NCERT Class 9 Kshitij Chapter 15 Poem Explanation मेघ आए

Kshitij Chapter 15 Poem Explanation मेघ आए

NCERT Class 9 Kshitij Chapter 15 Poem Explanation मेघ आए, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT Poem Explanation for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 9 Kshitij Chapter 15 Poem Explanation मेघ आए

 

कवि परिचय

जीवन परिचय – प्रसिद्ध साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में सन 1927 में हुआ था । इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा बस्ती जिले से तथा उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रहण की । उन्हें आजीविका के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा । बाद में अध्यापन कार्य से जुड़े । वे दिनमान के उपसंपादक तथा बाल पत्रिका पराग के संपादक भी रहे । उनका 1988 में आकस्मिक निधन हो गया ।

रचना परिचय – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने हिंदी काव्य और गद्य दोनों विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई । उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

काव्य रचनाएँ – काठ की घंटियाँ , बाँस का पुल , एक सूनी नाव , गर्म हवाएँ , कुआनो नदी , जंगल का दर्द , खूँटियों पर टँगे लोग ।

अन्य कृतियाँ – अनेक नाटक , कहानियाँ एवं उपन्यास ।

साहित्यिक विशेषताएँ – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के काव्य में ग्रामीण संवेदना के साथ शहरी मध्यमवर्गीय जीवनबोध भी व्यक्त हुआ है । वे सौंदर्य , शृंगार के कवि होने के अलावा प्रकृति प्रेमी भी थे । उन्होंने प्रकृति का सजीव चित्रण किया है । काव्य में उनकी कल्पनाशक्ति का विस्तार देखते ही बनता है ।

भाषा – शैली – सर्वेश्वर दयाल की भाषा सहज एवं लोकजीवन की महक लिए हुए है । उनकी भाषा में चित्रात्मकता है । उनकी कविता में काल्पनिकता के दुर्लभ चित्र मिलते हैं । उनकी कृतियों में उपमा , रूपक और मानवीकरण अलंकारों का अधिकारपूर्ण उपयोग मिलता है ।

 

भावार्थ

1. मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।

आगे – आगे नाचती – गाती बयार चली ,

दरवाज़े – खिड़कियाँ खुलने लगीं गली – गली ,

पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के ।

मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।

शब्दार्थ –

बन ठनकर – सज-सँवरकर

बयार – हवा

पाहुन – मेहमान

भावार्थ – कवि बादलों को शहरी मेहमान के रूप में चित्रित करते हुए कहता है कि बादल सज – धजकर आए हैं । उनके आगे – आगे चलती हुई अर्थात अगवानी करती हुई शीतल हवा बहने लगी । इस शहरी मेहमान को देखने के लिए गली में दरवाज़े और खिड़कियाँ खुलने लगीं । वर्षा ऋतु में आकाश में काले – काले बादल घिर आए । जिन्हें देखकर लगता है कि गाँव में कोई शहरी मेहमान ( दामाद ) आया हुआ है । अर्थात बादल सज – धजकर शहरी मेहमान की तरह आए हुए ।

2. पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए ,

आँधी चली , धूल भागी घाघरा उठाए ,

बाँकी चितवन उठा , नदी ठिठकी , घूँघट सरके ।

मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।

शब्दार्थ –

उचकाए – उठाकर , ऊँची किए हुए

चितवन – तिरछी नज़र

ठिठकी – हैरान होकर रुकी

सरके – खिसक गए

भावार्थ – मेहमान के रूप में आए बादल को पेड़ गरदन ऊँची करके देखने लगे । आँधी चलने से धूल उड़ने लगी । जिसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे कोई लड़की अपना घाघरा उठाए भाग रही है । नदी ठिठककर मेहमान को यूँ देखने लगी जैसे गाँव की कोई स्त्री तिरछी नज़र से मेहमान को देखती है । ऐसा करते हुए वह अपने घूँघट को उठाकर लज्जा के कारण तिरछी निगाह से देख रही है ।

3. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की ,

‘ बरस बाद सुधि लीन्हीं –

बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की ,

हरसाया ताल लाया पानी परात भर के ।

मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।

शब्दार्थ –

जुहार की – आदरपूर्वक नमस्कार किया

सुधिय – याद

अकुलाई – व्याकुल

ओट होना – छिपना

किवार – दरवाज़ा

हरसाया – प्रसन्न हुआ

ताल – तालाब

परात – एक बड़ा-सा बर्तन

भावार्थ – मेहमान रूप में आए बादल को देखकर पीपल ने आगे बढ़कर मेहमान का स्वागत किया । साल भर से बादल रूपी पति से मिलन न हो पाने से व्याकुल लता दरवाज़े की ओट में होकर बोली , तुम्हें पूरे एक साल बाद मेरी याद आई है । मेघ रूपी मेहमान को देख तालाब प्रसन्न हो उठा और परात में पानी भर लाया ताकि मेहमान के पैर धो सके । इस तरह मेघ सज – धजकर आए ।

4. क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी ,

‘ क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की ‘ ,

बाँध टूटा झर – झर मिलन के अश्रु ढरके ।

मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।

शब्दार्थ –

क्षितिज – वह काल्पनिक स्थान जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं

अटारी- अट्टालिका

गहराई – छा गई

दामिनि – बिजली

भरम – भ्रम , संशय

अश्रु – आँसू

ढरके – गिर पड़े

भावार्थ – आकाश में घिरते बादलों को देखकर कवि कहता है कि क्षितिज रूपी अट्टालिका पर बादल गहराते जा रहे हैं । घने – घने बादलों में बिजली चमकने लगी । लोगों के मन में समाया भ्रम धीरे – धीरे हटने लगा । उन्हें लगा कि अब बादल ज़रूर बरसेंगे । अटारी पर खड़ी नायिका के मन से भी भ्रम मिट गया । उसने अपने मन में उमड़े संदेह के लिए मेहमान से क्षमा माँगी । यह देख मेहमान की आँखों से प्रसन्नता के आँसू गिरने लगे अर्थात वर्षा होने लगी । इस तरह बादल सज – सँवरकर गाँव में आए ।

4. क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी ,

‘ क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की ‘ ,

बाँध टूटा झर – झर मिलन के अश्रु ढरके ।

मेघ आए बड़े बन ठन के सँवर के ।

शब्दार्थ –

क्षितिज – वह काल्पनिक स्थान जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं

अटारी- अट्टालिका

गहराई – छा गई

दामिनि – बिजली

भरम – भ्रम , संशय

अश्रु – आँसू

ढरके – गिर पड़े

भावार्थ – आकाश में घिरते बादलों को देखकर कवि कहता है कि क्षितिज रूपी अट्टालिका पर बादल गहराते जा रहे हैं । घने – घने बादलों में बिजली चमकने लगी । लोगों के मन में समाया भ्रम धीरे – धीरे हटने लगा । उन्हें लगा कि अब बादल ज़रूर बरसेंगे । अटारी पर खड़ी नायिका के मन से भी भ्रम मिट गया । उसने अपने मन में उमड़े संदेह के लिए मेहमान से क्षमा माँगी । यह देख मेहमान की आँखों से प्रसन्नता के आँसू गिरने लगे अर्थात वर्षा होने लगी । इस तरह बादल सज – सँवरकर गाँव में आए ।

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