NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 Summary नेताजी का चश्मा

Hindi Kshitij Chapter 10 Summary नेताजी का चश्मा

NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 Summary नेताजी का चश्मा, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 Summary नेताजी का चश्मा

 

पाठ की रूपरेखा

देशभक्ति का संदेश देने वाला यह पाठ स्पष्ट करता है कि देशभक्ति केवल किसी विशेष भू – भाग से प्रेम करना नहीं , बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक , प्रकृति , जीव – जंतु , पशु – पक्षी , पर्वत , पहाड़ , झरने आदि सभी से प्रेम करना एवं उनकी रक्षा करना है । लेखक ने चश्मे बेचने वाले कैप्टन के माध्यम से एक ऐसे साधारण व्यक्ति के कार्य का वर्णन किया है , जो अभावग्रस्त ज़िंदगी व्यतीत करते हुए भी देशभक्ति की भावना रखता है , परंतु हमारी कौम ऐसे व्यक्तियों को सम्मान देने के बजाय उन पर हँसती है । कैप्टन के चरित्र द्वारा लेखक ने उन असंख्य देशभक्तों को स्मरण करने का प्रयास किया है , जिन्होंने देशहित के लिए कार्य किया और देशभक्तों को सम्मान दिलाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।

 

पाठ का सार

हालदार साहब द्वारा कस्बे से गुज़रते हुए मूर्ति को देखना

हालदार साहब हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम से उस कस्बे से गुज़रते थे । कस्बे में कुछ पक्के मकान , एक छोटा – सा बाज़ार , बालक – बालिकाओं के दो विद्यालय , एक सीमेंट का कारखाना , दो खुली छतवाले सिनेमाघर तथा एक नगरपालिका थी । इसी कस्बे के मुख्य बाज़ार में मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की मूर्ति लगी हुई थी , जिसे वह गुज़रते हुए हमेशा देखा करते थे ।

हालदार साहब ने जब पहली बार इस मूर्ति को देखा तो उन्हें लगा कि इसे नगरपालिका के किसी उत्साही अधिकारी ने बहुत जल्दबाज़ी में लगवाया होगा । हो सकता है मूर्ति को बनवाने में काफ़ी समय पत्र – व्यवहार आदि में लग गया होगा और बाद में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर को यह कार्य सौंप दिया गया होगा , जिन्होंने इस कार्य को महीने भर में पूरा करने का विश्वास दिलाया होगा । मूर्ति संगमरमर की बनी थी और उसकी विशेषता यह थी कि उसका चश्मा सचमुच का था । हालदार साहब को मूर्ति बनाने वालों का यह नया विचार बहुत पसंद आया ।

मूर्ति के बदलते चश्मे का कारण

हालदार साहब जब अगली बार वहाँ से गुज़रे तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि इस बार नेताजी की मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा हुआ था । हालदार साहब ने पान वाले से इसका कारण पूछा । उसने बताया कि कैप्टन इन चश्मों को बदलता रहता है । हालदार साहब ने सोचा कि कैप्टन कोई भूतपूर्व सैनिक या नेताजी की आज़ाद हिंद फ़ौज का सिपाही होगा । इस संबंध में पूछने पर पान वाले ने मज़ाक बनाते हुए कहा कि वह लँगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में । उसी समय हालदार साहब ने देखा कि कैप्टन एक बेहद बूढ़ा मरियल – सा लँगड़ा आदमी है , जो सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए रहता है । वह इधर – उधर घूमकर चश्मे बेचता है । यदि किसी ग्राहक ने मूर्ति के चश्मे जैसा फ्रेम माँगा तो वह उस फ्रेम को वहाँ से उतारकर ग्राहक को दे देता है और मूर्ति पर नया फ्रेम लगा देता है ।

मूर्ति के चश्मे के पीछे की कहानी

हालदार साहब को पान वाले से यह जानकारी मिली कि मूर्तिकार समय कम होने के कारण मूर्ति का चश्मा बनाना भूल गया था , जिसके कारण मूर्ति को बिना चश्मे के ही लगा दिया गया । कैप्टन को नेताजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए वह मूर्ति पर चश्मा लगा दिया करता था । हालदार साहब लगभग दो साल तक मूर्ति पर लगे चश्मे को बदलते , देखते रहे ।

मूर्ति पर चश्मा नहीं होने का कारण

एक दिन जब हालदार साहब फिर उसी कस्बे से निकले तो उन्होंने देखा कि बाज़ार बंद था और मूर्ति के चेहरे पर कोई चश्मा भी नहीं था । अगली बार भी उन्होंने मूर्ति को बिना चश्मे के देखा । उन्होंने पान वाले से इसका कारण पूछा , तो उसने बताया- कैप्टन मर गया । ‘ हालदार साहब को यह सोचकर बहुत दुःख हुआ कि अब नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के ही रहेगी ।

मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा

” अगली बार जब हालदार साहब उधर से निकले तो उन्होंने सोचा कि अब वे मूर्ति को नहीं देखेंगे , किंतु आदत से मज़बूर होने के कारण जब उन्होंने चौराहे पर लगी हुई नेताजी की मूर्ति को देखा , तो उनकी आँखें भर आईं । मूर्ति पर किसी बच्चे ने सरकंडे का बना हुआ चश्मा लगा दिया था । हालदार साहब भावुक हो उठे कि बड़ों के साथ बच्चों में भी अर्थात् प्रत्येक नागरिक में देशभक्ति की भावना व्याप्त है ।

 

शब्दार्थ

सिलसिला – क्रम

एक ठो – एक

सम्मेलन –सभा

उपलब्ध बजट – खर्च करने के लिए प्राप्त धन

ऊहापोह – अनिश्चय की स्थिति में मन में उत्पन्न होने वाला तर्क – वितर्क

प्रतिमा – मूर्ति

चिट्ठी – पत्री – पत्र – व्यवहार

स्थानीय – उसी क्षेत्र में रहने वाला

पटक देना – जल्दी बनाकर दे देना

बस्ट – वक्ष तक के भाग की बनाई गई आकृति / मूर्ति

कमसिन – कम उम्र

सराहनीय – प्रशंसा करने योग्य

खटकना- बुरा लगना

लक्षित किया – देखा

कौतुक भरी – उत्सुकता से भरी

दुर्दमनीय – जिसे दबाया न जा सके

खुशमिज़ाज़ – अच्छे स्वभाव वाला / प्रसन्नचित्त

गिराक- ग्राहक

किदर – किधर

आहत- दुःखी

दरकार – आवश्यकता

ओरिजिनल – मूल

द्रवित करने वाली – पिघलाने वाली

पारदर्शी – जिसके आर – पार देखा जा सके

नतमस्तक – विनीत भाव से सिर झुकाना

भूतपूर्व – पहले का

अवाक् रह जाना – आश्चर्यचकित रह जाना

प्रफुल्लता – खुशी

कौम – जाति

होम करना – सब कुछ लुटा देना

हृदयस्थली – बीच में स्थित प्रमुख स्थान

प्रतिष्ठापित- स्थापित

अटेंशन – सावधान की मुद्रा में

भावुक – भावों के वशीभूत होने वाला

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