NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 13 Summary तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

Hindi Sparsh Chapter 13 Summary तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 13 Summary तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 13 Summary तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

 

पाठ की रूपरेखा

कवि शैलेंद्र फिल्म जगत में गीतकार के रूप में कई दशकों तक छाए रहे । उन्होंने ‘ फणीश्वरनाथ रेणु ‘ की सर्वोच्च कृति ‘ तीसरी कसम ‘ उर्फ़ मारे गए गुलफाम को सिनेमा परदे पर उसकी बारीकियों के साथ प्रस्तुत किया , जो हिंदी जगत में अद्वितीय बन गई । इस फ़िल्म में राज कपूर , वहीदा रहमान व संगीतकार के रूप में शंकर – जयकिशन शामिल थे । राज कपूर ने अपने अभिनय द्वारा समीक्षकों को हैरान कर दिया । हीरामन के चरित्र को उन्होंने अत्यंत मार्मिकता व मासूमियत के साथ प्रस्तुत किया जिस पर राज कपूर हावी नहीं होता । ‘ तीसरी कसम ‘ अपने समय की वह फ़िल्म है , जिसने अनेक फ़िल्म पुरस्कार प्राप्त किए । शैलेंद्र ने ‘ तीसरी कसम ‘ में अपनी भावप्रवणता का सर्वश्रेष्ठ तथ्य प्रदान किया , जो दर्शकों को त्रासद स्थिति में भी जीवन जीने की प्रेरणा देता है ।

 

पाठ का सार

राज कपूर की सफलता एवं आत्मविश्वास

जब राज कपूर की फ़िल्म ‘ संगम ‘ को सफलता मिली , तो वह इससे बहुत उत्साहित थे । इस अवसर पर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की – ‘ मेरा नाम जोकर ‘ , ‘ अजंता ‘ , ‘ मैं और मेरा दोस्त ‘ तथा ‘ सत्यम् शिवम् सुंदरम् ‘ । उस समय राज कपूर ने यह सोचा भी नहीं होगा कि उन्हें ‘ मेरा नाम जोकर ‘ के एक भाग को बनाने में ही छ : वर्ष लग जाएँगे । इन छ : वर्षों के अंतराल में राज कपूर द्वारा अभिनीत कई फ़िल्में प्रदर्शित हुईं , जिनमें वर्ष 1966 में प्रदर्शित ‘ तीसरी कसम ‘ भी शामिल है । इस फ़िल्म का निर्माण प्रसिद्ध कवि शैलेंद्र ने किया था । राज कपूर ने इस फ़िल्म में अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ अभिनय किया था ।

‘ तीसरी कसम ‘ फ़िल्म

यह फ़िल्म मात्र एक फ़िल्म न होकर सैल्यूलाइड पर लिखी एक कविता थी , जो शैलेंद्र के जीवन की पहली और अंतिम फ़िल्म थी । इसे ‘ राष्ट्रपति स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ । इसके पश्चात् इसे बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार मिला । यही नहीं , इसे मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कार मिला । इस फ़िल्म की कहानी गहरी संवेदनशीलता को पूरी शिद्दत के साथ प्रस्तुत करने में सक्षम थी । शैलेंद्र ने अपने प्रिय मित्र राज कपूर की भावनाओं को शब्द दिए थे और राज कपूर ने इस फ़िल्म में उत्कृष्ट अभिनय किया था ।

‘ तीसरी कसम ‘ की शुरुआत

कहा जाता है कि जब शैलेंद्र राज कपूर के पास इस फ़िल्म की कहानी लेकर गए थे , तो राज कपूर ने इस प्रस्ताव पर उत्साह दिखाते हुए कहा कि वह इस फ़िल्म में काम करेंगे , लेकिन शैलेंद्र यह सुनकर हैरान रह गए कि राज कपूर ने इस फ़िल्म में अभिनय करने के लिए अपना पूरा पारिश्रमिक अग्रिम ( पहले , एडवांस में ) ही माँग लिया । अपने मित्र की बात सुनकर शैलेंद्र का चेहरा उतर गया तो राज कपूर ने कहा कि वह पारिश्रमिक तो लेंगे , लेकिन उन्होंने अपना पारिश्रमिक मात्र ‘ एक रुपया ‘ बताया । इस प्रकार राज कपूर ने इस फ़िल्म में केवल नाममात्र का पारिश्रमिक लिया और खुशी – खुशी काम करने को तैयार हो गए

आदर्शवादी और भावुकता से भरे कवि

शैलेंद्र इस बात को जानते थे कि वह फ़िल्म निर्माता बनने योग्य नहीं हैं । राज कपूर ने उन्हें इस विषय में बता भी दिया था कि फ़िल्म निर्माण में अनेक प्रकार के खतरे हैं । शैलेंद्र पर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । उन्हें न धन संपत्ति की अभिलाषा थी और न सम्मान चाहिए था । वह तो केवल इस फ़िल्म को बनाकर आत्मसंतुष्टि प्राप्त करना चाहते थे । ‘ तीसरी कसम ‘ के विषय में यह बता देना उल्लेखनीय होगा कि राज कपूर , वहीदा रहमान , शंकर – जयकिशन आदि प्रसिद्ध कलाकारों के होने के बाद भी इस फ़िल्म को खरीदने के लिए कोई वितरक तक नहीं मिला था , क्योंकि लाभ कमाने वाले वितरक इस फ़िल्म की संवेदना को समझ नहीं सके थे । यही कारण है कि न तो इस फ़िल्म का सही तरीके से प्रचार ही हुआ और न ही सही प्रकार से प्रदर्शन ही हो सका ।

शैलेंद्र और फ़िल्मों में साहित्य

शैलेंद्र को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है , जो बी साल से फ़िल्म इंडस्ट्री में होने और वहाँ के काम के तौर – तरीके जानने के बाद भी अपनी इंसानियत को बचाकर रख सके थे । उनके द्वारा लिखे गए एक गीत की एक पंक्ति में मौजूद – ‘ दसों दिशाओं ‘ शब्द पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति प्रकट की कि लोग ‘ चार दिशाएँ ‘ समझ सकते हैं , ‘ दस दिशाएँ ‘ नहीं । शैलेंद्र ने जयकिशन की बात नहीं मानी । उनका कहना था कि कलाकार का कर्तव्य यह है कि वह दर्शकों की रुचि में सुधार करे । शैलेंद्र ने अपनी लेखनी में कभी भी झूठे अभिजात्य को नहीं अपनाया । उनके गीत भावनामय होने के साथ – साथ सरल होते थे , जो आसानी से लोगों की जुबान पर चढ़ जाते थे । यही कारण है कि वह ‘ मेरा जूता है जापानी ‘ जैसा लोकप्रिय और सुरीला गीत लिख पाए , जो वर्षों तक लोगों की जुबान पर चढ़ा रहा ।

‘ तीसरी कसम ‘ और साहित्य का समन्वय ‘

तीसरी कसम ‘ फ़िल्म उन फ़िल्मों में से एक है , जिन्होंने साहित्य के साथ पूरा न्याय किया । शैलेंद्र ने इस फ़िल्म में गाड़ीवान हीरामन पर राज कपूर को हावी नहीं होने दिया , अपितु राज कपूर ही हीरामन बन गए । यही नहीं , उन्होंने प्रसिद्ध अभिनेत्री वहीदा रहमान को सस्ती छींट की साड़ी में लिपटी हुई हीराबाई बनाकर प्रस्तुत किया , जिसने हीरामन का मनमोह लिया था ।

भारतीय फ़िल्मों में ‘ तीसरी कसम ‘ का महत्त्व

भारतीय फ़िल्मों की सबसे बड़ी कमज़ोरी होती है उनमें लोक – तत्त्व का अभाव । यह कहा जाता है कि भारतीय फ़िल्में ज़िंदगी से दूर होती हैं और यदि किसी फ़िल्म में जीवन के दुःखद पक्ष का चित्रण किया भी जाता है , तो उन्हें ग्लोरिफ़ाई किया जाता है अर्थात् उसे बढ़ा – चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है ताकि दर्शकों का भावनात्मक शोषण किया जा सके । ‘ तीसरी कसम ‘ की सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण खूबी यह थी कि इसमें दिखाया गया दुःख स्वाभाविक – सा लगता है , नाटकीय नहीं ।

कवि रूप में शैलेंद्र

शैलेंद्र गीतकार नहीं , अपितु कवि थे और उन्होंने जीवन को एक कवि के रूप में ही जिया । यही कारण है कि सिनेमा की चकाचौंध भरी ज़िंदगी में भी वह यश , धन – लिप्सा आदि से कोसों दूर रहे । जो बात उनके जीवन में थी , वही उनके गीतों में भी उनके गीतों में विद्यमान व्यथा व्यक्ति को पराजित नहीं करती , अपितु आगे बढ़ने का संदेश देती है । उन्होंने ‘ तीसरी कसम ‘ में अपने एक गीत को इस प्रकार प्रस्तुत किया है

” सजनवा बैरी हो गए हमार चिठिया हो तो हर कोई बाँचै भाग न बाँचै कोय …।

” अभिनय और ‘ तीसरी कसम ‘ के राज कपूर

अभिनय के दृष्टिकोण से ‘ तीसरी कसम ‘ राज कपूर के जीवन की सबसे बेहतरीन फ़िल्म है । इस फ़िल्म में ‘ हीरामन ‘ की भूमिका में उन्होंने मासूमियत के चरमोत्कर्ष को छू लिया था । यह भी कहा जाता है कि इस फ़िल्म में उनकी भूमिका ‘ जागते रहो ‘ से भी अच्छी है । ऐसा लगता है जैसे राज कपूर ‘ तीसरी कसम ‘ के ‘ हीरामन ‘ के साथ एकाकार हो गए हैं , जो एक खालिस देहाती गाड़ीवान है और केवल दिल की ज़ुबान समझता है , दिमाग की नहीं । उसके लिए मोहब्बत के सिवा किसी दूसरी चीज़ का कोई अर्थ नहीं है ।

उस समय तक राज कपूर एशिया के सबसे बड़े शोमैन के रूप में स्थापित हो चुके थे और उनका अपना व्यक्तित्व एक कहावत बन चुका था , लेकिन ‘ तीसरी कसम ‘ में वह महिमामय व्यक्तित्व पूरी तरह ‘ हीरामन ‘ की आत्मा में उतर गया है । वह ‘ हीराबाई ‘ की फेनू – गिलासी बोली पर रीझता हुआ उसकी भोली सूरत पर न्योछावर हो जाता है । तीसरी कसम ‘ की पटकथा मूल कहानी के लेखक फणीश्वरनाथ ‘ रेणु ‘ ने स्वयं तैयार की थी । यही कारण है कि कहानी का रेशा- रेशा , उसकी छोटी – से – छोटी बारीकी भी फ़िल्म में पूरी तरह से उतर आई है ।

 

शब्दार्थ

शिल्पकार – रचनाकार , डिज़ाइन बनाने वाला व्यक्ति

गहन – गहरा

संभवतः – शायद

अंतराल – के बाद

अभिनीत – अभिनय किया गया

सर्वोत्कृष्ट- सबसे अच्छा

मार्मिक – मन को छू लेने वाली

सैल्यूलाइड – कैमरे की रील में उतारकर चित्र पर प्रस्तुत करना

सार्थकता – उपयुक्तता या अर्थपूर्ण उपलब्धि

कलात्मकता – कला से परिपूर्ण

संवेदनशीलता – भावुकता

शिद्दत – मन की पूरी तीव्रता से

कविहृदय – वह व्यक्ति जिसका हृदय कवियों की भाँति कोमल और कल्पना से भरा हुआ हो

अनन्य – परम

तन्मयता – तल्लीनता

पारिश्रमिक– मेहनताना

अपेक्षा – आशा

याराना मस्ती – दोस्ताना अंदाज़

व्यावसायिक सूझबूझ व्यवसाय या काम – धाम की समझ

कामना – इच्छा

आत्म संतुष्टि – अपनी तसल्ली

बमुश्किल – कठिनाई से

वितरक – प्रसारित करने वाले लोग

नामज़द – विख्यात

संवेदना – अनुभूति

दो से चार बनाने का गणित – धन को बहुत जल्दी से बढ़ाने की कला

नावाकिफ़ – अनजान

इकरार – सहमति

मंतव्य – इच्छा

उथलापन- सतही

उपभोक्ता – फ़िल्म के दर्शक, किसी वस्तु को उपभोग करने वाला

परिष्कार – सुधार

अभिजात्य – परिष्कृत

भाव – प्रवण – भावनाओं से भरा हुआ

दुरूह – कठिन

शत – प्रतिशत – पूरी तरह से

उकडू – घुटने मोड़कर पैर के तलवों के सहारे बैठ जाना

अभिव्यक्ति – प्रकट करना

सूक्ष्मता – बारीकी

स्पंदित – भावना से भरी हुई

लालायित – इच्छुक

टप्पर – गाड़ी – अर्द्धगोलाकार छप्पर युक्त बैलगाड़ी

हुजूम – भीड़

डोलिया – डोली

नौटंकी – नाटक

बाई – काम करने वाली

सरल हृदय – जिसका दिल बहुत सीधा , सरल और भोला हो

सपनीले – सपनों में देखे गए

कहकहे – ठहाके

लोक – तत्त्व – लोक – भावना

त्रासद स्थितियाँ – भयानक घटनाएँ

चित्रांकन- चित्र खींचना

ग्लोरिफ़ाई करना – महिमामंडित करना , प्रशंसा करना

जीवन – सापेक्ष – जीवन से संबंध रखने वाली

धन – लिप्सा – धन की चाह

भावप्रवणता – संवेदनशीलता

तथ्य – सच्चाई

अद्वितीय- अनोखा

बाँचै – पढ़ना

दृष्टिकोण – विचार या नज़रिया

समीक्षक – गुण – दोष पर विचार करने वाला

खालिस – पूरी , शुद्ध

भुच्च- निरा , बिलकुल

मुकाम – मंज़िल

शोमैन – बहुत बड़ा स्थापित कलाकार

किंवदंती – कहावत

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