क्या, कब, कहाँ और कैसे? CBSE Class 6 History Chapter 1 Notes in Hindi

TextbookNCERT
BoardCBSE Board, UP board, JAC board, HBSE Board, Bihar Board, PSEB board, RBSE Board, UBSE Board
Class6th Class
SubjectHistory | Social Science
ChapterChapter 1 | अध्याय 1
Chapter Nameक्या, कब, कहाँ और कैसे?
Topicक्या, कब, कहाँ और कैसे? CBSE Class 6 History Chapter 1 Notes in Hindi
MediumHindi
Especially Designed Notes forCBSE, ICSE, IAS, NET, NRA, UPSC, SSC, NDA, All Govt. Exam

क्या, कब, कहाँ और कैसे?

अतीत के बारे में हम क्या जान सकते हैं?

  • अतीत के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है- लोग क्या खाते थे, कैसे कपड़े पहनते थे, किस तरह के घरों में रहते थे?
  • हम आखेटकों (शिकारियों), पशुपालकों, कृषकों, शासकों, व्यापारियों, पुरोहितों, शिल्पकारों, कलाकारों, संगीतकारों या फिर वैज्ञानिकों के जीवन के बारे में जानकारियाँ हासिल कर सकते हैं।

लोग कहाँ रहते थे?

  • कई लाख वर्ष पहले से लोग नर्मदा नदी के तट पर रह रहे हैं।
  • यहाँ रहने वाले आरंभिक लोगों में से कुछ कुशल संग्राहक थे जो आस-पास के जंगलों की विशाल संपदा से परिचित थे।
  • अपने भोजन के लिए वे जड़ों, फलों तथा जंगल के अन्य उत्पादों का यहीं से संग्रह किया करते थे। वे जानवरों का आखेट (शिकार) भी करते थे।

भोजन के स्रोत

  • लोग भोजन के लिए वे जड़ों, फलों तथा जंगल के अन्य उत्पादों का यहीं से संग्रह किया करते थे। वे जानवरों का आखेट (शिकार) भी करते थे।
  • लगभग आठ हज़ार वर्ष पूर्व स्त्री-पुरुषों ने सबसे पहले गेहूँ तथा जौ जैसी फ़सलों को सुलेमान और किरथर पहाड़ियों में उपजाना आरंभ किया।
  • उन्होंने भेड़, बकरी और गाय-बैल जैसे पशुओं को पालतू बनाना शुरू किया।
  • उत्तर-पूर्व में गारो तथा मध्य भारत में विंध्य पहाड़ियों के कुछ क्षेत्र थे जहाँ कृषि का विकास हुआ। जहाँ सबसे पहले चावल उपजाया गया वे स्थान विंध्य के उत्तर में स्थित थे।

शहरों का विकास

  • सिंधु तथा इसकी सहायक नदियों (सहायक नदियाँ उन्हें कहते हैं जो एक बड़ी नदी में मिल जाती हैं) लगभग 4700 वर्ष पूर्व इन्हीं नदियों के किनारे कुछ आरंभिक नगर फले-फूले।
  • गंगा व इसकी सहायक नदियों के किनारे तथा समुद्र तटवर्त्ती इलाकों में नगरों का विकास लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ ।
  • गंगा के दक्षिण में इन नदियों के आस-पास का क्षेत्र प्राचीन काल में ‘मगध’ (वर्तमान बिहार में) नाम से जाना जाता था ।
  • इसके शासक बहुत शक्तिशाली थे और उन्होंने एक विशाल राज्य स्थापित किया था।
  • देश के अन्य हिस्सों में भी ऐसे राज्यों की स्थापना की गई थी।

यात्रा का उद्देश्य

  • लोगों ने सदैव उपमहाद्वीप के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक यात्रा की।
  • कभी लोग काम की तलाश में तो कभी प्राकृतिक आपदाओं के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान जाया करते थे ।
  • कभी-कभी सेनाएँ दूसरे क्षेत्रों पर विजय हासिल करने के लिए जाती थीं।
  • इसके अतिरिक्त व्यापारी कभी काफ़िले में तो कभी हाज़ों में अपने साथ मूल्यवान वस्तुएँ लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान जाते रहते थे ।
  • धार्मिक गुरू लोगों को शिक्षा और सलाह देते हुए एक गाँव से दूसरे गाँव तथा एक कसबे दूसरे कसबे जाया करते थे।
  • कुछ लोग नए और रोचक स्थानों को खोजने की चाह में उत्सुकतावश भी यात्रा किया करते थे।
  • इन सभी यात्राओं से लोगों को एक-दूसरे के विचारों को जानने का अवसर मिला ।

देश के नाम

  • अपने देश के लिए हम प्रायः इण्डिया तथा भारत जैसे नामों का प्रयोग करते हैं।
  • इण्डिया शब्द इण्डस से निकला है जिसे संस्कृत में सिंधु कहा जाता है।
  • लगभग 2500 वर्ष पूर्व उत्तर – पश्चिम की ओर से आने वाले ईरानियों और यूनानियों ने सिंधु को हिंदोस अथवा इंदोस कहा।
  • इस नदी के पूर्व में स्थित भूमि प्रदेश को इण्डिया कहा।
  • भरत नाम का प्रयोग उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगों के एक समूह के लिए किया जाता था।
  • इस समूह का उल्लेख संस्कृत की आरंभिक (लगभग 3500 वर्ष पुरानी) कृति ऋग्वेद में मिलता है। बाद में इसका प्रयोग देश के लिए होने लगा ।

अतीत के बारे में कैसे जानें

  • अतीत की जानकारी हम कई तरह से प्राप्त कर सकते हैं।
  • इनमें से एक तरीका अतीत में लिखी गई पुस्तकों को ढूँढ़ना और पढ़ना है।
  • ये पुस्तकें हाथ से लिखी होने के कारण पाण्डुलिपि कही जाती हैं।
  • अंग्रेज़ी में ‘पाण्डुलिपि’ के लिए प्रयुक्त होने वाला ‘मैन्यूस्क्रिप्ट’ शब्द लैटिन शब्द ‘मेनू’ जिसका अर्थ हाथ है, से निकला है।
  • ये पाण्डुलिपियाँ प्रायः ताड़पत्रों अथवा हिमालय क्षेत्र में उगने वाले भूर्ज नामक पेड़ की छाल से विशेष तरीके से तैयार भोजपत्र पर लिखी मिलती हैं।
  • इतने वर्षों में इनमें से कई पाण्डुलिपियों को कीड़ों ने खा लिया तथा कुछ नष्ट कर दी गईं।
  • फिर भी ऐसी कई पाण्डुलिपियाँ आज भी उपलब्ध हैं। प्रायः ये पाण्डुलिपियाँ मंदिरों और विहारों में प्राप्त होती हैं।
  • इन पुस्तकों में धार्मिक मान्यताओं व व्यवहारों, राजाओं के जीवन, औषधियों तथा विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषयों की चर्चा मिलती है।
  • इनके अतिरिक्त यहाँ महाकाव्य, कविताएँ तथा नाटक भी हैं।
  • इनमें से कई संस्कृत में लिखे हुए मिलते हैं जबकि अन्य प्राकृत और तमिल में हैं।
  • प्राकृत भाषा का प्रयोग आम लोग करते थे।

अभिलेखों का अध्ययन

  • अतीत की जानकारी हम अभिलेखों का भी अध्ययन कर सकते हैं।
  • ऐसे लेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किए गए मिलते हैं।
  • कभी-कभी शासक अथवा अन्य लोग अपने आदेशों को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हें देख सकें, पढ़ सकें तथा उनका पालन कर सकें।
  • कुछ अन्य प्रकार के अभिलेख भी मिलते हैं जिनमें राजाओं तथा रानियों सहित अन्य स्त्री-पुरुषों ने भी अपने कार्यों के विवरण उत्कीर्ण करवाए हैं।
  • उदाहरण के लिए प्रायः शासक लड़ाइयों में अर्जित विजयों का लेखा- जोखा रखा करते थे।

पुरातत्त्वविद् खोज का अध्ययन

  • कई वस्तुएँ अतीत में बनीं और प्रयोग में लाई जाती थीं। ऐसी वस्तुओं का अध्ययन करने वाला व्यक्ति पुरातत्त्वविद् कहलाता है।
  • पुरातत्त्वविद् पत्थर और ईंट से बनी इमारतों के अवशेषों, चित्रों तथा मूर्तियों का अध्ययन करते हैं।
  • पुरातत्त्वविद् औज़ारों, हथियारों, बर्तनों, आभूषणों तथा सिक्कों की प्राप्ति के लिए छान-बीन तथा खुदाई भी करते हैं। पुरातत्त्वविद् जानवरों, चिड़ियों तथा मछलियों की हड्डियाँ भी ढूँढ़ते हैं।
  • इससे उन्हें यह जानने में भी मदद मिलती है कि अतीत में लोग क्या खाते थे।
  • वनस्पतियों के अवशेष बहुत मुश्किल से बच पाते हैं। यदि अन्न के दाने अथवा लकड़ी के टुकड़े जल जाते हैं तो वे जले हुए रूप में बचे रहते हैं ।
  • स्रोत के प्राप्त होते ही अतीत के बारे में पढ़ना बहुत रोचक हो जाता है, क्योंकि इन स्रोतों की सहायता से हम धीरे-धीरे अतीत का पुनर्निर्माण करते जाते हैं। अतः इतिहासकार तथा पुरातत्त्वविद् उन जासूसों की तरह हैं जो इन सभी स्रोतों का प्रयोग सुराग के रूप में कर अतीत को जानने का प्रयास करते हैं।

अतीत, एक या अनेक ?

  • निष्कर्षों से यह स्पष्ट होता है कि अलग-अलग समूह के लोगों के लिए इस अतीत के अलग-अलग मायने थे। पशुपालकों अथवा कृषकों का जीवन राजाओं तथा रानियों के जीवन से तथा व्यापारियों का जीवन शिल्पकारों के जीवन से बहुत भिन्न था।
  • जैसाकि हम आज भी देखते हैं, उस समय भी देश के अलग-अलग हिस्सों में लोग अलग-अलग व्यवहारों और रीति-रिवाज़ों का पालन करते थे।
  • उदाहरण के लिए आज अंडमान द्वीप के अधिकांश लोग अपना भोजन मछलियाँ पकड़ कर, शिकार करके तथा फल-फूल के संग्रह द्वारा प्राप्त करते हैं।
  • इसके विपरीत शहरों में रहने वाले लोग खाद्य आपूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों पर निर्भर करते हैं।
  • उस समय शासक अपनी विजयों का लेखा-जोखा रखते थे। यही कारण है कि हम उन शासकों त तथा उनके द्वारा लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के बारे में काफी कुछ जानते हैं। जबकि शिकारी, मछुआरे, संग्राहक कृषक अथवा आदमी प्रायः अपने कार्यों का लेखा-जोखा नहीं रखाते थे।
  • सहायता से हमें उनके जीवन को जानने में मदद मिलती है।

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