NCERT Solutions For Class 11 Hindi Aroh Chapter 11 हम तौ एक एक करि जांनां संतों देखत जग बौराना

Class 11 Hindi Aroh Chapter 11 हम तौ एक एक करि जांनां संतों देखत जग बौराना

NCERT Solutions For Class 11 Hindi Aroh Chapter 11 हम तौ एक एक करि जांनां संतों देखत जग बौराना (हिंदी)परीक्षा में राज्य बोर्ड और सीबीएसई स्कूलों में से कुछ में एनसीईआरटी की किताबों के माध्यम से छात्रों को पढ़ाया जाता है । के रूप में अध्याय एक अंत शामिल है, वहां एक अभ्यास के लिए छात्रों को मूल्यांकन के लिए तैयार सहायता प्रदान की है ।छात्रों को उन अभ्यासों को बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट करने की जरूरत है क्योंकि बहुत पिछले उन लोगों से पूछा भीतर सवाल ।

कई बार, छात्रों के अभ्यास के भीतर अटक जाते है और सवालों के सभी स्पष्ट करने में सक्षम नहीं हैं । छात्रों को सभी प्रश्नों को हल करने और अपनी पढ़ाई को संदेह के साथ बनाए रखने में सहायता करने के लिए, हमने सभी कक्षाओं के लिए छात्रों के लिए स्टेप एनसीईआरटी सॉल्यूशंस द्वारा कदम प्रदान किए हैं। इन उत्तरों को इसी तरह छात्रों की सहायता और सवालों का सही जवाब देने के तरीके के रूप में ठीक से सचित्र समाधानों की सहायता से बेहतर अंक स्कोरिंग में छात्रों की मदद मिलेगी ।

NCERT Solutions For Class 11 Hindi Aroh Chapter 11 हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना

Class 11 Hindi Aroh Chapter 11 हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना

 

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

पद के साथ

प्रश्न. 1.
कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर:
कबीर ने ईश्वर को एक माना है। उन्होंने इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए हैं

  1. संसार में सब जगह एक पवन व एक ही जल है।
  2. सभी में एक ही ज्योति समाई है।
  3. एक ही मिट्टी से सभी बर्तन बने हैं।
  4. एक ही कुम्हार मिट्टी को सानता है।
  5. सभी प्राणियों में एक ही ईश्वर विद्यमान है, भले ही प्राणी का रूप कोई भी हो।

प्रश्न. 2.
मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है?
उत्तर:
मानव शरीर का निर्माण धरती, पानी, वायु, अग्नि व आकाश इन पाँच तत्वों से हुआ है। मृत्यु के बाद में तत्व अलग-अलग हो जाते हैं।

प्रश्न. 3.
जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।
सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई॥
इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?
उत्तर:
कबीरदास ईश्वर के स्वरूप के विषय में अपनी बात उदाहरण से पुष्ट करते हैं। वह कहते हैं कि जिस प्रकार बढ़ई लकड़ी को काट देता है, परंतु उस लकड़ी में समाई हुई अग्नि को नहीं काट पाता, उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में ईश्वर व्याप्त है। शरीर नष्ट होने पर आत्मा नष्ट नहीं होती। वह अमर है। आगे वह कहता है कि संसार में अनेक तरह के प्राणी हैं, परंतु सभी के हृदय में ईश्वर समाया हुआ है और वह एक ही है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि ईश्वर एक है। वह सर्वव्यापक तथा अजर-अमर है। वह सभी के हृदयों में आत्मा के रूप में व्याप्त है।

प्रश्न. 4.
कबीर ने अपने को दीवाना’ क्यों कहा है?
उत्तर:
‘दीवाना’ शब्द का अर्थ है-पागल। कबीर स्वयं के लिए इस शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि वे झूठे संसार से दूर प्रभु (परमात्मा) में लीन हैं, भक्ति में सराबोर हैं। उनकी यह स्थिति संसार के लोगों की समझ से परे है, अतः वे स्वयं के लिए इस शब्द का प्रयोग कर रहे हैं।

प्रश्न. 5.
कबीर ने ऐसा क्यों कहा है कि संसार बौरा गया है?
उत्तर:
कबीरदास कहते हैं कि यह संसार बौरा गया है, क्योंकि जो व्यक्ति सच बोलता है, उसे यह मारने को दौड़ता है। उसे सच पर विश्वास नहीं है। कबीरदास तीर्थ स्थान, तीर्थ यात्रा, टोपी पहनना, माला पहनना, तिलक, ध्यान आदि लगाना, मंत्र देना आदि तौर-तरीकों को गलत बताते हैं। वे राम-रहीम की श्रेष्ठता के नाम पर लड़ने वालों को गलत मानते हैं, क्योंकि कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। वह सहज भक्ति से प्राप्त हो सकता है। इन बातों को सुनकर समाज उनकी निंदा करता है तथा पाखडियों की झूठी बातों पर विश्वास करता है। अत: कबीर को लगता है कि संसार पागल हो गया है।

प्रश्न. 6.
कबीर ने नियम और धर्म का पालन करनेवाले लोगों की किन कमियों की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
कबीर के अनुसार स्वयं को नियम और धर्म का पालन करनेवाला माननेवाले लोग आत्मतत्व की सर्वव्यापकता को छोड़कर पत्थरों को पूजते हैं। वे आत्मा की आवाज़ को मारकर पत्थरों में ईश्वर को ढूंढ़ रहे हैं जो उनके भीतर ही विद्यमान है, उसे मारकर बेजान पत्थरों में परमात्मा को खोजना भारी भूल है।

प्रश्न. 7.
अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों की क्या गति होती है?
उत्तर:
अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिष्यों का उपकार नहीं होता अपितु ऐसे गुरु शिष्यों को गलत रास्ते दिखाते हैं। वे घर-घर मंत्र देते फिरते हैं तथा अभिमान में डूबे जाते हैं। अभिमान के कारण ये ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाते और दोनों का अंत बुरा होता है।

प्रश्न. 8.
बाह्याडंबरों की अपेक्षा स्वयं (आत्म) को पहचानने की बात किन पंक्तियों में कही गई है? उन्हें अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
पंक्तियाँ-‘आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।’
‘साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।’
कबीर ने उपर्युक्त पंक्तियों में स्वयं (आत्मा) को पहचानने की बात कही है। आत्मा हम सभी के भीतर सजग-सचेत अवस्था है। उसे मारकर बेजान पत्थरों में खोजने की बजाय स्वयं को पहचानना चाहिए। साखियाँ और सबद गाते हुए हमें उसको नहीं भुलाना चाहिए, जो चरम और परम तत्व हमारे भीतर है। सब प्रकार के आडंबरों का त्यागकर स्वयं को पहचानना ही उचित मार्ग है।

पद के आस-पास

प्रश्न. 1.
अन्य संत कवियों नानक, दादू और रैदास आदि के ईश्वर संबंधी विचारों का संग्रह करें और उन पर एक परिचर्चा करें।
उत्तर:
कबीर की भाँति नानक, दादू और रैदास भी निराकार ब्रह्म के उपासक थे। नानक सिक्खों के धर्म गुरु भी थे। अतः उनकी स्चनाएँ गुरुग्रंथ साहब में संकलित हैं। उनके विचार बिलकुल कबीर के समान ही थे –
एक नूर से सब जग उपज्या,
कुदरत दे सब बंदे। – नानक
इसी तरह दादू और रैदास भी ईश्वर को निराकार मानकर मन की शुद्धता पर बल देते हैं
प्रभुजी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग अंग बास समानी। – रैदास
रैदास मीरा के समकालीन कवि माने जाते हैं। वे भी ब्रह्म को निराकार मानकर मनुष्य से उसका संबंध अभिन्न मानते हैं।

प्रश्न. 2.
कबीर के पदों को शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत दोनों में लयबद्ध भी किया गया है; जैसे-कुमार गंधर्व, भारती बंधु और प्रहलाद सिंह टिपाणिया आदि द्वारा गाए गए पद। इनके कैसेट्स अपने पुस्तकालय के लिए मँगवाएँ और पाठ्यपुस्तक के पदों को भी लयबद्ध करने का प्रयास करें।
उत्तर:
पुस्तकालय के लिए उपर्युक्त कैसेट्स अध्यापक की मदद से मँगवाएँ । संगीत अध्यापक की सहायता से पदों को लयबद्ध किया जा सकता है।

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