NCERT Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 Summary साना साना हाथ जोड़ि

Hindi Kritika Chapter 3 Summary साना साना हाथ जोड़ि

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NCERT Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 Summary साना साना हाथ जोड़ि

 

पाठ की रूपरेखा

लेखिका द्वारा महानगरों की भाव शून्यता , भागम – भाग और यंत्रवत् जीवन की ऊब से बचने के लिए दूरस्थ स्थानों की यात्रा की गई ।

इन्हीं यात्राओं के दौरान लेखिका को देश की विभिन्न संस्कृतियों , मनुष्यों और स्थानों को पहचानने और मिलने का अवसर मिला । इन अनुभवों को उन्होंने अपने यात्रा – वृत्तांतों में स्थान दिया है ।

प्रस्तुत पाठ भी एक यात्रा – वृत्तांत है , जिसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम की राजधानी गंतोक ( गैंगटॉक ) और उसके आगे की हिमालय – यात्रा का वर्णन किया गया है ।

 

पाठ का सार

गंतोक ( गैंगटॉक ) की रात्रि

लेखिका को गंतोक ( गैंगटॉक ) शहर सुबह , शाम और रात , हर समय बहुत अच्छा लगता है । यहाँ की रहस्यमयी सितारों भरी रात लेखिका को सम्मोहित – सी करती प्रतीत होती है । लेखिका ने यहाँ एक नेपाली युवती से प्रार्थना के बोल सीखे थे – ‘ साना – साना हाथ जोड़ि , गर्दहु प्रार्थना । हाम्रो जीवन तिम्रो कौसेली । ” जिसका हिंदी में अर्थ – है- छोटे – छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो ।

कंचनजंघा के दर्शन की प्रतीक्षा

सुबह लेखिका को यूमथांग के लिए निकलना था । जैसे ही उनकी आँख खुलती है , वह बालकनी की ओर भागती हैं , क्योंकि उन्हें लोगों ने बताया था कि यदि मौसम साफ़ हो , तो बालकनी से भी कंचनजंघा ( हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी ) दिखाई देती है । उस सुबह मौसम अच्छा होने के बाद भी आसमान हल्के – हल्के बादलों से ढका हुआ था , जिसके कारण लेखिका को कंचनजंघा दिखाई नहीं पड़ी , किंतु सामने तरह – तरह के रंग – बिरंगे ढेर सारे फूल दिखाई दिए ।

बौद्ध पताकाओं का यूमथांग में महत्त्व

गंतोक ( गैंगटॉक ) से 149 किमी की दूरी पर यूमथांग था । लेखिका के साथ चल रहे ड्राइवर – कम – गाइड जितेन नार्गे उन्हें बताता है कि यहाँ के सारे रास्तों में हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी । आगे बढ़ने पर उन्हें एक स्थान पर एक कतार में लगी सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ दिखाई देती हैं , नार्गे उन्हें बताता है कि यहाँ बुद्ध की बहुत मान्यता है । जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है , उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं और इन्हें उतारा नहीं जाता । ये स्वयं ही नष्ट हो जाती हैं ।

कई बार कोई नया कार्य आरंभ करने पर भी पताकाएँ लगाई जाती हैं , लेकिन ये पताकाएँ सफ़ेद न होकर रंगीन भी होती हैं । लेखिका को यहाँ जगह – जगह पर दलाई लामा की तस्वीर दिखाई देती है । यहाँ तक कि जिस जीप में वह बैठी थी , उसमें भी दलाई लामा का चित्र लगा हुआ था ।

कवी- लोंग स्टॉक

थोड़ा आगे चलने पर ‘ कवी – लोंग स्टॉक ‘ स्थान आता है , जिसे देखते ही जितेन बताता है कि यहाँ ‘ गाइड ‘ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी । इसी स्थान पर तिब्बत के चीस – खे बम्सन ने लेपचाओं के शोमेन से कुंजतेक के साथ संधि – पत्र पर हस्ताक्षर किए थे तथा उसकी याद में यहाँ पर एक पत्थर स्मारक के रूप में भी है । लेखिका को एक कुटिया में घूमता हुआ चक्र दिखाई देता है , जिस पर नार्गे उन्हें बताता है कि इसे ‘ धर्म चक्र ‘ कहा जाता है । इसे लोग ‘ प्रेयर व्हील ‘ भी कहते हैं । इसके विषय में यह मान्यता है कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं ।

प्रकृति की मनोरमता

कुछ और आगे चलने पर बाज़ार , बस्तियाँ और लोग पीछे छूटने लगे । कहीं – कहीं स्वेटर बुनती नेपाली युवतियाँ और पीठ पर भारी – भरकम कार्टन ( गत्ते का बक्सा ) ढोते हुए बौने से बहादुर नेपाली मिल रहे थे । ऊपर से नीचे देखने पर मकान बहुत छोटे दिखाई दे रहे थे । अब रास्ते वीरान , सँकरे और जलेबी की तरह घुमावदार होने लगे थे । हिमालय विशालकाय होने लगा था । कहीं पर्वत शिखरों के बीच दूध की धार की तरह झर – झर नीचे गिरते हुए जलप्रपात दिखाई दे रहे थे , तो कहीं चाँदी की तरह चमक मारती तिस्ता नदी , जो सिलीगुड़ी से ही लगातार लेखिका के साथ चल रही थी , बहती हुई दिखाई दे रही थी ।

अब जीप ‘ सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल ‘ नामक स्थान पर रुकी , जहाँ एक विशाल और सुंदर झरना दिखाई दे रहा था । सैलानियों ने कैमरों से उस स्थान के चित्र लेने शुरू कर दिए । लेखिका यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य में इतना खो गई कि उनका दिल वहाँ से जाने को नहीं कर रहा था ।

प्रकृति और पर्यावरण

आगे चलने पर लेखिका को हिमालय की रंग – बिरंगी चोटियाँ नए – नए रूपों में दिखाई देती हैं , जो अचानक बादलों के छा जाने पर ढक जाती हैं । धीरे – धीरे धुँध की चादर के छँट जाने पर उन्हें दो विपरीत दिशाओं से आते छाया पहाड़ दिखाई देते हैं , जो अपने श्रेष्ठतम रूप में उनके सामने थे । इस स्थान को देखकर लेखिका को ऐसा लगता है मानो स्वर्ग यहीं पर है । वहाँ पर लिखा था- ‘ थिंक ग्रीन ‘ जो प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सजग होने की बात कह रहा था । लेखिका वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य से इतना प्रभावित होती हैं कि जीप के कुछ देर वहाँ रुकने पर वह थोड़ी दूर तक पैदल ही वहाँ के सौंदर्य को निहारने लगती हैं । उनकी यह मुग्धता पहाड़ी औरतों द्वारा पत्थरों को तोड़ने की आवाज़ से टूटती है ।

भूख , मौत और जीवित रहने की जंग में शामिल स्त्रियाँ

लेखिका को यह देखकर बहुत दुःख हुआ कि इतने सुंदर तथा प्राकृतिक स्थान पर भी भूख , मौत और जीवित रहने की जंग चल रही थी । वहाँ पर बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन के एक कर्मचारी ने बताया कि जिन सुंदर स्थानों का दर्शन करने वह जा रही हैं , यह सब इन्हीं पहाड़ी महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे हैं । यह काम इतना खतरनाक है कि ज़रा भी ध्यान चूका तो मौत निश्चित है । लेखिका को ध्यान आया कि एक स्थान पर सिक्किम सरकार का लगाया हुआ बोर्ड उन्होंने पढ़ा था , जिसमें लिखा था – ‘ एवर वंडर्ड हू डिफाइंड डेथ टू बिल्ड दीज़ रोड्स । ‘ इसका हिंदी अनुवाद था- आप आश्चर्य करेंगे कि इन रास्तों को बनाने में लोगों ने मौत को झुठलाया है । वास्तव में कितना कम लेकर भी ये पहाड़ी स्त्रियाँ समाज को कितना अधिक वापस कर देती हैं ।

पहाड़ी जीवन की कठोरता

जब जीप और ऊँचाई पर पहुँची तो सात – आठ वर्ष की उम्र के बहुत सारे बच्चे स्कूल से लौट रहे थे । जितेन ( गाइड ) उन्हें बताता है कि यहाँ तराई में ले – देकर एक ही स्कूल है , जहाँ तीन – साढ़े तीन किलोमीटर की पहाड़ी चढ़कर ये बच्चे स्कूल जाते हैं । पढ़ाई के अतिरिक्त ये बच्चे शाम के समय अपनी माँ के साथ मवेशियों को चराते हैं , पानी भरते हैं और जंगल से लकड़ियों के भारी – भारी गट्ठर ढोते हैं ।

लायुंग के प्राकृतिक दृश्य

यूमथांग पहुँचने के लिए लायुंग में जिस मकान में लेखिका व उनके सहयात्री ठहरे थे , वह तिस्ता नदी के किनारे लकड़ी का एक छोटा – सा घर था । वहाँ का वातावरण देखकर उन्हें लगा कि प्रकृति ने मनुष्य को सुख – शांति , पेड़ – पौधे , पशु सभी कुछ दिए हैं , किंतु हमारी पीढ़ी ने प्रकृति की इस लय , ताल और गति से खिलवाड़ करके अक्षम्य ( क्षमा के योग्य न होने वाला ) अपराध किया है । लायुंग की सुबह बेहद शांत और सुरम्य थी । वहाँ के अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू , धान की खेती और दारू का व्यापार है । लेखिका सुबह अकेले ही पहाड़ों की बर्फ़ देखने निकल जाती हैं , परंतु वहाँ ज़रा भी बर्फ़ नहीं थी । लायुंग में एक सिक्कमी नवयुवक उन्हें बताता है कि प्रदूषण के चलते यहाँ बर्फ़बारी ( स्नो – फॉल ) लगातार कम होती जा रही है ।

भारत का स्विट्ज़रलैंड

बर्फ़बारी देखने के लिए लेखिका अपने सहयात्रियों के संग लायुंग से 500 फीट की ऊँचाई पर स्थित ‘ कटाओ ‘ नामक स्थान पर जाती हैं । इसे भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है । ‘ कटाओ ‘ जाने का मार्ग बहुत दुर्गम था । सभी सैलानियों की साँसें रुकी जा रही थीं । रास्ते धुँध और फिसलन से भरे थे , जिनमें बड़े – बड़े शब्दों में चेतावनियाँ लिखी थीं- ‘ इफ यू आर मैरिड , डाइवोर्स स्पीड ‘ , ‘ दुर्घटना से देर भली , सावधानी से मौत टली । ‘

कटाओ की सुंदरता

कटाओ पहुँचने के रास्ते में दूर से ही बर्फ से ढके पहाड़ दिखाई देने लगे थे । पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने उन पर पाउडर छिड़क दिया हो या साबुन के झाग चारों ओर फैला दिए हों । सभी यहाँ बर्फ़ पर कूदने लगे थे । लेखिका को लगा शायद ऐसी ही विभोर कर देने वाली दिव्यता के बीच हमारे ऋषि – मुनियों ने वेदों की रचना की होगी और जीवन के गहन सत्यों को खोजा होगा । लेखिका की मित्र मणि एकाएक दार्शनिकों की तरह कहने लगीं , ” ये हिमशिखर जल स्तंभ हैं , पूरे एशिया के देखो , प्रकृति भी किस नायाब ढंग से इंतज़ाम करती है । सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि – त्राहि मचती है , तो ये ही बर्फ़ शिलाएँ पिघल – पिघलकर जलधारा बन हमारे सूखे कंठों को तरावट पहुँचाती हैं । कितनी अद्भुत व्यवस्था है जल संचय की ! “

सैनिकों की वीरता के किस्से

वहाँ से आगे बढ़ने पर उन्हें मार्ग में इक्की – दुक्की फ़ौजी छावनियाँ दिखाई देती हैं । वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर चीन की सीमा थी । जब लेखिका ने एक फ़ौजी से पूछा कि इतनी कड़कड़ाती ठंड ( उस समय तापमान 15 ° सेल्सियस था ) में आप लोगों को बहुत तकलीफ़ होती होगी , तो उसने उत्तर दिया- ” आप चैन की नींद सो सकें , इसीलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं । ” थोड़ी दूर एक फौज़ी छावनी पर लिखा था- वी गिव अवर टुडे फॉर योर टुमारो । ‘ लेखिका को भारतीय सैनिकों पर बहुत गर्व होता है । वह सोचने लगती है कि पौष और माघ के महीनों में जब केवल पेट्रोल को छोड़कर सब कुछ जम जाता है , उस समय भी ये सैनिक हमारी रक्षा के लिए दिन – रात लगे रहते हैं । यूमथांग की घाटियों में ढेरों प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूल खिले हुए थे । जितेन उन्हें बताता है कि अगले पंद्रह दिनों में पूरी घाटी फूलों से भर उठेगी ।

सिक्किम में भारत प्रेम

लेखिका यूमथांग में चिप्स बेचती हुई एक युवती से पूछती है —— ‘ क्या तुम सिक्किमी हो ? ‘ वह युवती उत्तर देती है- ‘ नहीं , मैं इंडियन हूँ । ‘ लेखिका को यह जानकर बहुत प्रसन्नता होती है कि सिक्किम के लोग भारत में मिलकर बहुत प्रसन्न हैं ।

सिक्किम से जुड़ी लोक मान्यताएँ

जब लेखिका तथा उनके साथी जीप में बैठ रहे थे , तब एक पहाड़ी कुत्ते ने रास्ता काट दिया । लेखिका की साथी मणि बताती है कि ये पहाड़ी कुत्ते हैं , जो केवल चाँदनी रात में ही भौंकते हैं । वापस लौटते हुए जितेन उन्हें जानकारी देता है कि यहाँ पर एक पत्थर है , जिस पर गुरुनानक के पैरों के निशान हैं । कहा जाता है कि यहाँ गुरुनानक की थाली से थोड़े से चावल छिटककर बाहर गिर गए थे और जिस स्थान पर चावल छिटक गए थे , वहाँ चावल की खेती होती है ।

खेदुम का महत्त्व

जितेन उन्हें बताता है कि तीन – चार किलोमीटर आगे ‘ खेदुम ‘ नामक एक स्थान पर देवी – देवताओं का निवास है । सिक्किम के लोगों का विश्वास है , जो यहाँ गंदगी फैलाता है , उसकी मृत्यु हो जाती है । लेखिका के पूछने पर कि क्या तुम लोग पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते , तो वह उत्तर देता है- नहीं मैडम , हम लोग पहाड़ , नदी , झरने इन सबकी पूजा करते हैं ।

जितेन यूमथांग के विषय में एक जानकारी और देता है कि जब सिक्किम भारत में मिला तो उसके कई वर्षों बाद भारतीय सेना के कप्तान शेखर दत्ता के दिमाग में यह विचार आया कि केवल सैनिकों को यहाँ रखकर क्या होगा , घाटियों के बीच रास्ते निकालकर इस स्थान को टूरिस्ट स्पॉट बनाया जा सकता है । आज भी यहाँ रास्ते बनाए जा रहे हैं । लेखिका सोचती है कि नए – नए स्थानों की खोज अभी भी जारी है और शायद मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम सौंदर्य है ।

 

शब्दार्थ

ढलान – उतार

तराई – पहाड़ के नीचे की समतल भूमि

झालर – लटकने वाला किनारा

संधि – स्थल – मिलन बिंदु

मेहनतकश – परिश्रमी

सम्मोहन- मोहित करने की क्रिया

कदर – तरह

स्थगित- रुका हुआ

चेतना – समझ

अतींद्रियता – इंद्रियों से परे

उजास – प्रकाश / उजाला

बालकनी – छतदार बरामदा

कपाट – द्वार / दरवाज़ा

ठाकुरजी- भगवान

रकम रकम – तरह – तरह के

बहरहाल – हर हाल में

गहनतम – अति गहरी

गदराना – निखरना

जायज़ा- परीक्षण करना

पताका – झंडी

श्वेत- सफ़ेद

हिचकोले – हिलते – डुलते

स्मारक – यादगार

सुदीर्घ – बड़ा

रफ़्ता – रफ़्ता – धीरे – धीरे

परिदृश्य – चारों ओर के दृश्य

कार्टन- गत्ते का डिब्बा

वैभव – महिमा

शिद्दत – तीव्रता / प्रबलता / अधिकता

सैलानी – घूमने वाला

पराकाष्ठा- चरम सीमा

अभिशप्त – शापित / अभियुक्त

सरहद- सीमा

तामसिकता- तमोगुण से युक्त / कुटिल भाव

दुष्टवासना- बुरी इच्छा

निर्मल – स्वच्छ

सयानी- समझदार / चतुर

जन्नत – स्वर्ग

निरंतर – लगातार

दुर्लभ – कठिन / मुश्किल

चैरवेति चैरवेति – चलते रहो , चलते रहो

एकात्म – एक हो जाना

तंद्रिल- नींद में होना

वज़ूद – अस्तित्व

नृत्यांगना – नृत्य करने वाली

नुपूर – घुँघरू

अद्वितीय- जिसके समान दूसरा न हो / अनोखा

निरपेक्ष – अलग रहने वाला / तटस्थ

कुदाल- फावड़े के समान खोदने का औज़ार

अकस्मात् – अचानक / अनायास

संजीदा – गंभीर

दुसाध्य – जिसको साधना कठिन हो

ठाठे – हाथ में पड़ने वाली गाँठे या निशान

यातना – पीड़ा रिपेईंग – कम लेना और ज़्यादा देना

वर्बीला – बढ़े हुए पेट वाला

नरभक्षी – मनुष्यों को खाने वाला

परिधान – कपड़े / वेशभूषा

मद्धिम – धीमी / हल्की

बोधिसत्व- जो बुद्धत्व प्राप्त करने का अधिकारी हो

सुकून – चैन / आराम

अक्षम्य – जो क्षमा के योग्य न हो

संकल्प – इरादा

हलाहल – विष / ज़हर

संक्रमण – मिलन / संयोग

अवाक् – मौन

गुडुप – निगल लेना

आवेश – जोश , गुस्सा

राम रोछो – अच्छा है

लम्हा – पल

रंगत- मोहकता

ख्वाहिश – इच्छा / मनोकामना

स्पॉट – भ्रमण – स्थल

विभोर – आनंदित

नायाब – अमूल्य / बेशकीमती

संग्रह – इकट्ठा

ऋण- कर्ज़

खयाल — विचार

तकलीफ़ – कष्ट

सिवाय – अतिरिक्त / अलावा

तैनात – तैयार रहना

सँकरा – कम खुला / पतला

सफ़र – यात्रा

अहसास – अनुभव

आबोहवा – हवा – पानी

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