NCERT Class 10 Sparsh Chapter 1 Dohe Explanation साखी

Sparsh Chapter 1 Dohe Explanation साखी

NCERT Class 10 Sparsh Chapter 1 Dohe Explanation साखी, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 1 Dohe Explanation साखी

 

पाठ की रूपरेखा

कबीर ने प्रस्तुत साखियों में दैनिक जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को अभिव्यक्त किया है । उन्होंने मधुर वचन के महत्त्व , मनुष्य की प्रवृत्ति , प्रेम के महत्त्व , आलोचकों की उपयोगिता आदि को विशेष रूप से उजागर किया है , साथ ही अहंकार के त्याग , प्राणी मात्र से प्रेम , सांसारिक सुखों और वासनाओं के त्याग पर भी बल दिया है ।

कबीर ने ईश्वर के प्रति प्रेम की उस प्रक्रिया को भी प्रदर्शित किया है , जिसके विरह में साधक का जीवन निरर्थक हो जाता है । उन्होंने स्पष्ट किया है कि सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए सांसारिक सुख – सुविधाओं का त्याग कर , प्राणी मात्र से प्रेम करना होगा । इस प्रकार , प्रस्तुत साखियों के माध्यम से कबीर ने जन – सामान्य को सीख देने का प्रयास किया है ।

 

साखियों का सार

पहली साखी

ऐसी बाँणी बोलिए , मन का आपा खोइ ।

अपना तन सीतल करै , औरन कौं सुख होइ ।।

शब्दार्थ –

बाँणी – वाणी , बोली , वचन

आपा- अहंकार

खोइ – खो जाए

तन – शरीर

सीतल – शीतल , ठंडा

औरन कौं- औरों को , दूसरों को

भावार्थ – प्रस्तुत साखी में संत कबीरदास अहंकार और कटु वचन त्यागने का संदेश देते हुए कहते हैं कि लोगों को अपने मन का अहंकार त्यागकर ऐसे मीठे वचन बोलने चाहिए , जिससे उनका अपना शरीर शीतल अर्थात् शांत और प्रसन्न हो जाए और साथ ही सुनने वालों को भी उससे सुख मिले । अतः हमें आपस में मीठे बोल बोलकर मधुर व्यवहार करना चाहिए ।

काव्य सौंदर्य

( i ) इस साखी में मधुर वचन के महत्त्व को दर्शाया गया है ।

( ii ) ‘ बाणी बोलिए ‘ में अनुप्रास अलंकार है ।

( iii ) सधुक्कड़ी भाषा अर्थात् उपदेश देने वाली साधुओं की खिचड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है ।

( iv ) प्रस्तुत साखी में सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग हुआ है और भाषा भावों की अभिव्यक्ति करने में पूर्णत : सक्षम है ।

 

दूसरी साखी

कस्तूरी कुंडलि बसै , मृग ढूँढै बन माँहि ।

ऐसैं घटि – घटि ग्रॅम हैं , दुनियाँ देखै नाँहि ।।

शब्दार्थ

कस्तूरी- एक ऐसा सुगंधित पदार्थ , जो एक विशेष हिरण की नाभि में पाया जाता है

कुंडलि- नाभि

बसै – बसता है , रहता है , निवास करता है

मृग – हिरण

बन – वन , जंगल

माँहि – के भीतर , मध्य में

घटि – घटि – घट घट में , कण – कण में

नाँहिं – नहीं

भावार्थ – कबीरदास कहते हैं कि जिस प्रकार कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ हिरण की अपनी नाभि में ही होता है , किंतु वह उसकी सुगंध महसूस करके उसे पाने के लिए वन – वन में परेशान होकर भटकता रहता है , ठीक उसी प्रकार ईश्वर ( राम ) भी सृष्टि के कण – कण में तथा सभी प्राणियों के हृदय में निवास करते हैं , किंतु संसार में रहने वाले लोग अज्ञानतावश उसे देख नहीं पाते और परेशान होकर इधर – उधर ढूँढते रहते हैं । इसीलिए हमें ईश्वर को बाहर न खोजकर अपने भीतर ही खोजना चाहिए ।

काव्य सौंदर्य

( i ) बिंब और प्रतीक के प्रयोग द्वारा सामान्य भाषा में गूढ़ रहस्य अर्थात् ईश्वर के निवास को समझाने का प्रयास किया गया है ।

( ii ) ‘ कस्तूरी कुंडलि ‘ तथा ‘ दुनियाँ देखै ‘ में अनुप्रास अलंकार विद्यमान है , जबकि ‘ घटि – घटि ‘ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है ।

( iii ) सरल एवं सहज रूप में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है ।

 

तीसरी साखी

जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं मैं नाँहि ।

सब अँधियारा मिटि गया , जब दीपक देख्या माँहि ।

शब्दार्थ

मैं- मनुष्य का अहंकार , भक्तिरहित जीव

हरि – ईश्वर

अँधियारा – अंधकार ( अज्ञान का )

मिटि – मिटना , समाप्त होना

दीपक – दीया

देख्या- देखना

माँहि – अंदर

भावार्थ – कबीरदास कहते हैं कि जिस समय मेरे अंदर ‘ मैं ‘ अर्थात् अहंकार भरा हुआ था , उस समय मुझे ईश्वर नहीं मिल पा रहे थे । अब जब मुझे ईश्वर के दर्शन हो गए हैं , तो मेरे भीतर का ‘ मैं ‘ अर्थात् अहंकार समाप्त हो गया है । जैसे ही मैंने उस ज्योतिस्वरूप ज्ञान रूपी दीपक को मन में देखा , तो मेरा सारा अज्ञान रूपी अंधकार समाप्त हो गया तथा मुझे इस सत्य का दर्शन हो गया है कि अहंकार ही ईश्वर का शत्रु और घोर विरोधी है ।

काव्य सौंदर्य

( i ) इस साखी में बताया गया है कि ईश्वर के दर्शन होने पर अज्ञान रूपी अँधेरा दूर हो जाता है ।

( ii ) ‘ मैं ‘ शब्द अहंभाव के लिए प्रयुक्त हुआ है ।

( iii ) ‘ अँधियारा ‘ अज्ञान का और ‘ दीपक ‘ ज्ञान का प्रतीक है ।

( iv ) ‘ हरि है ‘ तथा ‘ दीपक देख्या ‘ में अनुप्रास अलंकार है ।

 

चौथी साखी

सुखिया सब संसार है , खायै अरु सोवै ।

दुखिया दास कबीर है , जागै अरु रोवै ।।

शब्दार्थ

सुखिया – सुखी

खायै – खाए

अरु – और

सोवै- सोना

दुखिया- दुःखी

दास- परमात्मा का सेवक , ईश्वर का भक्त

जागै- जागना

रोवै- रोता है

भावार्थ – कबीरदास मौज – मस्ती में डूबे रहने वाले लोगों की तुलना चिंतनशील व्यक्तियों से करते हुए कहते हैं कि इस संसार में ऐसे व्यक्ति , जो केवल खाने – पीने और सोने का कार्य करते हैं , अपने जीवन को सबसे सुखी मानकर खुश रहते हैं । कबीरदास कहते हैं कि वह दुःखी हैं , क्योंकि वह जाग रहे हैं , उन्हें संसार की नश्वरता का ज्ञान है , इसलिए वे संसार की नश्वरता को देखकर रोते हैं ।

काव्य सौंदर्य

( i ) प्रस्तुत साखी में बताया गया है कि भौतिक सुख के पीछे भागने वाले लोग संसार की नश्वरता से अनजान रहते हैं ।

( ii ) सरल एवं सहज रूप में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है ।

( iii ) ‘ सुखिया सब संसार ‘ तथा ‘ दुखिया दास ‘ में अनुप्रास अलंकार है ।

 

पाँचवीं साखी

बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागे कोइ ।

राम बियोगी ना जिवै , जिवै तो बौरा होइ ।।

शब्दार्थ

बिरह – मिलन न होना , वियोग

भुवंगम- साँप, भुजंग

तन- शरीर

बसै – बसता है , रहता है

मंत्र – उपाय , युक्ति , तरीका

लागै- लगना

बियोगी- प्रेम में व्याकुल रहने वाला

जिवै- जीता

बौरा- पागल

भावार्थ – कबीरदास कहते हैं कि जिन व्यक्तियों के शरीर में परमात्मा ( राम ) का विरह ( वियोग ) रूपी साँप बस जाता है , उनके बचने की कोई आशा , कोई उपाय शेष नहीं रहता । वह राम के वियोग के बिना जीवित नहीं रह पाता और यदि किसी कारण से वह जीवित रह भी जाता है , तो परमात्मा को पाने के लिए वह पागलों की भाँति ही जीवन व्यतीत करता है । परमात्मा से मिलन ही इसका एकमात्र उपाय है ।

काव्य सौंदर्य

( i ) सांसारिक मोह – माया त्यागकर तथा ईश्वर से वैराग्य के कारण प्राणी पागल जैसा दिखाई देता है ।

( ii ) ‘ बिरह भुवंगम ‘ में रूपक अलंकार विद्यमान है ।

( iii ) सर्प को विरह का प्रतीक बताया गया है ।

( iv ) सरल , सहज एवं सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है ।

 

छठी साखी

निंदक नेड़ा राखिये , आँगणि कुटी बँधाइ ।

बिन साबण पाँणीं बिना , निरमल करै सुभाइ ।।

शब्दार्थ

निंदक – निंदा करने वाला

नेड़ा – करीब , पास में

राखिये- रखिए

आँगणि- आँगन

कुटी – कुटिया

बँधाइ – बनवाकर

साबण – साबुन

निरमल – पवित्र , साफ़

करै- करेगा

सुभाइ- स्वभाव , चरित्र , मन

भावार्थ – कबीरदास कहते हैं कि जो व्यक्ति हमारी निंदा करता है , हमें उस व्यक्ति को सदा अपने पास में ही रखना चाहिए । यदि संभव हो तो उसके लिए अपने घर के आँगन में ही एक कुटिया बनवाकर दे देनी चाहिए , जिससे वह हमारे करीब ही रहे । वह हमारे बुरे कार्यों की निंदा करके , बिना साबुन और पानी के ही हमारे स्वभाव को अत्यंत स्वच्छ एवं पवित्र बना देता है ।

काव्य सौंदर्य

( i ) प्रस्तुत साखी में बताया गया है कि निंदक हमारी निंदा करके हमें आत्मसुधार करने का अवसर प्रदान करता है ।

( ii ) सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है ।

( iii ) ‘ निंदक नेड़ा में अनुप्रास अलंकार है ।

( iv ) भाषा सरल एवं सहज है तथा भावों की अभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है ।

 

सातवीं साखी

पोथी पढ़ि – पढ़ि जग मुवा , पंडित भया न कोइ ।

ऐकै अषिर पीव का , पढ़े सु पंडित होइ ।।

शब्दार्थ

पोथी – ग्रंथ , धार्मिक पुस्तक

पढ़ि- पढ़ि- पढ़ पढ़कर

जग- संसार

मुवा – मर गया

पंडित – ज्ञानी व्यक्ति

भया – हुआ , बना

ऐकै – एक ही

अषिर- अक्षर या शब्द

पीव- प्रियतम, परमात्मा

सु- वह

भावार्थ – कबीरदास कहते हैं कि इस संसार में लोग धार्मिक पुस्तकें पढ़ – पढ़कर मर गए , किंतु कोई भी ज्ञानी नहीं बन सका । इसके विपरीत जो मनुष्य प्रियतम यानी परमात्मा या ब्रह्म के प्रेम से संबंधित एक भी अक्षर पढ़ या जान लेता है , वह सच्चा ज्ञानी अर्थात् पंडित हो जाता है ।

भाव यह है कि जिसने परमात्मा को जान लिया , वही सच्चा ज्ञानी हो जाता है ।

काव्य सौंदर्य

( i ) इस साखी में परमात्मा को जानने वाले को सच्चा ज्ञानी बताया है ।

( ii ) इस पद में ज्ञानी वर्ग पर व्यंग्य किया गया है ।

( iii ) ‘ पोथी पढ़ि – पढ़ि ‘ में अनुप्रास अलंकार विद्यमान है ।

( iv ) भाषा सरल , सहज एवं सधुक्कड़ी है , जो भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम है ।

 

आठवीं साखी

हम घर जाल्या आपणाँ , लिया मुराड़ा हाथि ।

अब घर जालौं तास का , जे चलै हमारे साथि । ।

शब्दार्थ

हम – मैंने

जाल्या – जलाया

आपणाँ – अपने

मुराड़ा- जलती हुई लकड़ी

हाथि- हाथ

जालौं – जलाऊँ

तास का- उसका

जे- जो

साथि- साथ

भावार्थ – कबीरदास कहते हैं कि मैंने विरह और ईश्वर भक्ति से जलती हुई मशाल को हाथ में लेकर अपने घर को जला लिया है अर्थात् मैंने भक्ति में भरकर अपनी सांसारिक विषय – वासनाओं को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है । अब जो – जो भक्त मेरे साथ भक्ति के मार्ग पर जाने को तैयार हों , मैं उनका सांसारिक विषय – वासनाओं का घर भी जला डालूँगा और उनके हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम की भावना जगा दूँगा ।

काव्य सौंदर्य

( i ) प्रस्तुत साखी की शैली प्रतीकात्मक है । ‘ घर ‘ एवं ‘ मशाल ‘ क्रमशः सांसारिकता एवं ज्ञान के प्रतीक हैं । इसमें सासांरिक विषय वासनाओं को नष्ट करने की बात कही गई है ।

( ii ) सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है ।

( iii ) सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग हुआ है , जो भावाभिव्यक्ति में पूर्णत : सक्षम है ।

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