Hindi Kritika Chapter 5 Summary मैं क्यों लिखता हूँ
NCERT Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 Summary मैं क्यों लिखता हूँ, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.
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NCERT Class 10 Hindi Kritika Chapter 5 Summary मैं क्यों लिखता हूँ
पाठ की रूपरेखा
प्रसिद्ध साहित्यकार अज्ञेय ने इस निबंध में यह स्पष्ट किया है कि रचनाकार की भीतरी विवशता ही उसे लेखन के लिए मजबूर करती है और लिखकर ही रचनाकार उससे मुक्त हो पाता है । अज्ञेय का यह मानना है कि प्रत्यक्ष अनुभव जब अनुभूति का रूप धारण करता है , तभी रचना पैदा होती है । अनुभव के बिना अनुभूति नहीं होती , परंतु यह आवश्यक नहीं कि हर अनुभव अनुभूति बने । अनुभव जब भाव जगत् और संवेदना का हिस्सा बनता है , तभी वह कलात्मक अनुभूति में रूपांतरित होता है ।
पाठ का सार
लिखने का प्रश्न : अत्यंत कठिन
‘ मैं क्यों लिखता हूँ ? ‘ लेखक के अनुसार यह प्रश्न बड़ा सरल प्रतीत होता है , पर यह बड़ा कठिन भी है । इसका सच्चा तथा वास्तविक उत्तर लेखक के आंतरिक जीवन से संबंध रखता है । उन सबको संक्षेप में कुछ वाक्यों में बाँध देना आसान नहीं है ।
लिखने का असली कारण
लेखक को ‘ मैं क्यों लिखता हूँ ? ‘ प्रश्न का एक उत्तर तो यह लगता है कि वह स्वयं जानना चाहता है कि वह किसलिए लिखता है । उसे बिना लिखे हुए इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सकता । लिखकर ही वह उस आंतरिक प्रेरणा को विवशता को पहचानता है , जिसके कारण उसने लिखा । उसे लगता है कि वह उस आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने के लिए , तटस्थ ( अलग ) होकर उसे देखने और पहचान लेने के लिए लिखता है ।
सभी लेखक कृतिकार नहीं
लेखक को ऐसा लगता है कि सभी लेखक कृतिकार नहीं होते तथा उनके सभी लेखन कृति भी नहीं होते । यह तथ्य भी सही है कि कुछ लेखक ख्याति मिल जाने के बाद बाहरी विवशता से भी लिखते हैं । बाहरी विवशता संपादकों का आग्रह प्रकाशक का तकाजा , आर्थिक आवश्यकता आदि के रूप में हो सकती है ।
लेखक का स्वभाव और अनुशासन
लेखन में कृतिकार के स्वभाव और आत्मानुशासन का बहुत महत्त्व है । कुछ लेखक इतने आलसी होते हैं कि बिना बाहरी दबाव के लिख ही नहीं पाते ; जैसे प्रातः काल नींद खुल जाने पर भी कोई बिछौने ( बिस्तर ) पर तब तक पड़ा रहता है , जब तक घड़ी का अलार्म न बज जाए ।
लेखक की भीतरी विवशता
लेखक की भीतरी विवशता का वर्णन करना बड़ा कठिन है । लेखक विज्ञान का विद्यार्थी रहा है और उसकी नियमित शिक्षा भी विज्ञान विषय में ही हुई है । अणु का सैद्धांतिक ज्ञान लेखक को पहले से ही था , परंतु जब हिरोशिमा में अणु बम गिरा , तब लेखक ने उससे संबंधित खबरें पढ़ीं , साथ ही उसके परवर्ती प्रभावों का विवरण भी पढ़ा । विज्ञान के इस दुरुपयोग के प्रति बुद्धि का विद्रोह स्वाभाविक था । लेखक ने इसके बारे में लेख आदि में कुछ लिखा भी , पर अनुभूति के स्तर पर जो विवशता होती है , वह बौद्धिक पकड़ से आगे की बात है ।
हिरोशिमा के प्रभावितों से साक्षात्कार
एक बार लेखक को जापान जाने का अवसर मिला । वहाँ जाकर उसने हिरोशिमा और उस अस्पताल को भी देखा , जहाँ रेडियम पदार्थ से आहत लोग वर्षों से कष्ट पा रहे थे । इस प्रकार उसे प्रत्यक्ष अनुभव हुआ । उसे लगा कि कृतिकार के लिए अनुभव से अनुभूति गहरी चीज़ है । यही कारण है कि हिरोशिमा में सब देखकर भी उसने तत्काल कुछ नहीं लिखा । फिर एक दिन उसने वहीं सड़क पर घूमते हुए देखा कि एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया है । उसकी समझ में आया कि विस्फोट के समय कोई व्यक्ति वहाँ खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियोधर्मी पदार्थ की किरणें उसमें रुद्ध हो गई होंगी और उन किरणों ने उसे भाप बनाकर उड़ा दिया होगा । इसी कारण पत्थर का वह छाया वाला अंश झुलसने से बन गया होगा । यह देखकर उसे लगा कि समूची ट्रेजडी ( दुःखद घटना ) जैसे पत्थर पर लिखी गई है ।
लेखक का आश्चर्य
उस छाया को देखकर लेखक को जैसे एक थप्पड़ – सा लगा । उसी क्षण अणु विस्फोट जैसे उसकी अनुभूति में आ गया और वह स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया । अचानक एक दिन उसने भारत आकर हिरोशिमा पर एक कविता लिखी । यह कविता अच्छी हैं या बुरी , इससे लेखक को मतलब नहीं है । उसके लिए तो वह अनुभूतिजन्य सत्य है , जिससे वह यह जान गया कि कोई रचनाकार रचना क्यों करता है ।
शब्दार्थ
आंतरिक – भीतरी / मानसिक
संक्षेप – कम
स्पर्श – छूना
आभ्यंतर – भीतर का / अंदरूनी
विवशता – मजबूरी / लाचारी
उन्मेष- प्रकाश / दीप्ति
निमित्त – कारण
आत्मानुशासन – स्वयं अपनाए गए नियम
यंत्र – मशीन
कदाचित् – शायद
रेडियम – धर्मी तत्त्व- अतिरिक्त ऊर्जा व विकिरण निर्गत करने वाले तत्त्व
भेदन – तोड़ना
परवर्ती – बाद में
तर्क संगति- तर्क परंपरा
अपव्यय – फिजूलखर्ची
व्यर्थ- बेकार
ज्वलंत – जलना
प्रत्यक्ष – साक्षात्
रुद्ध – बंद होना / फँसना
समूची – सारी
ट्रेजडी – दुःखद घटना
अवाक् – मौन / चुप्पी
सहसा – अचानक
क्षण – पल
भोक्ता – भोगने वाला
आकुलता – व्याकुलता / बेचैनी
प्रसूत – उत्पन्न