NCERT Notes For Class 11 History Chapter 11 In Hindi आधुनिकीकरण के रास्ते

NCERT Notes For Class 11 History Chapter 11 In Hindi आधुनिकीकरण के रास्ते, (History) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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आधुनिकीकरण के रास्ते

आधुनिकीकरण के विभिन्न रास्ते हैं। यह विषय एक आकर्षक कहानी बताता है कि कैसे विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों ने जापान और चीन को स्वतंत्र और आधुनिक राष्ट्रों के निर्माण के लिए अलग-अलग रास्तों पर ले गया ।

स्रोत

शासकों ने अभिलेखों, सरकारी इतिहास , विद्वत्तापूर्ण लेखन , लोकप्रिय साहित्य और धार्मिक परचे

परिचय

चीन

  • चीन विशालकाय महाद्वीपीय देश है जिसमें कई तरह की जलवायु वाले क्षेत्र हैं
  • 3 प्रमुख नदियाँ हैं : पीली नदी ( हुआग हे ) , यांग्त्सी नदी और पल नदी
  • देश का बहुत सा हिस्सा पहाड़ी है ।
  • हान सबसे प्रमुख जातीय राष्ट्रीयताएँ हैं , जैसे कि उइघुर , हुई, मांचू और तिब्बती ।
  • कैंटनीज़ कैंटन ( गुआंगज़ाओ ) की बोली – उए और शंघाईनीज़ ( शंघाई की बोली – वू ) जैसी बोलियों के अलावा कई अल्पसंख्यक भाषाएँ भी बोली जाती हैं ।
  • चीनी खानों में क्षेत्रीय विविधता की झलक मिलती है ,चावल और गेहूँ , पेस्ट्री , डिम सम

जापान

  • जापान एक द्वीप श्रृंखला है
  • जिसमें चार सबसे बड़े द्वीप हैं हॉशू ( Honshu ) , क्यूशू ( Kyushu ) , शिकोकू ( Shikoku ) और होकाइदो ( Hokkaido ) ।
  • मुख्य द्वीपों की 50 प्रतिशत से अधिक ज़मीन पहाड़ी है ।
  • जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में है ।
  • इन भौगोलिक परिस्थितियों ने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है ।
  • चावल बुनियादी फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत ,सूशी दुनिया भर में बहुत लोकप्रिय हो गई है

जापान

राजनीतिक व्यवस्था

  • बारहवीं सदी आते – आते जापान पर क्योतो में रहनेवाले सम्राट का शासन हुआ करता था , लेकिन असली सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई जो सैद्धांतिक रूप से राजा के नाम पर शासन करते थे ।
  • देश 250 भागों में विभाजित था जिनका शासन दम्यां चलाते थे ।
  • शोगुन दैम्यो को लंबे अरसे के लिए राजधानी एदो ( आधुनिक तोक्यों ) में रहने का आदेश देते थे ताकि उनकी तरफ से कोई खतरा न रहे ।
  • सामुराई ( योद्धा वर्ग ) शासन करनेवाले कुलीन थे और वे शोगुन तथा दैम्यो की सेवा में थे ।
  • 16 वीं शताब्दी के अंतिम भाग में तीन परिवर्तनों ने आगे के विकास की तैयारी की ।
  • पहला , किसानों से हथियार ले लिए गए , और अब केवल सामुराई तलवार रख सकते थे । इससे शान्ति और व्यवस्था बनी रही जबकि पिछली शताब्दी में इस वजह से अक्सर लड़ाइयाँ होती रहती थीं ।
  • दूसरा , दम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए और उन्हें काफ़ी हद तक स्वायत्तता प्रदान की गई ।
  • तीसरा , मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए ज़मीन का सर्वेक्षण किया गया तथा उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया ।
  • जापान में एदो दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला शहर बन गया ।
  • इसके अलावा ओसाका और क्योतो अन्य बड़े शहरों के रूप में उभरे ।
  • वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त और ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं ।
  • सामाजिक और बौद्धिक बदलावों – मिसाल के लिए प्राचीन जापानी साहित्य के अध्ययन ने लोगों को यह सवाल उठाने पर मजबूर किया कि जापान पर चीन का प्रभाव किस हद तक है

मेजी पुनर्स्थापना

  • 1853 में अमरीका ने कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापानी सरकार से एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करने की मांग के साथ भेजा जिसमें जापान ने अमरीका के साथ राजनयिक और व्यापारिक संबंध बनाए ।
  • पेरी के आगमन ने जापानी राजनीति पर महत्त्वपूर्ण असर डाला ।
  • 1868 में एक आंदोलन द्वारा शोगुन को जबरदस्ती सत्ता से हटा दिया गया और सम्राट मेजी को एदो ले आया गया ।
  • जापानी लोग यह जानते कि कुछ यूरोपीय देश भारत व अन्य जगहों पर औपनिवेशिक साम्राज्य बना रहे हैं
  • बहुत से विद्वान और नेता यूरोप के नए विचारों से सीखना चाहते थे बजाए उनकी उपेक्षा करने के , जैसा कि चीन ने किया था ।
  • कुछ अन्य लोग यूरोपीय लोगों को ग़ैर मानते हुए अपने से दूर रखना चाहते थे हालाँकि वे उनकी नयी तकनीकों को अपनाने के लिए तैयार थे ।
  • सरकार ने फुकांकु क्योहे ( समृद्ध देश , मज़बूत सेना ) के नारे के साथ नयी नीति का ऐलान किया । उन्होंने यह समझ लिया कि उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था का विकास और मज़बूत सेना का निर्माण करने की ज़रूरत है , अन्यथा उन्हें भी भारत की तरह पराधीनता का सामना करना पड़ सकता है ।
  • नयी सरकार ने ‘ सम्राट व्यवस्था के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया
  • ( सम्राट व्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था जिसमें सम्राट , नौकरशाही और सेना इकट्ठे सत्ता चलाते थे और नौकरशाही व सेना सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे । )
  • सम्राट को सीधे – सीधे सूर्य देवी का वंशज माना गया , लेकिन साथ ही उसे पश्चिमीकरण का नेता भी बनाया गया सम्राट का जन्मदिन राष्ट्रीय छुट्टी का दिन बन गया , वह पश्चिमी अंदाज़ के सैनिक कपड़े पहनने लगा

मेजी सुधार

शैक्षिक सुधार

  • 1870 के दशक से नयी विद्यालय व्यवस्था का निर्माण शुरू हुआ । लड़के और लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य हो गया
  • 1910 तक तकरीबन ऐसी स्थिति आ गई कि जाने से कोई वंचित नहीं रहा ।
  • शुरू में पाठ्यचर्या पश्चिमी पर आधारित थी लेकिन आधुनिक विचारों पर ज़ोर देने के साथ – साथ राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर बल दिया जाने लगा ।
  • शिक्षा मंत्रालय पाठ्यचर्या पर किताबों के चयन और शिक्षकों के प्रशिक्षण पर नियंत्रण रखता था ।
  • नैतिक संस्कृति विषय पढ़ना ज़रूरी था और किताबों में माता पिता के प्रति आदर , राष्ट्र के प्रति वफ़ादारी और अच्छे नागरिक बनने की प्रेरणा दी जाती थी ।

प्रशासनिक सुधार

  • राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँवों और क्षेत्रीय सीमाओं को बदल कर नया प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया ।
  • प्रशासनिक इकाई में पर्याप्त राजस्व ज़रूरी था जिससे स्थानीय स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाएँ जारी रखी जा सकें ।
  • ये इकाइयाँ सेना के लिए भर्ती केंद्रों के काम आ सकें ।
  • 20 साल से अधिक उम्र के नौजवानों के लिए कुछ अरसे सेना में काम करना अनिवार्य हो गया ।
  • एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया ।

संवैधानिक सुधार

  • कानून व्यवस्था बनाई गई जो राजनीतिक गुटों के गठन को देख सके , बैठकें बुलाने पर नियंत्रण रख सके , और सख्त सेंसर व्यव बना सके ।
  • इन तमाम उपायों में सरकार को विरोध का सामना करना पड़ा ।

आर्थिक सुधार

अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण

  • मेजी सुधारों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण हिस्सा अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण था ।
  • इसके लिए कृषि पर कर लगाकर धन इकट्ठा किया गया ।
  • जापान की पहली रेल लाइन 1870-72 में तोक्यो और योकोहामा बंदरगाह के बीच बिछाई गई
  • वस्त्र उद्योग के लिए मशीनें यूरोप से आयात की गईं ।
  • मज़दूरों के प्रशिक्षण के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया , साथ ही उन्हें जापानी विश्वविद्यालयों और स्कूलों में पढ़ाने के लिए भेजा गया ।
  • जापानी विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए विदेश भी भेजा गया ।
  • 1872 में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारंभ हुआ ।
  • मित्सुबिशी ( Mitsubishi ) और सुमितोमो ( Sumitomo ) जैसी कम्पनियों को सब्सिडी और करों में फायदे के ज़रिये प्रमुख जहाज़ निर्माता बनने में मदद मिली
  • ज्ञायवात्सु ( Zaibatsu ) ( बड़ी व्यापारिक संस्थाएँ जिन पर विशिष्ट परिवारों था ) का प्रभुत्व दूसरे विश्व युद्ध के बाद तक अर्थव्यवस्था पर बना रहा ।
  • 1872 में जनसंख्या 3.5 करोड़ थी जो 1920 में 5.5 करोड़ हो गई ।
  • जनसंख्या के दबाव कम करने के लिए सरकार ने प्रवास को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया
  • पहले उत्तरी टापू होकाइदो की ओर , जो काफी हद तक स्वतंत्र इलाका था और जहाँ आगनू कहे जानेवाले देसी लोग रहते थे ; फिर हवाई और ब्राज़ील और जापान के बढ़ते हुए औपनिवेशिक साम्राज्य की तरफ
  • उद्योग के विकास के साथ लोग शहरों में आये ।

औद्योगिक मजदूर

  • औद्योगिक मज़दूरों की संख्या 1870 में 7,00,000 से बढ़कर 1913 में 40 लाख पहुँच गईं ।
  • अधिकतर मज़दूर ऐसी इकाइयों में काम करते थे जिनमें मशीनों और विद्युत ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं होता था ।
  • आधुनिक कारखानों में काम करने वालों में आधे से ज्यादा महिलाएँ थीं ।
  • 1886 में पहली आधुनिक हड़ताल का आयोजन महिलाओं ने किया
  • 1930 के दशक में पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक हुई ।
  • कारखानों में मज़दूरों की संख्या भी बढ़ने लगी 100 से ज्यादा मज़दूर वाले कारखानों की संख्या 1909 में 1000 थी ।
  • उद्योग के तेज़ और अनियंत्रित विकास और लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ ।
  • तनाको शोज़ो ( Tanaka Shozo ) ने 1897 में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ पहला आंदोलन छेड़ा , 800 गाँववासी जन विरोध में इकट्ठे हुए

आक्रामक राष्ट्रवाद

  • मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था और उसने डायट बनाई जिसके अधिकार सीमित थे ।
  • शाही पुनःस्थापना करनेवाले नेता सत्ता में बने रहे और उन्होंने राजनीतिक पार्टियों का गठन किया ।
  • इसके बाद उन्होंने पार्टियों का भेद भुला कर बनाई गई राष्ट्रीय एकता मंत्रिपरिषदों के हाथों अपनी सत्ता खो दी ।
  • सम्राट सैन्यबलों का कमांडर था और 1890 से ये माना जाने लगा कि थलसेना और नौसेना का नियंत्रण स्वतंत्र है ।
  • 1899 में प्रधानमंत्री ने आदेश दिए कि केवल सेवारत जनरल और एडमिरल ही मंत्री बन सकते हैं ।
  • सेना को मज़बूत बनाने की मुहिम और जापान के उपनिवेश देशों की वृद्धि इस डर से जुड़े हुए थे कि जापान पश्चिमी शक्तियों की दया पर निर्भर है ।

‘ पश्चिमीकरण ‘ और ‘ परंपरा ‘

  • जापान के अन्य देशों के साथ संबंधों पर जापानी बुद्धिजीवियों की आनुक्रमिक पीढ़ियों के विचार अलग – अलग थे ।
  • फुकुज़ावा यूकिची ( Pukuzawa Yukichi ) मेजी काल के प्रमुख बुद्धिजीवियों में से थे । उनका कहना था कि जापान को अपने में से एशिया को निकाल फेंकना ‘ चाहिए । यानि जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़ देने चाहिए और पश्चिम का हिस्सा बन जाना चाहिए ।
  • अगली पीढ़ी ने पश्चिमी विचारों को पूरी तरह से स्वीकार करने पर सवाल उठाये और कहा कि राष्ट्रीय गर्व देसी मूल्यों पर निर्मित होना चाहिए । दर्शनशास्त्री मियाके सेत्सुरे ( Miyake Setsurel 1860-1945 ) ने तर्क पेश किया कि विश्व सभ्यता के हित में हर राष्ट्र को अपने खास हुनर का विकास करना चाहिए । ” अपने को अपने देश के लिए समर्पित करना अपने को विश्व को समर्पित करना है ” इसकी तुलना में बहुत से बुद्धिजीवी पश्चिमी उदारवाद की तरफ़ आकर्षित थे और वे चाहते थे कि जापान अपना आधार सेना की बजाय लोकतंत्र पर बनाए । संवैध ानिक सरकार की माँग करने वाले जनवादी अधिकारों के आंदोलन के नेता उएकी एमोरी ( Ueka Emori . 1857-1892 ) फ्रांसीसी क्रांति में मानवों के प्राकृतिक अधिकार और जन प्रभुसत्ता के सिद्धांतों के प्रशंसक थे । वे उदारवादी शिक्षा के पक्ष में थे जो प्रत्येक व्यक्ति को विकसित कर सके : ‘ व्यवस्था से ज्यादा कीमती चीज़ है , आज़ादी । कुछ दूसरे लोगों ने तो महिलाओं के मताधिकार की भी सिफ़ारिश की । इस दबाव ने सरकार को संविधान की घोषणा करने पर बाध्य किया +

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रोज़मर्रा की ज़िंदगी जापान का एक आधुनिक समाज में रूपांतरण रोज़ाना की जिंदगी में आए बदलावों में भी देखा जा सकता है । पैतृक परिवार व्यवस्था में कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियंत्रण में रहती थीं । लेकिन जैसे – जैसे लोग समृद्ध हुए , परिवार के बारे में नए विचार फैलने लगे । नया घर ( जिसे जापानी अंग्रेज़ी शब्द का इस्तेमाल करते हुए होमु कहते हैं ) का संबंध मूल परिवार से था , जहाँ पति – पत्नी साथ रह कर कमाते और घर बसाते थे । पारिवारिक जीवन की इस नयी समझ ने नए तरह के घरेलू उत्पादों , नए क़िस्म के पारिवारिक मनोरंजन और नए प्रकार के घर की माँग पैदा की । 1920 के दशक में निर्माण कम्पनियों ने शुरू में 200 येन देने के बाद लगातार 10 साल के लिए 12 यह एक ऐसे येन माहवार की किश्तों पर लोगों को सस्ते मकान मुहैया कराये समय में जब एक बैंक कर्मचारी ( उच्च शिक्षाप्राप्त व्यक्ति ) की तनख्वाह 40 ” येन प्रतिमाह थी । कार क्लब NCE reputat मोगा : ‘ आधुनिक लड़की ‘ के लिए संक्षिप्त शब्द । यह 20 वीं शताब्दी में लिंग बराबरी विश्वजनीन ( कॉस्मोपॉलिटन ) संस्कृति और विकसित अर्थव्यवस्था के विचारों के एक साथ आने का सूचक है । नए मध्यम वर्ग परिवारों ने आवागमन और मनोरंजन के नए तरीकों का लुत्फ उठाया । शहरों में बिजली की ट्रामों के साथ परिवहन बेहतर हुआ 1878 से जनता के लिए बाग बनाये गए और बड़ी दुकानें डिपार्टमेंट स्टोर बनने लगीं । तोक्यों में गिन्ता गिनबुरा के लिए एक फैशनेबुल इलाक़ा बन गया । गिनबुरा शब्द गिन्ना और बुरबुरा मिला कर बनाया गया है बुरबुरा का अर्थ है ‘ बिना किसी लक्ष्य के घूमना 1925 में पहला रेडियो स्टेशन खुला अभिनेत्री मात्सुई , सुमाको , इब्सन के नाटक एक गुड़िया का घर ( A Doll’s House ) में नोरा का बेहतरीन किरदार निभा कर राष्ट्रीय स्तर की तारिका बन गई 1899 में फ़िल्में बनने लगी और जल्द ही दर्जन भर कंपनियाँ सैकड़ों की तादाद में फ़िल्में बनाने लगीं । यह दौर ओज से भरा हुआ था और इस दौरान सामाजिक और राजनीतिक व्यवहार के पारंपरिक मानकों पर सवाल उठाये गए । बिजली से चलने वाली नवीन घरेलू वस्तुएँ : चावल पकाने वाला कुकर अमरीकी भूनकांव मछली भूनने वाला ) , सेंकने वाला टोस्टर औरतों का कार क्लब

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आधुनिकता पर विजय सत्ता केंद्रित राष्ट्रवाद को 1930-40 के दौरान बढ़ावा मिला जब जापान ने चीन और एशिया में अपने उपनिवेश बढ़ाने के लिए लड़ाइयाँ छेड़ीं । ये लड़ाइयाँ दूसरे विश्व युद्ध में जाकर मिल गईं जब जापान ने अमरीका के पर्ल हार्बर पर हमला किया । इस दौर में सामाजिक नियंत्रण में वृद्धि हुई असहमति प्रकट करने वालों पर जुल्म ढाये गए और उन्हें जेल भेजा गया । देशभक्तों की ऐसी संस्थाएँ बनीं जो युद्ध का समर्थन करती थीं । इनमें महिलाओं के कई संगठन थे । 1943 में एक संगोष्ठी हुई आधुनिकता पर विजय ‘ । इसमें जापान के सामने जो दुविधा थी उस पर चर्चा हुई , यानि आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर कैसे विजय पाई जाए । संगीतकार मोरोइ साबुरो ने सवाल उठाया कि संगीत को ऐंद्रिक उद्दीपन की कला वापस लाकर आत्मा की कला के रूप में उसका पुनर्वास कैसे कराया जाए । वे पश्चिमी संगीत को नकार नहीं रहे थे । वे ऐसी राह खोज रहे थे जहाँ जापानी संगीत को पश्चिमी वाद्यों पर बजाए या दुहराए जाने से आगे ले जाया जा सके । दर्शनशास्त्री निशितानी केजी ने आधुनिक ‘ को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित किया : पुनर्जागरण प्रोटेस्टेंट सुधार और प्राकृतिक विज्ञानों का विकास । उन्होंने कहा कि जापान की ‘ नैतिक ऊर्जा ‘ ( यह शब्द जर्मन दर्शनशास्त्री रांके से लिया गया है ) ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया और जापान का फ़र्ज़ बनता है एक नयी विश्व पद्धति , एक विशाल पूर्वी एशिया के निर्माण का । इसके लिए एक नयी सोच की ज़रूरत है जो विज्ञान और जोड़ सके । धर्म को हार के बाद एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में वापसी जापान की औपनिवेशिक साम्राज्य की कोशिशें संयुक्त बलों के हाथों हारकर खत्म हो गईं । यह तर्क दिया गया है कि युद्ध जल्दी खत्म करने के लिए हिरोशिमा और नागासाकी पर नाभिकीय बम गिराये गये । लेकिन अन्य लोगों का मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर जो विध्वंस और दुख – दर्द का तांडव हुआ , वह पूरी तरह से अनावश्यक था । अमरीकी नेतृत्व वाले कब्ज़े ( 1945-47 ) के दौरान जापान का विसैन्यीकरण कर दिया गया और एक नया संविधान लागू हुआ । इसके अनुच्छेद 9 के तथाकथित युद्ध न करने के वाक्यांश के अनुसार युद्ध का राष्ट्रीय नीति के साधन के रूप में इस्तेमाल वर्जित है । कृषि सुधार , व्यापारिक संगठनों का पुनर्गठन और जापानी अर्थव्यवस्था में ज़ायबात्सु यानि बड़ी एकाधिकार कंपनियों की पकड़ को खत्म करने की भी कोशिश की गई । राजनीतिक पार्टियों को पुनर्जीवित किया गया और जंग के बाद पहले चुनाव 1946 में हुए । इसमें पहली बार महिलाओं ने भी मतदान किया । m अपनी भयंकर हार के बावजूद जापानी अर्थव्यवस्था का जिस तेज़ी से पुनर्निर्माण हुआ , उसे एक युद्धोत्तर ‘ चमत्कार ‘ कहा गया है । लेकिन यह चमत्कार से कहीं अधिक था और इसकी जड़े जापान के लंबे इतिहास में निहित थीं । संविधान को औपचारिक स्तर पर गणतांत्रिक रूप इसी समय दिया गया । लेकिन जापान में जनवादी आंदोलन और राजनीतिक भागेदारी का आधार बढ़ाने में बौद्धिक सक्रियता की ऐतिहासिक परंपरा रही है । युद्ध से पहले के काल की सामाजिक संबद्धता को गणतांत्रिक रूपरेखा के बीच सुदृढ़ किया गया । इसके चलते सरकार , नौकरशाही और उद्योग के बीच एक करीबी रिश्ता कायम हुआ । अमरीकी समर्थन और साथ ही कोरिया और

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1964 में तोक्यो में हुए ओलंपिक खेल जापानी अर्थव्यवस्था की परिपक्वता के प्रतीक बनकर सामने आये । इसी तरह तेज़ गति वाली शिंकासेन यानि बुलेट ट्रेन का जाल भी 1964 में शुरू हुआ । इस पर रेलगाड़ियाँ 200 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलती थीं ( अब वे 300 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं ) । यह भी जापानियों की सक्षमता दर्शाती हैं कि वे नयी प्रौद्योगिकी के ज़रिये बेहतर और सस्ते उत्पाद बाज़ार में उतार सके । 1960 के दशक में नागरिक समाज आंदोलन का विकास हुआ । बढ़ते औद्योगीकरण की वजह से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को ished पूरी तरह से नज़र अंदाज़ करने का विरोध किया गया । अरगजी ( Cadnium ) का ज़हर , जिसके चलते बड़ी ही कष्टप्रद बीमारी होती थी , एक आरंभिक सूचक था । इसके बाद 1960 के दशक में मिनामाता में पारे के जहर के फैलने और 1970 के दशक के उत्तरार्ध में हवा में प्रदूषण से भी समस्याएँ जन्मीं जमीनी स्तरों पर दबाव बनाने वाले गुटों ने इन समस्याओं को पहचानने और साथ ही हताहतों के लिए मुआवजा देने की मांग की । सरकारी कार्रवाई और नए कानूनों से स्थिति बेहतर हुई । 1980 के दशक मध्य से पर्यावरण संबंधी विषयों में लोगों की दिलचस्पी घटी है क्योंकि 1990 तक आते – आते जापान में विश्व के कुछ तोक्यो – द्वितीय विश्व युद्ध के कठोरतम पर्यावरण नियंत्रण अमल में लाए गए । आज एक विकसित देश के रूप में यह अग्रगामी पहले और बाद में । विश्व – शक्ति की अपनी हैसियत को बनाए रखने के लिए अपनी राजनीतिक और प्रौद्योगिकीय क्षमताओं का इस्तेमाल करने की चुनौतियों का सामना कर रहा है । चीन चीन का आधुनिक इतिहास संप्रभुता की पुनर्प्राप्ति , विदेशी कब्ज़े के अपमान का अंत और समानता तथा विकास को संभव करने के सवालों के चारों ओर घूमता है । चीनी बहसों में तीन समूहों के नज़रिए झलकते हैं । कांग योवेल ( 1858-1927 ) या लियांग किचाउ ( 1873-1929 ) जैसे आरंभिक सुधारकों ने पश्चिम की चुनौतियों का सामना करने के लिए पारंपरिक विचारों को नये और अलग तरीके से इस्तेमाल करने की कोशिश की । दूसरे गणतंत्र के पहले राष्ट्राध्यक्ष सन यात – सेन जैसे गणतांत्रिक क्रांतिकारी जापान और पश्चिम के विचारों से प्रभावित थे तीसरे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी युगों – युगों की असमानताओं को खत्म करना और विदेशियों को खदेड़ देना चाहती थी । आधुनिक चीन की शुरुआत सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में पश्चिम के साथ उसका पहला सामना होने के समय से मानी जा सकती है , जबकि जेसुइट मिशनरियों ने खगोलविद्या और गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को वहाँ पहुँचाया । इसका तात्कालिक असर तो सीमित था , पर इसने उन चीज़ों की शुरुआत कर दी , जिन्होंने उन्नीसवीं सदी में जाकर तेज़ गति पकड़ी , जब ब्रिटेन ने अफ़ीम के फ़ायदेमंद व्यापार को बढ़ाने के लिए सैन्य बलों का इस्तेमाल किया । इसी के चलते

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? पहला अफ़ीम युद्ध ( 1839-1942 ) हुआ । इसने सत्ताधारी क्विंग राजवंश को कमज़ोर किया और सुधार तथा बदलाव की मांगों को मज़बूती दी । Subhed अफीम का व्यापार चीनी उत्पादों जैसे चाय , रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तनों की माँग ने व्यापार में असंतुलन की भारी समस्या खड़ी कर दी । पश्चिमी उत्पादों को चीन में बाज़ार नहीं मिला जिसकी वजह से भुगतान चाँदी में करना पड़ता था । ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक विकल्प ढूँदा यह हिंदुस्तान के कई हिस्सों में बहुत आराम से उगती थी । चीन में अफीम बेचने के ज़रिये वे चाँदी कमाकर केंटन में उधार पत्रों के बदले कंपनी के प्रतिनिधियों को देने लगे । अफ़ीम । इस तरह कंपनी उस चाँदी का इस्तेमाल ब्रिटेन के लिए चाय , रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तन खरीदने के लिए करती थी । ब्रिटेन , भारत और चीन के बीच यह उत्पादों का ‘ त्रिकोणीय व्यापार ‘ था । to कांग यूवेई ( Kang Youwei ) और लियांग किचाउ ( Liang gichao ) जैसे क्विंग सुधारकों ने व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की ज़रूरत महसूस की और एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था , नयी सेना और शिक्षा व्यवस्था के निर्माण के लिए नीतियाँ बनाईं । साथ ही , संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए स्थानीय विधायिकाओं का भी गठन किया । उन्होंने चीन को उपनिवेशीकरण से बचाने की ज़रूरत भी महसूस की । उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों ने चीनी विचारकों पर ज़बर्दस्त प्रभाव डाला । 18 वीं सदी में पोलैंड का बँटवारा सर्वाधिक बहुचर्चित उदाहरण था । यहाँ तक कि 1890 के दशक में पोलैंड शब्द का इस्तेमाल क्रिया के रूप में किया जाने लगा बोलान वू का मतलब था , ‘ हमें पोलेंड करने के लिए भारत का उदाहरण भी सामने था । विचारक लियांग किचाउ का मानना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की जागरूकता लाकर ही चीन पश्चिम का विरोध कर पाएगा । 1903 में उन्होंने लिखा कि भारत एक ऐसा देश है , जो किसी और देश नहीं , बल्कि एक कंपनी के हाथों बर्बाद हो गया ईस्ट इंडिया कंपनी के । वे ब्रितानिया की ताबेदारी करने और

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अपने लोगों के साथ क्रूर होने के लिए हिंदुस्तानियों की आलोचना करते थे । उनके तर्कों ने आम आदमी को खासा आकर्षित किया , क्योंकि चीनी देखते थे कि ब्रितानिया चीन के साथ युद्ध में भारतीय जवानों का इस्तेमाल करता है । इन सबसे अधिक कइयों ने यह महसूस किया कि परंपरागत सोच को बदलने की ज़रूरत है । कन्फयूशियसवाद चीन में प्रमुख विचारधारा रही है । यह विचारधारा कन्फ्यूशियस ( 551-479 ई.पू. ) और उनके अनुयायियों की शिक्षा से विकसित की गई । इसका दायरा अच्छे व्यवहार , व्यावहारिक समझदारी और उचित सामाजिक संबंधों के सिद्धांतों का था । इसने चीनियों के जीवन के प्रति रवैये को प्रभावित किया , सामाजिक मानक दिये और चीनी राजनीतिक सोच और संगठनों को आधार दिया । लोगों को नये विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को जापान , ब्रिटेन और फ्रांस में पढ़ने भेजा गया ताकि वे नये विचार सीख कर वापस आएँ 1890 के दशक में बड़ी तादाद में चीनी विद्यार्थी पढ़ने के लिए जापान गए । वे न केवल नये विचार वापस लेकर आए बल्कि गणतंत्र की स्थापना करने में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई । चूंकि चीनी और जापानी भाषा एक ही चित्रलिपि का इस्तेमाल करती हैं , चीन ने जापान से न्याय , अधिकार और कांति के यूरोपीय विचारों के जापानी अनुवाद लिए यह एक तरह से पारंपरिक संबंधों का उलट जाना था । 1905 में रूसी – जापानी युद्ध ( एक ऐसा युद्ध जो चीन की ज़मीन पर और चीनी इलाके पर प्रभुत्व के लिए लड़ा गया था ) के बाद सदियों पुरानी चीनी परीक्षा प्रणाली समाप्त कर दी को अभिजात सत्ताधारी वर्ग में दाखिला दिलाने का काम करती थी । गई , जो प्रत्याशियों No punished परीक्षा प्रणाली ) अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश ( 1850 तक लगभग 11 लाख ) ज़्यादातर इम्तिहान के ज़रिये ही होता था । इसमें 8 भाग वाला निबंध निर्धारित प्रपत्र में ( पा – कू वेन ) शास्त्रीय चीनी में लिखना होता था । यह परीक्षा विभिन्न स्तरों पर हर 3 साल में 2 बार आयोजित की जाती थी । पहले स्तर की परीक्षा में केवल 1-2 प्रतिशत लोग 24 साल की उम्र तक पास हो पाते थे और वे ( सुंदर प्रतिभा ) बन जाते थे । इस डिग्री से उन्हें निचले कुलीन वर्ग में प्रवेश मिल जाता था । 1850 से पहले किसी भी समय 526869 सिविल और 212,330 सैन्य प्रांतीय ( शेंग हुआन ) डिग्री वाले लोग पूरे देश में मौजूद थे । देश में केवल 27,000 राजकीय पद थे , इसलिए कई निचले दर्जे के डिग्रीधारकों के पास नौकरी नहीं होती थी । यह इम्तहान विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में बाधक का काम करता था , क्योंकि इसमें सिर्फ़ साहित्यिक कौशल की माँग होती थी । चूंकि यह क्लासिक चीनी सीखने के हुनर पर ही आधारित था , जिसकी आधुनिक विश्व में कोई प्रासंगिकता नज़र नहीं आती थी , इसलिए 1905 में इस प्रणाली को खत्म कर दिया गया । *** गणतंत्र की स्थापना 1911 में मांचू साम्राज्य समाप्त कर दिया गया और सन यात सेन ( 1866-1925 ) के नेतृत्व में गणतंत्र की स्थापना की गई । वे निर्विवाद रूप से आधुनिक चीन के संस्थापक माने जाते हैं । वे एक गरीब परिवार से थे और उन्होंने मिशन स्कूलों में शिक्षा ग्रहण की जहाँ उनका परिचय लोकतंत्र और ईसाई धर्म से हुआ । उन्होंने डाक्टरी की पढ़ाई की लेकिन वे चीन के भविष्य को

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लेकर चिंतित थे । उनका कार्यक्रम तीन सिद्धांत ( सन मिन चुई ) के नाम से मशहूर है । ये तीन सिद्धांत हैं : राष्ट्रवाद इसका अर्थ था मांचू वंश जिसे विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था को सत्ता से हटाना , साथ ही अन्य साम्राज्यवादियों को हटाना ( गणतंत्र या गणतांत्रिक सरकार की स्थापना करना ) और समाजवाद , जो पूँजी का नियमन करे और भूस्वामित्व में बराबरी लाए । – सामाजिक और राजनीतिक हालात डाँवाडोल बने रहे । 4 मई 1919 में बीजिंग में युद्धोत्तर शांति सम्मेलन के निर्णय के विरोध में एक धुआँधार प्रदर्शन हुआ । हालांकि चीन ब्रितानिया के नेतृत्व में हुई जीत में विजयी देशों का सहयोगी था , पर उससे हथिया लिए गए उसके इलाके वापस नहीं मिले थे । यह विरोध आंदोलन में तब्दील हो गया । इसने एक पूरी पीढ़ी को परंपरा पर हमला करने के लिए प्रेरित किया और चीन को आधुनिक विज्ञान , लोकतंत्र और राष्ट्रवाद के ज़रिये बचाने की माँग की गई । क्रांतिकारियों ने देश के संसाधनों पर कब्ज़ा जमाए विदेशियों को भगाने , असमानताएँ हटाने और गरीबी कम करने का नारा दिया । उन्होंने लेखन में एक ही भाषा का इस्तेमाल , पैरों को बाँधने की प्रथा और औरतों की अधीनस्थता के खात्मे , शादी में बराबरी और गरीबी खत्म करने के लिए आर्थिक विकास जैसे सुधारों की वकालत की । गणतांत्रिक क्रांति के बाद देश में उथल – पुथल का एक दौर शुरू हुआ । कुओमीनतांग ( नेशनल पीपुल्स पार्टी ) और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी मुल्क को एकताबद्ध करने और स्थिरता लाने के लिए संघर्षरत दो महत्त्वपूर्ण ताक़तों के रूप में उभरी । सन यात – सेन के विचार कुओमीनतांग के राजनीतिक दर्शन का आधार बने । उन्होंने कपड़ा , खाना , घर और परिवहन इन ‘ चार बड़ी ज़रूरतों ‘ को रेखांकित किया । सन यात सेन की मृत्यु के बाद चियांग काइशेक ( Chiang Kaishek , 1887-1975 ) कुओमीनतांग के नेता बनकर उभरे और उन्होंने सैन्य अभियान के ज़रिये वारलाइंस को ( स्थानीय नेता जिन्होंने सत्ता छीन ली थी ) अपने नियंत्रण में किया और साम्यवादियों को खत्म कर डाला । उन्होंने सेक्युलर और विवेकपूर्ण ‘ इहलौकिक ‘ कन्फूशियसवाद की हिमायत की , लेकिन साथ ही राष्ट्र का सैन्यकरण करने की भी कोशिश की । उन्होंने कहा कि लोगों को एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत ‘ का विकास करना चाहिए । उन्होंने महिलाओं को चार सद्गुण पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया : सतीत्व , रूप – रंग , वाणी और काम और उनकी भूमिका को घरेलू स्तर पर ही देखने पर जोर दिया । यहाँ तक कि उनके कपड़ों की किनारियों की लंबाई भी प्रस्तावित की । कुओमीनतांग का सामाजिक आधार शहरी इलाकों में था । औद्योगिक विकास धीमा और गिने चुने क्षेत्रों में था । शंघाई जैसे शहरों में 1919 में औद्योगिक मज़दूर वर्ग उभर रहा था और इनकी संख्या 500,000 थी । लेकिन इनमें से केवल कुछ प्रतिशत मज़दूर ही जहाज निर्माण जैसे आधुनिक उद्योगों में काम कर रहे थे । ज्यादातर लोग ‘ नगण्य शहरी ‘ ( शियाओ शिमिन ) , व्यापारी और दुकानदार होते थे । शहरी मज़दूरों , खासतौर से महिलाओं को बहुत कम वेतन मिलता था । काम करने के घंटे बहुत लंबे थे और काम करने की परिस्थितियाँ बहुत खराब । जैसे – जैसे व्यक्तिवाद बढ़ा , महिलाओं के अधिकार , परिवार बनाने के तरीके और प्यार मुहब्बत की चर्चा इन सब विषयों को लेकर सरोकार बढ़ते गए । सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव में स्कूल और विश्वविद्यालयों के फैलने से मदद मिली । पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना 1902 में हुई । पत्रकारिता फली फूली जो कि इस नयी सोच के प्रति आकर्षण का आईना थी । शाओ तोआफ़ेन ( Zao Taofen , 1895-1944 ) द्वारा संपादित लोकप्रिय लाइफ़ वीकली इस नयी विचारधारा की प्रतिनिधि थी । इसने अपने पाठकों को नए

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विचारों से , साथ ही गांधी और तुर्की के आधुनिकतापसंद नेता कमाल अतातुर्क ( Kemal Ataturk ) जैसे नेताओं से अवगत करवाया । इसका वितरण 1926 में केवल 2000 प्रतियों से बढ़कर 1933 में 200,000 हो गया । : 1935 का शंघाई शंघाई में एक काला अमरीकन तुरेहीवादक , बक क्लेटन ( Buck ( Clayton ) , अपने जैज़ और कैस्ट्रा के साथ विशेषाधिकारप्राप्त प्रवासी की जिंदगी जी रहे थे । लेकिन वह काला था और एक बार कुछ गोरे अमरीकियों ने उसे तथा उसके बाद्यमंडली के सदस्यों के साथ मारपीट करके उन्हें उनके गायन – वादन वाले होटल से बाहर निकाल दिया । सो , अमरीकी होने के बावजूद खुद नस्ली भेदभाव का शिकार होने के कारण चीनियों के दुख – दर्द के साथ उनकी बहुत सहानुभूति थी । गोरे अमरीकियों के साथ हुई अपनी लड़ाई , जिसमें वे जीत गए , के बारे में वह लिखते हैं , ” चीनी तमाशबीनों ने हमारे साथ ऐसा बरताव किया जैसे हमने उनका अभीष्ट काम संपन्न किया हो और घर पहुँचने तक रास्ते भर वे किसी विजेता फुटबॉल टीम की तरह हमारा अभिनंदन करते रहे । ” चीनियों की गरीबी और कठोर जीवनचर्या के बारे में वह लिखते हैं , ” मैं कभी – कभी देखता कि बीस या तीस कुली मिल कर किसी बड़े भारी ठेले को खींच रहे हैं , जो कि अमरीका में किसी ट्रक द्वारा या घोड़ों द्वारा खींचा जाता । ये लोग इनसानी घोड़ों से अलग कुछ नहीं लगते थे और पूरा काम करने के बाद उन्हें इतना ही मिलता था कि किसी तरह पेट भर चावल और सोने की एक जगह हासिल कर लें । मेरी समझ में नहीं आता , वे कैसे अपना काम चलाते थे । ” बैल home 1937 देश को एकीकृत करने की अपनी कोशिशों के बावजूद कुओमीनतांग अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टि के चलते असफल हो गया । सन यात – सेन के कार्यक्रम का बहुत अहम हिस्सा पूँजी का नियमन और भूमि – अधिकारों में बराबरी लाना कभी अमल में नहीं आया , क्योंकि पार्टी ने किसानों और बढ़ती सामाजिक असमानता की अनदेखी की । इसने लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने की बजाय फ़ौजी व्यवस्था थोपने का प्रयास किया । आटे की बोरी सुअर 1939 WHIL 1941 मुर्गी 1943 La क्रियाकलाप 4 भेदभाव का अहसास लोगों को कैसे एकताबद्ध करता है ? LANCHIA ‘ रिक्शा खींचने वाला ‘ लान जिया द्वारा बनाया गया काष्ठ चित्र लाओ शे ( 1936 ) द्वारा रचित उपन्यास ‘ रिक्शा ‘ एक गौरव ग्रंथ बन गया । 1945 बढ़ती हुई कीमतों की कहानी । कोयले का टुकड़ा 1947 1949

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1603 1630 1854 1868 1872 1914-18 1925 1931 1941-45 1945 1946-52 मेज़ी पुनर्स्थापना अनिवार्य शिक्षा व्यवस्था तोक्यो और योकोहामा के बीच पहली रेलवे लाइन 1889 मेज़ी संविधान अमल में आया चीन और जापान के बीच युद्ध 1894-95 1904-05 जापान और रूस के बीच युद्ध 1910 कोरिया का समामेलन , 1945 तक उपनिवेश 1956 1964 जापान तोकुगावा लियासु ( Tokugawa leyasu ) द्वारा ईंडो शोगुनेट की स्थापना डचों के साथ अपने सीमित व्यापार को छोड़ कर अन्य पश्चिमी शक्तियों के लिए जापान के दरवाज़े बंद समय – रेखा जापान और संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा शांति समझौत को अंतिम रूप देना , जापान के अलगाव का अंत पहला विश्वयुद्ध सभी पुरुषों को मताधिकार चीन पर जापान का हमला चीन 1644-1911 छींग राजवंश 1839-60 CERT अमरीका के नेतृत्व में जापान पर कब्ज़ा , जापान का लोकतंत्रीकरण और असैन्यीकरण करने के लिए सुधार जापान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना एशिया में पहली बार तोक्यों में ओलंपिक खेल 1919 1921 1926-49 प्रशांत युद्ध 1934 हिरोशिमा और नागासाकी पर अणुबम विस्फोट 1945 1949 be republished 1962 1966 दो अफ़ीम युद्ध 1976 1997 सन यात सेन द्वारा कुओमीनतांग की स्थापना चार मई का आंदोलन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना चीन में गृहयुद्ध लॉन्ग मार्च चीन का जनवादी गणतंत्र , चियांग काई – शेक ने ताइवान में चीनी गणतंत्र की स्थापना की सीमा विवाद को लेकर भारत पर चीन का आक्रमण सांस्कृतिक क्रांति माओ त्सेतुंग ( Mao Zedong ) का और चाऊ एनलाई ( Zhou Enlal ) का निधन ब्रिटेन द्वारा चीन को हांगकांग की वापसी

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चीनी साम्यवादी दल का उदय 1937 में जब जापानियों ने चीन पर हमला किया तो कुओमीनतांग पीछे हट गया । इस लंबे और थकाने वाले युद्ध ने चीन को कमज़ोर कर दिया । 1945 और 1949 के दरमियान कीमतें 30 प्रतिशत प्रति महीने की रफ्तार से बढ़ीं । इससे आम आदमी की जिंदगी तबाह हो गई । ग्रामीण चीन में दो संकट थे एक , पर्यावरण संबंधी , जिसमें बंजर ज़मीन , वनों का नाश और बाढ़ शामिल थे । दूसरा , सामाजिक आर्थिक जो विनाशकारी ज़मीन – प्रथा ऋण , आदिम प्रौद्योगिकी और निम्न स्तरीय संचार के कारण था चीन की साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में रूसी क्रांति के कुछ समय बाद हुई थी । रूसी सफलता ने पूरी दुनिया पर ज़बर्दस्त प्रभाव डाला । लेनिन और ट्रॉट्स्की जैसे नेताओं ने मार्च 1918 में कौमिंटर्न या तृतीय अंतर्राष्ट्रीय ( Third International ) का गठन किया जिससे विश्व स्तरीय सरकार बनाई जाए जो शोषण को खत्म कर सके । कौमिंटर्न और सोवियत संघ ने दुनिया भर में साम्यवादी पार्टियों का समर्थन किया । उनकी परंपरागत मार्क्सवादी समझ थी , कि क्रांति शहरी इलाकों में मज़दूर वर्गों के ज़रिये आयेगी । शुरू में विभिन्न देशों के लोग इससे बहुत आकर्षित हुए लेकिन जल्द ही यह सोवियत यूनियन के स्वार्थों का हथियार बन गया और 1943 में इसे खत्म कर दिया गया । माओ त्सेतुंग ( 1893-1976 ) ने , जो सी . सी . पी . के प्रमुख नेता के रूप में उभरे , क्रांति के कार्यक्रम को किसानों पर आधारित करते हुए एक अलग रास्ता चुना । उनकी सफलता से चीनी साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत बनी जिसने अंततः कुओमीनतांग पर जीत हासिल की । is माओ त्सेतुंग के आमूलपरिवर्तनवादी तौर – तरीकों को जियांग्सी में देखा जा सकता है । यहाँ पहाड़ों मे 1928-1934 के बीच उन्होंने कुओमीनतांग के हमलों से सुरक्षित शिविर लगाए । मज़बूत किसान परिषद ( सोवियत ) का गठन किया , ज़मीन पर कब्ज़ा और पुनर्वितरण के साथ एकीकरण हुआ । दूसरे नेताओं से हटकर , माओ ने आज़ाद सरकार और सेना पर ज़ोर दिया । वे महिलाओं की समस्याओं से अवगत थे और उन्होंने ग्रामीण महिला संघों को उभरने में प्रोत्साहन दिया । उन्होंने शादी के नए कानून बनाए जिसमें आयोजित शादियों और शादी के समझौते खरीदने और बेचने पर रोक लगाई और तलाक को आसान बनाया । 1930 में ( ( Xunwu ) में किए गए एक सर्वेक्षण में माओ त्सेतुंग ने नमक और सोयाबीन जैसी रोज़मर्रा की वस्तुओं , स्थानीय संगठनों की तुलनात्मक मज़बूतियों , छोटे व्यापारियों और दस्तकारों , लोहारों और वेश्याओं , धार्मिक संगठनों की मज़बूतियों , इन सबका परीक्षण किया ताकि शोषण के अलग – अलग स्तरों को समझा जा सके । उन्होंने ऐसे आंकड़े इकट्ठे किये कि कितने किसानों ने अपने बच्चों को बेचा है और इसके लिए उन्हें कितने पैसे मिले । लड़के 100-200 यूआन पर बिकते थे लेकिन लड़कियों की बिक्री के कोई उदाहरण नहीं मिले क्योंकि जरूरत मज़दूरों की थी लैंगिक शोषण की नहीं । इस अध्ययन के आधार पर उन्होंने सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के तरीक़े पेश किए ।

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बर्मा साम्यवादी क्षेत्र लॉग मार्च का मुख्यमार्ग अन्य मार्ग बाहरी मंगोलिया सेनान ह्वांगहो नदी न यांग सी नदी ची यूनान क्वांगसी मानचित्र 2 : लाँग मार्च । 1941 में लॉग कैमरा चित्र मार्च पर सैनिकों द्वारा बंजर भूमि को कृषियोग्य बनाते * यह शब्द कार्लमाक्र्क्स द्वारा गया प्रयोग किया गया था जिसमें यह बल दिया था कि अमीर वर्ग की दमनकारी सरकार को श्रमिक वर्ग की क्रांतिकारी सरकार प्रतिस्थापित कर देगी और यह मौजूदा अर्थ में अधिनायक तंत्र नहीं होगा । मंचूरिया पीकिंग , 700 कोरिया ( पीत नदी ) ताइवान कम्युनिस्टों की सोवियत की कुओ मीन तांग द्वारा नाकेबंदी ने पार्टी को दूसरा आधार ढूँढ़ने पर मज़बूर किया । इसके चलते उन्हें लाँग मार्च ( 1934-35 ) पर जाना पड़ा , जो कि शांग्सी तक 6000 मील का मुश्किल सफर था । नये अड्डे येनान में उन्होंने युद्ध सामंतवाद ( Warlordism ) को खत्म करने , भूमि सुधार लागू करने और विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया । इससे उन्हें मज़बूत सामाजिक आधार मिला । युद्ध के मुश्किल सालों में साम्यवादियों और कुओमीनतांग ने मिलकर काम किया लेकिन युद्ध खत्म होने के बाद साम्यवादी सत्ता में आ गए और कुओमीनतांग की हार हो गई । CR NGERT नए जनवाद republished 1949-65 पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार 1949 में कायम हुई । यह ‘ नए लोकतंत्र ‘ के सिद्धांतों पर आधारित थी । ‘ सर्वहारा की तानाशाही * , जिसे कायम करने का दावा सोवियत संघ का था , से भिन्न नया लोकतंत्र सभी सामाजिक वर्गों का गठबंधन था । अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में रखे गए और निजी कारखानों और भूस्वामित्व को धीरे – धीरे खत्म किया गया । यह कार्यक्रम 1953 तक चला जब सरकार ने समाजवादी बदलाव का कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की । 1958 में लंबी छलाँगवाले आंदोलन की नीति के ज़रिये देश का तेज़ी से औद्योगीकरण करने की कोशिश की गईं । लोगों को अपने घर के पिछवाड़े में इस्पात की भट्ठियाँ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया । ग्रामीण इलाकों में पीपुल्स कम्यून्स जहाँ लोग इकट्ठे ज़मीन के मालिक थे और मिलजुलकर फसल उगाते थे शुरू किये गए । 1958 तक 26,000 ऐसे समुदाय थे जो कि कृषक आबादी का 98 प्रतिशत था । की स्थापना

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माओ पार्टी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पाने के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे । उनकी चिंता ‘ समाजवादी व्यक्ति ‘ बनाने की थी जिसकी पाँच चीजें प्रिय होंगी : पितृभूमि , जनता , काम , विज्ञान और जन सम्पत्ति किसानों , महिलाओं , छात्रों और अन्य गुटों के लिए जन संस्थाएँ बनाई गईं । उदाहरण के लिए ऑल चाइना डेमोक्रेटिक वीमेंस फेडरेशन के 760 लाख सदस्य थे , ऑल चाइना स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन के 32 लाख 90 हज़ार सदस्य थे । लेकिन ये लक्ष्य और तरीके पार्टी में सभी लोगों को पसंद नहीं थे । 1953-54 में कुछ लोग औद्योगिक संगठनों और आर्थिक में विकास की तरफ ज्यादा ध्यान देने के लिए कह रहे थे । लीक शाओछी ( Lau Shaochi . 1896-1969 ) और तंग शीया ओफींग ( Deng Xiaoping 1904-97 ) ने कम्यून प्रथा को बदलने की कोशिश की क्योंकि यह बहुत कुशलता से काम नहीं कर रही थी । घरों के पिछवाड़ों में बनाई गई स्टील औद्योगिक लिहाज़ से अनुपयोगी था । दर्शनों का टकराव : 1965-78 ‘ समाजवादी व्यक्ति ‘ की रचना के इच्छुक माओवादियों और दक्षता की बजाय विचारधारा पर के बल देने की आलोचना करनेवालों के बीच संघर्ष चला । माओ द्वारा 1965 में छेड़ी गई सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति इसी संघर्ष का नतीजा था , जो उन्होंने अपने आलोचकों का सामना करने के लिए शुरू की पुरानी संस्कृति , पुराने रिवाज़ों और पुरानी आदतों के खिलाफ़ अभियान छेड़ने के लिए रेड गाईस मुख्यतः छात्रों और सेना का इस्तेमाल किया गया । छात्रों और पेशेवर • लोगों को जनता से ज्ञान हासिल करने के लिए ग्रामीण इलाकों में भेजा गया विचारधारा ( साम्यवादी होना ) पेशेवर ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण थी । दोषारोपण और नारेबाज़ी ने तर्कसंगत बहस की जगह ले ली । RT rish माओ महान सांस्कृतिक क्रांति से खलबली का दौर शुरू हो गया , पार्टी कमज़ोर हो गई और अर्थव्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था में भारी रुकावट आई । 1960 के उत्तरार्ध से प्रवाह बदलने लगा । 1975 में एक बार फिर पार्टी ने अधिक सामाजिक अनुशासन और औद्योगिक अर्थव्यवस्था का निर्माण करने पर ज़ोर दिया ताकि चीन शताब्दी के खत्म होने से पहले एक शक्तिशाली देश बन सके । में FO शुरू होने वाले सुधार 1978 से साँस्कृतिक क्रांति के बाद राजनीतिक दाव – पेचों की प्रक्रिया शुरू हुई । तंग शीयाओफींग ने पार्टी पर नियंत्रण मज़बूत बनाए रखा और साथ ही देश में समाजवादी बाज़ार अर्थव्यवस्था की शुरुआत की । 1978 में पार्टी ने आधुनिकीकरण के अपने चार सूत्री लक्ष्य की घोषणा की । यह था , विज्ञान , उद्योग , कृषि और रक्षा का विकास पार्टी से सवाल – जवाब न करने की हद तक बहस की इजाज़त थी । इस नए और आज़ाद बातावरण में , जैसे कि 60 साल पहले 4 मई के आंदोलन के समय था , नये विचारों का रोमांचकारी भंडार फूट पड़ा । 5 दिसंबर 1978 को दीवार पर लगे एक पोस्टर ने पाँचवीं आधुनिकता का दावा किया कि लोकतंत्र के बिना अन्य आधुनिकताएँ कुछ भी नहीं बन पाएँगी । उसने गरीबी न हटाने और लैंगिक शोषण खत्म न कर पाने के लिए सी . सी . पी . की आलोचना की । इसके लिए उसने पार्टी के अंदर से ही ऐसे दुर्व्यवहारों के उदाहरण पेश किए ।

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1978 के सुधारों के बाद चीनी लोग स्वच्छंद रूप से उपभोक्ता सामग्री खरीदने में समर्थ होने लगे । इन मांगों को दबाया गया लेकिन 1989 में 4 मई के आंदोलन की 70 वीं सालगिरह पर बहुत से बुद्धिजीवियों ने ज़्यादा खुलेपन के और कड़े सिद्धांतों ( शू – शाओझी ) को खत्म करने की माँग की । बीजिंग के तियानमेन चौक पर छात्रों के प्रदर्शन को क्रूरतापूर्वक दबाया गया दुनिया भर में इसकी कड़ी आलोचना हुई । सुधार के बाद के समय में चीन के विकास के विषय पर दुबारा बहस शुरू हुई । पार्टी द्वारा समर्थित प्रधान मत मजबूत राजनीतिक नियंत्रण , आर्थिक खुलेपन और विश्व बाज़ार से जुड़ाव पर आधारित है । आलोचकों का कहना है कि सामाजिक गुटों , क्षेत्रों , पुरुषों और महिलाओं के बीच बढ़ती हुई असमानताओं से सामाजिक तनाव बढ़ रहा है और बाज़ार पर जो भारी महत्त्व दिया जा रहा है उस पर सवाल खड़े कर रहा है । अंत में पहले के पारंपरिक विचार पुनर्जीवित हो रहे हैं । जैसे कि कंफ्यूशियसवाद और यह तक कि पश्चिम की नकल करने के बजाए चीन अपनी परंपरा पर चलते हुए एक आधु समाज बना सकता है । ताइवान का किस्सा चीनी साम्यवादी दल द्वारा पराजित होने के बाद चियांग काई – शेक 30 करोड़ से अधिक अमरीकी डॉलर और बेशकीमती कलाकृतियाँ लेकर 1949 में ताइवान भाग निकले । वहाँ उन्होंने चीनी गणतंत्र की स्थापना की । 1894-95 में जापान के साथ हुई लड़ाई में यह जगह चीन को जापान के हाथ में सौंपनी पड़ी थी और तब से वह जापानी उपनिवेश बनी हुई थी । कायरो घोषणापत्र ( 1943 ) और पोट्सडैम उद्घोषणा ( 1949 ) के द्वारा चीन को संप्रभुता वापस मिली । फरवरी 1947 में हुए जबर्दस्त प्रदर्शनों के बाद कुओमीनतांग ने नेताओं की एक पूरी पीढ़ी की निर्ममतापूर्वक हत्या करवा दी । चियांग काई – शेक के नेतृत्व में कुओमीनतांग ने एक दमनकारी सरकार की स्थापना की , बोलने की और राजनीतिक विरोध करने की आज़ादी छीन ली और सत्ता की जगहों से स्थानीय आबादी को पूरी तरह बाहर कर दिया । फिर भी उन्होंने भूमि सुधार लागू किया , जिसके चलते खेती की उत्पादकता बढ़ी । उन्होंने अर्थव्यवस्था का भी आधुनिकीकरण किया , जिसके चलते 1973 में कुल राष्ट्रीय उत्पाद के मामले में ताइवान पूरे एशिया में जापान के बाद दूसरे स्थान पर रहा । अर्थव्यवस्था , जो मुख्यत : व्यापार पर आधारित थी , लगातार वृद्धि करती गई । लेकिन अहम बात यह है कि अमीर और गरीब के बीच का भी अंतराल लगातार घटता गया है । not ताइवान का एक लोकतंत्र में रूपांतरण और भी नाटकीय रहा है । यह 1975 में चियांग की मौत के बाद धीरे – धीरे शुरू हुआ और 1887 में जब फौजी कानून हटा लिया गया तथा विरोधी दलों को कानूनी इजाज़त मिल गई , तब इस प्रक्रिया ने गति पकड़ी । पहले स्वतंत्र मतदान ने स्थानीय ताइवानियों को सत्ता में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी । राजनयिक स्तर पर अधिकांश देशों के व्यापार मिशन केवल ताइवान में ही हैं । उनके द्वारा ताइवान में पूर्ण राजनयिक संबंध और दूतावास रखना संभव नहीं , क्योंकि ताइवान को चीन का ही एक हिस्सा माना जाता है ।

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[Forwarded from Ram Babu Jio]

मुख्य भूमि के साथ पुनः एकीकरण का प्रश्न अभी भी विवादास्पद मुद्दा होकर रहा है यद्यपि ‘ खाड़ी – पार ‘ के संबंध ( चीन और ताइवान के मध्य ) सुधर रहे हैं , ताइवानी व्यापार और निवेश मुख्य भूमि में बड़े पैमाने पर हो रहा है और आवागमन कहीं अधिक सहज हो गया है । संभवतः चीन ताइवान को एक अर्धस्वायत्त क्षेत्र के रूप में स्वीकार कर लेने में सहमत हो जाएगा अगर में ताइवान पूर्ण स्वतंत्रता के लिए कोई कदम उठाने से परहेज करता है । आधुनिकता के दो मार्ग औद्योगिक समाजों ने एक दूसरे के जैसे बनने की बजाए आधुनिकता के अपने – अपने मार्ग बनाए । चीन और जापान का इतिहास दिखाता है कि किस तरह अलग – अलग ऐतिहासिक परिस्थितियों ने आज़ाद और आधुनिक देश बनाने की बिलकुल अलग राहें तैयार कीं । जापान अपनी आज़ादी बनाए में सफल रहा और पारंपरिक हुनर और प्रथाओं नए तरीके से इस्तेमाल कर पाया । तथापि कुलीन वर्ग के नेतृत्व में हुए आधुनिकीकरण ने एक उग्र राष्ट्रवाद को जन्म दिया और एक में शोषणकारी सत्ता को बरकरार रखा जिसने विरोध और लोकतंत्र की माँग का गला घोंट दिया । उसने एक औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना की जिससे उस क्षेत्र में बैर की भावना बनी अंदरूनी विकास भी प्रभावित हुआ । रही और to ay हुआ B ताकतों का जापान का आधुनिकीकरण ऐसे वातावरण में जहाँ पश्चिमी साम्राज्यवादी प्रभुत्त्व था । हालांकि जापान ने उनकी नकल को पर साथ ही अपने हल ढूंढ़ने की कोशिश भी की । जापानी राष्ट्रवाद पर इन मज़बूरियों का प्रभाव है – एक ओर जहाँ जापानी एशिया को पश्चिमी आधिपत्य से मुक्त रखने की उम्मीद करते थे , दूसरे लोगों के लिए यही विचार साम्राज्य का निर्माण करने के लिए महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुए । यहाँ यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि सामाजिक और राजनीतिक संस्थानों के सुधार और रोज़मर्रा की ज़िंदगी को बदलने के लिए केवल परंपराओं को पुनर्जीवित करने या ज़बरदस्ती उन्हें पकड़े रखने या सँभालने का सवाल नहीं था बल्कि उन्हें नए और अलग रचनात्मक तरीके से इस्तेमाल करने की बात थी । उदाहरण के लिए , मेजी स्कूली पद्धति ने यूरोपीय और अमरीकी प्रथाओं के अनुरूप नये विषयों की शुरुआत की । किंतु पाठ्यचर्या का मुख्य उद्देश्य निष्ठावान नागरिक बनाना था । नैतिकशास्त्र का विषय पढ़ना अनिवार्य था जिसमें सम्राट के प्रति वफ़ादारी पर जोर दिया जाता था । इसी तरह परिवार में और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आए बदलाव विदेशी और देशी विचारों को मिला कर कुछ नया बनाने की कोशिश को दर्शाते हैं । ● चीन का आधुनिकीकरण का सफ़र बहुत अलग था । पश्चिमी और जापानी , दोनों ही किस्म के विदेशी साम्राज्यवाद ने सारे नियंत्रण को कमज़ोर बनाया और राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था तोड़ने के लिए माहौल बना दिया । इसके चलते ज़्यादातर लोगों को बहुत से दुख – दर्द सहने पड़े । युद्ध सामंतवाद , लूटमार और गृह युद्ध ने बहुत से लोगों की जान ले ली । जापानी हमले की बर्बरता से भी भारी तादाद में लोगों की जानें गई । प्राकृतिक त्रासदियों ने बोझों को और बढ़ा दिया । 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में परंपराओं को ठुकराया गया और राष्ट्रीय एकता तथा सुदृढ़ता निर्मित करने के रास्तों की तलाश की गई । चीन के साम्यवादी दल और उसके समर्थकों ने परंपरा को खत्म करने की लड़ाई लड़ी । उन्हें लगा कि परंपरा जनसमुदाय को गरीबी में जकड़े हुए है , महिलाओं को अधीन बनाती है और देश को अविकसित रखती है । साम्यवादी दल ने लोगों को S

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[Forwarded from Ram Babu Jio]

अधिकार एवं सत्ता देने की बात की परन्तु वास्तव में उसने बहुत ही केंद्रीकृत राज्य की स्थापना की । साम्यवादी कार्यक्रम की सफलता ने उम्मीद का वादा किया लेकिन दमनकारी राजनीतिक व्यवस्था ने मुक्ति और समानता के आदर्शों को ऐसी नारेबाजी में बदल दिया , जो लोगों को चालाकी से प्रभावित कर अपने काबू में लाने में काम आती थी । तथापि इससे शताब्दियों पुरानी असमानताएँ हट गई , शिक्षा का विस्तार हुआ और जनता के बीच एक जागरूकता पैदा हुई । पार्टी ने अब बाज़ार संबंधी सुधार किए और चीन को आर्थिक दृष्टि से ताकतवर बनाने में कामयाब हुई , जबकि राजनीतिक व्यवस्था अब भी कड़े नियंत्रण में है । अब समाज बढ़ती असमानताओं का सामना कर रहा है और सदियों से दबी परंपराएँ पुनर्जीवित होने लगी हैं । यह नयी स्थिति एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि चीन किस तरह अपनी धरोहर को बरकरार रखते हुए अपना विकास कर सकता है ।

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