Hindi Sparsh Chapter 16 Summary पतझर में टूटी पत्तियाँ
NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16 Summary पतझर में टूटी पत्तियाँ, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.
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NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16 Summary पतझर में टूटी पत्तियाँ
पाठ की रूपरेखा
‘ गागर में सागर ‘ मुहावरे को जीवंत करते इस पाठ में प्रस्तुत प्रसंग महज़ पढ़ने – सुनने के ही नहीं , बल्कि जागरूक और सक्रिय नागरिक बनने की भी प्रेरणा देते हैं ।
पहला प्रसंग , ‘ गिन्नी का सोना ‘ जीवन में अपने लिए सुख – साधन जुटाने वालों से नहीं , बल्कि उन लोगों से परिचित कराता है , जो इस जगत को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं ।
दूसरा प्रसंग , ‘ झेन की देन ‘ बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की उस पद्धति की याद दिलाता है , जिसके कारण जापान के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के बीच कुछ चैन भरे पल पा जाते हैं ।
पाठ का सार
गिन्नी का सोना
शुद्ध आदर्शों का स्वरूप
शुद्ध सोने में ताँबा मिलाने पर गिन्नी का सोना बनता है । यह अधिक चमकीला और मज़बूत होता है । औरतें इसी सोने के गहने बनवाती हैं । शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने के समान होते हैं । कुछ लोग उसमें व्यावहारिकता का ताँबा मिला देते हैं और उसे चलाकर दिखाते हैं । तब हम लोग उन्हें ‘ प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट ‘ कहकर उनका वर्णन करते हैं , पर यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि वर्णन आदर्शों का नहीं , व्यावहारिकता का होता है । ऐसे में ‘ प्रैक्टिकल आइडियलिस्टों ‘ के जीवन से आदर्श धीरे – धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझबूझ ही आगे आने लगती है ।
गांधीजी के विलक्षण आदर्श
कुछ लोगों का मानना है कि गांधीजी व्यावहारिकता को पहचानते थे , इसलिए वे विलक्षण आदर्श चला सके । गांधीजी कभी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं उतरने देते थे , बल्कि वे व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर पर चढ़ाते थे । वे सोने में ताँबा नहीं , ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे ।
व्यवहारवादी व आदर्शवादी लोग
व्यवहारवादी लोग हमेशा जागरूक होते हैं । वे लाभ – हानि का हिसाब लगाकर ही कदम उठाते हैं । वे अपने जीवन में सफल भी होते हैं , परंतु महत्त्व इस बात का अधिक है कि खुद ऊपर चढ़े और दूसरों को भी लेकर ऊपर चढ़े । दूसरों को साथ लेकर ऊपर चढ़ने का काम आदर्शवादी लोगों ने ही किया है । ऐसे लोगों ने ही समाज को शाश्वत मूल्य दिए हैं । व्यावहारिक लोगों ने तो समाज को गिराया ही है ।
झेन की देन
जापानियों के मानसिक रोग का कारण
लेखक ने अपने मित्र से पूछा कि यहाँ ( जापान ) के लोगों को कौन – सी बीमारियाँ अधिक होती हैं । उसके मित्र ने जवाब दिया कि जापान के अस्सी फीसदी लोग तनाव के कारण मन से अस्वस्थ है । इसका कारण उनके जीवन की बढ़ती रफ़्तार है । यहाँ कोई चलता नहीं , बल्कि दौड़ता है । अमेरिका से प्रतिस्पर्द्धा के कारण एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही पूरा करने की कोशिश की जाने लगी । दिमाग की रफ़्तार वैसे ही हमेशा तेज़ रहती है , उसकी रफ़्तार और तेज़ करने से दिमाग का तनाव बहुत अधिक बढ़ जाता है । इसी कारण जापान में मानसिक रोग बढ़ गए हैं ।
लेखक का जापानियों की टी – सेरेमनी में जाना
शाम को लेखक के मित्र उसे ‘ टी – सेरेमनी ‘ में ले गए । चाय पीने की यह एक विधि है । जापानी में इसे ‘ चा – नो – यू ‘ कहते हैं । वह एक छः मंजिला इमारत थी , जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारों वाली और चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी थी । बाहर बेढब – सा ( भद्दा – सा ) एक मिट्टी का बर्तन पानी से भरा था । हाथ – पाँव धोकर व तौलिए से पोंछकर सभी लोग अंदर गए । अंदर बैठे चाजीन ने कमर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह दी । अँगीठी सुलगाई , उस पर चायदानी रखी । बगल के कमरे से जाकर कुछ बर्तन लाकर तौलिए से साफ़ किए । चाय तैयार हुई , तो चाजीन ने चाय भरे प्याले उन लोगों के सामने रखे । वहाँ लेखक सहित तीन मित्र थे । इस विधि में शांति मुख्य बात होती है , इसलिए तीन से अधिक व्यक्तियों को एक साथ प्रवेश नहीं दिया जाता था ।
टी – सेरेमनी में चाय पीने की प्रक्रिया
टी – सेरेमनी में उपस्थित सभी लोगों के प्याले में दो घूँट से ज़्यादा चाय मौजूद नहीं थी । वे लोग होंठों से प्याला लगाकर एक – एक बूँद चाय पीते रहे । करीब डेढ़ घंटे तक यह सिलसिला चलता रहा । दिमाग की रफ़्तार धीरे – धीरे धीमी पड़ने लगी । लेखक को लगा मानो वर्तमान क्षण अनंतकाल जितना विस्तृत है और वह अनंतकाल में जी रहा है , यहाँ तक कि उसे सन्नाटा भी स्पष्ट सुनाई देने लगा ।
झेन परंपरा की देन
अकसर हम लोग या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी – मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपने देखते रहते हैं । यथार्थ में दोनों काल मिथ्या हैं । हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है , वही सत्य है , उसी में जीना चाहिए । जीना किसे कहते हैं , उस दिन मालूम हुआ । जापानियों को झेन परंपरा की यह एक बड़ी देन मिली है ।
शब्दार्थ
गिन्नी का सोना- 22 कैरेट ( सोने में ताँबा मिला हुआ ) का सोना , जिससे गहने बनाए जाते हैं
शुद्ध सोना- 24 कैरेट का ( बिना मिलावट का ) सोना
आदर्श – सिद्धांत
व्यावहारिकता – समय और अवसर देखकर कार्य करने की सूझ
प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट- व्यावहारिक आदर्श
बखान- वर्णन करना / बयान करना
सूझ – बूझ – काम करने की समझ
विलक्षण – अद्भुत / अनोखा
हवा में उड़ना – थोथी बातें करना
स्तर – श्रेणी
सजग – सचेत
शाश्वत – जो सदैव एक – सा रहे / जो बदला न जा सके
मूल्य- विचार / आदर्श
मानसिक – मस्तिष्क संबंधी / दिमागी
मनोरुग्ण – तनाव के कारण मन से अस्वस्थ
प्रतिस्पर्द्धा – होड़
स्पीड – गति
क्षण – अवसर
टी – सेरेमनी – जापान में चाय पीने का विशेष आयोजन
चा – नो – यू- जापानी में टी- सेरेमनी का नाम
दफ़्ती – लकड़ी की खोखली सरकने वाली दीवार जिस पर चित्रकारी होती है
पर्णकुटी – पत्तों से बनी कुटिया
बेढब – सा- बेडौल – सा
चाजीन – जापानी विधि से चाय पिलाने वाला
गरिमापूर्ण – सलीके से / शान से
भंगिमा- मुद्रा
जयजयवंती – एक राग का नाम
खदबदाना- उबलना
उलझन – असमंजस की स्थिति
अनंतकाल – वह काल जिसका अंत न हो
सन्नाटा – खामोशी / चुप्पी / मौन
मिथ्या – भ्रम
विस्तृत – फैलाव