NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 1 Summary दो बैलों की कथा

Hindi Kshitij Chapter 1 Summary दो बैलों की कथा

NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 1 Summary दो बैलों की कथा, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 1 Summary दो बैलों की कथा

 

लेखक परिचय

जीवन परिचय – यूँ तो उपवन में अनेक प्रकार के फूल खिलकर उपवन की सुंदरता बढ़ाते हैं , किंतु जिस प्रकार गुलाब का स्थान उपवन में अद्वितीय होता है , उसी प्रकार हिंदी साहित्य की वाटिका में प्रेमचंद नामक गुलाब अपनी सुगंध से पूरी वाटिका को महका रहा है ।

हिंदी साहित्य में ‘ उपन्यास सम्राट ‘ के नाम से मशहूर प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक स्थान पर 1880 में हुआ था । उनके पिता का नाम अजायब राय तथा माता का नाम आनंदी देवी था । प्रेमचंद के बचपन का नाम धनपत राय था । बचपन में ही पिता की मृत्यु होने के कारण घर की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई । वे दसवीं पास करते ही प्राइमरी स्कूल में शिक्षक बन गए । नौकरी करते हुए उन्होंने बी ० ए ० पास किया । तत्पश्चात उनकी नियुक्ति स्कूल इंस्पेक्टर के रूप में हुई पर , गाँधी जी के आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने नौकरी त्याग दी और 1920 के असहयोग आंदोलन में कूद पड़े । इसके बाद वे लेखन कार्य के प्रति समर्पित हो गए । इस महान साहित्यकार का निधन 1936 ई ० में हो गया ।

रचना परिचय – प्रेमचंद हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार माने जाते हैं । उन्होंने लगभग 300 से अधिक कहानियाँ तथा 11 उपन्यास लिखे । उनकी कहानियों का संग्रह ‘ मानसरोवर ‘ के नाम से आठ भागों में संकलित है । उनकी रचनाएँ निम्नलिखित है –

उपन्यास – गोदान , सेवासदन , प्रतिज्ञा , प्रेमाश्रम , वरदान , कायाकल्प , निर्मला , रंगभूमि , गबन तथा कर्मभूमि ।

कहानियाँ – कफ़न , नवनिधि , प्रेरणा , प्रेम – प्रसून , प्रेम – पच्चीसी , मन – मोहक , समर यात्रा , सप्त सरोज , अग्नि – समाधि , प्रेम – गंगा और सप्त – सुमन आदि ।

नाटक – कर्बला , प्रेम की बेदी , संग्राम और रूठी रानी ।

संपादन कार्य – हंस , जागरण , माधुरी आदि पत्रिकाओं का संपादन ।

निबंध – कुछ विचार ।

साहित्यिक विशेषताएँ – प्रेमचंद ने ‘ राष्ट्रीय जागरण ‘ और ‘ समाज सुधार ‘ को अपने लेखन का प्रमुख विषय बनाया । उनके लेखन में देश – प्रेम एवं देशभक्ति का स्वर होने के कारण अंग्रेज़ों ने उनकी कृति ‘ सोजे वतन ‘ को जब्त कर लिया । उन्होंने दीन – हीन किसानों , ग्रामीणों तथा शोषितों की दुर्दशा का चित्रण अपने लेखन में किया । उन्होंने किसानों की समस्याओं – ऋण – ग्रस्तता , अशिक्षा के अलावा समाज में व्याप्त बुराइयों – दहेज , नशाखोरी , शोषण , बेमेल तथा बहुविवाह , ऊँच – नीच , छुआछूत आदि पर भी प्रभावशाली साहित्य सृजन किया।

भाषा – शैली – प्रेमचंद का साहित्य जनसाधारण का साहित्य है । उनके साहित्य की भाषा सरल , मुहावरेदार तथा व्यावहारिक शब्दों से युक्त है । उन्होंने लोकभाषा में साहित्य सृजन किया । उनके पात्रों की भाषा वातावरण तथा मनोदशा के अनुकूल है । वे बड़ी से बड़ी बात को भी सरल शब्दों और संक्षेप में कहने में सिद्धहस्त हैं । उन्होंने अरबी , फारसी , अंग्रेज़ी के प्रचलित शब्दों का अपने लेखन में प्रयोग किया है । इससे भाषा सजीव , प्रवाहमयी तथा व्यावहारिक बन गई है ।

 

पाठ का सारांश

‘ दो बैलों की कथा ‘ की गणना प्रेमचंद की श्रेष्ठ कहानियों में की जाती है । इस कहानी के माध्यम से लेखक ने षक समाज और पशुओं के भावनात्मक संबंध का वर्णन किया है । उसके ‘ हीरा ‘ और ‘ मोती ‘ नामक दो बैल सीधे – सादे भारतीयों के प्रतीक हैं । वे आज़ादी के लिए बार – बार संघर्ष करते हैं और अंत में उसे पा ही लेते हैं । इस तरह परोक्ष रूप से यह कहानी आज़ादी के आंदोलन की भावना से भी जुड़ी है ।

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जानवरों में गधे को सबसे बुद्धिहीन प्राणी माना जाता है । इसका कारण है उसका सीधापन और सहनशीलता , उसके यही गुण उसे ऋषि – मुनियों की श्रेणी में ला देते हैं । उसके लिए लाभ – हानि , सुख – दुख सब कुछ बराबर है । सीधेपन और सहनशीलता के कारण भारतीयों को अफ्रीका और अमेरिका में असभ्य और बुद्धिहीन समझा जाता है । गधे से कुछ कम सीधा उसका भाई भी है , जिसे बैल के नाम से जाना जाता है । परंतु यह कभी – कभी अड़कर अपना असंतोष भी प्रकट कर देता है , इस कारण इसका स्थान गधे से कुछ ऊपर है ।

झूरी काछी के दो बैल थे , जिनका नाम था- ‘ हीरा ‘ और ‘ मोती ‘ । पछाई जाति के ये दोनों बैल ऊँचे डील – डौल वाले , देखने में सुंदर तथा काम में चौकस थे । दोनों में इतनी घनिष्ठता थी कि एक – दूसरे के मन की बातों का अनुमान लगा लेते थे । वे साथ – साथ रहते , खाते और विनोद के भाव में कभी – कभी सींग भी मिला लिया करते थे । वे एक – दूसरे के काम का जोर अपने कंधे पर लेने की कोशिश करते । दिनभर काम के बाद शाम को एक – दूसरे को सूँघकर दोनों एक साथ ही नाँद में मुँह डालते और साथ ही मुँह उठाते थे ।

संयोग से एक बार झूरी ने दोनों बैलों को अपनी ससुराल भेज दिया । बैलों ने समझा कि उन्हें बेच दिया गया है । यह उन्हें अच्छा न लगा । उन्हें ले जाने में झूरी के साले गया को बहुत परेशानी हुई । गया उन्हें आगे को खींचता तो वे पीछे को बल लगाते । गया के घर की नई जगह , नए लोग उन्हें अच्छे नहीं लग रहे थे । रात को जब सब सो गए तो दोनों ने एक – दूसरे की ओर देखा और ज़ोर लगाकर मजबूत पगहे तोड़कर प्रातःकाल तक वापस झूरी के पास आ गए । झूरी ने चरनी पर बैलों को देखा । दोनों के गले में गराँव , कीचड़ में सने पैर तथा आँखों में विद्रोहमय स्नेह देखकर झूरी उनके गले लग गया । गाँव के लड़कों ने उनका स्वागत किया और अपने – अपने घरों से रोटियाँ , गुड़ , चोकर , भूसी आदि लाकर दिया । बैलों के यूँ भागकर चले आने से झूरी की पत्नी नाराज़ हुई । उसने बैलों को खली , चूनी चोकर , खिलाने से मना कर दिया । झूरी ने सूखे भूसे में नौकर से खली डालने के लिए कहा , पर झूरी की पत्नी के डर से नौकर ऐसा न कर सका ।

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दूसरे दिन झूरी का साला गया बैलों को ले जाने फिर आया । इस बार उसने दोनों को गाड़ी में जोता और किसी तर अपने घर ले गया । उसने उन्हें मोटी – मोटी रस्सियों में बाँधा । उन्हें खाने को सूखा भूसा डाल दिया । बैलों ने अपना ऐसा अपमान कभी न देखा था क्योंकि गया ने अपने बैलों को खली – चुनी सब कुछ दिया था । गया ने अगले दिन उन्हें हल में जोता पर बैलों ने कदम न बढ़ाए । वह हीरा की नाक पर डंडे बरसाने लगा । यह देख मोती गुस्से में आग – बबूला हो गया और हल लेकर भागा , जिससे हल , रस्सी , जोत , जुआ सब टूट गए । दोनों के गले में बड़ी – बड़ी रस्सियाँ न होतीं तो पकड़ में ही न आते । गया गाँव के दो आदमियों के साथ दौड़ा आया । उनके हाथ में लाठियाँ थीं । मोती ने उनका मुकाबला करना चाहा पर हीरा ने उसे शांत कराया । दोनों आदमियों ने हीरा – मोती को पकड़ा और घर ले आए ।

रात के समय फिर उन्हें सूखा भूसा डालकर घर के लोग भोजन करने लगे । उसी समय एक छोटी लड़की दो रोटियाँ लेकर आई और दोनों के मुँह में एक – एक रोटी देकर चली गई । यह प्रतिदिन का नियम बन गया । दोनों दिन भर जोते जाते , डंडे खाते । शाम को थान पर बाँध दिए जाते और रात को वही लड़की दो रोटियाँ खिला जाती । वे जान चुके थे कि यह भैरो की लड़की है , जिसकी माँ मर चुकी है और सौतेली माँ उसे सताती हैं । यह जानकर मोती ने हीरा से उस सौतेली माँ को सींग से फेंक देने की बात कही पर लड़की का स्नेह उसे रोक देता था । एक दिन लड़की ने दोनों की रस्सियाँ खोल दीं । वे उसके स्नेह के कारण भाग नहीं रहे थे , तभी लड़की ने शोर मचाया कि दोनों बैल भागे जा रहे हैं । हीरा – मोती आगे – आगे तथा गया पीछे – पीछे । वह गाँववालों को लेने के लिए वापस आया , तब तक दोनों को भगाने का मौका मिल गया । वे आगे – आगे भागते रहे , पर वे रास्ता भटक गए । रास्ते में उन्हें नए – नए गाँव तथा खेत मिलने लगे । भूख से व्याकुल दोनों ने एक खेत में जी भर मटर खाए । फिर दोनों ने डकार लेकर सींग मिलाए ।

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अचानक उनको सामने से एक बड़ा – सा साँड आता दिखा । उससे भिड़ने पर मरना तय है , यह सोचकर दोनों उससे बचना चाहते थे , पर कोई रास्ता भी न था । दोनों ने भागने को कायरता समझकर उस पर एक साथ चोट करने का निश्चय किया । उन्होंने तय किया कि एक झपटने पर दूसरा उसके पेट में सींग घुसेड़ दे । साँड को दो – दो शत्रुओं से एक साथ लड़ने का अनुभव न था । जब उसने मोती पर हमला किया तो हीरा ने उसे रगेदा साँड़ ने जब हीरा का अंत करने के लिए वार किया तो मोती ने उसके पेट में सींग घुसेड़ दी और जब मोती पर झपटा तो हीरा ने भी ऐसा ही किया । साँड़ बेदम होकर वहीं गिर पड़ा तब उन दोनों ने उसे छोड़ दिया । आगे बढ़ने कर दोनों मटर के खेत में घुस गए । अभी दो चार ग्रास ही खाए थे कि खेत के रखवालों ने उन्हें देख लिया । मेड़ पर खड़ा हीरा निकल गया पर मोती सींचे खेत में था । वह भाग न सका । हीरा भी लौट आया । दोनों पकड़े गए और कांजीहौस में बंद कर दिए गए ।

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दोनों के जीवन में ऐसा पहली बार हुआ कि सारे दिन खाने को कुछ न मिला । इससे तो गया ही अच्छा था , उन्होंने सोचा । यहाँ कई भैंसें , बकरियाँ , घोड़े थे , पर चारा तो किसी के सामने न था । सारा दिन दोनों ने चारे का इंतज़ार किया , पर कोई चारा लेकर न आया । उन्होंने दीवार की मिट्टी चाटनी शुरू की , पर उससे क्या होता । दोनों वहाँ से निकल भागने की योजना बनाने लगे । बाड़े की कच्ची दीवार में हीरा ने सींग मारकर कुछ मिट्टी गिरा दी । उसी समय बाड़े का चौकीदार हाजिरी लेने आया । उसने हीरा को ऐसा करते देख उसे कई डंडे मारे और मोटी रस्सी से बाँध दिया । इतना होने पर भी दोनों ने दीवार गिराना जारी रखा । दो घंटे के बाद आधी दीवार गिर गई । यह देख पहले तीनों घोड़ियाँ , फिर बकरियाँ , बाद में भैंसें कांजीहौस से भाग गई , पर गधे अब भी वहीं खड़े थे । वे डर के मारे भागना नहीं चाहते थे । आधी रात तक गधे वहीं खड़े रहे और मोती हीरा की रस्सियाँ तोड़ने में लगा रहा । सफल न होता देख मोती ने सींग मारकर गधों को भी वहाँ से भगा दिया और हीरा के पास सो गया । अगले दिन मोती को खूब मार पड़ी और उसे भी मोटी रस्सी से बाँध दिया गया ।

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एक सप्ताह तक दोनों बिना चारे के वहीं पड़े रहे । वे बहुत कमज़ोर हो चुके थे । एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और पचास – साठ आदमी वहाँ एकत्र हो गए । दोनों को निकाला गया , पर ऐसे मरियल बैलों का कोई खरीदार न था । अचानक एक दढ़ियल , जिसकी आँखें लाल तथा मुद्रा कठोर थी , आया और उनके कूल्हों में उँगली गोदकर देखने लगा । यह देखकर दोनों अंतर्ज्ञान से काँप उठे । नीलामी के बाद उसने दोनों बैलों को खरीद लिया । डर के मारे हीरा – मोती उसके साथ गिरते – पड़ते भागने लगे , क्योंकि ज़रा – सी चाल कम होते ही वह डंडा मार देता था । राह में गाय – बैलों को हरे – हरे खेतों में चरता देखकर उन्हें अपने भाग्य पर रोना आ रहा था ।

सहसा हीरा – मोती को वह रास्ता परिचित – सा लगा । गया उसी रास्ते से उन्हें ले गया था । वही खेत , बाग और गाँव उन्हें मिलने लगे । उनकी थकान और दुर्बलता गायब हो उठी । उन्हें अपना खेत और कुआँ पहचान में आ गया । अपना घर निकट देखकर दोनों तेज़ी से भागे और अपने थान पर जाकर ही रुके , उन्हें यूँ आया देख झूरी ने बारी – बारी से उन्हें गले लगा लिया । अब तक दढ़ियल ने आकर उनकी रस्सियाँ पकड़ लीं । यह देख झूरी ने कहा , “ ये तो मेरे बैल हैं ” । इस पर दढ़ियल ने कहा , ” तुम्हारे बैल कैसे ? मैं इन्हें मवेशीखाने से नीलाम लिए आता हूँ । ” यह कहकर वह जबरदस्ती उन्हें ले जाने की कोशिश करने लगा । उसी समय मोती ने सींग चलाया । दढ़ियल डर के मारे भागने लगा । यह देख मोती दढ़ियल के पीछे भागने लगा और उसे गाँव के बाहर खदेड़ दिया । अंत में हारकर दढ़ियल चला गया ।

थोड़ी ही देर में झूरी ने नाँदों में खली , चूनी , चोकर और दाना भर दिया , जिसे खाने में दोनों व्यस्त हो गए । गाँव में उत्साह छा गया । मालकिन ने भी दोनों के माथे चूम लिए ।

पाठ के शब्दार्थ

परले दरजे का बेवकूफ़ – महामूर्ख

निरापद- सुरक्षित

सहिष्णुता – सहनशीलता

पदवी- उपाधि

अनायास – अचानक

वैशाख- गर्मी का महीना

विषाद – दुख , उदासी

पराकाष्ठा – चरम सीमा , अंतिम सीमा

अनादर – अपमान

कदाचित – शायद

कुसमय – बुरा समय , मुसीबत

गम खा जाना- शांत रहना

मिसाल- उदाहरण

गण्य गणनीय, सम्मानित

बछिया के ताऊ – अत्यधिक मूर्ख

अड़ियल – जिद्दी

रीति – तरीका

पछाई – पालतू पशुओं की एक नस्ल

चौकस – चौकन्ना

डील – कद

मूक-भाषा – मौन भाषा

विचार विनिमय- विचारों का आदान – प्रदान

गुप्त – छिपी

वंचित – रहित , विमुख

विग्रह – अलगाव

घनिष्ठता – प्रगाढ़ता

नाँद – पशुओं के चारा खाने के बड़ा – सा बर्तन

गोई – जोड़ी

पगहिया- बैलों को बाँधने की रस्सी

वाणी – आवाज़ , बोलने की शक्ति

चाकरी – नौकरी , सेवा

कबूल – स्वीकार

जालिम- निर्दयी

बेगाने – पराए

चरनी – चारा खाने की जगह

गरौँव – बैलों के गले में पहनाई जाने वाली फंदेदार रस्सी

प्रेमालिंगन – प्रेम से बाँहों में भर लेना

मनोहर – मन को अच्छा लगनेवाला

अभूतपूर्व – जो पहले न हुआ हो

अभिनंदन – पत्र – सम्मान पत्र

समर्थन करना – पुष्टि करना

जनम – जन्म

प्रतिवाद करना- विरोध में तर्क देना

आक्षेप – आरोप

कामचोर – काम से जी चुराने वाला

मजूर- मज़दूर

ताकीद – चेतावनी

टिटकार- बैलों को तेज़ चलाने के लिए मुँह से निकाली गई टिक – टिक की आवाज़

आहत- घायल

व्यथा- दुख

कुशल- भला

तेवर – क्रोध भरी दृष्टि

टाल जाना – बच जाना

मसलहत – उचित हितकर

वास – निवास

आत्मीयता – अपनापन

थान- पशुओं के बाँधने का स्थान

बरकत – बढ़ती

सहसा – अचानक

परिचित मार्ग – जाना – पहचाना रास्ता

बेतहाशा- बिना सोचे – समझे

आहट लेना- किसी के आने के बारे में जानने की कोशिश करना

भयंकर – डरावनी

आरजू – विनती

रगेदना – दौड़ाना , खदेड़ना

जोखिम – खतरा

संगठित- इकट्ठा , एकजुट

तजरबा – अनुभव

मल्लयुद् – कुश्ती

आदी – अभ्यस्त

जख्मी – घायल

तिरस्कार – अपमान , अवज्ञा

वैरी- दुश्मन

ग्रास – कौर

संगी- साथी

कांजीहौस – जहाँ पशुओं को बंद करके रखा जाता है

साबिका – वास्ता , सरोकार

तृप्ति – संतोष

बूते – बल

चिप्पड़ – टुकड़ा

उजड्डपन – उद्दंडता

देह – शरीर

प्रतिद्वंद्वी – मुकाबला करने वाला

सरपट – तेजी से

हरज ( हर्ज ) – परेशानी

गर्व – अभिमान

बंधु – भाई

भोर – सबेरा , तड़का

तृण – तिनका

ठठरी – हड्डी

मृतक – मरा हुआ

खरीदार – खरीदने वाला

अंतर्ज्ञान – भीतरी ज्ञान

टटोलना – उँगलियों से छूकर पता लगाना

भीत – डरा हुआ

नाहक – बेकार

अश्रद्धा – अनादर

चपल – चंचल

पागुर करना- गाय – बैल जैसे पशुओं द्वारा निगले हुए चारे को फिर से चबाने की क्रिया

बधिक – बध करनेवाला

पुर चलाना – चमड़े के बड़े से थैले से पानी खींचना

नगीच – निकट

उन्मत्त – पागल

नीलामी – बोली में सबसे ज़्यादा मूल्य देकर खरीदना

अख्तियार- अधिकार

रपट ( रिपोर्ट ) – सूचना

शूर – वीर

उछाह – उत्साह , उमंग

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