NCERT Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 Summary माता का आँचल

Hindi Kritika Chapter 1 Summary माता का आँचल

NCERT Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 Summary माता का आँचल, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT Summary for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 Summary माता का आँचल

 

पाठ की रूपरेखा

‘ देहाती दुनिया ’ उपन्यास से लिए गए इस अंश में ग्रामीण संस्कृति की झाँकी उकेरी गई है , जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के विभिन्न चरित्रों तथा बच्चों के शैशव – काल के अनेक क्रिया – कलापों का अत्यंत मनोहरी ढंग से चित्रण किया गया है । पाठ में भोलानाथ के चरित्र के माध्यम से माता – पिता का स्नेह और दुलार , बालकों के विभिन्न ग्रामीण खेल , लोकगीत और बच्चों की मस्ती एवं शैतानियों का विस्तार से वर्णन किया गया है । इसमें इस तथ्य को भी स्पष्ट किया गया है कि बच्चे का माँ से अधिक जुड़ाव होता है । भले ही वह अपने पिता के साथ अधिक समय बिताए , किंतु परेशानी के समय उसे माँ का आँचल ही शांति देता है । आत्मकथात्मक शैली में रचे गए इस उपन्यास का कथा – शिल्प अत्यंत मौलिक एवं प्रयोगधर्मी है ।

 

पाठ का सार

लेखक का पिता के साथ अनेक गतिविधियों में भाग लेना

लेखक का नाम ‘ तारकेश्वरनाथ ‘ था , किंतु पिताजी लाड़ में उसे ‘ भोलानाथ ‘ कहते थे । भोलानाथ का अपनी माता से केवल खाना खाने एवं दूध पीने तक का नाता था । वह पिता के साथ ही बाहर की बैठक में सोया करता था । पिता प्रातः काल उठकर भोलानाथ को भी साथ ही नहला धुलाकर पूजा पर बिठा लेते । पूजा – पाठ के बाद पिताजी अपनी एक ‘ रामनाम बही ‘ पर हज़ार राम – नाम लिखकर पाठ करने की पोथी के साथ बाँधकर रख देते । कभी – कभी बाबूजी और भोलानाथ के बीच कुश्ती भी होती । पिताजी पीठ के बल लेट जाते और भोलानाथ उनकी छाती पर चढ़कर उनकी लंबी – लंबी मूँछें उखाड़ने लगता , तो पिताजी हँसते – हँसते उसके हाथों को मूँछों से छुड़ाकर उसे चूम लेते थे । भोलानाथ के पिताजी उसे अपने हाथ से , फूल ( एक धातु ) के एक कटोरे में गोरस ( दूध ) और भात सानकर भी खिलाते थे ।

माँ के साथ भोलानाथ का संबंध

जब भोलानाथ का पेट भर जाता तो उसके बाद भी माँ थाली में दही – भात सानती और अलग – अलग तोता , मैना , कबूतर , हंस , मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर यह कहते हुए खिलाती जाती कि जल्दी खा लो , नहीं तो उड़ जाएँगे , तब भोलानाथ सब बनावटी पक्षियों को चट कर जाता था । भोलानाथ की माँ उसे अचानक पकड़ लेती और एक चुल्लू कड़वा तेल उसके सिर पर अवश्य डालती थी तथा उसे सजा – धजाकर कृष्ण – कन्हैया बना देती थी ।

बच्चों की शैतानियाँ और खेल

भोलानाथ के घर पर बच्चे तरह – तरह के नाटक खेला करते थे , जिसमें चबूतरे के एक कोने को नाटक घर की तरह प्रयोग किया जाता था । बाबूजी की नहाने की छोटी चौकी को रंगमंच बनाया जाता था । उसी पर मिठाइयों की दुकान , चिलम के खोंचे पर कपड़े के थालों में ढेले के लड्डू , पत्तों की पूरी – कचौरियाँ , गीली मिट्टी की जलेबियाँ , फूटे घड़े के टुकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जाती थीं । उसमें दुकानदार और खरीदार सभी बच्चे ही होते थे । थोड़ी देर में मिठाई की दुकान हटाकर बच्चे घरौंदा बनाते थे । धूल की मेड़ दीवार बनती और तिनकों का छप्पर । दातून के खंभे , दियासलाई की पेटियों के किवाड़ आदि । इसी प्रकार के अन्य सामानों से बच्चे ज्योनार ( दावत ) तैयार करते थे ।

बच्चों के खेल में पिता का भाग लेना

जब पंगत ( सभी लोगों की पंक्ति ) बैठ जाती थी , तब बाबूजी भी धीरे – से आकर जीमने ( भोजन करने ) के लिए बैठ जाते थे । उनको बैठते देखते ही बच्चे हँसते हुए घरौंदा बिगाड़कर भाग जाते थे । कभी – कभी बच्चे बारात का भी जुलूस निकालते थे । बारात के लौट आने पर बाबूजी ज्यों ही दुलहिन का मुख निरखने लगते , त्यों ही बच्चे हँसकर भाग जाते । थोड़ी देर बाद फिर लड़कों की मंडली जुट जाती और खेती की जाती ।

बड़ी मेहनत से खेत जोते – बोए और पटाए जाते । फसल तैयार होते देर न लगती और बच्चे हाथों – हाथ फसल काटकर उसे पैरों से रौंद डालते और कसोरे का सूप बनाकर , ओसाकर मिट्टी के दीये के तराजू पर तौलकर राशि तैयार कर देते थे । इसी बीच बाबूजी आकर पूछ लेते कि इस साल की खेती कैसी रही , भोलानाथ ? तब बच्चे खेत – खलिहान छोड़कर हँसते हुए भाग जाते थे ।

बच्चों द्वारा गुरु मूसन तिवारी को चिढ़ाना

आम की फसल के समय कभी – कभी खूब आँधी आती है । आँधी समाप्त हो जाने पर बच्चे बाग की ओर दौड़ पड़ते और चुन – चुनकर घुले आम खाते थे । एक दिन आँधी आने पर आकाश काले बादलों से ढक गया । मेघ गरजने लगे और बिजली कौंधने लगी । बरखा बंद होते ही बाग में बहुत – से बिच्छू नज़र आए । बच्चे डरकर भाग चले । बच्चों में बैजू बड़ा ढीठ था । बीच में मूसन तिवारी मिल गए । बैजू उन्हें देखकर चिढ़ाते हुए बोला- ‘ बुढ़वा बेइमान माँगे करैला का चोखा । ‘ शेष बच्चों ने बैजू के सुर – में – सुर मिलाकर यही चिल्लाना शुरू कर दिया ।

तिवारी ने पाठशाला जाकर वहाँ से बैजू और भोलानाथ को पकड़ लाने के लिए चार लड़कों को भेजा । बैजू तो नौ – दो ग्यारह हो गया और भोलानाथ पकड़ा गया , जिसकी गुरुजी ने खूब खबर ली । बाबूजी ने जब यह हाल सुना , तो पाठशाला में आकर भोलानाथ को गोद में उठाकर पुचकारा । वह गुरुजी की खुशामद करके भोलानाथ को अपने साथ घर ले चले । रास्ते में भोलानाथ को साथी लड़कों का झुंड मिला । उन्हें नाचते और गाते देखकर भोलानाथ अपना रोना – धोना भूलकर बाबूजी की गोद से उतरकर लड़कों की मंडली में मिलकर उनकी तान – सुर अलापने लगा ।

भोलानाथ और साँप का तमाशा

एक टीले पर जाकर बच्चे चूहों के बिल में पानी डालने लगे । कुछ ही देर में सब थक गए । तब तक बिल में से एक साँप निकल आया , जिसे देखकर रोते – चिल्लाते सब बेतहाशा भागे । भोलानाथ की सारी देह लहूलुहान हो गई । पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए । वह दौड़ा हुआ आया और घर में घुस गया । उस समय बाबूजी बैठक के ओसारे में हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे । उन्होंने भोलानाथ को बहुत पुकारा , पर भोलानाथ उनकी आवाज़ अनसुनी करके माँ के पास जाकर उसके आँचल में छिप गया ।

भोलानाथ को डर से काँपते देखकर माँ ज़ोर से रोने लगी और सब काम छोड़ बैठी । झटपट हल्दी पीसकर भोलानाथ के घावों पर थोपी गई । भोलानाथ के मुँह से डर के कारण ‘ साँप ‘ तक नहीं निकल पा रहा था । चिंता के मारे माँ का बुरा हाल था । इस बीच बाबूजी ने आकर भोलानाथ को माँ की गोद से लेना चाहा , किंतु भोलानाथ ने माँ के आँचल को नहीं छोड़ा ।

 

शब्दार्थ

खरचे – व्यय

अँचल – आँचल

तड़के – सवेरे

लिलार – ललाट

भभूत – राख

झँझलाकर – खीज कर

त्रिपुंड- माथे पर लगाए जाने वाला तीन आड़ी रेखाओं का तिलक

रमाने – लगाने

पोथी- धार्मिक ग्रंथ

विराजमान – उपस्थित

शिथिल – ढीला

पछाड़ना – हराना

उतान- पीठ के बल लेटना

गोरस- दूध

सानना – मिलाना

ठौर – स्थान

बोघना – भिगो देना

मरदुए – आदमी

महतारी – माता

काठ – लकड़ी

कड़वा तेल- सरसों का तेल

बोथना- लथपथ करना

बाट जोहना- प्रतीक्षा करना

सरकंडा- नुकीली घास

चॅदोआ – छोटा शामियाना

मुँहड़े – ऊपर का गोल मुँह

आचमनी – पीने के काम आने वाला चम्मच जैसा बर्तन

ज्योनार – दावत

पंगत – पंक्ति

जीमने – भोजन करना

तंबूरा- एक प्रकार का वाद्ययंत्र

अमोले – आम का उगता हुआ पौधा

कुल्हिए – मिट्टी का लोटा

ओहार- परदे के लिए डाला हुआ कपड़ा

मोट – चमड़े का बना थैला

कसोरे – मिट्टी का बना छिछला कटोरा

बरोही – पथिक

ठिठककर – चौंककर

रहरी- अरहर

छितराई- फैल गई

अँठई- कुत्ते के शरीर में चिपके रहने वाले छोटे कीड़े

बेतहाशा – अत्यधिक जोश से

चिरौरी – विनती

अलापना – बोलना

पराई पीर – दूसरों का दुःख

छलनी होना- छिल जाना

ओसारा- बरामदा

अमनिया- शुद्ध / साफ़

कुहराम मचाना – हायतौबा करना

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