NCERT Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 Summary सपनों के-से दिन

Hindi Sanchayan Chapter 2 Summary सपनों के-से दिन

NCERT Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 Summary सपनों के-से दिन, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 2 Summary सपनों के-से दिन

 

पाठ की रूपरेखा

यह पाठ पंजाबी लेखक गुरदयाल सिंह की आत्मकथा का एक अंश है । इसमें लेखक ने अपने बचपन के उन आनंदमयी दिनों का चित्रण किया है , जब खेलते – खेलते चोट लगती थी , हाथ – पैर छिल जाते थे , तब चोट लगने के बावजूद घर जाकर माता – पिता तथा बहनों की डाँट खानी पड़ती थी । कुछ क्षण बाद फिर से वही खेल मन को गुदगुदाने लगता था । लेखक ने अपने स्कूली जीवन के अनुभवों को वर्णित करते हुए कहा है कि उन दिनों स्कूल का वातावरण बहुत नीरस एवं भय उत्पन्न करने वाला हुआ करता था ।

 

पाठ का सार

बच्चों का खेल – प्रेम

लेखक ने अपनी आत्मकथा के इस अंश में स्पष्ट किया है कि बचपन में सभी बच्चों का एक जैसा हाल होता है । मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे बेतरतीब व मैले से कपड़े पहने छोटी – छोटी गलियों में खेलते – कूदते फिरते थे । भागते – दौड़ते समय हाथ – पैर छिलने या चोट लगने पर कोई परवाह नहीं करता , बल्कि परिवार वालों से डाँट ही पड़ती थी , परंतु खेल के प्रति लगाव कम नहीं होता था । लेखक बच्चों के इस खेल प्रेम को तब समझ पाया , जब उसने बाल – मनोविज्ञान पढ़ा । सभी बच्चों की आदतें मिलती – जुलती हैं । उन दिनों बच्चे स्कूल जाने में में रुचि नहीं लेते थे और माता – पिता भी पढ़ाई के लिए ज़बरदस्ती नहीं करते थे ।

लेखक का बाल्यकाल

लेखक के अधिकांश मित्र राजस्थान या हरियाणा के मूल निवासी थे , जो व्यापार के उद्देश्य से आए अपने परिवार के साथ यहाँ रहते थे । उनकी बोली कम समझ में आती थी , पर खेलने की बात सभी भली प्रकार समझ लेते थे । बचपन में हरी – भरी घास और रंग – बिरंगे फूलों की सुगंध बहुत अच्छी लगती थी । उन दिनों स्कूल में साल के शुरू में एक – डेढ़ महीने पढ़ाई हुआ करती , फिर छुट्टियाँ शुरू हो जाती थीं ।

ग्रीष्मावकाश के दिन

छुट्टियाँ प्रारंभ होते ही लेखक गुरदयाल सिंह जी माँ के साथ ननिहाल चले जाते थे । वहाँ नानी खूब दूध – दही , मक्खन खिलातीं , बहुत प्यार करतीं । जिस साल ननिहाल नहीं जा पाते , तब अपने घर से थोड़ी दूरी पर बने तालाब पर जाया करते थे । कभी पानी में कूदते , कभी रेत के टीले पर चढ़ते , कभी – कभी तालाब में कूदकर अच्छे तैराक की तरह हाथ – पैर हिलाते । इन शरारतों में कब सुबह से शाम हो जाती , पता ही नहीं चलता ।

अवकाश समाप्ति से पहले

जैसे – जैसे छुट्टियाँ बीतने लगतीं तो मास्टर जी द्वारा दिया गया गृहकार्य सारी मस्ती में बाधा डाल देता । गृहकार्य पूरा करने के लिए हिसाब – किताब लगाना शुरू कर देते , परंतु कुछ मित्र ऐसे भी थे , जो छुट्टियों का काम करने की बजाय मास्टर जी की पिटाई को अधिक ‘ सस्ता सौदा ‘ समझते । कभी – कभी कुछ समय के लिए लेखक भी ऐसे बच्चों को अपना नेता मान बैठता ।

विद्यालय का वातावरण

लेखक का स्कूल बहुत छोटा था उसमें केवल नौ कमरे थे । दाईं ओर पहला कमरा हेडमास्टर श्री मदनमोहन शर्मा जी का था । स्कूल की प्रार्थना के समय वह बाहर आते और अनुशासन में खड़े छात्रों को देखकर बहुत खुश होते थे । मास्टर प्रीतमचंद , जो खेल अध्यापक थे , स्वभाव से बहुत कठोर थे । सरल तथा विनम्र स्वभाव के हेडमास्टर पाँचवीं और आठवीं कक्षा को अंग्रेज़ी स्वयं पढ़ाते थे । क्रोध आने पर कभी – कभी गाल पर हल्की – सी चपत लगा देते । फिर भी स्कूल जाने से बच्चे जी चुराते थे । कभी – कभी ऐसी सभी स्थितियों के रहते हुए भी स्कूल उस समय अच्छा लगने लगता , जब खेल अध्यापक स्काउटिंग का अभ्यास कराते । नीली – पीली झंडियाँ हाथों में पकड़वा कर ऊपर – नीचे , दाएँ – बाएँ करवाते और गलती न करने पर जब वह शाबाश कहते , तो ऐसा लगता कि लेखक या उसके मित्रों ने किसी फौज के सभी तमगे ( मैडल ) जीत लिए हों ।

लेखक का मध्यमवर्गीय परिवार

हेडमास्टर साहब लेखक को हर वर्ष किसी धनी लड़के की पुस्तकें दिलवा देते थे । यद्यपि उन दिनों नई किताबें भी बहुत कम कीमत में आ जाती थीं , परंतु मध्यमवर्गीय परिवार के लिए एक रुपये की भी बहुत कीमत थी । अपने परिवार में लेखक ही पहला लड़का था , जो स्कूल जाने लगा था । लेखक को नई श्रेणी में पहुँचने पर कभी कोई विशेष प्रसन्नता नहीं होती थी । वह सदैव पढ़ाई का बोझ बढ़ने और अध्यापकों द्वारा भयभीत रहता था ।

दूसरे विश्वयुद्ध के समय

वह समय दूसरे विश्वयुद्ध का था । नाभा रियासत के राजा को अंग्रेज़ों ने वर्ष 1923 में गिरफ़्तार कर लिया था , जिनका कोडाईंकनाल ( तमिलनाडु ) में देहांत हो गया था । उनका बेटा विलायत में पढ़ रहा था । उन दिनों अंग्रेज़ फौज़ में भर्ती करने के लिए नौटंकी वालों को साथ लेकर गाँवों में आया करते थे । वे नौटंकी में फौज़ियों का सुखी जीवन दिखाकर लोगों को फौज़ में भर्ती होने के लिए आकर्षित करते थे । स्काउटिंग की वर्दी पहनकर परेड करते समय लेखक भी फौज़ी होने का अनुभव करता था ।

मास्टर प्रीतमचंद का व्यक्तित्व

मास्टर प्रीतमचंद का ठिगना कद , गठीला शरीर , दागों भरा चेहरा , बाज़ – सी आँखें , चमड़े के चौड़े पंजे वाले बूट सभी लोगों का ध्यान खींचते थे । उनका सज़ा देने का तरीका बर्बर था । वह लेखक को चौथी कक्षा में फ़ारसी पढ़ाने लगे थे । एक बार उन्होंने कार्य न करने पर लड़कों को मुर्गा बना दिया , जब यह दृश्य हेडमास्टर साहब ने देखा तो वे बहुत क्रोधित हुए । उन्होंने शिक्षा विभाग के डायरेक्टर को शिकायत लिख भेजी और प्रीतमचंद को मुअत्तल कर दिया । एक बार लेखक ने देखा कि प्रीतमचंद भिगोए हुए बादामों का छिलका उतारकर पिंजरे में बंद तोतों को खिला रहे थे और उनसे बातें कर रहे थे । उनका यह व्यवहार स्कूल के कठोरतापूर्ण व्यवहार से सर्वथा भिन्न था । यह सब कुछ आश्चर्यजनक ही लग रहा था ।

 

शब्दार्थ

तार – तार होना – बुरी तरह कट फट जाना

लथपथ – पूरी तरह सना हुआ

तरस खाना– दया करना

गुस्सैल– क्रोधी

ट्रेनिंग – प्रशिक्षण

परचूनिये – परचून की दुकान करने वाला

आढ़तिये– आढ़त का व्यापारी ( दलाल )

लंडे – हिसाब किताब लिखने की प्राचीन पंजाबी लिपि

बहियाँ – खाता

लोकोक्ति– लोक में कही गई बात

एक खेडण– खेलने के

कैद – सज़ा

अनुकूल – अनुसार

आँख बचाकर – छिपकर

सुगंध– खुशबू

चरना– खा जाना

सयाना– समझदार

बास– दुर्गंध

ननिहाल – नाना का घर

टीला – मिट्टी या रेत का ऊँचा ढेर

ढाँढस बँधाना– सांत्वना देना

दुम– पूँछ

गंदला – गंदा

हाय – हाय करना – रोना आरंभ करना

सहपाठी– साथ पढ़ने वाले साथी

सस्ता – सौदा – आसान उपाय

बालिश्त ( बित्ता ) – हथेली से की जाने वाली माप

हेड मास्टर – प्रधानाचार्य

कतार – पंक्ति

घुड़की – धमकी भरी डाँट

ठुड्डे – पैर की नोंक से की गई चोट

सख्त– कठोर

पिड़ली – घुटने के पीछे का निचला माँसल भाग

खाल खींचना – बुरी तरह पिटाई करना

प्रत्यक्ष – स्पष्ट दिखाई देने वाला

चमड़ी उधेड़ना – बुरी तरह पिटाई करना

चपत – धीमे से थप्पड़ मारना

फड़फड़ाना – फड़ फड़ की ध्वनि

दोरंगा – दो रंगों का

गुडविल – सम्मान

सतिगुर – सत गुरु

फटकारना – क्रोधपूर्वक कड़ी बातें कहना

धनाढ्य – धनवान

दिलचस्पी – रुचि

होल्डर – लकड़ी आदि से बनी अंग्रेजी किस्म की कलम

रकम – धनराशि

सेर – सोलह छटाँक की एक तौल

चाव – उत्साह

ज़िक्र – चर्चा

अपेक्षा – आशा

हरफनमौला – हर फन ( विद्या ) में माहिर

परेड – सैनिकों द्वारा कदम – ताल में चलना

विह्सल – सीटी

अबाउट टर्न – पूरा घूम जानाः

बूट – मोटे तले का अंग्रेज़ी जूता

विलायत – विदेश

रियासत– राज्य

जबरन – ज़बरदस्ती

शामियाना – कपड़े का पंडाल

नौटंकी – नाटक करने वाले

मसखरा – मज़ाक करने वाले / हँसौड़

रंगरूट – सैनिक

अठे – यहाँ

लीतर – टूटे पुराने खस्ताहाल जूते

उठै– वहाँ

नौजवान – युवा

महसूस – अनुभूति

भयभीत – डरा हुआ

खुरियाँ – जूते के नीचे लगने वाली लोहे की एड़ी

नफ़रत – घृणा

गुर्राना– कर्कश ध्वनि में बोलना

बर्बरता – असहनीय पीड़ा देना

उत्तेजित होना – क्रोधित होना

पनिश – सजा

फौरन – अतिशीघ्र

मुअत्तल – निलंबित

मंजूरी – स्वीकृति

महकमाए – तालीम शिक्षा विभाग

बहाल – पुनः नियुक्त करना

धक् धक् करना – भयभीत होना

मुरझाना – उदास होनाः

चौबारा – ऊपरी मंज़िल पर बना हुआ कमरा

रत्ती भर – ज़रा भी

दहकती – तपती हुई

अलौकिक – जो इस लोक का न हो ( दिव्य )

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