NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 8 Summary एक कुत्ता और एक मैना

Hindi Kshitij Chapter 8 Summary एक कुत्ता और एक मैना

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NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 8 Summary एक कुत्ता और एक मैना

 

लेखक परिचय

जीवन परिचय – हिंदी साहित्य के जाने – माने आलोचक एवं निबंधकार हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के ‘ आरत दूबे के छपरा ‘ नामक गाँव में सन 1907 में हुआ था । इनके पिता का नाम अनमोल दूबे तथा माता का नाम श्रीमती ज्योति कली था । इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे उच्च शिक्षा हेतु बनारस चले गए । वहाँ इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिष शास्त्र तथा साहित्य में आचार्य की उपाधि हासिल की । इसके उपरांत वे शांतिनिकेतन में अध्यापन कार्य करने लगे । रवींद्रनाथ टैगोर के सानिध्य में आकर उन्होंने लेखन कार्य शुरू कर दिया । वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय , पंजाब विश्वविद्यालय , शांतिनिकेतन आदि में हिंदी विभाग के प्रमुख रहे । उनका देहावसान सन 1979 में हो गया ।

रचना परिचय – बहुमुखी प्रतिभा के धनी द्विवेदी जी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

निबंध – अशोक के फूल , कुटज , विचार प्रवाह , विचार और वितर्क , कल्पलता , आलोक पर्व आदि ।

उपन्यास – बाणभट्ट की आत्मकथा , चारु चंद्रलेखा , पुनर्नवा तथा अनामदास का पोथा ।

आलोचना – हिंदी साहित्य की भूमिका , सूर साहित्य , हिंदी साहित्य का आदि काल , सूरदास और उनका काव्य , कबीर , हमारी साहित्यिक समस्याएँ , साहित्य का मर्म , भारतीय वाङ्मय , साहित्य सहचार आदि ।

साहित्यिक विशेषताएँ – द्विवेदी जी ने अनेक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई है । उनके निबंधों में सरसता , गंभीरता , विनोदप्रियता तथा विद्वता के दर्शन होते हैं । वे छोटे – छोटे वाक्यों में गंभीर बातें कह जाते हैं । ललित निबंधों के मामले में वे बेजोड़ हैं । हिंदी को भारत लोकप्रिय बनाने में उनका योगदान अविस्मरणीय है ।

भाषा – शैली – द्विवेदी जी हिंदी तथा संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे । अपनी रचनाओं में उन्होंने तत्सम शब्दावली के साथ – साथ उर्दू – फारसी , अंग्रेज़ी और देशज शब्दों का प्रयोग किया है । उनकी भाषा सरल तथा बोधगम्य है । मुहावरों के प्रयोग से भाषा में सरसता तथा रोचकता आ गई है ।

 

पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ ‘ एक कुत्ता और एक मैना ‘ में पशु – पक्षियों के प्रति मानवीय प्रेम का प्रदर्शन है तथा साथ ही पशु – पक्षियों से मिलने वाले प्रेम , भक्ति , विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का विस्तार भी है । इसमें गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं और उनकी यादों के सहारे रवींद्रनाथ की संवेदनशील आंतरिक विराटता और सहजता का चित्रण किया गया है । यह निबंध सभी जीवों से प्रेम करने की प्रेरणा देता है ।

आज से कई वर्ष पहले गुरुदेव ने शांतिनिकेतन छोड़कर अन्यत्र रहने का विचार बनाया । शायद उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था । उन्होंने तय किया कि वे श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में कुछ दिन रहें । उसमें लोहे की घुमावदार सीढ़ियाँ होने के कारण उन्हें तीसरी मंजिल पर बड़ी कठिनाई से ले जाया गया । कमज़ोर शरीर वाले रवींद्रनाथ टैगोर के लिए वहाँ जाना संभव न था ।

छुट्टियों के दिन लोगों के बाहर चले जाने के कारण लेखक ने सपरिवार गुरुदेव के दर्शन का निश्चय किया । लेखक ब उनके पास पहुँचा तो उस समय वे अकेले तथा प्रसन्नचित्त थे तथा कुर्सी पर बैठे अस्त होते सूर्य को देख रहे थे । उन्होंने लेखक से कुशल – क्षेम के प्रश्न पूछे । उसी समय उनका कुत्ता उनके पास आकर पूँछ हिलाने लगा । गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा । वह आनंदित हो उठा । इन्हें कैसे पता कि मैं यहाँ हूँ । वह बिना किसी के बताए दो मील चलकर यहाँ आ गया । इसी कुत्ते को लक्ष्यकर गुरुदेव ने आरोग्य पत्रिका में एक कविता लिखी थी , जिसमें उसकी स्वामिभक्ति का वर्णन है । कविता का भाव यह है कि प्रतिदिन वह भक्त कुत्ता आसन के पास स्तब्ध होकर तब तक बैठा रहता था जब तक अपने हाथों के स्पर्श से इसका संग नहीं स्वीकारता । इतने मात्र से ही उसके अंग – अंग में आनंद का प्रवाह वह उठता है । यही वह एकमात्र जीव है जो अच्छा – बुरा सबको भेदकर संपूर्ण मनुष्य को देख सकता है ।

लेखक कहता है कि जब भी वह उस कविता को पढ़ता है तो तितल्ले की वह घटना उसकी आँखों के सामने प्रत्यक्ष रूप ले लेती है । उस दिन की वह सामान्य सी घटना आज विश्व की अनेक महिमाशाली घटनाओं में बैठ गई । जब गुरुदेव का चिताभस्म कलकत्ते ( कोलकाता ) से आश्रम लाया गया तब भी वह कुत्ता अन्य आश्रमवासियों के साथ शांत भाव से उत्तरायण तक गया और चिताभस्म के कलश के पास कुछ देर तक बैठा रहा ।

कुछ और पहले की एक घटना है । गुरुदेव बगीचे में फूल – पत्तों को अत्यंत ध्यान से देखते हुए टहल रहे थे । लेखक भी साथ था । वे एक महाशय से बातें भी करते जा रहे थे कि गुरुदेव ने उनसे अचानक पूछा कि सारे कौए कहाँ चले गए ? एक की भी आवाज़ नहीं सुनाई दे रही है । इस बात की खबर न लेखक को थी और न उन महाशय को । लेखक उनको सर्वव्यापी पक्षी समझता था । उस दिन ज्ञात हुआ कि ये पक्षी भी प्रवास को चले जाते हैं । उसके एक सप्ताह बाद बहुत से कौए दिखाई दिए ।

दूसरी बार एक सुबह जब लेखक गुरुदेव के पास था , उस समय वहाँ एक लँगड़ी मैना फुदक रही थी । गुरुदेव ने कहा यह यूथभ्रष्ट है जो यहीं आकर रोज़ फुदकती है । गुरुदेव को उसकी लँगड़ाहट में एक करुण भाव दिखाई देता है । यदि इस करुणभाव की बात गुरुदेव न करते तो लेखक उस करुण भाव को न देख पाता । लेखक समझता था कि मैना करुण भाव दिखाने वाला पक्षी है ही नहीं । वह तो दूसरों पर ही अनुकंपा दिखाती है । इसका कारण यह था कि लेखक के कमरे में एक मैना दंपत्ति ने घोंसला बना लिया था । लेखक ने उनकी गतिविधियाँ देख रखी थीं ।

मैना इस तरह कभी करुण हो सकती है , लेखक ने सोचा भी न था । गुरुदेव की बात पर लेखक ने ध्यान से देखा तो उसके मुख पर करुणभाव था । शायद वह विधुर मैना था जो स्वयंवर सभा के युद्ध में परास्त हो गया था या विधवा मैना थी जो पति को खोकर एकांत विहार कर रही थी । इसकी ऐसी करुण दशा को लक्ष्यकर गुरुदेव ने बाद में एक कविता लिखी । उस कविता में उन्होंने मैना की उस दशा पर चिंता व्यक्त की है , जिसके कारण वह अपने दल से अलग रह रही है । यह प्रतिदिन संगीहीन होकर कीड़ों का शिकार करती है तथा बरामदे में नाच – कूदकर चहलकदमी करती है । वह लेखक से निडर हो गई है । वह सोचता है कि समाज के किस निर्वसन पर उसे यह दंड मिला है । कुछ ही दूरी पर कुछ मैनाएँ शिरीष के वृक्ष पर बकझक कर रही हैं पर यह सबसे अलग सहज मन से आहार चुगती हुई झड़े पत्तों पर कूदती फिर रही है । इसकी चाल में वैराग्य का भाव भी नहीं है । इस कविता को जब लेखक पढ़ता है तो उस मैना की करुण मूर्ति उसकी आँखों के सामने घूम जाती है । लेखक की आँखें उस मैना तक नहीं पहुँच सकीं पर गुरुदेव की दृष्टि उसके मर्मस्थल तक पहुँच गई । एक दिन वह मैना उड़ गई । उसका गायब होना भी कितना करुणाजनक है ।

पाठ के शब्दार्थ

अन्यत्र – कहीं और

तिमंजिले- तीन मंजिल वाले

तल्ला- मंजिल ( Floor )

क्षीणवपु – दुबला – पतला , कमज़ोर शरीर

दर्शनीय – देखने योग्य

दर्शनार्थी – दर्शन चाहनेवाले

अतिथि- आगंतुक , आनेवाले

पुस्तकीय- पुस्तक से संबंधित

प्रगल्भ – बोलने में संकोच न करने वाला , प्रतिभाशाली

परवाह – फिक्र , चिंता

भीत-भीत – डरे – डरे , दूर – दूर

मय – सहित

अस्तगामी – डूबता हुआ

ध्यानस्तिमित – ध्यानपूर्वक

स्नेह रस – प्यार के रस में

परितृप्ति – संतुष्टि

स्नेहदाता- प्यार करने वाला

आरोग्य – बांग्ला भाषा की एक पत्रिका का नाम

स्तब्ध – चुप

वाक्यहीन- बोलने में असमर्थ

प्राणिलोक – संसार

अहैतुक – अकारण , बिना कारण के

चैतन्य – चेतना युक्त

मूक – चुप

प्राणपण – जान की बाज़ी

सृष्टि- संसार

मर्मभेदी- दिल को छू जाने वाली

आत्मनिवेदन – प्रार्थना

मूर्तिमान – स्थिर

महिमाशाली – यशस्वी

चिताभस्म – चिता की राख

अन्यान्य – दूसरा

उत्तरायण- शांतिनिकेतन में उत्तर दिशा की ओर बना रवींद्रनाथ टैगोर का एक निवास स्थल

धृष्ट – मुँहजोर , डीठ , जबरदस्ती बातें करने वाला

सर्वव्यापक – हर जगह पाया जाने वाला

प्रवास – परदेश जाकर रहना

बाध्य – विवश

यूथभ्रष्ट – समूह या झुंड से बहिष्कृत किया हुआ

अनुकंपा – कृपा , दया

समाधान – हल , उपाय

अंबार – ढेर

परों – पंखों

विजयोद्घोषी वाणी – जीत की खुशी में निकलने वाली आवाज

गान – गाना

मुखरित – सवाक् होना

मुखातिब – मुँह की ओर

अदा – अंदाज़ , तरीका

रिमार्क – टिप्पणी

प्राइवेट – व्यक्तिगत

अक्ल – बुद्धि

विधुर – जिसकी पत्नी मर गई हो

आहत – घायल

परास्त – हारा हुआ

ईषत् – आंशिक रूप से

एकांत विहार – अकेले में घूमना

संगीहीन — साथी के बिना

निर्वसन – अलग करना

अभियोग – दोष , आरोप

मर्मस्थल – हृदय

संध्यातारा – साँझ को दिखाई देने वाला तारा

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