NCERT Class 9 Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह Poem Explanation

Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह Poem Explanation (एक फूल की चाह कविता की व्याख्या)

NCERT Class 9 Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह Poem Explanation (एक फूल की चाह कविता की व्याख्या), (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided step-by-step NCERT Poem Explanation for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 9 Sparsh Chapter 12 एक फूल की चाह Poem Explanation

 

भावार्थ

1. उद्वेलित कर अश्रु राशियाँ ,

हृदय चिताएँ धधकाकर ,

महा महामारी प्रचंड हो

फैल रही थी इधर – उधर ।

क्षीण – कंठ मृतवत्साओं का

करुण रुदन दुर्दात नितांत ,

भरे हुए था निज कृश रव में

हाहाकार अपार अशांत ।

शब्दार्थ-

उद्वेलित – भाव विह्वल

अश्रु राशियाँ – आँसुओं की झड़ी

हृदय चिताएँ – चिता के समान प्रतीत होने वाला दिल

धधकाकर – सुलगाकर

प्रचंड – तीव्र

क्षीण कंठ – दबी हुई आवाज़

करुण रुदन – दया पैदा करनेवाला रोना

दुर्दात – हृदयविदारक , जिसे दबाना या वश में करना कठिन हो

नितांत – बिलकुल

कृश रव – कम्जोर आवाज़

अपार – अत्यधिक

भावार्थ- कवि महामारी के प्रचंड प्रकोप का वर्णन करते हुए कहता है कि चारों ओर महामारी फैली हुई थी । उसके कारण पीड़ित लोगों की आँखों से आँसुओं की झड़ियाँ उमड़ आई थीं । उनके हृदय चिताओं की भाँति धधक उठे थे । सब लोग दुख के मारे बेचैन थे । अपने बच्चों को मरा हुआ देखकर माताओं के कंठ से अत्यंत कमजोर स्वर में करुण रुदन निकल रहा था । वातावरण बहुत हृदय विदारक था सब ओर अत्यधिक व्याकुल कर देनेवाला हाहाकार मचा हुआ था । माताएँ कमज़ोर स्वर में रुदन कर रही थीं ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. प्रस्तुत काव्यांश में महामारी के फैलने का वर्णन है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. इस काव्यांश में रूपक , अनुप्रास , मानवीकरण व पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है ।

– महामारी प्रचंड हो फैल रही थी इधर – उधर —- मानवीकरण

– हृदय – चिता —- रूपक

2. बहुत रोकता था सुखिया को ,

‘ न जा खेलने को बाहर ‘ ,

नहीं खेलना रुकता उसका

नहीं ठहरती वह पल भर ।

मेरा हृदय काँप उठता था ,

बाहर गई निहार उसे ;

यही मनाता था कि बचा लूँ

किसी भाँति इस बार उसे ।

शब्दार्थ –

पल भर – थोड़ी देर के लिए

हृदय काँपना – भयभीत होना

निहार- देखकर

भावार्थ- सुखिया का पिता कहता है कि मैं अपनी बेटी सुखिया को बाहर जाकर खेलने से मना करता था । मैं बार – बार कहता था- “ बेटी , बाहर खेलने मत जा , ” परंतु बार – बार मना करने के पश्चात भी उसका खेलना रुकता नहीं था । वह पल भर के लिए भी घर में नहीं रुकती थी । मैं उसकी इस चंचलता को देखकर भयभीत हो उठता था । मेरा दिल काँप उठता था । मैं मन में हमेशा यही कामना करता था कि किसी तरह अपनी बेटी सुखिया को महामारी की चपेट में आने से बचा लूँ ।

शिल्प- सौंदर्य –

1. इस काव्यांश में भयभीत पिता की भावनाओं का मार्मिक चित्रण हुआ है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. मनाना , हृदय काँपना आदि मुहावरों का प्रयोग कुशलतापूर्वक हुआ है ।

3. भीतर जो डर रहा छिपाए ,

हाय ! वही बाहर आया ।

एक दिवस सुखिया के तनु को

ताप तप्त मैंने पाया ।

ज्वर में विह्वल हो बोली वह ,

क्या जानूँ किस डर से डर ,

मुझको देवी के प्रसाद का

एक फूल ही दो लाकर ।

शब्दार्थ –

दिवस – दिन

तन – शरीर

ताप – तप्त – बुखार के कारण गर्म

विह्वल – दुखी

भावार्थ- सुखिया का पिता कहता है कि मेरे मन में यही डर था कि कही मेरी बेटी सुखिया इस महामारी का शिकार न हो जाए । मैं इसी से डर रहा था । वही डर आखिर सच हो गया । एक दिन मैंने देखा कि सुखिया का शरीर बीमारी के कारण जल रहा है । वह बुखार से पीड़ित होकर और न जाने किस अनजाने भय से भयभीत होकर मुझसे कहने लगी , “ पिता जी ! मुझे देवी के मंदिर के प्रसाद का एक फूल लाकर दो ”।

शिल्प – सौंदर्य –

1. इसमें सुखिया के महामारी की चपेट में आने पर मृत्यु के बोध होने का सजीव चित्रण हुआ है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक शैली है ।

8. कवि ने घटना का अत्यंत सरल शब्दों में वर्णन किया है ।

4. क्रमशः कंठ क्षीण हो आया ,

शिथिल हुए अवयव सारे ,

बैठा था नव – नव उपाय की

चिंता में मैं मनमारे ।

जान सका न प्रभात सजग से

हुई अलस कब दोपहरी ,

स्वर्ण – घनों में कब रवि डूबा ,

कब आई संध्या गहरी ।

शब्दार्थ-

क्रमश : – धीरे धीरे

क्षीण – कमज़ोर

शिथिल – ढीले

अवयव- अंग

प्रभात सजग – हलचल से भरी सुबह

अलस – आलस्य से भरी हुई

स्वर्ण घन – सुनहरे बादल

भावार्थ- सुखिया का पिता सुखिया की बीमारी का वर्णन करते हुए कहता है कि धीरे – धीरे महामारी का प्रभाव बढ़ने लगा । सुखिया का गला सूखने लगा । आवाज़ कमज़ोर पड़ गई । शरीर के सभी अंग ढीले पड़ने लगे । मैं चिंता में डूबा हुआ निराश मन से उसे ठीक करने के नए – नए उपाय सोचने लगा । इस चिंता में मैं इतना डूब गया कि मुझे पता ही नहीं चल सका कि कब प्रातः काल की हलचल समाप्त हुई और आलस्य भरी दोपहर आ गई , कब सूरज सुनहरे बादलों में डूब गया और कब गहरी संध्या हुई ?

शिल्प – सौंदर्य –

1. बीमार बेटी की चिंता में घुल रहे पिता की दयनीय मनोदशा का अत्यंत संजीव चित्रण किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. ‘ नव – नव ‘ में पुनरुक्ति प्रकाश तथा ‘ क्रमशः कंठ ‘ में अनुप्रास अलंकार , तथा स्वर्ण – घनों मे रूपक अलंकार है ।

5. सभी ओर दिखलाई दी बस ,

अंधकार की ही छाया ,

छोटी – सी बच्ची को ग्रसने

कितना बड़ा तिमिर आया !

ऊपर विस्तृत महाकाश में

जलते – से अंगारों से ,

झुलसी – सी जाती थी आँखें

जगमग जगते तारों से |

शब्दार्थ –

अंधकार – अँधेरा

ग्रसना – निगलना

तिमिर – अँधेरा

विस्तृत – चौड़ा

महाकाश – खुला आकाश

झुलसी – सी – जली सी

भावार्थ- सुखिया का पिता सुखिया की बीमारी के कारण हुई निराशा का वर्णन करता हुआ कहता है कि सुखिया की बीमारी के कारण मेरे मन में ऐसी घोर निराशा छा गई कि मुझे चारों ओर अँधेरे की ही छाया घिरी दिखाई देने लगी । मुझे लगा कि मेरी नन्हीं – सी बेटी को निगलने के लिए इतना बड़ा अँधेरा चला आ रहा है । जिस प्रकार खुले आकाश से जलते हुए अंगारों के समान तारे जगमगाते रहते हैं उसी भाँति सुखिया की आँखें ज्वर के कारण जल रही थीं । वह बेहद बीमार थी ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. सुखिया की असाध्य बीमारी का सजीव व कारुणिक चित्रण किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. ( i ) ‘ तिमिर ‘ का मानवीकरण किया गया है ।

( ii ) ‘ जलते से अंगारों ‘ और जगमग जगते तारों से ‘ में उपमा अलंकार है ।

6. देख रहा था जो सुस्थिर हो

नहीं बैठती थी क्षण – भर ,

हाय ! वही चुपचाप पड़ी थी

अटल शांति – सी धारण कर ।

सुनना वही चाहता था मैं

उसे स्वयं ही उकसाकर

मुझको देवी के प्रसाद का

एक फूल ही दो लाकर !

शब्दार्थ-

सुस्थिर – पूरी तरह ठहरी हुई

अटल – दृढ़

उकसाकर – प्रेरणा देकर

भावार्थ- सुखिया का पिता सुखिया की बीमारी के कारण हुई दुर्दशा का चित्रण करता हुआ कहता है कि मैं अपने सामने ही देख रहा था कि मेरी बेटी , जो पल भर के लिए भी टिककर नहीं बैठती थी , वही अब स्थिर शांति की मूर्ति बनी चुपचाप बिस्तर पर पड़ी थी । मैं अब उसे स्वयं ही बार – बार प्रेरित कर रहा था कि वह मुझे फिर से वही शब्द कहे- “ पिताजी ! मुझे देवी के प्रसाद का एक फूल लाकर दो । “

शिल्प – सौंदर्य –

1. इसमें पिता के दारुण दुख का अत्यंत मार्मिक वर्णन हुआ है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. ‘ अटल शांति सी ‘ में उपमा अलंकार है ।

7. ऊँचे शैल शिखर के ऊपर

मंदिर था विस्तीर्ण विशाल

स्वर्ण – कलश सरसिज विहसित थे

पाकर समुदित रवि – कर – जाल ।

दीप धूप से आमोदित था

मंदिर का आँगन सारा ;

गूँज रही थी भीतर – बाहर

मुखरित उत्सव की धारा ।

शब्दार्थ –

शैल – शिखर- पहाड़ की चोटी

विस्तीर्ण – फैला हुआ

स्वर्ण कलश सरसिज – कमल के समान सुंदर सोने के कलश

समुदित – अच्छी प्रकार खिला हुआ

रवि – कर – जाल – सूर्य की किरणों का समूह

मुखरित – प्रकट

भावार्थ- मंदिर की शोभा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि ऊँचे पर्वत की चोटी पर एक विस्तृत और विशाल मंदिर खड़ा था । उसके सोने के कलश सूर्य की किरणों से चमकते हुए ऐसे लग रहे थे जैसे सूर्य की खिली हुई किरणों का स्पर्श पाकर सुनहरे कमल खिल उठे हों । मंदिर का सारा आँगन धूप – दीप की सुगंध से भरा हुआ था अर्थात् महक रहा था । मंदिर के भीतर और बाहर मनाए जा रहे उत्सव की प्रसन्नता भरी आवाज़ गूँज रही थी ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. मंदिर की भव्यता का वर्णन किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. ( i ) मंदिर के सौंदर्य के अनुरूप भाषा भी सुंदर है ।

( ii ) ‘ स्वर्ण – कमल सरसिज ‘ में रूपक अलंकार है ।

( iii ) ‘ शैल – शिखर ‘ , विस्तीर्ण विशाल ‘ , भीतर – बाहर मुखरित , दीप – धूप में अनुप्रास अलंकार है ।

8. भक्त – वृंद मृदु – मधुर कंठ से

गाते थे सभक्ति मुद – मय

‘ पतित तारिणी पाप- हारिणी ,

माता , तेरी जय – जय – जय ! ‘

‘ पतित – तारिणी , तेरी जय – जय ’ –

मेरे मुख से भी निकला ,

बिना बढ़े ही मैं आगे को

जाने किस बल से ढिकला !

शब्दार्थ –

वृंद – समूह

मुद मय – प्रसन्नता सहित

पतित – तारिणी – पतितों का उद्धार करनेवाली

ढिकला – ठेला गया

भावार्थ- कवि कहते हैं कि वहाँ मंदिर में उपस्थित भक्तों का समूह पूर्ण भक्ति और प्रसन्नता के साथ कोमल और मधुर कंठ से गा रहा था- हे पापियों को तारनेवाली और सबके पापों को दूर करनेवाली माँ तेरी जय हो , जय हो । यह देखकर और सुनकर सुखिया के पिता के मुख से अनायास ही माँ की जय – जयकार निकल पड़ी और उसने कहा- हे पतित लोगों का उद्धार करनेवाली माँ ! तेरी जय हो , जय हो , जय हो । वह आगे बढ़ने का प्रयास किए बिना ही न मालूम किस अज्ञात शक्ति के ज़ोर से आगे जा पहुँचा अर्थात जान – बूझकर बढ़ने का प्रयास नहीं किया बल्कि लोगों की भीड़ के धक्के लगने से अपने आप ही आगे अर्थात अंदर जा पहुँचा ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. भक्तजन भक्ति के भाव में डूबकर और मंत्रमुग्ध होकर माँ का गुणगान कर रहे थे ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. ‘ मृदु – मधुर ‘ व ‘ मेरे मुख ‘ में अनुप्रास अलंकार है ।

9. मेरे दीप – फूल लेकर वे

अंबा को अर्पित करके

दिया पुजारी ने प्रसाद जब

आगे को अंजलि भरके ,

भूल गया उसका लेना झट ,

परम लाभ – सा पाकर मैं

सोचा – बेटी को माँ के ये

पुण्य – पुष्प दूँ जाकर मैं

शब्दार्थ-

अंबा- देवी माँ

अर्पित – भेंट चढ़ना

अंजलि – दोनों हाथों का संपुट

परम लाभ- परमात्मा की कृपा

भावार्थ – देवी माँ के प्रसाद का फूल लेने के लिए सुखिया का पिता मंदिर में जा पहुँचा । उस समय का वर्णन करते हुए पिता कहता है – मैंने दीप और फूल माँ के भेंट चढ़ाए । पूजा के फूल लेकर मैं प्रसन्न हो उठा । तभी पुजारी ने दोनों हाथों से मुझे माँ की पूजा का प्रसाद दिया । परंतु मैं फूल पाने की प्रसन्नता में उस प्रसाद को लेना भूल गया । मुझे तो वह फूल ही ईश्वर की कृपा जैसा लाभकारी लग रहा था । इसलिए मैंने यही सोचा कि जल्दी से घर जाकर अपनी बीमार बेटी को माँ की पूजा के ये फूल दूँ ताकि वह स्वस्थ हो जाए ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. मंदिर की पूजा विधि का सजीव चित्रण किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. कवि की वर्णन शैली सजीव , स्पष्ट व चित्रात्मक है ।

( i ) ‘ परम लाभ – सा ‘ में उपमा अलंकार है ।

( ii ) ‘ पुण्य पुष्प ‘ में अनुप्रास अलंकार है । ( पृष्ठ सं ० – 106 )

10. सिंह पौर तक भी आँगन से

नहीं पहुँचने मैं पाया ,

सहसा यह सुन पड़ा कि- ” कैसे

यह अछूत भीतर आया ?

पकड़ो देखो भाग न जावे ,

बना धूर्त यह है कैसा ;

साफ़ – स्वच्छ परिधान किए है

भले मानुषों के जैसा !

शब्दार्थ

सिंह पौर- मंदिर का मुख्य द्वार

सहसा – अचानक

धूर्त – छली

परिधान – वस्त्र

भावार्थ – सुखिया के पिता मंदिर में पूजा के फूल लेने गया तो भक्तों ने उसे अछूत कहकर पकड़ लिया । अभी वह मंदिर के आँगन से मुख्य द्वार तक भी नहीं पहुँच पाया था कि अचानक ही एक आवाज़ उसके कानों में सुनाई पड़ी – यह अछूत मंदिर में कैसे आया ? इसे पकड़ लो , देखो , कहीं भाग न जाए । यह धूर्त साफ़ – सुथरे वस्त्र पहनकर कैसा भले मनुष्यों जैसा बना हुआ है ।

शिल्प- सौंदर्य –

1. भक्तों द्वारा अछूतों का अपमान किए जाने का सजीव वर्णन हुआ ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. कवि की कथा शैली बहुत सशक्त , सजीव व रोचक है ।

11. पापी ने मंदिर में घुसकर

किया अनर्थ बड़ा भारी ;

कलुषित कर दी है मंदिर की

चिरकालिक शुचिता सारी । ”

ऐं , क्या मेरा कलुष बड़ा है

देवी की गरिमा से भी ;

किसी बात में हूँ मैं आगे

माता की महिमा के भी ?

शब्दार्थ-

अनर्थ – पाप

कलुषित – अपवित्र

चिरकालिक – लंबे समय से बनाई हुई

शुचिता – पवित्रता

भावार्थ- लोग कहते हैं कि इस पापी ने मंदिर में घुसकर इतने लंबे समय से बनी हुई मंदिर की पवित्रता को नष्ट कर दिया है । इसके प्रवेश से मंदिर अपवित्र हो गया है । मैंने मन में सोचा- ‘ अरे ! क्या मंदिर में आने से फैली अपवित्रता भगवती की गरिमा और पवित्रता से भी बड़ी है ? क्या मैं किसी बात में देवी के महत्त्व से भी बढ़कर हूँ जो मेरे द्वारा मंदिर अपवित्र हो गया है । ‘

शिल्प- सौंदर्य –

1. छुआछूत के विचार को निंदनीय बताया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

8. संवादों के कारण भी कथन प्रभावशाली बन पड़ा है ।

12. माँ के भक्त हुए तुम कैसे ,

करके यह विचार खोटा ?

माँ के सम्मुख ही माँ का तुम

गौरव करते हो छोटा !

कुछ न सुना भक्तों ने , झट से

मुझे घेरकर पकड़ लिया ;

मार मारकर मुक्के – घूंसे

धम से नीचे गिरा दिया !

शब्दार्थ-

सम्मुख – सामने

गौरव – महानता

भावार्थ – सुखिया का पिता भक्तों को कहता है कि क्या मेरा पाप तुम्हारी देवी की महानता से भी अधिक बढ़कर है ? क्या मेरे मैल में तुम्हारी देवी के गौरव को नष्ट करने की शक्ति है ? तुम ऐसा तुच्छ विचार करके भी स्वयं को माता का भक्त कैसे कह सकते हो ? ऐसा विचार प्रकट करके तो तुम माता के सामने ही माता का गौरव छोटा कर रहे हो । पर उस समय उन देवी के भक्तों ने मेरी कोई भी बात नहीं सुनी । उन्होंने मुझे पकड़ लिया । मुक्के और घूँसे मार – मारकर नीचे गिरा दिया ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. सुखिया के पिता के वचनों में प्रश्न से अधिक तिरस्कार है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

13. मेरे हाथों से प्रसाद भी

बिखर गया हा ! सबका सब ,

हाय ! अभागी बेटी तुझ तक

कैसे पहुँच सके यह अब ।

न्यायालय ले गए मुझे वे ,

सात दिवस का दंड विधान

मुझको हुआ ; हुआ था

मुझसे देवी का महान अपमान !

शब्दार्थ-

अभागी – भाग्यहीन

दिवस- दिन

दंड विधान – दंड की व्यवस्था

भावार्थ- सुखिया का पिता कहता है कि मेरे हाथ का ( पुजारी द्वारा दिया गया ) सारा – का – सारा प्रसाद वहीं बिखर गया । मैं अपने हाहाकार दुखी मन से सोचने लगा कि हाय ! मेरी अभागी बेटी , अब ऐसी स्थिति में देवी का यह प्रसाद तेरे पास तक कैसे पहुँचा पाऊँगा , क्योंकि वह तो बिखरकर उन देवी के भक्तों द्वारा कुचला जा चुका था । पिता का हृदय दुखी हुआ और पश्चाताप करने लगा कि हाय बेटी ! मैं तुझे अंतिम बार भी गोद में नहीं ले सका । न ही देवी के प्रसाद का एक फूल ही लाकर दे सका । कैसा अभागा पिता हूँ जो अपनी संतान की अंतिम इच्छा भी पूरी न कर सका । वे लोग मुझे न्यायालय ले गए । सात दिन की कारावास की सजा हुई क्योंकि मेरे द्वारा देवी का अपमान किया गया था ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. पिता की कारुणिक दशा और बेबसी का उल्लेख किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

14. मैंने स्वीकृत किया दंड वह

शीश झुकाकर चुप ही रह ;

उस असीम अभियोग , दोष का

क्या उत्तर देता , क्या कह ?

सात रोज़ ही रहा जेल में

या कि वहाँ सदियाँ बीतीं ,

अविश्रांत बरसा करके भी

आँखें तनिक नहीं रीतीं ।

शब्दार्थ-

स्वीकृत – स्वीकार किया हुआ

दंड – जुर्माना

असीम – बहुत अधिक

अभियोग – आरोप

अविश्रांत- बिना रुके हुए , लगातार

भावार्थ – सुखिया के पिता ने सिर झुकाकर इस दंड को स्वीकार कर लिया । उस पर जो आरोप लगाया गया था , वह उसका क्या उत्तर देता । वह अपनी रक्षा में क्या कहता ? उसे कुछ न सूझा । वह सात दिनों तक जेल में रहा । उसके लिए ये सात दिन सैकड़ों वर्षों के समान भारी थे । उसकी आँखों से निरंतर आँसू बहते रहे । उसकी वेदना कम नहीं हुई ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. इसमें एक अछूत व्यक्ति की विवशता , निराशा और दयनीय दशा का कारुणिक चित्रण हुआ है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

15. दंड भोगकर जब मैं छूटा ,

पैर न उठते थे घर को ;

पीछे ठेल रहा था कोई

भय – जर्जर तन पंजर को ।

पहले की – सी लेने मुझको

नहीं दौड़कर आई वह ;

उलझी हुई खेल में ही हा !

अबकी दी न दिखाई वह ।

शब्दार्थ –

ठेलना – धकेलना

भय – जर्जर – भय से पीड़ित

तन – शरीर

पंजर – हड्डियों का ढाँचा

भावार्थ – सुखिया का पिता आपबीती सुनाते हुए कहता है कि जब मैं सात दिनों का कारावास काटकर छूटा तो कदम घर की ओर नहीं उठ रहे थे । मन में अज्ञात आशंका ने घर कर लिया था कि अब बेटी जीवित नहीं रही । इसलिए ऐसा लगता था जैसे कोई मेरे भय से जर्जर अस्थि पंजर को पीछे की ओर धकेल रहा है ? मेरे पाँव घर की ओर नहीं पड़ रहे थे । पहले मेरी बेटी मुझे देखते ही मुझे लिवाने के लिए दौड़ी चली आती थी , किंतु आज ऐसा नहीं हुआ । लगता था कि जैसे वह किसी खेल में उलझी हुई हो । इसलिए इस बार वह मेरे पास दौड़ी नहीं आई ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. अछूत पिता की दयनीय दशा का चित्रण बहुत कारुणिक बन पड़ा है |

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

16. उसे देखने मरघट को ही

गया दौड़ता हुआ वहाँ ,

मेरे परिचित बंधु प्रथम ही

फूँक चुके थे उसे जहाँ ।

बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर

छाती धधक उठी मेरी ,

हाय ! फूल सी कोमल बच्ची

हुई राख की थी ढेरी !

शब्दार्थ –

मरघट – श्मशान

परिचित – जान पहचान के

बंधु – संबंधी

धधक उठी – जल उठी

भावार्थ- सुखिया के पिता को मंदिर में प्रवेश करने के अपराध में सात दिन की जेल हो गई । इसी बीच उसकी बेटी चल बसी । अतः जेल से छूटने के बाद वह अपनी बेटी को देखने के लिए श्मशान घाट पहुँचा । वह अधीर होकर दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा ताकि उसे अंतिम बार देख सके । परंतु उसके जानकार तथा संबंधी उसे पहले ही जला चुके थे । उसकी चिता बुझ चुकी थी । हाय ! उसकी फूल जैसी कोमल बच्ची राख की ढेरी बन चुकी थी । उसे देखकर सुखिया के पिता की छाती काँप उठी ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. अछूत कन्या के पिता की मार्मिक दशा का वर्णन किया गया है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

17. अंतिम बार गोद में बेटी ,

तुझको ले न सका मैं हा !

एक फूल माँ का प्रसाद भी

तुझको दे न सका मैं हा !

भावार्थ- सुखिया का पिता अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए अपनी मृत बालिका को संबोधित करता हुआ कहता है कि हे प्रिय बेटी सुखिया ! मैं तुझे अंतिम बार अपनी गोद में न ले सका । तुमने अंतिम समय में देवी माँ के मंदिर के प्रसाद का एक फूल मुझसे माँगा था । मैं अभागा वह नन्हा – सा फूल भी लाकर न दे सका । मैं सममुच अभागा पिता हूँ । अछूत होने के कारण मैं सचमुच अभागा इनसान हूँ ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. काव्यांश में एक वात्सल्यपूर्ण पिता की वेदना व्यक्त हुई है ।

2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।

3. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।

4. भावों को कथात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

5. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग द्रष्टव्य है ।

6. भाषा सरस , सरल व मर्मस्पर्शी है ।

7. भाषा शैली – भावात्मक , कथात्मक , संवादात्मक व उदाहरणात्मक है ।

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