NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 13 Summary मानवीय करुणा की दिव्य चमक

Hindi Kshitij Chapter 13 Summary मानवीय करुणा की दिव्य चमक

NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 13 Summary मानवीय करुणा की दिव्य चमक, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 13 Summary मानवीय करुणा की दिव्य चमक

 

पाठ की रूपरेखा

पाठ में स्वयं को भारतीय कहने वाले फ़ादर कामिल बुल्के के जीवन की उन विशेषताओं का वर्णन किया गया है , जो स्पष्ट करता है कि संन्यासी होते हुए भी वे पारंपरिक अर्थों में संन्यासी नहीं थे । वे जिससे एक बार रिश्ता बना लेते थे , उसे ज़िंदगी भर तोड़ते नहीं थे । जब तक भारत में रामकथा रहेगी , तब तक फ़ादर कामिल बुल्के को एक सच्चे भारतीय साधु की तरह याद किया जाता रहेगा , क्योंकि उन्होंने हिंदी में अपना उल्लेखनीय शोध प्रबंध ‘ रामकथा : उत्पत्ति और विकास ‘ पूरा किया था । फ़ादर कामिल बुल्के ऐसे व्यक्ति थे , जिन्होंने जन्म तो लिया बेल्ज़ियम ( यूरोप ) में , किंतु अपनी कर्मभूमि बनाया भारत को । उन्हें हमेशा भारतीय संस्कृति एवं हिंदी भाषा से अगाध प्रेम करने वाले साधु व्यक्ति यानी मानवीयता से परिपूर्ण व्यक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाएगा ।

 

पाठ का सार

लेखक की शिकायत

लेखक को ईश्वर से शिकायत है कि जिस फ़ादर की रगों में सभी व्यक्तियों के लिए मिठास भरे अमृत के अतिरिक्त और कुछ नहीं था , उसके लिए ईश्वर ने ज़हरबाद ( एक तरह का ज़हरीला फोड़ा ) का विधान क्यों किया ? फ़ादर ने अपना जीवन प्रभु की आस्था और उपासना में बिताया , लेकिन अंतिम समय में उन्हें अत्यधिक शारीरिक यातना सहनी पड़ी । लेखक को पादरी के सफ़ेद चोगे से ढकी आकृति , गोरा रंग , सफ़ेद झाँईं मारती भूरी दाढ़ी , नीली आँखें तथा गले लगाने को आतुर फ़ादर बहुत याद आते हैं ।

फ़ादर कामिल बुल्के और ‘ परिमल ‘ के दिन

लेखक को ‘ परिमल ‘ के वे दिन याद आते हैं जब वे सभी एक पारिवारिक रिश्ते में बँधे हुए थे , जिसके सबसे बड़े सदस्य फ़ादर थे । जब सभी हँसी – मज़ाक करते , तो फ़ादर उसमें निर्लिप्त शामिल रहते । गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते और उनकी रचनाओं पर बेबाक राय देते । लेखक तथा उसके मित्रों के घरों में किसी भी उत्सव अथवा संस्कार में वह बड़े भाई या पुरोहित की तरह खड़े होकर उन्हें आशीषों से भर देते थे । लेखक को अपने बच्चे का वह संस्कार याद आता है , जब फ़ादर ने उसके मुख में पहली बार अन्न डाला था । लेखक को उस समय उनकी नीली आँखों में तैरती हुई वात्सल्य की भावना ऐसी लगती है , जैसे वह किसी ऊँचाई पर देवदार की छाया में खड़ा हो ।

फ़ादर की मातृभूमि एवं उनका परिवार

फ़ादर जब बेल्ज़ियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे , तब उनके मन में संन्यासी बनने की इच्छा जागी , जबकि उस समय उनके परिवार में दो भाई , एक बहन , माँ और पिता सभी थे । उनकी जन्मभूमि का नाम रेम्सचैपल था । उन्हें अपनी माँ की बहुत याद आती थी । फ़ादर अपने अभिन्न मित्र डॉ . रघुवंश को अपनी माँ की चिट्ठियाँ दिखाया करते थे । उनका एक भाई वहीं पादरी हो गया था और एक भाई काम करता था । उनके पिता व्यवसायी थे और बहन ज़िद्दी थी , जिसके विवाह के लिए वह चिंतित रहते थे । भारत में बस जाने के बाद दो या तीन बार वह अपने परिवार से मिलने बेल्जियम भी गए थे ।

फ़ादर की भारत में शिक्षा , रोज़गार और जीवन – यापन

फ़ादर जब इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में थे , तो वह धर्म गुरु के पास जाकर बोले कि मैं संन्यास लेना चाहता हूँ । संन्यास लेने से पहले उन्होंने एक शर्त रखी कि वह भारत जाएँगे । उनकी यह शर्त मान ली गई और वह भारत आ गए । पहले ‘ जिसेट संघ ‘ में दो साल तक पादरियों के बीच रहकर धर्माचार का अध्ययन किया और इसके बाद 9-10 वर्ष तक दार्जिलिंग में पढ़ाई की । कोलकाता से बी . ए . करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद से एम . ए . किया । उन दिनों डॉ . धीरेंद्र वर्मा हिंदी विभाग के अध्यक्ष थे । फ़ादर ने वर्ष 1950 में प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रहकर ‘ रामकथा : उत्पत्ति और विकास ‘ नामक विषय पर शोध पूरा किया । ‘ परिमल ‘ में उनके अध्याय पढ़े गए । उन्होंने मातरलिंक के प्रसिद्ध नाटक ‘ ब्लू बर्ड ‘ का ‘ नीलपंछी ‘ के नाम से रूपांतर भी किया । बाद में वह सेंट जेवियर्स कॉलेज , राँची में हिंदी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष हो गए । इसके बाद वह दिल्ली आए और 47 वर्ष देश में रहकर 73 वर्ष का जीवन जीने के बाद पंचतत्त्व में विलीन हो गए ।

फ़ादर का अंग्रेजी – हिंदी शब्दकोश

फ़ादर ने अंग्रेज़ी- हिंदी शब्दकोश ‘ तैयार किया और बाइबिल का अनुवाद भी किया । फ़ादर को हिंदी के विकास और उसे राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की बहुत चिंता थी । वह अपनी इस चिंता को हर मंच पर प्रदर्शित किया करते थे । शायद हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रचारित करने का प्रश्न एक ऐसा प्रश्न था , जिस पर वह कभी – कभी झुंझला उठते थे । उन्हें इस बात पर बहुत दुःख होता था कि हिंदी वाले ही हिंदी भाषा की उपेक्षा करते हैं ।

फ़ादर की मृत्यु

18 अगस्त , 1982 की सुबह दस बजे का समय था , जब दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में उनका ताबूत एक छोटी – सी नीली गाड़ी में से उतारकर एक लंबी सँकरी , उदास पेड़ों की घनी छाँव वाली सड़क से कब्रगाह के आखिरी छोर तक ले जाया गया , जहाँ धरती की गोद में सुलाने के लिए कब्र खुदी हुई थी । फ़ादर की देह को कब्र के ऊपर लिटाकर मसीही विधि से अंतिम संस्कार शुरू हुआ । वहाँ पर उपस्थित कई लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की , जिसमें सेंट जेवियर्स के रेक्टर फ़ादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा- ” फ़ादर बुल्के धरती में जा रहे हैं । इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों । ” इसके बाद उनकी देह को कब्र में उतार दिया गया । फ़ादर को यह पता नहीं था कि उनकी मृत्यु पर कोई रोएगा , किंतु उस क्षण उनके लिए रोने वालों की कमी नहीं थी । लेखक ने फ़ादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक ‘ कहकर पुकारा है ।

 

शब्दार्थ

ज़हरबाद – गैंग्रीन नामक भयंकर बीमारी / एक तरह का ज़हरीला फोड़ा

विधान- नियम

आस्था – विश्वास

यातना – पीड़ा

देहरी – दहलीज़

पादरी – ईसाई धर्म का पुजारी

आतुर – बेचैन

अपनत्व – अपनापन

साक्षी – गवाह

संकल्प – निश्चय

परिमल – साहित्यिक संस्था का नाम

निर्लिप्त- जो शामिल न हो

गोष्ठी- विचार के लिए बुलाई गई सभा

बेबाक राय – स्पष्ट विचार

वात्सल्य – बच्चों के प्रति दिखाया जाने वाला प्यार

आवेश- जोश

लबालब – पूरी तरह

स्मृति – याद

अभिन्न- घनिष्ठ

व्यवसायी – व्यापारी

हाथ से जाना- वश में न होना

धर्माचार – धर्म का पालन या आचरण करना

शोध प्रबंध- खोज या रिसर्च करने के बाद लिखी गई पुस्तक

रूपांतर – अनुवाद

अकाट्य – जिसे काटा न जा सके

सांत्वना – दिलासा देना

विरल – कम मिलने वाली

ताबूत – शव को रखने वाला बक्सा

थिर – स्थिर

सॅकरी – तंग

करील- झाड़ी के रूप में उगने वाला एक कंटीला पौधा

गैरिक वसन- साधुओं द्वारा पहने जाने वाले गेरुए कपड़े

अपरिचित – अनजान

आहट – किसी के आने से उत्पन्न मंद ध्वनि

सिमट – एकत्रित होना

रत्न – मूल्यवान व्यक्ति

अनुकरणीय – जिसके पीछे – पीछे चला जा सके

स्याही फैलाना- जिसे लिखा न जा सके , किंतु फिर भी प्रयास करना ।

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