NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 2 Summary ल्हासा की ओर

Hindi Kshitij Chapter 2 Summary ल्हासा की ओर

NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 2 Summary ल्हासा की ओर, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 2 Summary ल्हासा की ओर

 

लेखक परिचय

जीवन परिचय – हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद के पंदहा गाँव में 1893 ई ० में हुआ था । उनका मूल नाम केदार पांडेय था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में , मिडिल शिक्षा आजमगढ़ में तथा उच्च शिक्षा काशी , आगरा और लाहौर में हुई । उन्होंने 1930 में श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली । इसके बाद राहुल सांकृत्यायन नाम से प्रसिद्ध हुए । वे पालि , प्राकृत , अपभ्रंश , तिब्बती , चीनी , जापानी , रूसी सहित अनेक भाषाओं के ज्ञानी थे । उनके ज्ञान के आधार पर ही उन्हें महापंडित कहा जाता है । वे घुमक्कड़ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे । उन्होंने संसार के अनेक देशों की यात्रा की । साहित्य के ये महापंडित 1963 ई ० में संसार छोड़ गए ।

रचना परिचय – बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने उपन्यास , कहानी , आत्मकथा , यात्रा – वृत्त , जीवनी , आलोचना , शोध आदि अनेक विधाओं में साहित्य सृजन किया । उन्होंने विभिन्न ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद भी किया । उनकी कृतियों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –

अन्य साहित्य – दर्शन – दिग्दर्शन , बाइसवीं सदी , वोल्गा से गंगा , भागो नहीं दुनिया को बदलो , दिमागी गुलामी इत्यादि ।

यात्रा साहित्य – मेरी जीवन यात्रा ( छह भाग ) , राहुल यात्रावली , घुमक्कड़ शास्त्र , किन्नर के देश में , यात्रा के पन्ने , हिमालय- परिचय , रूस में पच्चीस मास आदि ।

साहित्यिक विशेषताएँ – यात्रावृत्त लेखन में राहुल जी का स्थान अद्वितीय है । उन्होंने कड़ी के शास्त्र की रचना की । उन्होंने घुमक्कड़ी के लाभ का विस्तृत उद्देश्य बताया तथा यात्रा को ही घुमक्कड़ का उद्देश्य बताया । इससे मनोरंजन , ज्ञानवर्धन , अज्ञात स्थानों की जानकारी के साथ – साथ भाषा का सांस्कृतिक आदान – प्रदान भी होता है ।

भाषा – शैली – राहुल जी ने अपनी रचनाओं में परिनिष्ठित एवं शुद्ध भाषा का प्रयोग किया है । उनकी रचनाओं में तत्सम – तद्भव के साथ – साथ अरबी , फारसी , हिंदी की बोलियों के रोचक शब्दों का प्रयोग हुआ है । लोकोक्तियाँ तथा मुहावरों के प्रयोग से भाषा की रोचकता बढ़ गई है ।

 

पाठ का सारांश

‘ ल्हासा की ओर ‘ नामक पाठ लेखक की प्रथम तिब्बत यात्रा से लिया गया है । उन्होंने 1929-30 में नेपाल के रास्ते यह यात्रा की थी । उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति न होने के कारण लेखक ने यह यात्रा भिखमंगे के छद्म वेश में की । इस पाठ में उन्होंने ‘ ल्हासा की ओर जाने वाले दुर्गम रास्ते का रोचक वर्णन किया है । इससे तिब्बती समाज के बारे में अनेक जानकारिया मिलती हैं ।

लेखक ने अपनी तिब्बत की यात्रा नेपाल – तिब्बत के मार्ग से की थी , क्योंकि तब फरी – कलिङ्पोङ् का रास्ता नहीं खुला था । इसी रास्ते से हिंदुस्तानी वस्तुएँ भी तिब्बत जाती थीं । यह व्यापारिक तथा सैनिक रास्ता था । इस पर जगह – जगह फौजी चौकियाँ और किले बने हैं , जिनमें चीनी सेना रहती थी । कुछ किलों में किसानों ने अपना डेरा जमा लिया था । लेखक ऐसे ही एक परित्यक्त किले के पास चाय पीने के लिए रुका था ।

तिब्बत में यात्रियों के लिए कुछ अच्छी बातें हैं तो कुछ तकलीफें भी । यहाँ जाति – पाँति , छुआछूत , पर्दा – प्रथा जैसी कुप्रथाएँ नहीं हैं । लोग अपने घरों को खुला रखते हैं । यहाँ की बहुएँ या उनकी सासें यात्रियों को या अपरिचितों को भी चाय बनाकर दे देती हैं । यदि यात्रियों को कुछ संदेह हो तो वे अपनी चाय खुद भी बना सकते हैं । उस परित्यक्त चीनी किले से चाय पीकर जब लेखक चलने लगा , तो उसने राहदारी मांगने वाले व्यक्ति को दोनों चिटें दे दीं । थोङ्ला के आखिरी गाँव में उसे मित्र सुमति के जान – पहचान के लोग मिले । इस कारण लेखक को ठहरने की अच्छी जगह मिल गई । पाँच साल बाद लेखक जब भद्र यात्री के वेश में घोड़े पर सवार होकर आया था , तब उसे जगह नहीं मिली और उसे एक निर्धन झोंपड़े में रात बितानी पड़ी ।

अब लेखक को सबसे विकट डाँड़ा थोङ्ला पार करना था । सोलह – सत्रह हज़ार फीट ऊँचाई पर स्थित ये डाँड़े सबसे खतरनाक जगहें हैं । इनके आसपास कोई गाँव नहीं होता है । नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण दूर तक आदमी नहीं दिखते हैं । यहाँ किसी की हत्या हो जाए तो पुलिस या खुफिया विभाग कोई चिंता नहीं करता है । वहाँ कोई हत्या का गवाह भी तो नहीं मिलता है । यह डाकुओं के लिए अत्यंत सुरक्षित जगह है । डाकू आदमी को पहले मारते हैं , फिर लूट के लिए माल खोजते हैं । हथियार का कानून न होने के कारण लोग हथियार लेकर घूमते हैं । डाकू यदि जान से न मारें तो उन्हें अपनी ही जान का खतरा रहता है । लेखक और उसके साथी भिखमंगों के भेश में थे । जान का खतरा होते ही वे भीख माँगने लगते थे । पहाड़ पर सामान के साथ चलना कठिन था , इसलिए लेखक ने दो घोड़े कर लिए और चलते गए । दोपहर तक वे डाँड़े पर पहुँचे , जो सत्रह – अठारह हज़ार फीट ऊँचा था । यहाँ का वातावरण मनोरम था । दोनों ओर पहाड़ थे । इनमें कुछ पर बर्फ थी तथा कुछ पर न बर्फ थी , न हरियाली सबसे ऊँचे स्थान पर देव स्थान था , जिसे कपड़े तथा झंडियों से सजाया गया था । लेखक को अब उतराई की ओर चलना था । उसके साथ उसके एक – दो साथी और चल रहे थे , पर वे सब बिछुड़ गए , क्योंकि लेखक का घोड़ा धीरे चलने लगा था । लेखक उन सबसे बहुत ही पीछे रह गया । इसी बीच वह रास्ता भटककर कहीं और चला गया । फिर वापस रास्ते पर लौटकर आया । वह चार बजे के करीब लङ्कोर पहुँचा , जहाँ उसका जानकार सुमति प्रतीक्षा करता मिला । वह बहुत गुस्से में था , पर सारी बात जानकर उसका क्रोध शांत हो गया । लङ्कोर में वह अच्छी जगह रुका । यहाँ उसे खाने को सत्तू , चाय तथा रात में गरमागरम थुक्पा मिला ।

लेखक और उसके साथी अब तिरी के विशाल मैदान में थे । इसके चारों ओर पहाड़ थे , जिससे यह मैदान टापू जैसा दिख रहा था । इसी मैदान में तिझरी – समाधि – गिरि है । यहाँ भी सुमति के यजमान थे । वे यजमानों के यहाँ जाना चाहते थे । बोध गया से लाए गंडे खत्म होने पर किसी भी लाल कपड़े का गंडा बनाकर बाँटना शुरू कर देते थे । लेखक ने उन्हें ऐसा करने से रोका । लेखक को भरिया ( भारवाहक ) न मिल पाने के कारण सामान लेकर स्वयं चलना पड़ रहा था । तिब्बत की कड़ी धूप में 2 बजे सूरज की ओर मुँह करके चलने से गर्मी लग रही थी । सुमति अपने एक यजमान से मिलना चाह रहे थे , इसलिए उन्होंने शेकर बिहार की ओर चलने के लिए कहा । तिब्बत की ज़मीन जागीरदारों में बँटी है , जिनका ज़्यादा हिस्सा मठों के पास है । जागीरदार मज़दूरों से बेगार में खेती कराता है । खेती की देखरेख के लिए भिक्षु भेजे जाते हैं जो राजा से कम नहीं होते हैं । शेकर की खेती के मुखिया लेखक से मिले । वहाँ एक सुंदर मंदिर था , उसमें कुन्जुर की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी थीं । एक – एक पोथी का वज़न 15-15 सेर था । सुमति अनुमति लेकर अपने यजमानों के पास चला गया । तिड्री गाँव वहाँ से दूर नहीं था । लेखक ने सामान उठाया और भिक्षु नम्से से विदा लेकर चल पड़ा ।

पाठ के शब्दार्थ

व्यापारिक – व्यापार से संबंधित

चौकी – सुरक्षा के लिए बनाया गया ठिकाना

पलटन – सैनिकों का दल

बसेरा – रहने की जगह

आबाद – बसा हुआ

परित्यक्त – त्यागा हुआ , छोड़ा हुआ

निम्न श्रेणी – घटिया किस्म के

अपरिचित – अनजान

कूटकर – महीन चूर्ण बनाकर

राहदारी – यात्रा या रास्ते का कर

भद्र – सभ्य , भला

मनोवृत्ति- सोच

दुरुस्त – ठीक

छड्.- शराब जैसा नशा करनेवाला पेय

विकट – कठिन

निर्जन- सुनसान , एकांत

डाँड़ा – ऊँची ज़मीन , पर्वतीय श्रेणी

खून – हत्या

परवाह- चिंता

पड़ाव – ठहरने का स्थान

श्वेत शिखर – सफ़ेद चोटी

सर्वोच्च – सबसे ऊँचा

रास्ते फूटना- दो रास्ते शुरू हो जाना

कंडा – गोबर का बना उपला

कसूर – दोष , गलती

यजमान – ब्राह्मणों से धार्मिक कृत्य करानेवाला व्यक्ति

सत्तू – भुने अन्न ( गेहूँ , चना आदि ) का आटा

थुक्पा – एक विशेष प्रकार का खाद्य पदार्थ

टापू – पानी में ज़मीन का उभरा भाग

चिरी – फाड़ी हुई

गंडा – मंत्र फूँककर बनाया गया गाँठ युक्त कपड़ा

भरिया – भारवाहक

ललाट – माथा , मस्तक

बरफ होना – बिलकुल ठंडा हो जाना

बेगार – बिना कुछ दिए काम कराना

भिक्षु – साधु – संन्यासी

खयाल – लिहाज , परवाह

हस्तलिखित – हाथ से लिखा हुआ

पोथी – ग्रंथ , पुस्तक

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