Textbook | NCERT |
Board | CBSE Board, UP board, JAC board, HBSE Board, Bihar Board, PSEB board, RBSE Board, UBSE Board |
Class | 6th Class |
Subject | History | Social Science |
Chapter | Chapter 9 |
Chapter Name | आखेट – खाद्य संग्रह से भोजन उत्पादन तक |
Topic | आखेट – खाद्य संग्रह से भोजन उत्पादन तक CBSE Class 6 History Chapter 2 Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Especially Designed Notes for | CBSE, ICSE, IAS, NET, NRA, UPSC, SSC, NDA, All Govt. Exam |
आखेट – खाद्य संग्रह से भोजन उत्पादन तक
- लोग जो इस उपमहाद्वीप में बीस लाख साल पहले रहा करते थे। आज हम उन्हें आखेटक खाद्य संग्राहक के नाम से जानते हैं।
- भोजन का इंतज़ाम करने की विधि आधार पर उन्हें इस नाम से पुकारा जाता है।
- खाने के लिए वे जंगली जानवरों का शिकार करते थे, मछलियाँ और चिड़िया पकड़ते थे, फल-मूल, दाने, पौधे – पत्तियाँ, इकट्ठा अंडे किया करते थे।
आरंभिक मानव : आखिर वे इधर-उधर क्यों घूमते थे?
आखेटक-खाद्य संग्राहक समुदाय के लोग एक जगह से दूसरी जगह पर घूमते रहते थे। ऐसा करने के कई कारण थे।
- पहला कारण यह कि अगर वे एक ही जगह पर ज़्यादा दिनों तक रहते तो आस-पास के पौधों, फलों और जानवरों को खाकर समाप्त कर देते थे। इसलिए और भोजन की तलाश में इन्हें दूसरी जगहों पर जाना पड़ता था ।
- दूसरा कारण यह कि जानवर अपने शिकार के लिए या फिर हिरण और मवेशी अपना चारा ढूँढ़ने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाया करते हैं। इसीलिए, इन जानवरों का शिकार करने वाले लोग भी इनके पीछे-पीछे जाया करते होंगे।
- तीसरा कारण यह कि पेड़ों और पौधों में फल-फूल अलग-अलग मौसम में आते हैं, इसीलिए लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार अन्य इलाकों में घूमते होंगे।
- चौथा कारण यह है कि पानी के बिना किसी भी प्राणी या पेड़-पौधे का जीवित रहना संभव नहीं होता और पानी झीलों, झरनों तथा नदियों में ही मिलता है।
- यद्यपि कई नदियों और झीलों का पानी कभी नहीं सूखता, कुछ झीलों और नदियों में पानी बारिश के बाद ही मिल पाता है।
- इसीलिए ऐसी झीलों और नदियों के किनारे बसे लोगों को सूखे मौसम में पानी की तलाश में इधर-उधर जाना पड़ता होगा ।
आरंभिक मानव के बारे में जानकारी कैसे मिलती है?
पुरातत्त्वविदों को ऐसी वस्तुएँ मिली हैं जिनका निर्माण और उपयोग आखेटक-खाद्य संग्राहक किया करते थे।
- यह संभव है कि लोगों ने अपने काम के लिए पत्थरों, लकड़ियों और हड्डियों के औज़ार बनाए हों। इनमें से पत्थरों के औज़ार आज भी बचे हैं।
- इनमें से कुछ औज़ारों का उपयोग फल-फूल काटने, हड्डियाँ और मांस काटने तथा पेड़ों की छाल और जानवरों की खाल उतारने के लिए किया जाता था।
- कुछ के साथ हड्डियों या लकड़ियों के मुट्ठे लगा कर भाले और बाण जैसे हथियार बनाए जाते थे।
- कुछ औज़ारों से लकड़ियाँ काटी जाती थीं।
- लकड़ियों का उपयोग ईंधन के साथ-साथ झोपड़ियाँ और औज़ार बनाने के लिए भी किया जाता था ।
रहने की जगह निर्धारित करना
- भीमबेटका, हुस्गी, कुरनूल की गुफाएँ वे पुरास्थल स्थान हैं जहाँ पर आखेटक-खाद्य संग्राहकों के होने के प्रमाण मिले हैं।
- कई पुरास्थल नदियों और झीलों के किनारे पाए गए हैं।
आग की खोज
- कुरनूल गुफा में राख के अवशेष मिले हैं।
- इसका मतलब यह है कि आरंभिक लोग आग जलाना सीख गए थे।
- आग का इस्तेमाल कई कार्यों के लिए किया गया होगा जैसे कि प्रकाश के लिए, मांस भूनने के लिए और खतरनाक जानवरों को दूर आदि भगाने के लिए।
बदलती जलवायु
- लगभग 12,000 साल पहले दुनिया की जलवायु में बड़े बदलाव आए और गर्मी बढ़ने लगी।
- इसके परिणामस्वरूप कई क्षेत्रों में घास वाले मैदान बनने लगे।
- इससे हिरण, बारहसिंघा, भेड़, बकरी और गाय जैसे उन जानवरों की संख्या बढ़ी, जो घास खाकर जिन्दा रह सकते हैं।
खेती और पशुपालन की शुरुआत
- इसी दौरान उपमहाद्वीप के भिन्न-भिन्न इलाकों में गेहूँ, जौ और धान जैसे अनाज प्राकृतिक रूप से उगने लगे थे।
- महिलाओं, पुरुषों और बच्चों ने इन अनाजों को भोजन के लिए बटोरना शुरू कर दिया होगा।
- साथ ही वे यह भी सीखने लगे होंगे कि यह अनाज कहाँ उगते थे और कब पककर तैयार होते थे।
- ऐसा करते-करते लोगों ने इन अनाजों को खुद पैदा करना सीख लिया होगा।
- इस प्रकार धीरे-धीरे वे कृषक बन गए होंगे।
- इसी तरह लोगों ने अपने घरों के आस-पास चारा रखकर जानवरों को आकर्षित कर उन्हें पालतू बनाया होगा।
- सबसे पहले जिस जंगली जानवर को पालतू बनाया गया वह कुत्ते का जंगली पूर्वज था।
- धीरे-धीरे लोग भेड़, बकरी, गाय और सूअर जैसे जानवरों को अपने घरों के नज़दीक आने को उत्साहित करने लगे।
- ऐसे जानवर झुण्ड में रहते थे और ज़्यादातर घास खाते थे।
- अक्सर लोग अन्य जंगली जानवरों के आक्रमण से इनकी सुरक्षा किया करते थे और इस तरह धीरे-धीरे वे पशुपालक बन गए होंगे।
एक नवीन जीवन-शैली
- जब लोग पौधे उगाने लगे तो उनकी देखभाल के लिए उन्हें एक ही जगह पर लंबे समय तक रहना पड़ा था।
- बीज बोने से लेकर फ़सलों के पकने तक, पौधों की सिंचाई करने, खरपतवार हटाने, जानवरों और चिड़ियों से उनकी सुरक्षा करने जैसे बहुत-से काम शामिल थे।
- कटाई के बाद, अनाज का उपयोग बहुत संभाल कर करना पड़ता था।
- अनाज को भोजन और बीज, दोनों ही रूपों में बचा कर रखना आवश्यक था।
- बहुत-से इलाकों में लोगों ने मिट्टद्धी के बड़े-बड़े बर्तन बनाए, टोकरियाँ बुनीं या फिर ज़मीन में गड्ढा खोदा।
जानवर : चलते-फिरते ‘खाद्य भंडार’
- जानवर बच्चे देते हैं जिससे उनकी संख्या बढ़ती है।
- अगर जानवरों की देखभाल की जाए तो उनकी संख्या तो बढ़ती ही है साथ ही उनसे दूध भी प्राप्त हो सकता है जो भोजन का एक अच्छा स्रोत है।
- यही नहीं जानवरों से हमें मांस भी मिलता है।
- दूसरे शब्दों में, पशु-पालन भोजन के ‘भंडारण ‘ का एक तरीका है।
आओ, आरंभिक कृषकों और पशुपालकों के बारे में पता करें ?
- बुर्जहोम, चिरांद, दाओजली हैडिंग, कोल्डिहवा, महागरा, हलूर, पैयमपल्ली और मेहरगढ़ (अब पाकिस्तान में) के स्थल है, जहाँ पुरातत्त्वविदों को शुरुआती कृषकों और पशुपालकों के होने के साक्ष्य मिले हैं।
- वास्तव में ये निर्दिष्ट स्थान कृषकों और पशुपालकों की बस्तियाँ थीं या नहीं, इसे जाँचने के लिए वैज्ञानिक खुदाई में मिले पौधों और पशुओं की हड्डियों के नमूनों का अध्ययन करते हैं।
- इनमें से सबसे रोचक जले हुए अनाज के दानों के अवशेष हैं।
- वैज्ञानिक विभिन्न जानवरों की हड्डियों की भी पहचान कर सकते हैं।
- ऐसा लगता है कि ये गलती से या फिर जानबूझ कर जलाए गए होंगे। वैज्ञानिक इन अनाज के दानों की पहचान कर सकते हैं। इस तरह हमें पता चलता है कि इस उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में बहुत सारी फ़सलें उगाई जाती रही होंगी।
स्थायी जीवन की ओर
- पुरातत्त्वविदों को कुछ पुरास्थलों पर झोपड़ियों और घरों के निशान मिले हैं।
- जैसे कि बुर्ज़होम (वर्तमान कश्मीर में ) के लोग गड्ढे के नीचे घर बनाते थे जिन्हे गर्तवास कहा जाता है।
- इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थीं।
- इससे उन्हें ठंढ के मौसम में सुरक्षा मिलती होगी ।
- पुरातत्त्वविदों को झोपड़ियों के अंदर और बाहर दोनों ही स्थानों पर आग जलाने की जगहें मिली हैं। ऐसा लगता है कि लोग मौसम के अनुसार घर के अंदर या बाहर खाना पकाते होंगे।
उपकरण की खोज
- बहुत सारी जगह हैं। इनमें से कई ऐसे हैं, जो पुरापाषाणयुगीन उपकरणों से भिन्न हैं । इसीलिए इन्हें नवपाषाण युग का माना गया है।
- इनमें वे औज़ार भी हैं, जिनकी धार को और अधिक पैना करने के लिए उन पर पॉलिश चढ़ाई जाती थी।
- ओखली और मूसल का प्रयोग अनाज तथा वनस्पतियों से प्राप्त अन्य चीज़ों को पीसने के लिए किया जाता था।
- आज हज़ारों साल बाद भी ओखली और मूसल का प्रयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता है।
- उसी तरह प्राचीन प्रस्तरयुगीन औज़ारों का निर्माण और प्रयोग लगातार होता रहा ।
- कुछ औज़ार हड्डियों से भी बनाए जाते थे।
मिट्टी के बर्तनों की खोज
- नवपाषाण युग के पुरास्थलों से कई प्रकार के मिट्टी के बर्तन मिले हैं। कभी-कभी इन पर अलंकरण भी किया जाता था।
- बर्तनों का उपयोग चीज़ों को रखने के लिए किया जाता था।
- धीरे-धीरे लोग बर्तनों का प्रयोग खाना बनाने के लिए भी करने लगे।
- चावल, गेहूँ तथा दलहन जैसे अनाज अब आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे।
- इसके साथ-साथ अब लोग कपड़े भी बनने लगे थे। इसके लिए कपास जैसे आवश्यक पौधे उगाए जा सकते थे।
- एक तरफ़ जहाँ कई जगहों पर स्त्री-पुरुष शिकार और भोजन-संग्रह करने का काम करते रहे थे वहीं अन्य लोगों ने हजारों सालों के दरम्यान धीरे-धीरे खेती और पशुपालन को अपना लिया।
सूक्ष्म-निरीक्षण
मेहरगढ़ में जीवन - मृत्यु
- यह ईरान जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण रास्ते, बोलन दर्रे के पास एक हराभरा समतल स्थान है।
- मेहरगढ़ संभवत: वह स्थान है, जहाँ के स्त्री-पुरुषों ने इस इलाके में सबसे पहले जौ, गेहूँ उगाना और भेड़-बकरी पालना सीखा।
हड्डियों के निशान
- मेहरगढ़ में विभिन्न प्रकार के जानवरों की हड्डियाँ मिलीं।
- इनमें हिरण तथा सूअर जैसे जंगली जानवरों तथा भेड़ और बकरियों की हड्डियाँ हैं ।
मकानों के निशान
- मेहरगढ़ में इसके अलावा चौकोर तथा आयताकार घरों के अवशेष भी मिले हैं।
- प्रत्येक घर में चार या उससे ज़्यादा कमरे हैं, जिनमें से भंडारण के काम आते होंगे।
कब्र
- मृत्यु के बाद सामान्यतया मृतक के सगे संबंधी उसके प्रति सम्मान जताते हैं।
- लोगों की आस्था है कि मृत्यु के बाद भी जीवन होता हैं।
- इसीलिए कब्रों में मृतकों के साथ कुछ सामान भी रखे जाते थे।
- मेहरगढ़ में ऐसी कई कब्रें मिली हैं।
- एक कब्र में एक मृतक के साथ एक बकरी को भी दफ़नाया गया था।
- संभवत: इसे परलोक में मृतक के खाने के लिए रखा गया होगा।