NCERT Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 3 Summary टोपी शुक्ला, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.
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NCERT Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 3 Summary टोपी शुक्ला
पाठ की रूपरेखा
राही मासूम रज़ा का प्रसिद्ध उपन्यास है- ‘ टोपी शुक्ला ‘ | इस उपन्यास के एक अंश के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार भरे – पूरे परिवार में भी एक व्यक्ति अकेलापन महसूस करता है और अपनेपन की खोज में भटकता है । कथानायक टोपी को अपनों के रूप में अज़ीज़ दोस्त इफ़्फ़न , उसकी दादी तथा नौकरानी सीता मिली । टोपी के पिता एक प्रसिद्ध डॉक्टर हैं । घर में किसी चीज़ का अभाव नहीं है , फिर भी वह अपना अकेलापन दूर करने इफ़्फ़न के घर जाता है , क्योंकि उसके अकेलेपन को समझने वाला उसके अपने घर में कोई नहीं है । इसी के साथ लेखक ने इस औपन्यासिक अंश के माध्यम से सांप्रदायिक , जातिगत , धार्मिक आदि भेदभावों को समाप्त करते हुए मानवीयता के महत्त्व को उजागर किया है ।
पाठ का सार
इफ़्फ़न और टोपी की मित्रता
इफ़्फ़न और टोपी में घनिष्ठ मित्रता थी । इनकी पहली मुलाकात तब हुई थी जब टोपी चौथी कक्षा का छात्र था । टोपी के जीवन की यह पहली मित्रता था । टोपी आए – दिन इफ़्फ़न के घर जाता था । टोपी को इफ़्फ़न की दादी से गहरा लगाव हो गया था । वह उनके पास बैठकर उनसे कहानियाँ सुना करता था ।
इफ़्फ़न और उसका परिवार
इफ़्फ़न के पिता सैयद मुरतुज़ा हुसैन भी हिंदुओं का छुआ नहीं खाते थे , परंतु वे मरे तो उन्होंने यह वसीयत नहीं की कि उनकी लाश को करबला ले जाया जाए । इफ़्फ़न की परदादी भी हिंदुओं का छुआ नहीं खाती थीं । वे बड़ी नमाज़ी बीबी थीं , परंतु जब उनके इकलौते बेटे को चेचक निकली तो वे चारपाई के पास एक पैर पर खड़े होकर बोलीं- माता मोरे बच्चे को माफ करद्यो । ‘ वे 9-10 वर्ष की आयु में ब्याह कर पूरब से लखनऊ आई थीं । जब तक ज़िंदा रहीं , पूरबी बोलती रहीं । वह मौलवी की नहीं , एक ज़मींदार की बेटी थीं । दूध – घी और दही खाने की शौकीन थीं , परंतु लखनऊ इन चीज़ों का अभाव था । जब वे मरीं , तो उन्हें बनारस के फातमैन में दफ़न किया गया ।
टोपी का इफ़्फ़न की दादी से लगाव
इफ़्फ़न को अपनी दादी से बहुत प्यार था , जब वह पूरबी बोली में कहानियाँ सुनातीं , तो इफ़्फ़न और टोपी खुश हो जाते । टोपी को इफ़्फ़न की दादी अपनी माँ की तरह ही दिखाई देती थीं , जबकि टोपी अपनी दादी से प्यार नहीं करता था ।
पूरबी बोली पर हंगामा
भृगु नारायण शुक्ला के घर भी आधुनिकता का वातावरण दिखाई देता था । एक बार की बात है , परिवार के सभी लोग मेज़ – कुर्सी पर बैठकर भोजन कर रहे थे कि अचानक टोपी बोला- ” अम्मी ! ज़रा बैंगन का भुरता । ” ‘ अम्मी ‘ शब्द सुनकर सभी खाते – खाते रुक गए । तभी टोपी की दादी सुभद्रा देवी बोलीं- ” अम्मी शब्द कहाँ से सीखा , ” टोपी ने जवाब दिया- ” ई हम इफ़्फ़न से सीखा है । “
तभी टोपी की माँ रामदुलारी बोल पड़ीं , ‘ तैं कउनो मियाँ के लड़का से दोस्ती कर लिहले बाय का रे ? ” यह सुनते ही सुभद्रा देवी आगबबूला होकर कहने लगीं- ” बहू , तुमसे कितनी बार कहूँ कि मेरे सामने यह गँवारों की जुबान न बोला करो । ” टोपी की दादी तो चिढ़कर अंदर चली गईं , परंतु माँ ने टोपी की बहुत पिटाई की । फिर भी टोपी इस बात के लिए तैयार नहीं हुआ कि वह इफ़्फ़न के घर नहीं जाएगा । मुन्नी बाबू और भैरव , टोपी के भाई , यह नज़ारा देखते रहे , परंतु कुछ नहीं बोले । उस दिन टोपी को बहुत अकेलापन लगा ।
इफ़्फ़न की दादी का निधन
इफ़्फ़न की दादी टोपी को बहुत प्यारी थीं । टोपी , इफ़्फ़न को बात – बात पर कहता रहता था कि हम दोनों अपनी दादी बदल लेते हैं । टोपी को अपनी दादी से तनिक – सा भी लगाव नहीं था , जब इफ़्फ़न की दादी का निधन हुआ तो उस दिन वे दोनों दोस्त बहुत रोए थे । खासतौर से टोपी को अपना जीवन इफ़्फ़न की दादी बिना अकेला लगने लगा और वह बेचैन रहने लगा ।
टोपी के जीवन में सन्नाटा
इफ़्फ़न की दादी की मौत की ख़बर से वह बहुत उदास हो गया । शाम को इफ़्फ़न के घर गया तो पहले से ज़्यादा लोग एकत्रित थे , परंतु सन्नाटा उससे भी कहीं अधिक । एक दादी के न होने से टोपी के लिए घर बिलकुल खाली था । टोपी ने एक बार फिर इफ़्फ़न से कहा कि कितना अच्छा होता , तेरी दादी की जगह मेरी दादी मर गई होती । टोपी को ऐसा लगता था कि उसे उसके घर वाले प्यार नहीं करते । जिस अधूरेपन को भरने के लिए वह इफ़्फ़न की दादी का सहारा लेता था , उनके देहांत के बाद उसका जीवन सन्नाटे से भर गया ।
टोपी के जीवन में 10 अक्टूबर 1945 के दिन का महत्त्व
टोपी के जीवन में अधूरापन तब और बढ़ गया , जब इफ़्फन का परिवार मुरादाबाद चला गया । 10 अक्टूबर , 1945 का दिन टोपी के जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण था , क्योंकि उसी दिन उसने प्रण लिया था कि वह अब ऐसे किसी लड़के से दोस्ती नहीं करेगा , जिसके पिता की तबादले वाली नौकरी हो । इफ़्फ़न के पिता जी के तबादले के बाद टोपी ने ऐसी प्रतिज्ञा ली ।
टोपी को कुत्ते से कटवाना
इफ़्फन के पिताजी के तबादले के पश्चात् नए कलेक्टर साहब आए और उसी कोठी में रहने लगे । उनके तीन बेटे थे – डब्बू , नीलू और गुड्डू । उनमें से तीनों से ही टोपी की दोस्ती नहीं हो पाई । कोठी के माली और चपरासी टोपी को अच्छी तरह पहचानते थे , इसीलिए टोपी ने एक बार हिम्मत करके कोठी में प्रवेश किया , परंतु किसी बात पर टोपी की उनसे कहा – सुनी हो गई । उन्होंने टोपी के पीछे कुत्ता छोड़ दिया । कुत्ते के काटने पर टोपी को अपने पेट में सात सुइयाँ लगवानी पड़ीं , तब से उसने कोठी की तरफ़ रुख नहीं किया ।
टोपी का नौकरानी से लगाव
टोपी के इस अकेलेपन को परिवार के लोग नहीं समझते थे , परंतु घर की नौकरानी सीता बखूबी महसूस करती थी । टोपी अब घर हो या बाहर हमेशा उदास रहने लगा था । वह सभी से दूरी बढ़ाने लगा , परंतु उसे नौकरानी भली लगती थी । वह टोपी का दुःख समझती थी । टोपी उस बूढ़ी नौकरानी के आँचल की छाँव में अपने सभी दुःख – दर्द भूलने का प्रयास करता था ।
टोपी की पिटाई
सर्दी के दिनों की बात है । मुन्नी बाबू और भैरव के लिए कोट का नया कपड़ा आया और टोपी को मुन्नी बाबू का कोट मिला । देखने में स्थिति अच्छी थी , परंतु था तो पुराना । टोपी ने वह कोट उसी समय नौकरानी केतकी के बेटे को दे दिया । यह देखकर दादी को गुस्सा आया और उन्होंने कहा कि अब तू जाड़ा खा । इस बात पर टोपी अपनी दादी से उलझ गया । दादी ने आसमान सिर पर उठा लिया , जिसका दंड भी टोपी को मिला । माँ ने दादी से बहस करने पर उसकी खूब पिटाई की ।
विद्यार्थी व अध्यापकों का व्यवहार और परीक्षा परिणाम
टोपी दो साल लगातार फेल हो गया । पिछली कक्षा वाले बच्चों के साथ बैठना आसान काम नहीं था , उस पर अध्यापकों की बेरुखी कक्षा में भी कोई अध्यापक उसे नोटिस नहीं करता था । अगर कभी ध्यान देते भी तो तब , जब किसी टिप्पणी के माध्यम से उसे शर्मसार करना होता था । दो साल लगातार पढ़ते – पढ़ते टोपी किताबों से भी ऊबने लगा था । एक बार अब्दुल वहीद ने ऐसी तीखी बात बोल दी कि टोपी ने इस वर्ष पास होने की कसम खा ली और हुआ भी यही । पिता के चुनाव में खड़े होने के कारण टोपी को पढ़ने के लिए पर्याप्त समय तो नहीं मिला , परंतु वह पास हो गया ।
शब्दार्थ
बेमानी – बिना मतलब / बिना किसी अर्थ के
परंपरा – प्रथा / प्रणाली जो बहुत दिनों से चली आ रही हो
काफ़िर- ईश्वर का अस्तित्व न मानने वाला
वसीयत – लंबी यात्रा पर जाने से पूर्व या अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति के प्रबंध के विषय में लिखित इच्छा जो दर्ज कर दी गई हो
करबला – इस्लाम का एक पवित्र स्थान
कस्टोडियन – जिस संपत्ति पर किसी का मालिकाना हक न हो उसका संरक्षण करने वाला विभाग
बीजू पेड़- आम की गुठली से उगाया गया आम का पेड़
बेशुमार – बहुत सारी
पोस्टिंग- नौकरी का वर्तमान स्थान
अलबत्ता – बल्कि
अमावट – पके आम के रस को सुखाकर बनाई गई मोटी परत
तिलवा – तिल के लडडू / तिल के बने व्यंजन
गनगनाना- थरथराना / काँपना
दुर्गति- बुरी हालत
कबाबची – कबाब बनाने वाला
जुगराफ़िया – भूगोल शास्त्र / ज्योग्राफ़ी
जिमनेज़ियम- व्यायामशाला
पुरसा – सांत्वना देना
तबादला – बदली / स्थानांतरण