर पाठक , रत्नाकर आदि होते । इनके बीच लेखिका उत्साहपूर्वक कविता पाठ करती और पुरस्कृत होती ।

एक दिन लेखिका को एक कविता पर चाँदी का नक्काशीदार सुंदर कटोरा पुरस्कारस्वरूप मिला । उस दिन सुभद्रा कुमारी कवि – सम्मेलन में नहीं गई थी । लेखिका ने जब सुभद्रा कुमारी को कटोरा दिखाया तो उन्होंने उसी में खीर बनाकर खिलाने के लिए कहा । उसी बीच आनंद भवन में बापू आए । छात्राएँ अपने बचाए जेब खर्च को स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष हेतु दे दिया करती थीं । लेखिका ने वह कटोरा गाँधी जी को दिखाया और उनके माँगने पर उन्हें दे दिया । लेखिका ने जब यह बात सुभद्रा को बताई तो उन्होंने खीर खाने की बात दोहराई चाहे पीतल के कटोरे में ही लेखिका को खुशी थी कि उसने बापू को अपना कटोरा दे दिया है ।

छात्रावास के कमरे से सुभद्रा कुमारी के जाने के बाद उस कमरे में मराठी छात्रा ज़ेबुनिन्सा आ गई । वह मराठी मिली – जुली हिंदी बोलती थी । उसके परिधान भी मराठी होते थे । उसका कहना था कि मैं मराठी हूँ तो मराठी बोलूँगी । उस समय सांप्रदायिकता नहीं थी । जिस प्रांत से जो लड़कियाँ आती थीं वहीं की भाषा बोला करती थीं । उस समय हिंदी – उर्दू साथ – साथ पढ़ते थे । सभी प्रार्थना में एक साथ खड़े होते तथा साथ – साथ प्रार्थना बोलते थे ।

लेखिका बचपन में जहाँ रहती थी , वहाँ जवारा के नवाब भी रहते थे । उनकी नवाबी छिन चुकी थी । बेगम साहिबा को सभी ताई कहती थीं । लेखिका तथा अन्य सहेलियों के जन्मदिन वहीं मनाए जाते थे । वे अपने बेटे को लेखिका से राखी बँधवाती थीं । वे रक्षाबंधन का त्योहार पूरी रस्म से मनाती थीं । मुहर्रम में दोनों के कपड़े साथ – साथ बनते थे । लेखिका के छोटे भाई का मनमोहन नाम उन्हीं बेगम साहिबा का दिया हुआ था । वही प्रोफेसर मनमोहन वर्मा आगे चलकर जम्मू यूनिवर्सिटी तथा गोरखपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे । ऐसा सद्भावपूर्ण वातावरण आज सपने जैसा लगता है । तात्पर्य यह है कि लेखिका के भाई का वही नाम चलता रहा जो बेगम साहिबा ने दिया था । उनके घर हिंदी और उर्दू बोली जाती थी । उस समय के वातावरण में हिंदू – मुस्लिम सब अत्यंत निकट थे । लेखिका कहती है कि वह सपना आज खो गया है । यदि वह सपना सत्य हो जाता तो भारत की कथा कुछ और ही होती ।

पाठ के शब्दार्थ

स्मृतियाँ – यादें

आकर्षण – खिंचाव

कुल-देवी – परिवार की देवी

खातिर-सेवा – सत्कार

पंचतंत्र – शिक्षाप्रद कहानियों की एक पुस्तक

विदुषी- विद्वान स्त्री

उपरांत – बाद में

दर्जा – कक्षा

सीनियर- बड़ा , बुजुर्ग

कृपानिधान – ईश्वर

पंछी – पक्षी

बन ( वन ) – जंगल

प्रभाती – प्रभात में गाया जाने वाला भजन

प्रतिष्ठित – सम्मान प्राप्त

डाल- शाखा

प्रचार-प्रसार – फैलाव

नक्काशीदार – कढ़ाई किया हुआ

फूल – एक चमकदार धातु

अवकाश- छुट्टी

सांप्रदायिकता- किसी धर्म विशेष का पक्षपाती होने का भाव

मेस – भोजनालय

विवाद- झगड़ा , मतभेद

संस्कार – पूर्वजों से मिले अच्छे गुण

कंपाउंड – अहाता

निराहार- बिना कुछ खाए – पिए

लहरियाँ – रंग-बिरंगी धारियों वाली साड़ी

नेग – खुशी के अवसर पर दिया जाने वाला उपहार

वाइस चांसलर- कुलपति

तात्पर्य – अर्थ

अवधी – अवध प्रांत की भाषा

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