नए साम्राज्य और राज्य CBSE Class 6 History Chapter 10 Notes in Hindi

Textbook NCERT
Board CBSE Board, UP board, JAC board, HBSE Board, Bihar Board, PSEB board, RBSE Board, UBSE Board
Class 6th Class
Subject History | Social Science
Chapter Chapter 10
Chapter Name नए साम्राज्य और राज्य
Topic नए साम्राज्य और राज्य CBSE Class 6 History Chapter 10 Notes in Hindi
Medium Hindi
Especially Designed Notes for CBSE, ICSE, IAS, NET, NRA, UPSC, SSC, NDA, All Govt. Exam

नए साम्राज्य और राज्य

क्या बताती हैं प्रशस्तियाँ

  • समुद्रगुप्त गुप्त एक वंश का प्रसिद्ध शासक था।
  • समुद्रगुप्त के बारे में हमें इलाहाबाद में अशोक स्तंभ पर खुदे एक लंबे अभिलेख से पता चलता है।
  • हम समुद्रगुप्त के बारे में एक लंबे शिलालेख से जानते हैं, जो वास्तव में संस्कृत में एक कविता है, जिसकी रचना लगभग 1700 साल पहले उनके दरबारी कवि हरिषेण ने की थी।
  • यह एक विशेष किस्म का अभिलेख है, जिसे प्रशस्ति कहते हैं। यह एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘प्रशंसा’ होता है।
  • प्रशस्तियाँ लिखने का प्रचलन पहले भी था। गौतमी – पुत्र श्री सातकर्णी की प्रशस्ति के बारे में पढ़ा।
  • परन्तु गुप्तकाल में प्रशस्ति का महत्त्व और बढ़ गया।

समुद्रगुप्त की प्रशस्ति

  • कवि ने इसमें राजा की एक योद्धा, युद्धों को जीतने वाले राजा, विद्वान तथा एक उत्कृष्ट कवि के रूप में भरपूर प्रशंसा की है।
  • यहाँ तक कि उसे ईश्वर के बराबर बताया गया है।
  • प्रशस्ति में लंबे-लंबे वाक्य दिए गए हैं।
  • प्रशस्ति मेंहरिषेण चार विभिन्न प्रकार के राजाओं और उनके प्रति समुद्रगुप्त की नीतियों का वर्णन करते हैं।
  1. मानचित्र में हरे रंग का क्षेत्र आर्यावर्त्त के उन नौ शासकों का है, जिन्हें समुद्रगुप्त ने हराकर उनके राज्यों को अपने साम्राज्य में मिला लिया।
  2. इसके बाद दक्षिणापथ के बारह शासक आते हैं। इनमें से कुछ की राजधानियों को दिखाने के लिए मानचित्र पर लाल बिंदु दिए गए हैं।
    • इन सब ने हार जाने पर समुद्रगुप्त के सामने समर्पण किया था।
    • समुद्रगुप्त ने उन्हें फिर से शासन करने की अनुमति दे दी।
  3. पड़ोसी देशों का आंतरिक घेरा बैंगनी रंग से रंगा गया है। इसमें असम, तटीय बंगाल, नेपाल और उत्तर-पश्चिम के कई गण या संघ आते थे।
    • ये समुद्रगुप्त के लिए उपहार लाते थे, उनकी आज्ञाओं का पालन करते थे तथा उनके दरबार में उपस्थित हुआ करते थे।
  4. बाह्य इलाके के शासक, जिन्हें नीले रंग से रंगा गया है संभवत: कुषाण तथा शक वंश के थे।
    • इसमें श्रीलंका के शासक भी थे।
    • इन्होंने समुद्रगुप्त की अधीनता स्वीकार की और अपनी पुत्रियों का विवाह उससे किया ।

वंशावलियाँ

अधिकांश प्रशस्तियाँ शासकों के पूर्वजों के बारे में भी बताती हैं। यह प्रशस्ति भी समुद्रगुप्त के प्रपितामह, पितामह यानी कि परदादा, दादा, पिता और माता के बारे में बताती है।

  • उनकी माँ कुमार देवी, लिच्छवि गण की थीं और पिता चन्द्रगुप्त गुप्तवंश के पहले शासक थे, जिन्होंने महाराजाधिराज जैसी बड़ी उपाधि धारण की। समुद्रगुप्त ने भी यह उपाधि धारण की।
  • उनके दादा और परदादा का महाराजा के रूप में ही उल्लेख है। इससे यह आभास मिलता है कि धीरे-धीरे इस वंश का महत्त्व बढ़ता गया ।
  • समुद्रगुप्त के बारे में हमें उनके बाद के शासकों, जैसे उनके बेटे चन्द्रगुप्त द्वितीय की वंशावली से भी जानकारी मिलती है।
  • शिलालेखों और सिक्कों से चंद्रगुप्त द्वितीय का पता चलता है।
  • उन्होंने पश्चिम भारत में सैन्य अभियान में अंतिम शक शासक को परास्त किया।

उनका दरबार विद्वान लोगों से भरा हुआ था, जिनमें कवि कालिदास और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट शामिल थे।

हर्षवर्धन तथा हर्षचरित

  • ऐसे ही एक राजा हर्षवर्धन थे, जिन्होंने करीब 1400 साल पहले शासन किया।
    • उनके दरबारी कवि बाणभट्ट ने संस्कृत में उनकी जीवनी हर्षचरित लिखी है।
    • इसमें हर्षवर्धन की वंशावली देते हुए उनके राजा बनने तक का वर्णन है।
  • चीनी तीर्थयात्री श्वैन त्सांग काफी समय के लिए हर्ष के दरबार में रहे। उन्होंने वहाँ जो कुछ देखा, उसका विस्तृत विवरण दिया है।
    • हर्ष अपने पिता के सबसे बड़े बेटे नहीं थे पर अपने पिता और बड़े भाई की मृत्यु हो जाने पर थानेसर के राजा बने।
  • उनके बहनोई कन्नौज के शासक थे। जब बंगाल के शासक ने उन्हें मार डाला, तो हर्ष ने कन्नौज को अपने अधीन कर लिया और बंगाल पर आक्रमण कर दिया।
    • मगध तथा सम्भवतः बंगाल को भी जीतकर उन्हें पूर्व में जितनी सफलता मिली थी, उतनी सफलता अन्य जगहों पर नहीं मिली।
  • जब उन्होंने नर्मदा नदी को पार कर दक्कन की ओर आगे बढ़ने की कोशिश की तब चालुक्य नरेश, पुलकेशिन द्वितीय ने उन्हें रोक दिया।

पल्लव, चालुक्य और पुलकेशिन द्वितीय की प्रशस्तियाँ

  • इस काल में पल्लव और चालुक्य दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण राजवंश थे।
  • पल्लवों का राज्य उनकी राजधानी काँचीपुरम के आस-पास के क्षेत्रों से लेकर कावेरी नदी के डेल्टा तक फैला था, जबकि चालुक्यों का राज्य कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच स्थित था।
  • चालुक्यों की राजधानी ऐहोल थी । यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। धीरे-धीरे यह एक धार्मिक केंद्र भी बन गया जहाँ कई मंदिर थे।
  • पल्लव और चालुक्य एक-दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण करते थे। मुख्य रूप से राजधानियों को निशाना बनाया जाता था जो समृद्ध शहर थे।
  • पुलकेशिन द्वितीय सबसे प्रसिद्ध चालुक्य राजा थे। उनके बारे में हमें उनके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित प्रशस्ति से पता चलता है। यह हमें चालुक्य शासक की चार पीढ़ियों के बारे में बताता है।
  • पुलकेशिन द्वितीय को अपने चाचा से यह राज्य मिला था।
  • रविकीर्ति के अनुसार उन्होंने पूर्व तथा पश्चिम दोनों समुद्रतटीय इलाकों में अपने अभियान चलाए।
  • उन्होंने हर्ष को भी आगे बढ़ने से रोका।
  • पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लव राजा के ऊपर भी आक्रमण किया, जिसे काँचीपुरम की दीवार के पीछे शरण लेनी पड़ी।
  • पर चालुक्यों की विजय अल्पकालीन थी। लड़ाई से दोनों वंश दुर्बल होते गए। पल्लवों और चालुक्यों को अन्ततः राष्ट्रकूट तथा चोलवंशों ने समाप्त कर दिया।

इन राज्यों का प्रशासन कैसे चलता था ?

  • पहले के राजाओं की तरह इन राजाओं के लिए कर सबसे महत्वपूर्ण बना रहा। प्रशासन की प्राथमिक इकाई गाँव होते थे।
  • राजाओं ने आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक या सैन्य शक्ति रखने वाले लोगों का समर्थन जुटाने के लिए कई कदम उठाए ।
  1. कुछ महत्वपूर्ण प्रशासकीय पद आनुवंशिक बन गए अर्थात् बेटे अपने पिता का पद पाते थे जैसे कि कवि हरिषेण अपने पिता की तरह महादंडनायक अर्थात् मुख्य न्याय अधिकारी थे।
  2. कभी – कभी, एक ही व्यक्ति कई पदों पर कार्य करता था जैसे कि हरिषेण एक महादंडनायक होने के साथ-साथ कुमारामात्य अर्थात् एक महत्वपूर्ण मंत्री तथा एक संधि – विग्रहिक अर्थात् युद्ध और शांति के विषयों का भी मंत्री था ।
  3. संभवत: वहाँ के स्थानीय प्रशासन में प्रमुख व्यक्तियों का बहुत बोलबाला था। इनमें नगर श्रेष्ठी यानी मुख्य बैंकर या शहर का व्यापारी, सार्थवाह यानी व्यापारियों के काफ़िले का नेता, प्रथम-कुलिक अर्थात् मुख्य शिल्पकार तथा कायस्थों यानी लिपिकों के प्रधान जैसे लोग होते थे।

इस तरह की नीतियाँ कुछ हद तक प्रभावशाली होती थीं, पर समय के साथ-साथ इनमें से कुछ व्यक्ति इतने अधिक शक्तिशाली हो जाते थे कि अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लेते थे।

एक नए प्रकार की सेना

कुछ राजा एक सुसंगठित सेना रखते थे, जिसमें हाथी, रथ, घुड़सवार और पैदल सिपाही होते थे पर इसके साथ-साथ कुछ सेनानायक भी होते थे।

  • जो आवश्यकता पड़ने पर राजा को सैनिक सहायता दिया करते थे।
  • इन सेनानायकों को कोई नियमित वेतन नहीं दिया जाता था।
  • बदले में इनमें से कुछ को भूमिदान दिया जाता था।
  • दी गई भूमि से ये कर वसूलते थे जिससे वे सेना तथा घोड़ों की देखभाल करते थे।
  • साथ ही वे इससे युद्ध के लिए हथियार जुटाते थे। इस तरह के व्यक्ति सामंत कहलाते थे।
  • जहाँ कहीं भी शासक दुर्बल होते थे, ये सामंत स्वतंत्र होने की कोशिश करते थे।

दक्षिण के राज्यों में सभाएँ

पल्लवों के अभिलेखों में कई स्थानीय सभाओं की चर्चा है।

सभा

  • ब्राह्मण भूस्वामियों का संगठन जिसे सभा कहते थे।
  • ये सभाएँ उप-समितियों के ज़रिए सिंचाई, खेतीबाड़ी से जुड़े विभिन्न काम, सड़क निर्माण, स्थानीय मंदिरों की देखरेख आदि का काम करती थीं।

उर

  • जिन इलाकों के भूस्वामी ब्राह्मण नहीं थे वहाँ उर नामक ग्राम सभा के होने की बात कही गई है।

नगरम

  • नगरम व्यापारियों के एक संगठन का नाम था।
  • संभवतः इन सभाओं पर धनी तथा शक्तिशाली भूस्वामियों और व्यापारियों का नियंत्रण था।
  • इनमें से बहुत-सी स्थानीय सभाएँ शताब्दियों तक काम करती रहीं

उस ज़माने में आम लोग

नाटकों और अन्य विवरणों से हम सामान्य लोगों के जीवन के बारे में जान सकते हैं।

  • कालिदास के नाटकों से हमें ज्ञात हुआ कि राजा और अधिकांश ब्राह्मणों को संस्कृत बोलते हुए दिखाया गया है जबकि अन्य लोग तथा महिलाएँ प्राकृत बोलते हुए दिखाए गए हैं।
  • उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान-शाकुन्तलम् दुष्यंत नामक एक राजा और शकुन्तला नाम की एक युवती की प्रेम कहानी है।
  • चीनी तीर्थयात्री फा – शिएन का ध्यान उन लोगों की दुर्गति पर भी गया, जिन्हें ऊँचे और शक्तिशाली लोग अछूत मानते थे।
    • इन्हें शहरों के बाहर रहना पड़ता था।
    • वे लिखते हैं। ‘अगर इन लोगों को शहर या बाज़ार के भीतर आना होता था तो सभी को आगाह करने के लिए ये लकड़ी के एक टुकड़े पर चोट करते रहते थे।
    • यह आवाज़ सुनकर लोग सतर्क होकर अपने को, छू जाने से या किसी भी प्रकार के संपर्क से बचाते थे। “

अन्यत्र

अरब

  • मरुभूमि होते हुए भी सदियों से अरब, यातायात का एक बड़ा केंद्र था।
  • दरअसल, अरब व्यापारी तथा नाविकों ने भारत और यूरोप के बीच समुद्री व्यापार बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • अरब में रहने वाले अन्य लोगों में बेदुइन थे, जो घुमक्कड़ कबीले होते थे। ये मुख्य रूप से ऊँटों पर आश्रित होते थे, क्योंकि यह एक ऐसा मजबूत जानवर है, जो मरुभूमि में भी स्वस्थ रह सकता है।

इस्लाम और कुरान

  • लगभग 1400 साल पहले पैगम्बर मुहम्मद ने अरब में इस्लाम नामक एक नए धर्म की शुरुआत की।
  • इस्लाम ने अल्लाह को सर्वोपरि माना है, उनके बाद सभी को समान माना गया है। यहाँ इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान का एक अंश दिया गया है।

“मुसलमान स्त्रियों और पुरुषों के लिए विश्वास रखने वाले स्त्रियों और पुरुषों के लिए, भक्त स्त्रियों और पुरुषों के लिए, सच्चे स्त्रियों और पुरुषों के लिए, धैर्यवान और स्थिर मन के स्त्रियों और पुरुषों के लिए, दान देने वाले स्त्रियों और पुरुषों के लिए उपवास रखने वाले स्त्रियों और पुरुषों के लिए, अपनी पवित्रता बनाए रखने वाले स्त्रियों और पुरुषों के लिए, अल्लाह को हमेशा याद करने वाले स्त्रियों और पुरुषों याद करने वाले स्त्रियों और पुरुषों के लिए अल्लाह ने इन सब के लिए ही क्षमा और पुरस्कार रखा है।”

  • अगले सौ सालों के दौरान इस्लाम उत्तरी अफ्रीका, स्पेन, ईरान और भारत में फैल गया।
  • अरब के सिपाहियों ने करीब 1300 साल पहले सिंध (आज के पाकिस्तान में) को जीत लिया था।

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