NCERT Class 9 Sparsh Chapter 9 पद Dohe Explanation

Sparsh Chapter 9 पद Dohe Explanation (रैदास के पद कक्षा 9 Explanation)

NCERT Class 9 Sparsh Chapter 9 पद Dohe Explanation (रैदास के पद कक्षा 9 Explanation), (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided step-by-step NCERT Poem Explanation for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 9 Sparsh Chapter 9 पद Dohe Explanation

भावार्थ

1. अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।

प्रभु जी , तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग – अँग बास समानी ।

प्रभु जी , तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा ।

प्रभु जी , तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती ।

प्रभु जी , तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।

प्रभु जी , तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा ।।

शब्दार्थ-

रट लागी – आदत लग गई

जाकी – जिसकी

बास – गंध

समानी- समा गई

चितवत – देखना , निहारना

चकोरा – तीतर जाति का एक प्राणी जो चंद्रमा का परम प्रेमी माना जाता है

बाती – रुई की बत्ती

जोति – लौ

बरै – बढ़ना , जलना

सोनहिं – सोने से दासा- सेवक

भावार्थ- कवि अपने इष्टदेव को स्मरण करते हुए उनसे भक्ति माँगते हैं । वे अपनी भक्ति के माध्यम से उन्हें पाना चाहते हैं । कवि कहते हैं कि हे प्रभु ! अब तुम्हारे नाम की रट लग गई है , वह छूट नहीं सकती । अब तो मैं तुम्हारा परम भक्त हो गया हूँ । तुममें और मुझमें वही संबंध स्थापित हो गया है जैसे चंदन और पानी में होता है । चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है । उसी प्रकार मेरे अंग – अंग में तुम्हारी भक्ति की सुगंध समा गई है । हे प्रभु ! तुम बादल हो और मेरा मन मोर । जो तुम्हारी भक्ति की गड़गड़ाहट सुनते ही नृत्य करने लगता है । जैसे चकोर चाँद को एकटक निहारता है वैसे ही मैं तुम्हारी भक्ति में निरंतर लगा रहता हूँ । हे प्रभु ! तुम दीपक की तरह हो और मैं उस बत्ती की तरह हूँ जो दिन – रात भक्ति की आस में अपना अस्तित्व जलाती है । हे प्रभु ! तुम मोती के समान हो और मैं धागा । अर्थात् तुम मोती के समान उज्ज्वल , पवित्र और सुंदर हो मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ । तुम्हारा और मेरा संबंध सोने और सुहागे के समान है । जैसे सुहागे के संपर्क में आकर सोना और अधिक खरा हो जाता है । उसका मूल्य बढ़ जाता है । उसी प्रकार तुम्हारे संपर्क में आने से मैं पवित्र हो गया हूँ । मेरी भक्ति भी आपके संपर्क में आकर निखर उठती है । हे प्रभु ! तुम मेरे स्वामी हो ; मैं तुम्हारा दास हूँ । मैं रैदास , तुम्हारे चरणों में इसी प्रकार की दास्य भक्ति अर्पित करता हूँ ।

शिल्प – सौंदर्य –

1. विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से कवि ने भक्ति के विविध रूपों को चित्रित किया है । प्रभु का कण – कण में वास है ।

2. पद में ब्रज , अवधी व राजस्थानी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया गया है ।

3. भाषा सरस , सहज व रोचक है ।

4. पद की शैली भावात्मक व उदाहरणात्मक है ।

5. पद में लयात्मकता का गुण विद्यमान है ।

6. तुलनात्मक भावों द्वारा उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है ।

7. शाब्दिक सौंदर्य सर्वत्र दिखाई देता है ।

2. ऐसा लाल तुझ बिनु कउनु करै ।

गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ।।

जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ।

नीचह ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै ।।

नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै ।

कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सधै सरै ।।

शब्दार्थ –

लाल – स्वामी

गरीब निवाजु दीन – दुखियों पर दया करनेवाला

गुसईआ- स्वामी

छोति – छुआछूत

जगत कउ लागै- संसार के लोगों को लगती है

ता पर तुहीं ढरै – उन पर द्रवित होता है

नीचहु ऊच करै- नीच को भी ऊँची पदवी प्रदान करता है

नामदेव – महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत

तिलोचनु- एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य जो ज्ञानदेव व नामदेव के गुरु थे

सधना – एक उच्च कोटि के संत जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं

हरिजीउ – हरि जी से

भावार्थ – निम्न कुल के भक्तों को समभाव स्थान देनेवाले प्रभु का गुणगान करते हुए कवि कहते हैं कि हे स्वामी ! हे प्रभो !! ऐसी कृपा तुम्हारे अलावा कौन कर सकता है । हे गरीब निवाज ! हे स्वामी !! तुम ही ऐसे दयालु स्वामी हो जिसने मुझ अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया अर्थात् तुम्हीं ने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान किया , जिसे संसार अछूत मानता है । हे स्वामी ! तुमने मुझ पर असीम कृपा की । मुझ पर द्रवित हो गए । हे गोबिंद ! तुमने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च सम्मान प्रदान किया । ऐसा करते हुए तुम्हें किसी का भी भय नहीं । तुम्हारी ही कृपा से नामदेव , कबीर जैसे जुलाहे , त्रिलोचन जैसे सामान्य , सधना जैसे कसाई और सैनु जैसे नाई संसार से तर गए । उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया । रैदास कहते हैं कि हे संतो ! सुनो , हरि जी सब कुछ करने में समर्थ हैं । वे कुछ भी कर सकते हैं ।

शिल्प – सौंदर्य

1. प्रभु की कृपालुता और भक्त वत्सलता को वाणी प्रदान की गई है ।

2. प्रभु दयालु है और असहायों पर कृपा करता है । पद की भाषा ब्रज है । अवधी व राजस्थानी मिश्रित भाषा का प्रयोग किया गया है ।

3. भाषा सरस , सरल व रोचक है ।

4. भाषा में लयात्मकता है ।

5. पद की शैली भावात्मक है ।

6. संत कवियों के नामों का उल्लेख सराहनीय है ।

7. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है ।

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