NCERT Class 10 Sparsh Chapter 8 Poem Explanation कर चले हम फ़िदा

Sparsh Chapter 8 Poem Explanation कर चले हम फ़िदा

NCERT Class 10 Sparsh Chapter 8 Poem Explanation कर चले हम फ़िदा, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT poem explanation for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 8 Poem Explanation कर चले हम फ़िदा

 

पाठ की रूपरेखा

प्रस्तुत गीत , युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ‘ हकीकत ‘ के लिए लिखा गया था । यह ऐसे ही सैनिकों के हृदय की आवाज़ बयान करता है , जिन्हें अपनी देशभक्ति पर गर्व है । इसी के साथ उन्हें अपने देशवासियों से कुछ अपेक्षाएँ भी हैं । जिनसे उन्हें अपेक्षाएँ हैं , वे देशवासी कोई और नहीं , हम और आप ही हैं । अत : हमें भी कोशिश करनी चाहिए कि हम अपने देश एवं देशवासियों के प्रति अपने कर्तव्यों का ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ निर्वहन करें ।

 

काव्यांशों की व्याख्या

काव्यांश 1

कर चले हम फ़िदा जानो – तन साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

साँस थमती गई , नब्ज़ जमती गई

फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया

कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं

सर हिमालय का हमने न झुकने दिया

मरते – मरते रहा बाँकपन साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शब्दार्थ

फ़िदा – न्योछावर

जानो तन- शरीर और प्राण

हवाले – सौंपना

वतन- देश , राष्ट्र

थमती – रुकती

नब्ज़- नाड़ी , नस

बाँकपन- साहस , जवानी का उत्साह

भावार्थ – युद्ध भूमि में सैनिक देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों को न्योछावर करते समय अन्य साथियो से कहते हैं कि हम तो देश की रक्षा के लिए अपना शरीर और प्राण न्योछावर करके इस दुनिया से जा रहे हैं । अब यह देश तुम्हारे हवाले है तुम ही इसकी रक्षा करना । हमारी साँसें अब रुकने लगी हैं , ठंड के कारण नाड़ी भी जमने लगी है , फिर भी हमने अपने कदमों को आगे बढ़ने से नहीं रोका है । शत्रु लड़ते – लड़ते सिर कट जाने पर भी ज़रा दुःख नहीं है , बल्कि हमें इस बात पर गर्व है कि हमने हिमालय पर्वत के सिर को कभी भी झुकने नहीं दिया , हिमालय अर्थात् देश के मान – सम्मान को ठेस नहीं लगने दी । मरते समय भी हमारे मन में बलिदान और संघर्ष का जोश बना रहा । अंतिम समय तक भी हमने हिम्मत और साहस से शत्रुओं का सामना किया । अब इस देश की रक्षा का भार तुम्हें सौंप रहे हैं अर्थात् देश की बागडोर तुम्हारे हाथ में है , अतः इसकी रक्षा करना ।

काव्य सौंदर्य

( i ) कवि ने देशहित के लिए बलिदान की भावना को महत्त्व देने का वर्णन किया है ।

( ii ) काव्यांश में उर्दू शब्दावली का प्रयोग कविता के सौंदर्य में वृद्धि कर रहा है ।

( iii ) भाषा भावानुकूल है तथा भावाभिव्यक्ति में पूरी तरह सक्षम है ।

( iv ) ‘ मरते – मरते ‘ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है ।

( v ) वीर रस का प्रतिपादन किया गया है ।

( vi ) भाषा में गीतात्मकता व लयात्मकता का पुट है ।

काव्यांश 2

ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर

जान देने की रुत रोज़ आती नहीं

हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे

वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं

आज धरती बनी है दुलहन साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शब्दार्थ

रुत – ऋतु , मौसम

हुस्न – सौंदर्य

इश्क- प्रेम

रुस्वा – बदनाम

खूँ – रक्त , खून

भावार्थ – युद्ध भूमि में उपस्थित सैनिक अन्य सैनिकों से कहता है कि जीवित रहने के तो हमें अनेक अवसर मिलते हैं , परंतु देश की रक्षा में मर – मिटने के अवसर बार – बार नहीं मिलते । जवानी की अवस्था ही वह अवस्था होती है , जिसमें सौंदर्य , प्रेम और जोश चरमोत्कर्ष पर होता है । यदि उस जवानी में देश की रक्षा करते हुए खून नहीं बहाया , तो वह जवानी व्यर्थ है अर्थात् युवाओं को देश रक्षा के लिए हमेशा आगे रहना ही चाहिए । आज हमारे लिए हमारी धरती ही दुलहन है और हमें उसी की रक्षा में अपना सर्वस्व न्योछावर करना है । अब यह देश तुम्हारे हवाले है । इसकी रक्षा के लिए बलिदान के मार्ग पर बढ़ चलो ।

काव्य सौंदर्य

( i ) कवि ने उपरोक्त काव्यांश में सफल प्रेम की संज्ञा उसी को दी है जो त्याग और बलिदान के पथ से होकर गुज़रता है ।

( ii ) काव्यांश में उर्दू शब्दावलियों का मुक्त भाव से प्रयोग किया गया है ।

( iii ) भाषा प्रभावोत्पादक तथा भावों की अभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है ।

( iv ) ‘ धरती बनी है दुलहन ‘ में उपमा अलंकार है ।

( v ) भाषा में संगीतात्मकता व लयात्मकता के गुण हैं ।

( vi ) वीर रस का प्रयोग किया गया है ।

काव्यांश 3

राह कुर्बानियों की न वीरान हो

तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले

फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है

ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले

बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

शब्दार्थ

राह – रास्ता

कुर्बानी – बलिदान

वीरान- सुनसान

काफ़िला – यात्रियों का समूह

फ़तह- जीत

जश्न – उत्सव के लिए तैयार होना

सर पे कफ़न बाँधना – मृत्यु और बलिदान के लिए तैयार रहना

भावार्थ – बलिदानी सैनिक अन्य सैनिक साथियो को कहता है- मेरे सैनिक साथियो ! हमने देश के लिए जो बलिदान दिए हैं , उसकी राह कभी सूनी नहीं होनी चाहिए । देश के लिए मर – मिटने वाले सैनिकों के नए – नए जत्थे तैयार होते रहने चाहिए । उन्हें बलिदान के लिए सहर्ष आगे आते रहने चाहिए । एक बार हमने यह संघर्ष और बलिदान का उत्सव मना लिया तो फिर अगला उत्सव विजय का ही होगा ।

आशय यह है कि बलिदान के पथ पर हमें विजय अवश्य प्राप्त होगी । देखो , आज ज़िंदगी खुद आगे बढ़कर मौत को गले से लगा रही है । आशय यह है कि संघर्षशील नवयुवक उत्साहपूर्वक बलिदान देने को तैयार हैं ।

मेरे साथियो ! देश के लिए मर – मिटने का अवसर आया है । तुम अपने बलिदान के लिए तैयार हो जाओ । हम तो बलिदान करके दुनिया से जा रहे हैं । अब यह देश तुम्हारे सहारे छोड़कर जा रहे हैं । इसे शत्रुओं से बचाकर रखना ।

काव्य सौंदर्य

( i ) कवि ने देश की रक्षा हेतु बलिदान के महत्त्व को बताया है ।

( ii ) सरल एवं सहज भाषा के तहत उर्दू शब्दावलियों का प्रचुर प्रयोग किया गया है ।

( iii ) भाषा भावों की अभिव्यक्ति करने में पूर्णत : सक्षम है ।

( iv ) प्रस्तुत काव्यांश में दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है ।

( v ) वीर रस की अभिव्यक्ति हुई है ।

( vi ) मुहावरों का मनोहारी चित्रण किया गया है ।

काव्यांश 4

खींच दो अपने खूँ से ज़मीं पर लकीर

इस तरफ़ आने पाए न रावन कोई

तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे

छू न पाए सीता का दामन कोई

राम भी तुम , तुम्हीं लक्ष्मण साथियो

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो ।

शब्दार्थ

खूँ – रक्त , खून

ज़मीं- धरती

लकीर – रेखा

रावन – रावण ( शत्रु )

हाथ उठना- आक्रमण होना

दामन – आँचल

भावार्थ – देश के लिए शहीद होने वाले सैनिक मृत्यु को गले लगाने से पहले अन्य सैनिकों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि तुम अपने खून से धरती पर एक ऐसी लक्ष्मण रेखा खींच दो कि कोई भी रावण अर्थात् दुश्मन इस लक्ष्मण रेखा को पार करने की हिम्मत न कर सके अर्थात् ऐसा भय दुश्मन के मन में भर दो कि हमारे देश की सीमा में कदम रखने की वह सोच भी न सके ।

यदि किसी शत्रु का हाथ भारतमाता की ओर बढ़े , तो उसे तुरंत काट डालो । भारतमाता के सम्मान को किसी भी तरह कोई भी ठेस नहीं लगनी चाहिए । जिस प्रकार सीता की रक्षा हेतु राम और लक्ष्मण ने पापी रावण का सर्वनाश कर दिया था , उसी प्रकार तुम्हें भी राम – लक्ष्मण की भाँति अपने शत्रुओं का नाश कर भारतमाता को सुरक्षित करना है ।

तुम ही राम हो , तुम ही लक्ष्मण हो । स्वयं को पहचानो । तुम ही भारत के रक्षक हो , रखवाले हो । अब हम यह देश तुम्हारे हवाले करके दुनिया से जा रहे हैं । इसकी रक्षा करना ।

काव्य सौंदर्य

( i ) कवि ने देशवासियों को सैनिको के बलिदान से प्रेरणा लेते हुए देश की रक्षा के लिए तत्पर रहने का संदेश दिया है ।

( ii ) सरल एवं सहज भाषा के अंतर्गत उर्दू शब्दों का समुचित प्रयोग हुआ है ।

( iii ) भावाभिव्यक्ति में पूर्णत : सक्षम , भाषा अत्यंत प्रभावोत्पादक है ।

( iv ) प्रस्तुत काव्यांश में दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है ।

( v ) इसमें वीर रस मौजूद है ।

( vi ) भाषा में संगीतात्मकता व लयात्मकता है ।

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