NCERT Notes For Class 9 Economics Chapter 2 In Hindi संसाधन के रूप में लोग

Class 9 Economics Chapter 2 In Hindi संसाधन के रूप में लोग

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NCERT Notes For Class 9 Economics Chapter 2 In Hindi संसाधन के रूप में लोग

 

अवलोकन

‘ संसाधन के रूप में लोग ‘ अध्याय जनसंख्या की अर्थव्यवस्था पर दायित्व से अधिक परिसंपत्ति के रूप में , व्याख्या करने का प्रयास है ।

परिचय

  • संसाधन के रूप में लोग ‘ वर्तमान उत्पादन कौशल और क्षमताओं के संदर्भ में किसी देश के कार्यरत लोगों का वर्णन करने का एक तरीका है ।
  • उत्पादक पहलू की दृष्टि से जनसंख्या पर विचार करना सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में उनके योगदान की क्षमता पर बल देता है ।
  • दूसरे संसाधनों की भाँति ही जनसंख्या भी एक संसाधन है- एक मानव संसाधन ‘ ।
  • मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा और विकसित किया जाता है , तब हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं , जो भौतिक पूँजी निर्माण की ही भाँति देश की उत्पादक शक्ति में वृद्धि करता है ।
  • मानव पूँजी में निवेश ( शिक्षा , प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवा के द्वारा ) भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करता है ।
  • मानव पूँजी अन्य संसाधनों जैसे भूमि और भौतिक पूँजी से श्रेष्ठ है , क्योंकि मानव संसाधन भूमि और पूँजी का उपयोग कर सकता है । भूमि और पूँजी अपने आप उपयोगी नहीं हो सकते ।

मानव संसाधन पर जापान का निवेश

  1. जापान जैसे देशों ने मानव संसाधन पर निवेश किया है ।
  2. उनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं था । यह विकसित धनी देश है । वे अपने देश के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों का आयात करते हैं ।
  3. उन्होंने लोगों में विशेष रूप शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश किया ।
  4. उन लोगों ने भूमि और पूँजी जैसे अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग किया है ।
  5. इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की उसी से ये देश धनी / विकसित बने ।

 

पुरुषों और महिलाओं के आर्थिक क्रियाकलाप

  1. विभिन्न क्रियाकलापों को तीन प्रमुख क्षेत्रको प्राथमिक , द्वितीयक और तृतीयक में वर्गीकृत किया गया है ।
  2. प्राथमिक क्षेत्रक के अंतर्गत कृषि वानिकी , पशुपालन , मत्स्यपालन , मुर्गीपालन और खनन एवं उत्खनन शामिल हैं ।
  3. द्वितीयक क्षेत्रक में विनिर्माण शामिल है ।
  4. तृतीयक क्षेत्रक में व्यापार , परिवहन , संचार , बैंकिंग , बीमा , शिक्षा , स्वास्थ्य , पर्यटन सेवाएँ इत्यादि शामिल किए जाते हैं ।
    • इस क्षेत्रक में क्रियाकलाप के फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है ।
  5. ये क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं ।
  6. आर्थिक क्रियाओं के दो भाग होते हैं- बाज़ार क्रियाएँ और गैर – बाज़ार क्रियाएँ ।
    • बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है ।
    • इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु या सेवाओं का उत्पादन शामिल है ।
    • गैर – बाज़ार कियाओं से अभिप्राय स्व – उपभोग के लिए उत्पादन है । इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है ।

महिलाओं और पुरुषों के बीच श्रम का विभाजन

  • आमतौर पर महिलाएँ घर के काम – काज देखती हैं और पुरुष खेतों में काम करते हैं ।
  • परिवार के लिए दी गई सेवाओं के बदले महिलाओं को भुगतान नहीं किया जाता उनकी सेवाओं को राष्ट्रीय आय में नहीं जोड़ा जाता ।
  • उनके पुरुष सहयोगी की ही तरह उनकी आय , उनकी शिक्षा और कौशल के आधार पर निर्धारित की जाती है ।
  • शिक्षा व्यक्ति के उपलब्ध आर्थिक अवसरों के बेहतर उपयोग में सहायता करती है ।
  • शिक्षा और कौशल बाजार में किसी व्यक्ति की आय के प्रमुख निर्धारक हैं ।

अधिकांश महिलाओं के पास बहुत कम शिक्षा और निम्न कौशल स्तर हैं ।

  • पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम पारिश्रमिक दिया जाता है ।
  • अधिकतर महिलाएँ वहाँ काम करती हैं , जहाँ नौकरी की सुरक्षा नहीं होती तथा कानूनी सुरक्षा का अभाव है ।
  • अनियमित रोजगार और निम्न आय इस क्षेत्रक की विशेषताएँ हैं ।
  • इस क्षेत्रक में प्रसूति अवकाश , शिशु देखभाल और अन्य सामाजिक सुरक्षा तंत्र जैसी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं होतीं ।
  • उच्च शिक्षा और उच्च कौशल वाली महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन मिलता है ।
  • संगठित क्षेत्रक में शिक्षण और चिकित्सा उन्हें सबसे अधिक आकर्षित करते हैं ।

 

जनसंख्या की गुणवत्ता

जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता दर जीवन प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है ।

 

शिक्षा

विकास के लिए शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण आगत था ।

समाज के विकास में भी शिक्षा का योगदान है ।

यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है और प्रशासन की कार्य क्षमता बढ़ाती है ।

शिक्षा पर राज्य का जीडीपी योगदान

  • शिक्षा पर योजना परिव्यय पहली पंचवर्षीय योजना के 151 करोड़ रुपये से बढ़ कर ग्यारवीं पंचवर्षीय योजना में 3766.90 करोड़ रुपये हो गया है ।
  • सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में शिक्षा पर व्यय 1951-52 के 0.64 प्रतिशत से बढ़कर 2015-16 में 3 प्रतिशत ( बजटीय अनुमान ) हो गया है ।
  • केंद्रीय एवं राज्य सरकार के दस्तावेज ( भारतीय रिजर्व बैंक ) के द्वारा यह बजटीय अनुमान 2017-18 में घटकर 2.7 प्रतिशत बताया गया है ।

साक्षरता दर

  1. साक्षरता दर 1951 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2011 में 74 प्रतिशत हो गई है ।
  2. महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में साक्षरता दर करीब 16.6 प्रतिशत अधिक है और ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा नगरीय क्षेत्रों में साक्षरता दर करीब 16 प्रतिशत अधिक है ।
  3. वर्ष 2011 केरल के कुछ जिलों में साक्षरता दर 94 प्रतिशत है जबकि बिहार में 62 प्रतिशत ही है ।
    • वर्ष 2015-16 प्राथमिक स्कूल प्रणाली भारत के 8.41 लाख से भी अधिक गाँवों में फैली है ।
    • दुर्भाग्यवश , स्कूल शिक्षा के इस विस्तार को शिक्षा के निम्न स्तर और पढ़ाई बीच में छोड़ने की उच्च दर ने कमज़ोर कर दिया है ।

सर्वशिक्षा अभियान

  1. 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सर्वशिक्षा अभियान एक महत्त्वपूर्ण कदम है ।
  2. राज्यों , स्थानीय सरकारों और प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय की सहभागिता के साथ केंद्रीय सरकार की यह एक समयबद्ध पहल है ।
  3. प्राथमिक शिक्षा में नामांकन बढ़ाने के लिए ‘ सेतु – पाठ्यक्रम ‘ और ‘ स्कूल लौटो शिविर ‘ प्रारंभ किए गए हैं ।
  4. कक्षा में बच्चों की उपस्थिति को बढ़ावा देने , बच्चों के धारण और उनकी पोषण स्थिति में सुधार के लिए दोपहर के भोजन की योजना कार्यान्वित की जा रही है ।

 

स्वास्थ्य

  1. जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी भी देश की प्राथमिकता होती है ।
  2. हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं , परिवार कल्याण और पौष्टिक सेवा तक इनकी पहुँच को बेहतर बनाना है ।
  3. पिछले पाँच दशकों में भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रकों में प्राथमिक , द्वितीयक तथा तृतीयक सेवाओं के लिए अपेक्षित एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारिक संरचना और जनशक्ति का निर्माण किया है ।

मेडिकल कॉलेज

भारत में ऐसे अनेक स्थान हैं जिनमें ये मौलिक सुविधाएँ भी भारत में कुल 381 मेडिकल कॉलेज और 301 डिन्टल कालेज हैं केवल चार राज्य जैसे आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु में कुल राज्यों से अधिक मेडिकल हैं ।

 

बेरोज़गारी

  • बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है , जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सकें ।
  • श्रम बल जनसंख्या में वे लोग शामिल किए जाते हैं , जिनकी उम्र 15 वर्ष से 59 वर्ष के बीच है ।

भारत के संदर्भ में ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में बेरोज़गारी है ।

ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी और प्रच्छन्न बेरोज़गारी है ।

नगरीय क्षेत्रों में अधिकांशतः शिक्षित बेरोज़गारी है ।

मौसमी बेरोज़गारी

  • मौसमी बेरोज़गारी तब होती है , जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं ।
  • कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं ।
  • वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बुआई कटाई , निराई और गहाई होती है ।
  • कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता ।

प्रच्छन्न बेरोजगारी

  • प्रच्छन्न बेरोजगारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं
  • ऐसा प्राय : कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है ।
  • किसी काम में पाँच लोगों की आवश्यकता होती है , लेकिन उसमें आठ लोग लगे होते हैं ।
    • इनमें तीन लोग अतिरिक्त हैं । ये तीनों इसी खेत पर काम करते है जिस पर पाँच लोग काम करते है ।
  • इन तीनों द्वारा किया गया अंशदान पाँच लोगों द्वारा किए गए योगदान में कोई बढ़ोतरी नहीं करता ।
    • अगर तीन लोगों को हटा दिया जाए तो खेत की उत्पादकता में कोई कमी नहीं आएगी ।
  • खेत में पाँच लोगों के काम की आवश्यकता है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से बेरोज़गार होते हैं ।

शिक्षित बेरोज़गारी

  • शहरी क्षेत्रों के मामले में शिक्षित बेरोज़गारी एक सामान्य परिघटना बन गई है ।
  • मैट्रिक , स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रीधारी अनेक युवक रोज़गार पाने में असमर्थ हैं ।
  • एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की तुलना में स्नातक और स्नातकोत्तर युवकों में बेरोज़गारी अधिक तेज़ी से बढ़ी है ।
  • एक ओर तकनीकी अर्हता प्राप्त लोगों के बीच बेरोज़गारी है , तो दूसरी ओर आर्थिक संवृद्धि के लिए आवश्यक तकनीकी कौशल की कमी भी है ।

अर्थव्यवस्था और समाज पर बेरोजगारी का प्रभाव

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है ।
  2. युवकों में निराशा और हताशा की भावना होती है ।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है ।
  4. कार्यरत जनसंख्या पर बेरोजगारों की निर्भरता बढ़ती है ।
    • किसी व्यक्ति और साथ ही साथ समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।
    • जब किसी परिवार को मात्र जीवन निर्वाह स्तर पर रहना पड़ता है , तो उसके स्वास्थ्य स्तर में एक आम गिरावट आती है और स्कूल प्रणाली से अलगाव में वृद्धि होती है ।
  5. बेरोज़गारी में वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था का सूचक है ।
  6. यह संसाधनों की बर्बादी भी करता है , जिन्हें उपयोगी ढंग से नियोजित किया जा सकता था ।
    • अगर लोगों को संसाधन के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सका , तो वे स्वाभाविक रूप से अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व बन जाएँगे ।

उपरोक्त तीनों क्षेत्रकों में रोजगार ।

  • कृषि का सबसे अधिक अवशोषण करने वाला अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक कृषि है ।
  • चर्चित प्रच्छन्न बेरोज़गारी के कारण , कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता में कुछ कमी आई है ।
  • कृषि अधिशेष श्रम का कुछ भाग द्वितीयक या तृतीयक क्षेत्रक में चला गया है ।
  • द्वितीयक क्षेत्रक में छोटे पैमाने पर होने वाले विनिर्माण में श्रम का सबसे अधिक अभिशोषण है ।
  • तृतीयक क्षेत्रक में जैव प्रौद्योगिकी , सूचना प्रौद्योगिकी आदि सरीखी विभिन्न नयी सेवाएँ सामने आ रही हैं ।

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