NCERT Notes For Class 9 Geography Chapter 4 In Hindi जलवायु

Class 9 Geography Chapter 4 In Hindi जलवायु

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NCERT Notes For Class 9 Geography Chapter 4 In Hindi जलवायु

  • एक विशाल क्षेत्र में लंबे समयावधि ( 30 वर्ष अधिक ) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है ।
  • मौसम एक विशेष एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है ।
  • मौसम तथा जलवायु के तत्त्व , जैसे तापमान , वायुमंडलीय दाब , पवन , आर्द्रता तथा वर्षण एक ही होते हैं ।
  • भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है ।
  • एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यतः दक्षिण तथा दक्षिण – पूर्व में पाई जाती है ।

 

जलवायवी नियंत्रण

  • किसी भी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले प्रमुख कारक हैं- अक्षांश , तुंगता ( ऊँचाई ) , वायुदाब एवं पवन तंत्र , समुद्र से दूरी , महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण ।

अक्षांशों

  1. पृथ्वी की गोलाई के कारण इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग – अलग होती है ।
  2. इसके परिणामस्वरूप तापमान विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर सामान्यतः घटता जाता है ।

ऊँचाई

  1. जब कोई व्यक्ति पृथ्वी की सतह से ऊँचाई की ओर जाता है , तो वायुमंडल की सघनता कम हो जाती है तथा तापमान घट जाता है ।
  2. इसलिए पहाड़ियाँ गर्मी के मौसम में भी ठंडी होती हैं ।

वायु दाब एवं पवन तंत्र

  1. किसी भी क्षेत्र का वायु दाब एवं पवन तंत्र उस स्थान के अक्षांश तथा ऊँचाई पर निर्भर करती है ।
  2. इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षा के वितरण को प्रभावित करता है ।

समुद्र से दूरी

  1. समुद्र का जलवायु पर समकारी प्रभाव पड़ता है , जैसे – जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है यह प्रभाव कम होता जाता है एवं लोग विषम मौसमी अवस्थाओं को महसूस करते हैं ।
  2. इसे महाद्वीपीय अवस्था ( गर्मी में बहुत अधिक गर्म एवं सर्दी में बहुत अधिक ठंडा ) कहते हैं ।

महासागरीय धाराएँ

  1. महासागरीय धाराएँ समुद्र से तट की ओर चलने वाली हवाओं के साथ तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं ।
  2. उदाहरण के लिए , कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठंडी जलधाराएँ बहती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर हो , तब वह तट गर्म या ठंडा हो जाएगा ।

उच्चावच लक्षण

  1. किसी स्थान की जलवायु को निर्धारित करने में उच्चावच की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है ।
  2. ऊँचे पर्वत ठंडी अथवा गर्म वायु को अवरोधित करते हैं ।
  3. यदि उनकी ऊँचाई इतनी ही कि वे वर्षा लाने वाली वायु के रास्तों को रोकने में सक्षम होते हैं , तो ये उस क्षेत्र में वर्षा कारण भी बन सकते हैं ।
  4. पर्वतों के पवनविमुख ढाल पक्षाकृत सूखे रहते हैं ।

 

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

 

अक्षांश

  1. कर्क वृत्त देश के मध्य भाग , पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम से होकर गुजरती है ।
  2. देश का लगभग आधा भाग कर्क वृत्त के दक्षिण में स्थित है , जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र है ।
  3. भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ उपस्थित हैं ।

 

ऊँचाई

  1. ऊँचाई भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत है । इसकी औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है ।
  2. भारत का तटीय क्षेत्र भी विशाल है , जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है ।
  3. हिमालय मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करने से रोकता है ।

 

वायु दाब एवं पवन

भारत में जलवायु तथा संबंधित मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमंडलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं :

  • वायु दाब एवं धरातलीय पवनें
  • ऊपरी वायु परिसंचरण
  • पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात

 

वायु दाब एवं धरातलीय पवनें

निम्न दाब और उच्च दाब
  • शीत ऋतु में , हिमालय के उत्तर में उच्च दाब होता है ।
  • इस क्षेत्र की ठंडी शुष्क हवाएँ दक्षिण में निम्न दाब वाले महासागरीय क्षेत्र के ऊपर बहती हैं ।
  • ग्रीष्म ऋतु में , आंतरिक एशिया एवं उत्तर पूर्वी भारत के ऊपर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है ।
  • वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण – पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं ।
  • इन्हें दक्षिण – पश्चिम मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है ।
  • ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हैं , नमी ग्रहण करती हैं तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं ।
ऊपरी वायु परिसंचरण
  • इस प्रदेश में , ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है । इस प्रवाह का एक मुख्य घटक जेट धारा है ।
  • जेट धाराएँ लगभग 27 से 30 ° उत्तर अक्षांशों के बीच स्थित होती हैं , इसलिए इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ कहा जाता है ।
  • भारत में , ये जेट धाराएँ ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष हिमालय के दक्षिण में प्रवाहित होती हैं ।
  • एक पूर्वी जेट धारा जिसे उपोष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट धारा कहा जाता है गर्मी के महीनों में प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर लगभग 14 ° उत्तरी अक्षांश में प्रवाहित होती है ।
पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
  • पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं ।
  • गर्मियों में सूर्य की आभासी गति के साथ ही उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धारा हिमालय के उत्तर में चली जाती है ।

 

भारतीय मानसून

  • भारत की जलवायु मानसूनी पवनों से बहुत अधिक प्रभावित है ।
  • अरबवासी जो व्यापारियों की तरह भारत आए थे उन लोगों ने पवन तंत्र के इस मौसमी उत्क्रमण को मानसून का नाम दिया ।
  • मानसून का आगमन मानसून का प्रभाव उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 20 ° उत्तर एवं 20 दक्षिण के बीच रहता है ।

मानसून की प्रक्रिया को समझने के लिए निम्नलिखित तथ्य महत्त्वपूर्ण हैं

( अ ) स्थल तथा जल के गर्म एवं ठंडे होने की विभेदी प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है , जबकि इसके आस – पास के समुद्रों के ऊपर उच्च दाब का क्षेत्र बनता है ।

( ब ) ग्रीष्म ऋतु के दिनों में अंत : उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है ( यह विषुवतीय गर्त है , जो प्रायः विषुवत् वृत्त से 5 ° उत्तर में स्थित होता है । इसे मानसून ऋतु में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है । )

( स ) हिंद महासागर में मेडागास्कर के पूर्व लगभग 20 ° दक्षिण अक्षांश के ऊपर उच्च दाब वाला क्षेत्र होता है । इस उच्च दाब वाले क्षेत्र की स्थिति एवं तीव्रता भारतीय मानसून को प्रभावित करती है ।

( द ) ग्रीष्म ऋतु में तिब्बत का पठार बहुत अधिक गर्म हो जाता है , जिसके परिणामस्वरूप पठार के ऊपर समुद्र तल से लगभग 9 कि ० मी ० की ऊँचाई पर तीव्र ऊर्ध्वाधर वायु धाराओं एवं उच्च दाब का निर्माण होता है ।

(य ) ग्रीष्म ऋतु में हिमालय के उत्तर – पश्चिमी जेट धाराओं का तथा भारतीय प्रायद्वीप के ऊपर उष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट धाराओं का प्रभाव होता है ।

दक्षिणी दोलन

  • जब दक्षिण प्रशांत महासागर के उष्ण कटिबंधीय पूर्वी भाग में उच्च दाब होता है तब हिंद महासागर के उष्ण कटिबंधीय पूर्वी भाग में निम्न दाब होता है
  • कुछ विशेष वर्षो में वायु दाब की स्थिति विपरीत हो जाती है तथा पूर्वी प्रशांत महासागर के ऊपर हिंद महासागर की तुलना में निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है ।
  • दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है ।

 

मानसून का आगमन एवं वापसी

  • मानसून का समय जून के आरंभ से लेकर मध्य सितंबर तक 100 से 120 दिनों के बीच होता है ।
  • इसके आगमन के समय सामान्य वर्षा में अचानक वृद्धि हो जाती है तथा लगातार कई दिनों तक यह जारी रहती है ।
  • इसे मानसून प्रस्फोट ( फटना ) कहते हैं तथा इसे मानसून पूर्व बौछारों से पृथक किया जा सकता है ।

मानसून का आगमन

  • सामान्यतः जून के प्रथम सप्ताह में मानसून भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर से प्रवेश करता है ।
  • इसके बाद यह दो भागों में बँट जाता है अरब सागर शाखा एवं बंगाल की खाड़ी शाखा अरब सागर शाखा लगभग दस दिन बाद , 10 जून के आस – पास मुंबई पहुँचती है ।
  • बंगाल की खाड़ी शाखा भी तीव्रता से आगे की ओर बढ़ती है तथा जून के प्रथम सप्ताह में असम पहुँच जाती है ।
  • ऊँचे पर्वतों के कारण मानसून पवनें पश्चिम में गंगा के मैदान की मुड़ है ।
  • मध्य जून तक अरब सागर शाखा सौराष्ट्र , कच्छ एवं देश के मध्य भागों में पहुँच जाती है ।
  • अरब सागर शाखा एवं बंगाल की खाड़ी शाखा , दोनो गंगा के मैदान के उत्तर पश्चिम भाग में आपस में मिल जाती हैं ।
  • दिल्ली में सामान्यतः मानसूनी वर्षा बंगाल की खाड़ी शाखा से जून के अंतिम सप्ताह में ( लगभग 29 जून तक ) होती है ।
  • जुलाई के प्रथम सप्ताह तक मानसून पश्चिमी उत्तर प्रदेश , पंजाब , हरियाणा तथा पूर्वी राजस्थान में पहुँच जाता है ।
  • मध्य जुलाई तक मानसून हिमाचल प्रदेश एवं देश के शेष हिस्सों में पहुँच जाता है ।
  • मानसून की वापसी एक क्रमिक प्रक्रिया है जो भारत के उत्तर – पश्चिमी राज्यों से सितंबर में प्रारंभ हो जाती है ।
  • मध्य अक्तूबर तक मानसून प्रायद्वीप के उत्तरी भाग से पूरी तरह पीछे हट जाता है ।
  • प्रायद्वीप के दक्षिणी आधे भाग में वापसी की गति तीव्र होती है ।
  • दिसंबर के प्रारंभ तक देश के शेष भाग से मानसून की वापसी हो जाती है ।

 

ऋतुएँ

  • भारत में मुख्यतः चार ऋतुओं को पहचाना जा सकता है ।
  • ये हैं , शीत ऋतु . ग्रीष्म ऋतु , कुछ क्षेत्रीय विविधताओं के साथ मानसून के आगमन तथा वापसी का काल ।

 

शीत ऋतु

  • उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवंबर से आरंभ होकर फरवरी तक रहती है ।
  • भारत के उत्तरी भाग में दिसंबर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं ।
  • तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है ।
  • पूर्वी तट पर चेन्नई का औसत तापमान 24 ° सेल्सियस से 25 ° सेल्सियस के बीच होता है , जबकि उत्तरी मैदान में यह 10 ° सेल्सियस से 15 ° सेल्सियस के बीच होता है ।
  • दिन गर्म तथा रातें ठंडी होती हैं ।
  • उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय के उपरी ढालों पर हिमपात होता है ।
  • शीतकाल में वर्षा , जिसे स्थानीय तौर पर ‘ महावट ‘ कहा जाता है , की कुल मात्रा कम होती है , लेकिन ये रबी फसलों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है ।
  • प्रायद्वीपीय भागों में शीत ऋतु स्पष्ट नहीं होती है ।
  • समुद्री पवनों के प्रभाव के कारण शीत ऋतु में भी यहाँ तापमान के प्रारूप में न के बराबर परिवर्तन होता है ।

 

ग्रीष्म ऋतु

  • सूर्य के उत्तर की ओर आभासी गति के कारण भूमंडलीय ताप पट्टी उत्तर की तरफ खिसक जाती है ।
  • मार्च से मई तक भारत में ग्रीष्म ऋतु होती है ।
  • मार्च में दक्कन के पठार का उच्च तापमान लगभग 38 ° सेल्सियस होता है ।
  • अप्रैल में मध्य प्रदेश एवं गुजरात का तापमान लगभग 42 ° सेल्सियस होता है ।
  • मई में देश के उत्तर पश्चिमी भागों का तापमान समान्यतः 45 ° सेल्सियस होता है ।
  • प्रायद्वीपीय भारत में समुद्री प्रभाव के कारण तापमान कम होता है ।
  • मई के अंत में , उत्तर पश्चिम में थार के रेगिस्तान से लेकर पूर्व एवं दक्षिण – पूर्व में पटना तथा छोटा नागपुर पठार तक एक कम दाब का लंबवत क्षेत्र उत्पन्न होता है ।
  • लू . ग्रीष्मकाल का एक प्रभावी लक्षण है । ये धूल भरी गर्म एवं शुष्क पवनें होती हैं , जो कि दिन के समय भारत के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में चलती हैं ।
  • उत्तरी भारत में मई महीने के दौरान सामान्यत : धूल भरी आँधियाँ आती हैं ।
  • ये आँधियाँ अस्थायी रूप से आराम पहुँचाती हैं , क्योंकि ये तापमान को कम कर देती हैं तथा अपने साथ ठंडे समीर एवं हल्की वर्षा लाती हैं ।
  • इस मौसम में कभी – कभी तीव्र हवाओं के साथ गरज वाली मूसलाधार वर्षा भी होती हैं , इसके साथ प्रायः हिम वृष्टि भी होती है ।
  • वैशाख के महीने में होने के कारण पश्चिम बंगाल में इसे ‘ काल वैशाखी ‘ कहा जाता है ।
  • ग्रीष्म ऋतु के अंत में कर्नाटक एवं केरल में प्रायः पूर्व मानसूनी वर्षा होती है ।
  • इसके कारण आम जल्दी पक जाते हैं तथा प्रायः इसे ‘ आम्र वर्षा ‘ भी कहा जाता है ।

 

वर्षा ऋतु या मानसून का आगमन

  • जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है ।
  • ये दक्षिण – पूर्व व्यापारिक पवनें , दक्षिणी समुद्रों के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं ।
  • चूँकि , ये पवनें गर्म महासागरों के ऊपर से होकर गुजरती हैं , इसलिए ये अपने साथ इस महाद्वीप में बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती हैं ।
  • उत्तर – पूर्वी भाग को छोड़कर ये मानसूनी पवनें देश के शेष भाग में लगभग 1 महीने में पहुँच जाती हैं ।
  • दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश के कुछ भाग में भी वर्षा होती हैं , ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं ।
  • इस मौसम की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर – पूर्वी भागों में होती है ।
  • खासी पहाड़ी के दक्षिणी श्रृंखलाओं में स्थित मासिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है ।
  • गंगा की घाटी में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है ।
  • मानसून से संबंधित एक अन्य परिघटना है , ‘ वर्षा में विराम ‘ ।
  • दूसरे शब्दों में मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है ।
  • मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से संबंधित होते हैं ।
  • गर्त एवं इसका अक्ष उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता रहता है , जिसके कारण वर्षा का स्थानिक वितरण सुनिश्चित होता है ।
  • उष्ण कटिबंधीय निम्न दाब की तीव्रता एवं आवृत्ति भी मानसूनी वर्षा की मात्रा एवं समय को निर्धारित करती है ।
  • यह निम्न दाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनता है तथा मुख्य स्थलीय भाग को पार कर जाता है ।
  • मानसून को इसकी अनिश्चितता के लिए जाना जाता है ।
  • शुष्क एवं आर्द्र स्थितियों की तीव्रता , आवृत्ति एवं समय काल में भिन्नता होती है ।
  • इसके कारण यदि एक भाग में बाढ़ आती है तो दूसरे भाग में सूखा पड़ता है ।

 

मानसून की वापसी ( परिवर्तनीय मौसम )

  • अक्तूबर – नवंबर के दौरान दक्षिण की तरफ सूर्य के आभासी गति के कारण मानसून गर्त या निम्न दाब वाला गर्त , उत्तरी मैदानों के ऊपर शिथिल हो जाता है ।
  • धीरे – धीरे उच्च दाब प्रणाली इसका स्थान ले लेती है ।
  • दक्षिण – पश्चिम मानसून शिथिल हो जाते हैं तथा धीरे – धीरे पीछे की ओर हटने लगते हैं ।
  • अक्तूबर के प्रारंभ में मानसून पवनें उत्तर के मैदान से हट जाती हैं ।
  • अक्तूबर एवं नवंबर का महीना , गर्म वर्षा ऋतु से शीत ऋतु में परिवर्तन का काल होता है ।
  • मानसून की वापसी होने से आसमान साफ एवं तापमान में वृद्धि हो जाती है ।
  • दिन का तापमान उच्च होता है , जबकि रातें ठंडी एवं सुहावनी होती हैं ।
  • उच्च तापमान एवं आर्द्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम असा हो जाता है ।
  • इसे सामान्यतः ‘ क्वार की उमस ‘ के नाम से जाना जाता है । अक्तूबर के उत्तरार्द्ध में , विशेषकर उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है ।
  • चक्रवात सामान्यतः भारत के पूर्वी तट को पार करते हैं , जिनके कारण व्यापक एवं भारी वर्षा होती है ।
  • गोदावरी , कृष्णा एवं कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं ।
  • ये चक्रवात उड़ीसा , पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं ।
  • कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती हैं ।

 

वर्षा का वितरण

  • पश्चिमी तट के भागों एवं उत्तर पूर्वी भारत में लगभग 400 सें.मी. वार्षिक वर्षा होती है किंतु ।
  • पश्चिमी राजस्थान एवं इससे सटे पंजाब , हरियाणा एवं गुजरात के भागों में 60 सें ० मी ० से भी कम वर्षा होती है ।
  • दक्षिणी पठार के आंतरिक भागों एवं सहयाद्री के पूर्व में भी वर्षा की मात्रा समान रूप से कम होती है ।
  • जम्मू – कश्मीर के लेह में भी वर्षण की मात्रा काफी कम होती है ।
  • देश के शेष हिस्से में वर्षा की मात्रा मध्यम रहती है ।
  • हिमपात हिमालयी क्षेत्रों तक ही सीमित होता है ।
  • मानसून की प्रकृति के परिणामस्वरूप एक वर्ष से दूसरे वर्ष होने वाले वार्षिक वर्षा की मात्रा में भिन्नता होती है ।
  • वर्षा की विषमता निम्न वर्षा वाले क्षेत्र जैसे राजस्थान , गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाटों के वृष्टि छाया प्रदेशों में अधिक पाई जाती है ।

 

मानसून – एकता का परिचायक

  • हिमालय अत्यंत ठंडी पवनों से भारतीय उपमहाद्वीप की रक्षा करता है ।
  • इसी प्रकार प्रायद्वीपीय पठार में तीनों ओर से समुद्रों के प्रभाव के कारण न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी ।
  • भारतीय प्रायद्वीप पर मानसून की एकता का प्रभाव बहुत ही स्पष्ट है ।
  • पवन की दिशाओं का ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन तथा उनसे संबंधित ऋतु की दशाएँ ऋतु चक्रों को एक लय प्रदान करती हैं ।
  • वर्षा की अनिश्चितताएँ तथा उसका असमान वितरण मानसून का एक विशिष्ट लक्षण है ।
  • संपूर्ण भारतीय भूदृश्य , इसके जीव तथा वनस्पति , इसका कृषि चक्र , मानव जीवन तथा उनके त्यौहार- उत्सव , सभी इस मानसूनी लय के चारों ओर घूम रहे हैं ।
  • उत्तर दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक संपूर्ण भारतवासी प्रति वर्ष के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं ।
  • ये मानसूनी मानसू पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती हैं एवं संपूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधती हैं ।

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