Hindi Kshitij Chapter 6 Summary प्रेमचंद के फटे जूते
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NCERT Class 9 Hindi Kshitij Chapter 6 Summary प्रेमचंद के फटे जूते
लेखक परिचय
जीवन परिचय – प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त , सन 1922 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जनपद के जमानी गाँव में हुआ था । उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में हुई । उन्होंने नागपुर से हिंदी में एम.ए. किया और अध्यापन कार्य करने लगे । वे सन 1947 से लेखन कार्य में जुट गए । उन्होंने जबलपुर से ‘ वसुधा ‘ पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया जिसकी काफी सराहना हुई । उनका निधन सन 1995 में हो गया ।
रचना परिचय – हिंदी के व्यंग्य लेखकों में प्रमुख श्री परसाई जी ने दो दर्जन पुस्तकें लिखीं जिनमें से प्रमुख हैं –
कहानी संग्रह – हँसते हैं रोते हैं , जैसे उनके दिन फिरे ।
उपन्यास – रानी नागफनी की कहानी , तट की खोज ।
निबंध संग्रह – तब की बात और थी , भूत के पाँव पीछे , बेईमानी की परत , पगडंडियों का ज़माना , सदाचार का ताबीज , शिकायत मुझे भी है , और अंत में ।
व्यंग्य संग्रह – वैष्णव की फिसलन , तिरछी रेखाएँ , ठिठुरता हुआ गणतंत्र , विकलांग श्रद्धा का दौर आदि ।
साहित्यिक विशेषताएँ – परसाई जी मूलतः व्यंग्य लेखक हैं । वे अपने व्यंग्य से पाठकों को एक ओर गुदगुदाते हैं तो दूसरी ओर भारतीय जीवन के पाखंड , भ्रष्टाचार , अंतर्विरोध , बेईमानी पर लिखे व्यंग्यों द्वारा समाज में व्याप्त कुरीतियों पर करारी चोट करते हैं । अपने लेखन में उन्होंने सामाजिक , राजनैतिक और धार्मिक पाखंड को विषय बनाया । उन्होंने लेखक के माध्यम से भ्रष्ट नेताओं , समाज के शोषकों पर व्यंग्य करते हुए उनके कारनामों को आम जनता के सामने लाने का प्रयास किया है ।
भाषा – शैली – हरिशंकर परसाई ने सरस एवं सरल भाषा में व्यंग्यात्मक शैली में लेखन कार्य किया है । भाषा में हिंदी , उर्दू और अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग किया है । शब्दों का प्रयोग इतनी कुशलता के साथ किया है कि भाषा पाठक के मन को छू जाती है । इनकी हास्य एवं व्यंग्यात्मक शैली पाठक को बाँधे रखती है ।
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ में सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रेमचंद जी की वेश – भूषा तथा उनके जूतों के माध्यम से एक ओर जहाँ प्रेमचंद के सादगीपूर्ण उच्च विचार को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया गया है वहीं समाज की स्वार्थपरता , अवसरवादिता , दिखावटीपन , दोगले चरित्र , धोखेबाजी की प्रवृत्ति पर करारी चोट की गई है । फोटो में प्रेमचंद के जूतों को देखकर ऐसा लगता है कि सामाजिक बुराइयों से लड़ते – लड़ते ही उनके जूते की यह हालत हुई है ।
लेखक के सामने प्रेमचंद का एक फोटो है जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ हैं । फोटो में वे कुरता – धोती पहने हुए तथा सिर पर टोपी लगाए हुए हैं । कनपटी चिपकी , गालों की हड्डियाँ उभरी तथा चेहरे पर घनी मूँछें हैं । पाँवों में केनवस के बेतरतीब बंद वाले जूते उसके बंद के लोहे की पतरी गायब हो गई है । उन्हें किसी तरह बाँध लिया गया है । बाएँ पैर का जूता फटा है , जिसमें से पैर की उँगली दिख रही है । लेखक सोचता है कि यदि यह उनकी फोटो की पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी ।
लेखक सोचता है कि साहित्य के इस पुरखे को अपने जूते फटे होने का ज़रा भी अहसास नहीं है । कोई भी लज्जा या झेंप नहीं है क्योंकि चेहरे पर बड़ी बेपरवाही भरा विश्वास । उनकी अधूरी मुस्कान देखकर लेखक सोचता है कि यह मुस्कान नहीं है इसमें उपहास एवं व्यंग्य छिपा है । ऐसा लगता है कि वे फोटो खिंचाने को बहुत इच्छुक नहीं रहे होंगे । पत्नी के आग्रह को टाल न सके होंगे और अच्छा कहकर फोटो खिंचाने बैठ गए होंगे । इससे अच्छा तो वे मना ही कर देते । लेखक फोटो को देखते – देखते उनके क्लेश को भीतर तक महसूस करके रोने की स्थिति में आ जाता है । वह सोचता है कि लोग फोटो खिंचाने के लिए जूते , कोट और यहाँ तक दूसरों की बीबी तक उधार माँग लेते हैं । लोग इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं ताकि फोटो में खुशबू आ जाए । गंदे-से-गंदे आदमी की भी फोटो अच्छी होती है और प्रेमचंद तसवीर को महत्व ही नहीं देते हैं । लेखक मानता है कि आज टोपी जूते से सस्ती है और जब उन्होंने यह फोटो खिंचाया तब भी सस्ती ही रही होगी । महान कथाकार , उपन्यास सम्राट , युग प्रवर्तक आदि नामों से प्रसिद्ध होने वाले ने फोटो में भी ऐसे जूते पहने हुए हैं ।
लेखक प्रेमचंद के जूते से अपने जूते की तुलना करते हुए कहता है कि उसका भी जूता कोई अच्छा नहीं है । ऊपर से अच्छा दिखने वाले जूते का तला घिसा हुआ है । इससे अँगूठा घिसकर लहूलुहान हो गया है । तला घिसते घिसते पूरा पंजा घायल हो जाएगा पर अँगुली नहीं दिखेगी । लेखक फोटो की ओर इशारा करता हुआ कहता है तुम्हारे पाँव सुरक्षित हैं पर अँगुली दिख रही है , मेरी अँगुली ढकी है , पर पंजा घिस रहा है । मैं तुम्हारी तरह फटा जूता नहीं पहन सकता हूँ । लेखक प्रेमचंद की मुस्कान के बारे में अनुमान लगाता है और पूछता है कि क्या होरी का गोदान हो गया ? क्या पूस की रात में नीलगाय हल्कू का खेत चर गई या सुजान भगत का लड़का मर गया , क्योंकि डॉक्टर क्लब छोड़कर नहीं आ सकता अथवा माधो औरत के कफन के चंदे की शराब पी गया , यह वही मुस्कान मालूम होती है ।
लेखक सोचता है कि प्रेमचंद का यह जूता आखिर फटा कैसे ? क्या बनिए के तगादे से बचने के लिए दूर तक चक्कर लगाते हुए लौटते थे ? या फिर किसी कठोर चीज पर ठोकर मारते – मारते जूता फट गया । तुम रास्ते के टीले या उस कठोर चीज़ से बचकर भी तो निकल सकते थे । शायद समझौता न कर पाना तुम्हारी कमजोरी थी । वही नेमधरम की कमजोरी जो होरी को ले डूबी थी ।
लेखक अनुमान लगाता है कि यह तुम्हारी उँगली इशारा कर रही है । तुम जिसे घृणित समझते हो उसकी तरफ़ हाथ से नहीं पैर से इशारा करते हो । मैं तुम्हारी उँगली और मुस्कान का इशारा समझता हूँ । तुम अँगुली छिपाकर तलुआ घिसाए चलने वालों पर हँस रहे हो । क्योंकि तुम्हारी उँगली भले ही बाहर निकली हो पर पाँव तो बच रहा है । जिनका तलुआ घिस रहा है , वे चलेंगे कैसे ? मैं तुम्हारी इस व्यंग्य मुस्कान को समझ गया हूँ ।
पाठ के शब्दार्थ
कनपटी – कान के निकट का भाग
केनवस – मोटा कपड़ा जिससे जूते , तिरपाल , थैला ( बैग ) बनाए जाते हैं
बेतरतीब – बिना किसी ढंग के
पुरखे – पूर्वज
उपहास – मज़ाक उड़ाना
आग्रह – हठ , बार – बार कहना
ट्रेजडी – जिसका अंत दुखद हो
क्लेश – दुख
वर – दूल्हा
इत्र – खुशबूदार द्रव्य
तीव्रता – तेजी
युग प्रवर्तक – युग की स्थापना करने वाले
लहूलुहान – घायल
ठाठ – शान
तगादा – उधार के पैसे माँगना
आवत-जात – आते – जाते
पन्हैया – जूते
बिसर गयो – भूल गया
हरिनाम – प्रभु का नाम
उपजत – पैदा होता है
तिनको – उनको
करबों- करूँगा
परै – दूर
सलाम – नमस्कार करना
सदियाँ – सैकड़ों साल
नेम-धरम – धर्म के नियम या नियम और अर्थ
घृणित – घिनौना
बरकरार – बचाकर