Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 4 Summary मेरा छोटा – सा निजी पुस्तकालय

Hindi Sanchayan Chapter 4 Summary मेरा छोटा – सा निजी पुस्तकालय

Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 4 Summary मेरा छोटा – सा निजी पुस्तकालय, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT Summary for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

Class 9 Hindi Sanchayan Chapter 4 Summary मेरा छोटा – सा निजी पुस्तकालय

 

पाठ का सार

लेखक के पास अपना एक छोटा – सा पुस्तकालय था । इस पाठ में उसी के बारे में बताया गया है ।

जुलाई 1989 में लेखक को तीन – तीन हार्ट अटैक पड़े । कई डॉक्टरों ने तो उन्हें मृत घोषित कर दिया , पर डॉक्टर बोर्जेस ने हिम्मत नहीं हारी । उन्होंने 900 वॉल्ट्स के शॉक्स दिए । यदि कहीं भी एक कण प्राण शेष होंगे तो हार्ट रिवाइव कर सकने की उम्मीद थी । प्राण तो लौटे पर इस प्रयोग में 60 प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया । शेष 40 प्रतिशत में भी रुकावट है , अतः ओपन हार्ट ऑपरेशन की ज़रूरत बताई गई । अभी कुछ दिन विश्राम करने को कहा गया । लेखक को अर्धमृत्यु वाली हाल में घर लाया जाता है । लेखक की जिद थी कि उसे किताबों वाले कमरे में रखा जाए । उसे वहाँ लिटा दिया गया । पढ़ना – लिखना , बोलना मना । कमरे में खिड़की के सामने रह – रह कर हवा में झुलते सुपारी के पेड़ के पत्ते और कमरे की अलमारियों में भरी किताबें थीं । लेखक के पास हज़ारों किताबें जमा हो गई थीं । यह कैसे जमा हुईं , यह भी एक कहानी है ।

लेखक के पिता आर्यसमाजी थे । उनकी माँ ने स्त्री शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी । पिता की अच्छी – खासी सरकारी नौकरी थी । जब बर्मा रोड बन रही थी तब उन्होंने बहुत कमाया था , लेकिन गांधी जी के आह्वान पर सरकारी नौकरी छोड़ दी थी । उन दिनों वे आर्थिक कष्टों से गुज़र रहे थे । इसके बावजूद घर में कई पत्रिकाएँ नियमित रूप से आती थीं ‘ आर्यमित्र ‘ ( साप्ताहिक ) , वेदोदम , ‘ सरस्वती ‘ , ‘ गृहिणी ‘ और दो बाल पत्रिकाएँ ‘ बालसखा ‘ और ‘ चमचम ‘ । इनसे लेखक को बचपन से ही पढ़ने की आदत लग गई । घर में पुस्तकें भी थीं । ‘ सत्यार्थ प्रकाश ‘ भी थी । लेखक की प्रिय पुस्तक थी ‘ स्वामी दयानंद की एक जीवनी ‘ । इसमें स्वामी दयानंद के जीवन की अनेक रोमांचक घटनाओं का वर्णन था । इनका उसके बालमन पर बड़ा प्रभाव पड़ा । माँ स्कूली पढ़ाई में जोर देती थीं । लेखक को शुरू से घर पर ही पढ़ाया गया । उसे तीसरे दर्जे में भर्ती कराया गया । एक दिन शाम को पिता जी उसे घुमाने ले गए और लोकनाथ की दुकान पर ताज़ा अनार का शर्बत पिलाया । उन्होंने लेखक से पाठ्यक्रम की पुस्तकें पढ़ने का वायदा ले लिया । लेखक अच्छे नंबरों से पास होता चला गया । पाँचवीं में फर्स्ट आया तथा अंग्रेज़ी में सबसे ज्यादा नंबर आने पर इनाम में अंग्रेज़ी की दो किताबें मिलीं । इन किताबों ने लेखक के लिए एक नई दुनिया का दरवाजा खोल दिया । पिता जी ने अलमारी का एक खाना खाली करके उसकी दोनों किताबें वहाँ रखते हुए उसके लिए पुस्तकालय की शुरुआत कर दी । इस प्रकार लेखक की लाइब्रेरी आरंभ हुई । धीरे धीरे इसका विस्तार होता चला गया ।

लेखक को किताबें इकट्ठी करने की सनक सवार हुई । जगह – जगह तरह – तरह की लाइब्रेरियाँ हैं पर लेखक के मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी ‘ हरि भवन ‘ । लेखक स्कूल से छुट्टी पाकर वहीं जम जाता था । वहाँ उपन्यासों की भरमार थी । लेखक लाइब्रेरी के खुलते ही वहाँ पहुँच जाता था और बंद होने पर ही आता था । उसके पास इतने पैसे न थे कि वह सदस्य बनकर किताब इश्यू करवा पाता । पिता की मृत्यु के बाद तो यह आर्थिक संकट और भी बढ़ गया । तब फीस तक जुटाना कठिन था । एक ट्रस्ट से सहायतार्थ मिले धन से सेकंड हैंड पाठ्यपुस्तकें खरीदता था । एक बार इंटरमीडिएट पास करने पर पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी ० ए ० की सेकंड हैंड पुस्तकें खरीदीं तो दो रुपये बच गए । सिनेमा घर में ‘ देवदास ‘ पिक्चर लगी थी । उसके गाने को लेखक गुनगुनाता रहता था ‘ दुख के दिन अब बीतत नाँही ‘ । माँ ने धीरज देते हुए समझाया कि दिल इतना छोटा क्यों करता है , दुःख के दिन बीत जाएँगे । उसने पिक्चर देख आने को कहा , पर वह पिक्चर देखने के स्थान पर उन दो रुपयों से ‘ देवदास ‘ नामक पुस्तक खरीद लाया । उसने दस आने में किताब खरीद ली । शेष पैसे माँ के हाथ पर रख दिए । यह देखकर माँ की आँखों में आँसू आ गए । यह उसकी अपने पैसों से खरीदी गई पहली पुस्तक थी । आज उसके पुस्तक संकलन में विभिन्न विषयों पर विभिन्न लेखकों की हज़ारों पुस्तकें हैं । इनके बीच वह स्वयं को भरा – भरा महसूस करता है । कवि विंदा करंदीकर ने सच ही कहा था कि इन पुस्तकों के लेखकों के आशीर्वाद ने ही तुम्हें बचाया है ।

पाठ के शब्दार्थ

हार्ट अटैक – दिल का दौरा

प्राण – साँस

शॉक्स – झटके

अवरोध – रुकावट

सर्जन- चीर – फाड़ करनेवाला डॉक्टर

विशेषज्ञ – जानकार

अर्धमृत्यु – अधमरा

ठसाठस – ढूँस – ठूंसकर भरना

संकलन – जमा करना

आह्वान – बुलावा

खंडन – मंडन – किसी बात को काटना और पुष्टि करना

पाखंड- दिखावटी

अदम्य – जिसे दबाया न जा सके

रोमांचक – रोमांच पैदा करनेवाला

प्रतिमा – मूर्ति

हिम शिखर – बर्फ़ की चोटी

रूढ़ि- प्रथा

रोमांचित – पुलकित

दर्जा – कक्षा

परिश्रम- मेहनत

द्वीप – वह भू – भाग जिसके चारों ओर पानी हो

लाइब्रेरी – पुस्तकालय

यूनिवर्सिटी – विश्वविद्यालय

डॉक्टरेट- डॉक्टर की उपाधि

अध्यापन – पढ़ाना

सनक – धुन

प्रख्यात – प्रसिद्ध

दिवंगत- स्वर्गवासी

अनुवाद – भाषा परिवर्तन

अनिच्छा – बेमन से

कसक – पीड़ा

देहावसान – मृत्यु

सहपाठी- साथ पढ़नेवाला

विपन्न – गरीब

साहित्यिक- साहित्य से संबंधित

बीतत- बीतता

धीरज – सब्र

संस्मरण – किसी याद रही घटना पर लिखा गया अनुभव

पुरातत्व – इतिहास के अध्ययन तथा खोजों से संबंध रखनेवाली विशेष प्रकार की विद्या

शिद्दत- अधिकता

हज़ारा – हज़ार से अधिक

वरिष्ठ – पूजनीय

विराजमान – उपस्थित

पुनर्जीवन – नया जीवन ।

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