इमारतें, चित्र तथा किताबें CBSE Class 6 History Chapter 11 Notes in Hindi

TextbookNCERT
BoardCBSE Board, UP board, JAC board, HBSE Board, Bihar Board, PSEB board, RBSE Board, UBSE Board
Class6th Class
SubjectHistory | Social Science
ChapterChapter 11
Chapter Nameइमारतें, चित्र तथा किताबें
Topicइमारतें, चित्र तथा किताबें CBSE Class 6 History Chapter 11 Notes in Hindi
MediumHindi
Especially Designed Notes forCBSE, ICSE, IAS, NET, NRA, UPSC, SSC, NDA, All Govt. Exam

इमारतें, चित्र तथा किताबें

लौह स्तंभ

  • महरौली (दिल्ली) में कुतुबमीनार के परिसर में खड़ा यह लौह स्तंभ भारतीय शिल्पकारों की कुशलता का एक अद्भुत उदाहरण है।
  • इसकी ऊँचाई 7.2 मीटर और वज़न 3 टन से भी ज़्यादा है। इसका निर्माण लगभग 1500 साल पहले हुआ।
  • इसकी जानकारी हमें लौह स्तंभ पर खुदे अभिलेख से मिलती है। इसमें ‘चन्द्र’ नाम के एक शासक का जिक्र है जो संभवत: गुप्त वंश के थे।
  • आश्चर्य की बात यह है कि इतने वर्षों के बाद भी इसमें जंग नहीं लगा है।

ईंटों और पत्थरों की इमारतें

  • हमारे शिल्पकारों की कुशलता के नमूने स्तूपों जैसी कुछ इमारतों में देखने को मिलते हैं।
  • स्तूप का शाब्दिक अर्थ टीला होता है हालांकि स्तूप विभिन्न आकार के थे – कभी गोल या लंबे तो कभी बड़े या छोटे । उन सब में एक समानता है।

धातु – मंजूषा

  • सभी स्तूपों के भीतर एक छोटा-सा डिब्बा रखा रहता है।
  • इन डिब्बों में बुद्ध या उनके अनुयायियों के शरीर के अवशेष (जैसे दाँत, हड्डी या राख) या उनके द्वारा प्रयुक्त कोई चीज़ या कोई कीमती पत्थर अथवा सिक्के रखे रहते हैं।
  • इसे धातु – मंजूषा कहते हैं।
  • प्रारंभिक स्तूप, धातु – मंजूषा के ऊपर रखा मिट्टी का टीला होता था।
  • बाद में टीले को ईंटों से ढक दिया गया और बाद के काल में उस गुम्बदनुमा ढाँचे को तराशे हुए पत्थरों से ढक दिया गया।

परिक्रमा पथ

  • प्रायः स्तूपों के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक वृत्ताकार पथ बना होता था, जिसे प्रदक्षिणा पथ कहते हैं।
  • इस रास्ते को रेलिंग से घेर दिया जाता था जिसे वेदिका कहते हैं।
  • वेदिका में प्रवेशद्वार बने होते थे।
  • रेलिंग तथा तोरण प्राय: मूर्तिकला की सुंदर कलाकृतियों से सजे होते थे।

अमरावती

  • लगभग 2000 साल पहले इस स्तूप को सजाने के लिए शिलाओं पर चित्र उकेरे गए।
  • कई बार पहाड़ियों को काट कर बनावटी गुफाएँ बनाई जाती थीं।
  • इस तरह की कई गुफाओं को मूर्तियों तथा चित्रों द्वारा सजाया जाता था।

गर्भगृह

  • इस काल में कुछ आरंभिक हिन्दू मंदिरों का भी निर्माण किया गया।
  • इन मंदिरों में विष्णु, शिव तथा दुर्गा जैसे देवी-देवताओं की पूजा होती थी।
  • मंदिरों का सबसे महत्वपूर्ण भाग गर्भगृह होता था, जहाँ मुख्य देवी या देवता की मूर्ति को रखा जाता था।
  • इसी स्थान पर पुरोहित धार्मिक अनुष्ठान करते थे और भक्त पूजा करते थे।

शिखर

  • अक्सर गर्भगृह को एक पवित्र स्थान के रूप में दिखाने के लिए,
  • भितरगाँव जैसे मंदिरों में उसके ऊपर काफी ऊँचाई तक निर्माण किया जाता था. जिसे शिखर कहते थे।
  • शिखर निर्माण के कठिन कार्य के लिए सावधानी से योजना बनानी पड़ती थी।
  • अधिकतर मंदिरों में मण्डप नाम की एक जगह होती थी। यह एक सभागार होता था, जहाँ लोग इकट्ठा होते थे।
  • महाबलिपुरम और ऐहोल इन शहरों में पत्थरों से बने कुछ उत्कृष्ट मंदिर हैं।

स्तूप तथा मंदिर किस तरह बनाए जाते थे?

  • स्तूपों तथा मंदिरों को बनाने की प्रक्रिया में कई अवस्थाएँ आती थीं।
    • इसके लिए काफी धन खर्च होता था । इसलिए आमतौर पर राजा या रानी ही इन्हें बनवाने का निश्चय करते थे।
  1. पहला काम, अच्छे किस्म के पत्थर ढूँढ़कर शिलाखंडों को खोदकर निकालना होता था। फिर मंदिर या स्तूप के लिए सोच-विचार कर तय किए गए स्थान पर शिलाखंडों को पहुँचाना होता था।
  2. यहाँ पत्थरों को काट-छाँटकर तराशने के बाद खंभों, दीवारों की चौखटों, फ़र्शों तथा छतों का आकार दिया जाता था।
  3. इन सबके तैयार हो जाने पर सही जगहों पर उन्हें लगाना काफी मुश्किल का काम था।
  • इस तरह के शानदार ढाँचों का निर्माण करने वाले शिल्पकारों को सारा खर्च संभवतः राजा-रानी ही देते थे।
    • इसके अतिरिक्त इन स्तूपों या मंदिरों में आने वाले भक्त जो उपहार अपने साथ लाते थे उनसे इमारत की सजावट की जाती थी।
    • जैसे हाथी दांत का काम करने वाले श्रमिकों के संघ ने साँची के एक अलंकृत प्रवेशद्वार (तोरण) को बनाने का खर्च दिया था।
  • इनकी सजावट के लिए पैसे देने वालों में व्यापारी, कृषक, माला बनाने वाले, इत्र बनाने वाले, लोहार – सुनार, तथा ऐसे कई स्त्री – पुरुष शामिल थे जिनके नाम खंभों, रेलिंगों तथा दीवारों पर खुदे हैं, इसलिए जब तुम इन स्थानों को देखने जाओ तो याद रखना कि कितने सारे लोगों ने इन्हें बनाने और सजाने में अपना योगदान दिया था।

चित्रकला

  • यह वह जगह है, जहाँ के पहाड़ों में सैकड़ों सालों के दौरान कई गुफाएँ खोदी गईं।
  • इनमें से ज़्यादातर बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाए गए विहार थे। इनमें से कुछ को चित्रों द्वारा सजाया गया था।
  • गुफाओं के अंदर अंधेरा होने की वजह से, अधिकांश चित्र मशालों की रोशनी में बनाए गए थे।
  • इन चित्रों के रंग 1500 साल बाद भी चमकदार हैं। ये रंग पौधों तथा खनिजों से बनाए गए थे। इन महान कृतियों को बनाने वाले कलाकार अज्ञात हैं।

पुस्तकों की दुनिया

  • इस युग में प्रसिद्ध महाकाव्यों की रचना की गई।
  • इन उत्कृष्ट रचनाओं में स्त्री-पुरुषों की वीरगाथाएँ तथा देवताओं से जुड़ी कथाएँ हैं।

सिलप्पदिकारम

  • करीब 1800 साल पहले एक प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य सिलप्पदिकारम की रचना इलांगो नामक कवि ने की।
  • इसमें कोवलन् नाम के एक व्यापारी की कहानी है। वह पुहार में रहता था।
  • अपनी पत्नी कन्नगी की उपेक्षा कर वह एक नर्तकी माधवी से प्रेम करने लगा।
  • बाद में, वह और कन्नगी पुहार छोड़कर मदुरै चले गए।
  • वहाँ पांड्य राजा के दरबारी जौहरी ने कोवलन् पर चोरी का झूठा आरोप लगाया जिस पर राजा ने उसे प्राणदंड दे दिया ।
  • कन्नगी जो अभी भी उससे प्रेम करती थी, इस अन्याय के कारण दुःख और रोष से भर गई। उसने मदुरै शहर का विनाश कर डाला।

मणिमेखलई

  • एक और तमिल महाकाव्य, मणिमेखलई को करीब 1400 साल पहले सत्तनार द्वारा लिखा गया।
  • इसमें कोवलन् तथा माधवी की बेटी की कहानी है।
  • ये रचनाएँ कई सदियों पहले ही खो गई थीं। उनकी पाण्डुलिपियाँ दोबारा लगभग एक सौ साल पहले मिलीं।
  • अन्य लेखक, जैसे कालिदास संस्कृत में लिखते थे।

पुरानी कहानियों का संकलन तथा संरक्षण

हिंदू धर्म से जुड़ी कई कहानियाँ जो बहुत पहले से प्रचलित थीं, इसी काल में लिखी गईं।

पुराण

  • इनमें पुराण भी शामिल हैं । पुराण का शब्दिक अर्थ है प्राचीन।
  • पुराणों में विष्णु, शिव, दुर्गा या पार्वती जैसे देवी – देवताओं से जुड़ी कहानियाँ हैं।
  • इनमें इन देवी-देवताओं की पूजा की विधियाँ दी गई हैं।
  • इसके अतिरिक्त इनमें संसार की सृष्टि तथा राजाओं के बारे में भी कहानियाँ हैं ।
  • अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गए हैं, जिससे सब उन्हें सुन और समझ सकें।
  • स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी वे भी इसे सुन सकते थे।
  • पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे जिसे लोग सुनने आते थे।

संस्कृत महाकाव्य

  • दो संस्कृत महाकाव्य महाभारत और रामायण लंबे अर्से से लोकप्रिय रहे हैं।
  • दोनों बहुत लंबे समय से और आज तक भी लोकप्रिय रहे हैं।

महाभारत

  • महाभारत कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध की कहानी है।
  • इस युद्ध का उद्देश्य पुरु- वंश की राजधानी हस्तिनापुर की गद्दी प्राप्त करना था।
  • यह कहानी तो बहुत ही पुरानी है, पर आज इसे हम जिस रूप में जानते हैं, वह करीब 1500 साल पहले लिखी गई।
  • माना जाता है कि पुराणों और महाभारत दोनों को ही व्यास नाम के ऋषि ने संकलित किया था।
  • महाभारत में ही भगवद् गीता भी है।

रामायण

  • रामायण की कथा कोसल के राजकुमार राम के बारे में है। उनके पिता ने उन्हें वनवास दे दिया था।
  • वन में उनकी पत्नी सीता का लंका के राजा रावण ने अपहरण कर लिया था।
  • सीता को वापस पाने के लिए राम को लड़ाई लड़नी पड़ी।
  • वे विजयी होकर कोसल की राजधानी अयोध्या लौटे।
  • महाभारत की तरह ही रामायण भी एक प्राचीन कहानी है, जिसे बाद में लिखित रूप दिया गया।
  • संस्कृत रामायण के लेखक वाल्मीकि माने जाते हैं।
  • इस उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में महाभारत और रामायण के भिन्न-भिन्न रूपांतर लोकप्रिय हैं।
  • इनके आधार पर नाटक, गीत और नृत्य परंपराएँ भी उभरीं।

आम लोगों द्वारा कही जाने वाली कहानियाँ

  • आम लोग भी कहानियाँ कहते थे, कविताओं और गीतों की रचना करते थे, गाने गाते थे, नाचते थे और नाटकों को खेलते थे।
  • इनमें से कुछ तो इस समय के आस-पास जातक और पंचतंत्र की कहानियों के रूप में लिखकर सुरक्षित कर लिए गए।
  • जातक कथाएँ तो अक्सर स्तूपों की रेलिंगों तथा अजंता के चित्रों में दर्शायी जाती थीं।

विज्ञान की पुस्तकें

  • इसी समय गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने संस्कृत में आर्यभट्टीयम नामक पुस्तक लिखी।
  • इसमें उन्होंने लिखा कि दिन और रात पृथ्वी के अपनी धुरी पर चक्कर काटने की वजह से होते हैं।
  • उन्होंने ग्रहण के बारे में भी एक वैज्ञानिक तर्क दिया।
  • उन्होंने वृत्त की परिधि को मापने की भी विधि ढूँढ़ निकाली, जो लगभग उतनी ही सही है, जितनी कि आज प्रयुक्त होने वाली विधि ।

Leave a Comment