NCERT Class 9 Kshitij Chapter 13 Dohe Explanation ग्राम श्री

Kshitij Chapter 13 Dohe Explanation ग्राम श्री

NCERT Class 9 Kshitij Chapter 13 Dohe Explanation ग्राम श्री, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT Poem Explanation for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 9 Kshitij Chapter 13 Dohe Explanation ग्राम श्री

 

कवि परिचय

जीवन परिचय – सुकुमार कवि कहलाने वाले सुमित्रानंदन पंत का जन्म सन 1900 में उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में हुआ था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में तथा उच्च शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में हुई । वे बचपन से ही काव्य रचना में रुचि रखते थे । महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया । वे छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे , जिन्होंने 1916 से 1977 तक साहित्य सेवा की । उनका निधन सन 1977 में हुआ ।

रचना परिचय – पंत जी ने गद्य – पद्य दोनों ही विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई । उनकी कृतियाँ निम्नलिखित हैं –

काव्य – वीणा , ग्रंथि , पल्लव , गुंजन , स्वर्णकिरण , स्वर्णधूलि , युगांत , ग्राम्या , लोकायतन , चिदंबरा ।

नाटक – रजत – रश्मि , शिल्पी , ज्योत्सना ।

उपन्यास- हार ।

साहित्यिक विशेषताएँ – पंत प्रकृति प्रेमी , मानवतावादी , संवेदनशील , प्रकृति और मनुष्य के अंतरंग संबंधों की पहचान रखने वाले कवि थे । प्रकृति चित्रण में वे अद्वितीय थे । उन्होंने आधुनिक हिंदी कविता को एक नवीन अभिव्यंजना पद्धति एवं काव्यभाषा से समृद्ध किया ।

भाषा – शैली – प्रकृति प्रेमी कवि पंत की भाषा खड़ी बोली है , जिसमें मधुरता तथा सरसता है । उनके काव्य में संस्कृत शब्दों की प्रधानता होती है । उन्होंने रचना में अलंकारों का भरपूर प्रयोग किया जिससे भाषा – सौंदर्य बढ़ गया है ।

 

भावार्थ

1. फैली खेतों में दूर तलक

मखमल की कोमल हरियाली ,

लिपटीं जिससे रवि की किरणें

चाँदी की सी उजली जाली !

तिनकों के हरे हरे तन पर

हिल हरित रुधिर है रहा झलक ,

श्यामल भू तल पर झुका हुआ

नभ का चिर निर्मल नील फलक !

शब्दार्थ –

तलक – तक

कोमल – नर्म , मुलायम

तन – शरीर

हरित – हरा

रुधिर – रक्त

श्यामल – हरी – भरी

चिर निर्मल- सदा स्वच्छ रहने वाला

फलक – पट , पहलू

भावार्थ – गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करता हुआ कवि कहता है कि गाँवों में दूर – दूर तक मखमल की तरह मुलायम हरियाली फैली है । इस पर पड़ने वाली सूरज की किरणों को देखकर लगता है कि चाँदी की जाली बिछी हुई है । हरे तिनकों पर हिलती ओस की बूँदें देखकर लगता है कि उनमें हरा रक्त बह रहा है । हरी – भरी धरती पर फैला नीला आसमान मानो धरती को बाँहों में भरने के लिए झुका हुआ है ।

2. रोमांचित सी लगती वसुधा

आई जौ गेहूँ में बाली ,

अरहर सनई की सोने की

किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !

उड़ती भीनी तैलाक्त गंध

फूली सरसों पीली पीली ,

लो , हरित धरा से झाँक रही

नीलम की कलि , तीसी नीली !

शब्दार्थ –

रोमांचित – प्रसन्न

वसुधा – धरती

सनई – एक रेशेदार पौधा

किंकिणियाँ – करधनी में लगे छोटे – छोटे घुँघरू

भीनी – हल्की – हल्की

तैलाक्त – तेलयुक्त

हरित धरा – हरी-भरी धरती

तीसी – अलसी ( एक तिलहनी पौधा )

भावार्थ – गाँव के इस सौंदर्य को देखकर लगता है कि धरती खुशी एवं रोमांच से भर गई है । उसके रोमांच को प्रदर्शित करने के लिए जौ और गेहूँ के पौधे में बालियाँ निकल आई हैं । अरहर और सनई के पौधों पर लगी फलियाँ करधनी में लगे घुँघरुओं की तरह सुशोभित हो रही हैं । चारों ओर सरसों के फूल हैं , जिनसे तेल की गंध फैल रही है । इसी समय हरी – भरी धरती से अलसी की नीलम – सी कली और नीले – नीले फूल निकलने लगे हैं ।

3. रंग रंग के फूलों में रिलमिल

हँस रही सखियाँ मटर खड़ी ,

मखमली पेटियों सी लटकीं

छीमियाँ , छिपाए बीज लड़ी !

फिरती हैं रंग रंग की तितली

रंग रंग के फूलों पर सुंदर ,

फूले फिरते हैं फूल स्वयं

उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !

शब्दार्थ –

रिलमिल – मिल-जुलकर

छीमियाँ – फलियाँ

लड़ी – शृंखला

वृंतों – डंठलों

भावार्थ- कवि कहता है कि खेतों में रंग – बिरंगे फूल खिल उठे हैं । वहीं बगल के खेत में बैंगनी- सफ़ेद फूलोंवाली मटर को देखकर लगता है कि जैसे मटर सखियाँ साथ – साथ हँस रही हों । मटर में फलियों को देखकर लगता है कि वे मखमली पेटियों में किसी रत्न को छिपाए हुए । चारों ओर रंग – बिरंगे फूल खिले हैं , जिन पर रंग – बिरंगी तितलियाँ उड़ रही हैं । उनको देखकर लगता है मानो फूल ही उड़ उड़कर वृंतों पर जा रहे हों ।

4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से

लद गई आम्र तरु की डाली ,

झर रहे ढाक , पीपल के दल ,

हो उठी कोकिला मतवाली !

महके कटहल , मुकुलित जामुन ,

जंगल में झरबेरी झूली ,

फूले आड़ू , नींबू , दाड़िम ,

आलू , गोभी , बैंगन , मूली !

शब्दार्थ –

रजत – चाँदी

स्वर्ण – सोना

मंजरियाँ – आम का बौर

आम्र- आम

तरु – पेड़

झर रहे – गिर रहे

दल – पत्ते

मुकुलित – अधखिला

भावार्थ – गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि ऐसे मौसम में आम की डालियों पर सोने – चाँदी के रंग की मंजरियाँ आ गई हैं । एक ओर आम में बौर आ रहे हैं तो दूसरी ओर ढाक और पीपल के पत्ते गिरने शुरू हो गए हैं । कोयल भी मदमस्त होकर उड़ती फिर रही है । फूल आने से कटहल महक उठा है और जामुन के फूल अभी अधखिले हैं । जंगल में झरबेरियाँ लद गई हैं । VKM के पेड़ पर फूल आ गए हैं । एक ओर जहाँ नींबू , अनार आदि फूलों से लद गए हैं , वहीं दूसरी ओर खेतों में आलू , गोभी , बैंगन , मूली आदि सब्ज़ियाँ तैयार हो गई हैं ।

5. पीले मीठे अमरूदों में

अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं ,

पक गए सुनहले मधुर बेर ,

अँवली से तरु की डाल जड़ी !

लहलह पालक , महमह धनिया ,

लौकी औ ‘ सेम फली , फैलीं

मखमली टमाटर हुए लाल ,

मिरचों की बड़ी हरी थैली !

शब्दार्थ –

चित्ती – धब्बा , निशान

मधुर बेर- मीठे बेर

अँवली – आँवले का छोटा फल

लहलह – हरा – भरा लहराता हुआ

महमह – महकता हुआ

भावार्थ – कवि कहता है कि अमरूद पककर पीले और मीठे हो गए हैं । उन पर लाल – लाल धब्बे ( चित्तियाँ ) पड़ गए हैं । बेर पककर सुनहरे और मीठे हो गए हैं । आँवले की डालियों पर छोटे – छोटे फल जड़े हुए हैं । खेतों में हरी – भरी पालक लहरा रही है । धनिया अपनी महक बिखेरने लगी है । लौकी और सेम की लताएँ फलकर फैल गई हैं । टमाटरों का लाल रंग मखमल जैसा लग रहा है । मिर्च के पेड़ पर लगे मिर्चों के गुच्छे बड़ी – सी हरी थैली जैसे दिख रहे हैं ।

6. बालू के साँपों से अंकित

गंगा की सतरंगी रेती

सुंदर लगती सरपत छाई

तट पर तरबूजों की खेती ;

अँगुली की कंघी से बगुले

कलँगी सँवारते हैं कोई ,

तिरते जल में सुरखाब , पुलिन पर

मगरौठी रहती सोई !

शब्दार्थ –

अंकित – बने हुए , चिह्नित , चित्रित

सतरंगी – सात रंगों वाली

सरपत – बड़ी तथा लंबी घास जिसके तने तथा पत्तियों से छप्पर बनाया जाता है

छाई – बनाई हुई

तट – नदी के किनारें की भूमि

कलँगी – चिड़ियों के सिर पर की चोटी

तिरते – बहते

सुरखाब – चकवा पक्षी

पुलिन – नदी का रेतीला किनारा

मगरौठी – मुर्गाबी नामक एक पक्षी

भावार्थ- कवि कहता है कि गंगा की सतरंगी रेत पर बनी टेढ़ी – मेढ़ी लकीरें देखकर ऐसा लगता है जैसे वे साँपों के आने – जाने से बने हों । नदी के किनारे पर तरबूजों की खेती तथा सरपत से बनाई झोंपड़ियाँ सुंदर लग रही हैं । इन्हें तरबूजों की रखवाली के लिए बनाया गया है । पानी में खड़े बगुले अपने सिर खुजला रहे हैं , जिसे देखकर लगता है कि वे अपने बालों में कंघी कर रहे हों । बहते पानी में सुरखाब ( चक्रवाक ) तैर रहे हैं तथा रेतीले किनारे पर मगरौठी नामक पक्षी सोया हुआ है ।

7. हँसमुख हरियाली हिम – आतप

सुख से अलसाए से सोए ,

भीगी अँधियाली में निशि की

तारक स्वप्नों में से खोए –

मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम –

जिस पर नीलम नभ आच्छादन –

निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत

निज शोभा से हरता जन मन !

शब्दार्थ –

हिम – आतप – सर्दी की धूप

तारक – तारे

मरकत – पन्ना नामक रत्न

नीलम – नीले रंग का रत्न

आच्छादन – छा जाना , घिरा हुआ

निरुपम – अद्भुत , अनोखा

हिमांत – सर्दी की समाप्ति

स्निग्ध – कोमल , प्रेम युक्त

हरता – छीनता

भावार्थ – ग्रामीण सौंदर्य का वर्णन करता हुआ कवि कहता है कि हरियाली पर धूप पड़ती है तो लगता है कि वह हँस रही है । सर्दी की धूप चमक उठी है लगता है कि धूप और हरियाली अलसाकर सो गए हैं । ओस से रात भीग चुकी है । तारों की चमक फीकी पड़ने से लगता है कि वे सपनों में खो गए हैं । सुंदर गाँव पन्ना नामक रत्न के खुले डिब्बे – सा लग रहा है । उस पर नीला आकाश छाया हुआ है जो नीलम के आवरण जैसा है । सर्दी की समाप्ति पर अद्भुत शांति छाई हुई है । ऐसा सुंदर गाँव अपनी सुंदरता से लोगों का मन अपनी ओर खींच रहा है ।

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