Hindi Sanchayan Chapter 1 Summary हरिहर काका
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NCERT Class 10 Hindi Sanchayan Chapter 1 Summary हरिहर काका
पाठ की रूपरेखा
ग्रामीण जीवन को आधार बनाकर लिखी गई इस कहानी में पारिवारिक संबंधों में व्याप्त मनुष्य की स्वार्थी प्रवृत्ति को उजागर किया गया है । मानवीय संवेदनाओं पर चोट करती हुई इस कहानी में इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि ज़मीन – जायदाद के कारण कई बार व्यक्ति अपनों के बीच भी पराया हो जाता है । साथ ही यह कहानी बदलते पारिवारिक मूल्यों को भी अभिव्यक्त करती है । कथाकार ने हरिहर काका के द्वारा वृद्ध व्यक्ति की स्थिति को व्यक्त किया है कि किस प्रकार एक वृद्ध व्यक्ति परिवार का प्यार और अपनापन पाने की चाह रखता है , जो उसे नहीं मिल पाता , क्योंकि परिवार के सभी सदस्य स्वार्थ के वशीभूत हो गए हैं । कोई भी बिना स्वार्थ के उसकी ( वृद्ध ) सेवा नहीं करना चाहता । वहीं दूसरी ओर धर्म के नाम पर ठगने वाले धर्माचारियों की स्वार्थलिप्सा को अभिव्यक्त करते हुए , धर्म की आड़ में पल रही हिंसावृत्ति को भी उजागर किया गया है । यह कहानी आज के ग्रामीण जीवन के ही नहीं , बल्कि शहरी जीवन के यथार्थ को भी बखूबी अभिव्यक्त करती है ।
पाठ का सार
हरिहर काका का परिचय
हरिहर काका उसी गाँव में रहते हैं , जिसमें लेखक रहता है । हरिहर काका के चार भाई हैं । उन्हें छोड़कर सभी का परिवार है । हरिहर काका के दो विवाह हुए , किंतु उनकी दोनों पत्नियाँ लंबे समय तक उनका साथ नहीं दे सकीं और उनकी मृत्यु हो गई । हरिहर काका निःसंतान रह गए । वे अब अपने भाइयों के साथ रहते हैं । उनके परिवार में साठ बीघे खेती योग्य ज़मीन है । यदि इसे विभाजित किया जाए , तो हरिहर काका के हिस्से में पंद्रह बीघे ज़मीन आती है । उनकी कोई संतान न होने के कारण उनके भाइयों की दृष्टि उनकी ज़मीन पर है ।
लेखक और हरिहर काका के बीच संबंध
हरिहर काका और लेखक पड़ोसी थे । लेखक का हरिहर काका से बहुत घनिष्ठ संबंध था । हरिहर काका ने उसे बहुत आत्मीयता के साथ प्यार दिया , विशेष रूप से तब , जब लेखक बहुत छोटा था । इसका एक कारण यह भी है कि हरिहर काका की अपनी कोई संतान नहीं थी और वह अपना सारा प्यार लेखक पर न्योछावर कर देते थे । यही नहीं , वह अपने मन की अधिकांश बातें लेखक के साथ बाँटा करते थे ।
हरिहर काका के स्वभाव में परिवर्तन
कुछ समय से हरिहर काका ने अपनी परेशानियाँ एवं अपनी निजी बातें लेखक को भी बताना कम कर दिया था । इससे लेखक की चिंता बढ़ गई । वह कोई ऐसा कार्य करना चाहता था , जिससे हरिहर काका पहले की तरह ही उससे अपनी सभी निजी बातों को साझा करें । लेखक को यह बात पता चली कि हरिहर काका के परिवार तथा धार्मिक समुदाय ने उन्हें बहुत दुःख दिए थे , जिससे वे परेशान रहने लगे थे और इस परेशानी का अंत उनके मौन के रूप में हुआ । अब वह किसी से कोई बात नहीं करते , चुपचाप बैठे रहते थे ।
ठाकुरबारी का गाँव में महत्त्व
गाँव में ठाकुरबारी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है । यह एक पूजा – स्थल है । इसकी स्थापना के विषय में ठीक – ठीक जानकारी किसी को नहीं है । हाँ , इतना अवश्य पता है कि एक संत आकर यहाँ रहने लगे थे । लोगों ने मिलकर चंदा आदि एकत्र किया और यहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाया , जो बाद में बढ़ता चला गया । ठाकुरबारी का गाँव वालों के लिए इतना महत्त्व है कि जब भी कोई ग्रामीण नया कार्य आरंभ करने की बात सोचता तो वह ठाकुरबारी में आकर मनौती मनाता , क्योंकि ठाकुरबारी पर सबको बहुत विश्वास था ।
ठाकुरबारी का संचालन एक धार्मिक समिति द्वारा किया जाता है । इसके पास बहुत ज़मीन – जायदाद है । यहाँ अधिकांश समय ईश्वर का भजन – कीर्तन चलता रहता है । जब कभी गाँव में कोई बड़ी आपदा आती है , तो ठाकुरबारी के द्वार सभी के लिए खोल दिए जाते हैं ।
लेखक और ठाकुरबारी
लेखक की राय ठाकुरबारी के विषय में बहुत अच्छी नहीं है । उसके विचार में यहाँ रहने वाले साधु – संत कुछ करते धरते नहीं हैं । हाँ , ठाकुर जी को भोग लगाने के नाम पर अच्छा अच्छा भोजन करते हैं । इसके अतिरिक्त , वे लोगों को अपनी बातों से मूर्ख बनाते हैं , जिनमें लोग फँस ही जाते हैं ।
मुसीबतों का आरंभ
शुरू – शुरू में तो हरिहर काका का जीवन शांतिपूर्वक चलता रहा । कुछ सालों के पश्चात् , उनके परिवार के सदस्य उनसे दूरी बनाने लगे । उनके मान – सम्मान में भी कमी आने लगी । घर में बचा हुआ भोजन उन्हें खाने को दिया जाता था । यदि वे बीमार हो जाते , तो उनकी सेवा करने के लिए कोई नहीं आता । यहाँ तक कि उस समय उन्हें पानी पीने के भी लाले पड़ जाते थे । बीमारी में वह स्वयं ही उठकर अपनी ज़रूरतों को पूरा किया करते थे । ऐसे में उन्हें अपनी दोनों पत्नियों की बहुत याद आती थी ।
परिवार से मोहभंग का कारण
अचानक उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी , जिसने उनके परिवार के प्रति मोह को समाप्त कर दिया । एक बार उनके भतीजे का एक मित्र शहर से गाँव में आया । उसकी खूब खातिर की गई । उसके लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया गया , किंतु हरिहर काका को सूखा भोजन ही दिया गया । हरिहर काका इस घटना से इतने दुःखी हुए कि उन्होंने भोजन की थाली को पटक दिया और घर छोड़कर निकल गए । अब उन्हें परिवार से कोई मोह नहीं था ।
हरिहर काका और ठाकुरबारी का संबंध
अन्य ग्रामीणों की तरह हरिहर काका भी समय मिलने पर ठाकुरबारी जाया करते थे । ठाकुरबारी के महंत इस बात को जानते थे कि हरिहर काका की अपनी कोई संतान नहीं है । जब महंत को हरिहर काका के गुस्से के विषय में पता चला तो वे हरिहर काका को ठाकुरबारी में ले आए । महंत ने उन्हें समझाया कि उन्हें मोह – माया के फेर में न पड़कर अपने हिस्से की ज़मीन ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए । इससे उन्हें परलोक की प्राप्ति होगी और यह भौतिक जगत भी सही रहेगा । इस बीच हरिहर काका की खूब खातिरदारी की जाती रही । उन्हें तरह – तरह के स्वादिष्ट व्यंजन परोसे गए । उनका पूरा मान – सम्मान किया गया । महंत ने उन्हें समझाया कि यदि वे अपनी जायदाद को ठाकुरबारी के नाम करेंगे , तो इससे लोगों के बीच उनका मान – सम्मान बढ़ जाएगा ।
हरिहर काका की घर वापसी
हरिहर काका जब घर छोड़कर गए थे , तो उनके भाइयों को इस बात का पता नहीं चला था । जब वे लोग खलिहान से लौटे , तो उन्हें सारी बातें पता चलीं । उन्हें यह भी पता चला कि ठाकुरबारी में हरिहर काका को प्रलोभन दिए गए हैं । उन्हें लगा कि यदि हरिहर काका ठाकुरबारी के महंतों की बातों में आ गए , तो उनके हाथ से अपने भाई की जायदाद चली जाएगी । भाइयों ने अपनी – अपनी पत्नियों को इस बात के लिए बहुत बुरा – भला कहा कि उनके कारण उनके बड़े भाई घर छोड़कर चले गए हैं । इसके बाद वे लोग ठाकुरबारी गए और अपने भाई से वापस चलने की विनती की । बड़ी मुश्किल से हरिहर काका घर जाने को राजी हुए । घर पहुँचते ही घर के सभी सदस्यों ने अपने व्यवहार के लिए उनसे क्षमा माँगी और उनकी खूब सेवा की , जिससे हरिहर काका घर न छोड़े । इतनी खातिरदारी देखकर हरिहर काका को भी लगा कि अपने तो आखिर अपने ही होते हैं । उनका दिल घर के सदस्यों के लिए पसीज़ गया ।
गाँव में तरह – तरह की चर्चाओं को बल
हरिहर काका द्वारा घर छोड़कर एक रात के लिए ठाकुरबारी में रहने और उनके भाइयों द्वारा अनुनय – विनय करने पर वापस घर जाने वाली बातें गाँव में फैल चुकी थीं । इस बीच लोगों ने तरह – तरह की बातें भी शुरू कर दी थीं ; जैसे – हरिहर काका को अपनी सारी जायदाद ठाकुरबारी के नाम लिख देनी चाहिए । इससे उनका नाम अमर हो जाएगा । कुछ लोगों की राय इससे भिन्न थी । वे सोचते थे कि हरिहर काका को अपने हिस्से की जायदाद अपने भाइयों के ही नाम कर देनी चाहिए ।
मन की उलझन और हरिहर काका की लेखक से मंत्रणा
एक दिन हरिहर काका ने अपने मन की उलझन लेखक को बताई । लेखक को लगा कि हरिहर काका उलझन के कारण सही निर्णय नहीं कर पा रहे हैं । बहुत सोच – विचार के बाद फ़ैसला हुआ कि हरिहर काका को अपने जीवित रहते हुए किसी को भी अपनी जायदाद का स्वामी नहीं बनाना चाहिए , क्योंकि पूर्व में जिन्होंने भी ऐसा किया था , उनका जीवन नर्क समान हो गया था ।
हरिहर काका का अपहरण
इसी बीच एक दिन ठाकुरबारी के महंत ने हरिहर काका का अपहरण कर लिया , जिससे उनके हिस्से की जायदाद को ठाकुरबारी के नाम लिखवाया जा सके । महंत और उनके आदमियों ने काका के अँगूठे के निशान ले लिए ताकि उनकी सारी जायदाद ठाकुरबारी की हो जाए । हरिहर काका अब तक महंत का बहुत सम्मान करते थे , किंतु उसकी इस हरकत को देखकर हरिहर काका को महंत से घृणा हो गई ।
इस बीच हरिहर काका के भाइयों ने पुलिस का प्रबंध किया और महंत की कैद से अपने भाई को छुड़वा लिया । अब हरिहर काका के सोचने का दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल चुका था । उन्हें लगने लगा कि न तो ठाकुरबारी के महंत और न ही उनके सगे भाई , कोई भी उनका सम्मान नहीं करता है , वे तो केवल उनसे उनकी जायदाद हड़पना चाहते हैं । अब उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वे अपनी ज़मीन किसी के भी नाम नहीं करेंगे ।
ज़मीन – जायदाद और अपनों का व्यवहार
हरिहर काका के भाइयों को भी हरिहर काका के बदले हुए व्यवहार का अनुमान हो गया था । वे समझ चुके थे कि अब हरिहर काका अपनी जायदाद उनके नाम नहीं लिखेंगे । एक दिन उनके भाइयों ने भी वही तरीका अपनाया , जो ठाकुरबारी के महंत ने उनकी जायदाद अपने नाम करने के लिए अपनाया था । भाइयों ने हरिहर काका के साथ मारपीट की और ज़मीन को अपने नाम लिखवाने की कोशिश की ।
काका ज़ोर से चीखे , तो लोगों ने उनकी चीख सुनकर उन्हें आज़ाद कराया । अब हरिहर काका का अपने भाइयों से पूरी तरह मोहभंग हो चुका था । उन्हें पुलिस सुरक्षा दे दी गई और वे अपने परिवार से अलग होकर रहने लगे । अब पूरे गाँव में हरिहर काका की ही चर्चा थी । कोई उनकी ज़मीन को उनके भाइयों को देने संबंधी विचार प्रकट करता , तो कोई उस ज़मीन को ठाकुरबारी को दान में दे देने पर ज़ोर देता । इस प्रकार पूरे गाँव में केवल यही चर्चा चलती रहती थी ।
विभिन्न घटनाओं का हरिहर काका पर प्रभाव
अब तक हरिहर काका सब कुछ समझ चुके थे । इन घटनाओं का उन पर इतना गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा था कि वे मौन रहने लगे । वे किसी से कुछ भी नहीं कहते थे , केवल खुली आँखों से आकाश को निहारते रहते थे । अब उन्होंने एक नौकर रख लिया था , जो उनका ख़याल रखता था । पुलिस के जवान भी हरिहर काका के खर्च पर मौज उड़ा रहे थे ।
शब्दार्थ
यंत्रणाओं – यातनाओं , कष्टों
आसक्ति – लगाव
सयाना – समझदार
मझधार – बीचों – बीच में
विलीन – लुप्त होना
विकल्प – दूसरा उपाय
ठाकुरबारी – देवस्थान
संचालन – चलाना
नियुक्ति – लगाया गया
दवनी – गेहूँ / धान निकालने की प्रक्रिया
अगम – प्रयोग में लाने से पहले देवता के लिए निकाला गया अंश
घनिष्ठ – गहरा
प्रवचन– भाषण , उपदेश
मशगूल – व्यस्त
धमाचौकड़ी – उछल – कूद करना
दालान– बैठक
हुमाध – हवन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री
तत्क्षण– उसी पल
अकारथ – बेकार
हड़पना– किसी दूसरे की वस्तु अनुचित रूप से लेना
परिवर्तित – बदला हुआ
चिंतामग्न – चिंता में डूबा हुआ
आवभगत – आदर – सत्कार
वाकिफ़ – जानकार , ज्ञाता
मुस्तैद – तैयार , कमर कसकर तैयार रहना
निष्कर्ष – परिणाम
टोह – खोज
विलंब – देर
बय – वसीयत
अप्रत्याशित – आकस्मिक
चंपत – गायब
हरजाना – क्षति – पूर्ति
वय – उम्र
महरिया – टाल जाना , नज़र अंदाज़ कर देना
कुंजी – चाबी
कल – युक्ति , बुद्धि
गिद्ध दृष्टि – बुरी नज़र
सिहरना– काँपना
प्रतिकार – विरोध
चेत– होश
तत्परता– जल्दबाज़ी
नेपथ्य – पर्दे के पीछे
आच्छादित – ढका हुआ
उपास– उपवास , व्रत