NCERT Class 10 Sparsh Chapter 9 Dohe Explanation आत्मत्राण

Sparsh Chapter 9 Dohe Explanation आत्मत्राण

NCERT Class 10 Sparsh Chapter 9 Dohe Explanation आत्मत्राण, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT poem explanation for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 9 Dohe Explanation आत्मत्राण

 

पाठ की रूपरेखा

रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने किया है । द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपूर्व योगदान है ।

प्रस्तुत कविता में कवि गुरु मानते हैं कि प्रभु में सब कुछ संभव कर देने की सामर्थ्य है , लेकिन वही सब कुछ न करें । किसी भी आपदा – विपदा में , किसी भी द्वंद्व में सफल होने के लिए मनुष्य स्वयं संघर्ष करे । प्रभु केवल उसे संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करें ।

 

काव्यांशों की व्याख्या

काव्यांश 1

विपदाओं से मुझे बचाओ , यह मेरी प्रार्थना नहीं

केवल इतना हो ( करुणामय )

कभी न विपदा में पाऊँ भय ।

दुःख – ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही

पर इतना होवे ( करुणामय )

दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय ।

शब्दार्थ

विपदाओं- मुसीबतों , संकटों

करुणामय – दूसरों पर दया करने वाला

भय – डर

दुःख – ताप- कष्ट की पीड़ा

व्यथित – दुःखी

चित्त – हृदय

सांत्वना – ढाँढस या तसल्ली देना

जय- जीत

भावार्थ – कवि प्रभु से कहता है- हे प्रभु ! मेरी आपसे यह प्रार्थना नहीं है कि मुसीबतों से आप मुझे बचाएँ या मेरी रक्षा करें । मैं तो केवल इतना चाहता हूँ कि जब कभी भी मुझ पर कोई विपत्ति आए , तो मैं बिना डरे उसका सामना कर सकूँ । हे करुणामय ! मैं यह भी नहीं चाहता कि जब कभी विपत्तियों की पीड़ा से मेरा मन दुःखी हो , व्याकुल हो , तो आप मुझे सांत्वना दें । मैं अपने दुःखों को स्वयं सहन कर लूँगा , परंतु हे करुणामय प्रभु ! मैं ऐसे कष्टकारी समय में भी केवल इतना चाहता हूँ कि उन दुःखों पर मैं विजय प्राप्त कर सकूँ , आप मुझे इतनी शक्ति दें ।

काव्य सौंदर्य

( i ) भाषा सरल , सहज एवं सुबोध है , जो भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है ।

( ii ) भाषा में भावानुकूलता का गुण विद्यमान है ।

( iii ) काव्यांश में तत्सम शब्दों का बहुतायत में प्रयोग किया गया है ।

( iv ) ‘ सकूँ सदा ‘ में ‘ स ‘ वर्ण की पुनरावृत्ति होने के कारण , यहाँ अनुप्रास अलंकार है ।

काव्यांश 2

कोई कहीं सहायक न मिले

तो अपना बल पौरुष न हिले ;

हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ अगर वंचना रही

तो भी मन में ना मानूँ क्षय ।।

मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं

बस इतना होवे ( करुणामय )

तरने की हो शक्ति अनामय

मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही ।

केवल इतना रखना अनुनय –

वहन कर सकूँ इसको निर्भय

शब्दार्थ

बल – शक्ति

पौरुष – वीरता , हिम्मत , पराक्रम

जगत्- संसार

वंचना – धोखा

क्षय – पराजय , नाश

त्राण- भय से छुटकारा या मुक्ति

अनुदिन – प्रतिदिन

तरने- उबरने , पार उतरने

अनामय- स्वस्थ , रोग रहित

भार- बोझ

लघु- छोटा ( कम )

सांत्वना – तसल्ली

अनुनय – विनय

वहन – सहना

निर्भय – निडर

भावार्थ – कवि प्रभु से निवेदन करता है- हे प्रभु ! यदि जब कभी मेरे जीवन में मुसीबत आए और मुसीबत के समय मेरी सहायता करने वाला कोई न हो अर्थात् कोई भी मेरा सहारा न बने । मेरी प्रार्थना है कि मेरा अपना बल , मेरी शक्ति और पराक्रम न डगमगाए , मुझमें आत्मविश्वास की कमी न आए । यदि कभी संसार में मुझे किसी भी चीज़ की हानि हो , लाभ प्राप्त न हो सके या कभी किसी प्रकार का धोखा हो , तो भी मेरे मन में नुकसान के प्रति पश्चाताप का भाव न आने पाए अर्थात् मैं मन में अपना सर्वनाश न मान बैठूं । मैं विचलित होकर अपने पराक्रम को कम न होने दूँ ।

हे प्रभु ! मैं यह प्रार्थना नहीं करता हूँ कि तुम हर दिन मुझे किसी – न – किसी संकट से मुक्ति दिलाते रहो , परंतु हे करुणामय ! मुझे रोग रहित रखना , ताकि स्वस्थ रहकर मैं अपनी शक्ति को बनाए रखूँ और उस ताकत के सहारे भव सागर से पार पा सकूँ । मैं यह भी नहीं चाहता कि मेरे कष्टों के भार को तुम कम करो और मुझे सांत्वना दो । मैं तो केवल इतना चाहता हूँ कि जीवन में आने वाली सभी मुसीबतों का मैं डटकर , निर्भय होकर सामना कर सकूँ अर्थात् आप मुझे निर्भयता का वरदान दो ।

काव्य सौंदर्य

( i ) सरल एवं सहज भाषा भावों की अभिव्यक्ति करने में पूर्णत : समर्थ है ।

( ii ) भाषा में भावानुकूलता का गुण मौजूद है ।

( iii ) इसमें तत्सम शब्दों का उन्मुक्त रूप से प्रयोग हुआ है ।

( iv ) ‘ कोई कहीं ‘ में अनुप्रास अलंकार है ।

काव्यांश 3

नत शिर होकर सुख के दिन में

तव मुख पहचानूँ छिन छिन में ।

दुःख – रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही

उस दिन ऐसा हो करुणामय ,

तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय ।।

शब्दार्थ

नत शिर- सिर झुकाकर

तव – तुम्हारा

छिन छिन – पल – पल

दुःख – रात्रि – दुःखों से भरी रात

निखिल- संपूर्ण

मही- धरती

संशय- संदेह

भावार्थ – कवि करुणामय प्रभु से निवेदन करता है- हे प्रभु मेरी कामना है कि जब कभी मेरे जीवन में सुखों के दिनों का आगमन हो , तो हर दिन के एक – एक पल में मैं तुम्हारा स्मरण करता रहूँ । एक क्षण के लिए भी तुम्हें विस्मृत न करूँ ।

दुःख से भरी रातों में चाहे संपूर्ण सृष्टि से मुझे धोखा मिले , तब भी मेरे मन में आपके प्रति कोई संदेह न हो । अपने दुःखों के लिए आपको दोषी न ठहराऊँ । हे प्रभु , हे करुणामय ! मुझ पर ऐसी कृपा दृष्टि रखो कि मेरे मन में तुम्हारे प्रति आस्था और विश्वास सदैव बना रहे ।

काव्य सौंदर्य

( i ) सरल , सुबोध एवं सहज भाषा के अंतर्गत भावानुकूलता का गुण विद्यमान है ।

( ii ) भाषा भावों की अभिव्यक्ति करने में पूर्णतः सक्षम है ।

( iii ) इसमें तत्सम शब्दों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया गया है ।

( iv ) ‘ छिन छिन ‘ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार उपस्थित है ।

( v ) प्रस्तुत काव्यांश छंदयुक्त है ।

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