NCERT Class 9 Kshitij Chapter 12 Dohe Explanation कैदी और कोकिला

Kshitij Chapter 12 Dohe Explanation कैदी और कोकिला

NCERT Class 9 Kshitij Chapter 12 Dohe Explanation कैदी और कोकिला, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT Poem Explanation for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 9 Kshitij Chapter 12 Dohe Explanation कैदी और कोकिला

 

कवि परिचय

जीवन परिचय – देश – प्रेम की गौरव – गाथा के अमर गायक माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन 1889 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गाँव में हुआ था । प्राथमिक शिक्षा के उपरांत उन्होंने घर पर ही संस्कृत , बँग्ला , गुजराती तथा अंग्रेज़ी का अध्ययन में किया । किशोरावस्था में ही उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू कर दिया । राष्ट्रीय आंदोलन की अवधि में वे अनेक बार जेल गए । उनका देहांत सन 1968 में हुआ ।

रचना परिचय – माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

काव्य रचनाएँ – हिम किरीटनी , हिम तरंगिनी , माता , युगचरण , समर्पण , वेणु लो गूँजे धरा आदि ।

अन्य रचनाएँ – इन्होंने निबंध , नाटक , कहानी पर भी अपनी लेखनी चलाई है ।

साहित्यिक विशेषताएँ – माखनलाल चतुर्वेदी की रचनाएँ राष्ट्रीय भावना से युक्त हैं । उनमें स्वतंत्रता की चेतना के साथ – साथ बलिदान की भावना मिलती है । कवि होने के साथ – साथ वे सामाजिक कार्यकर्ता भी थे । उन्होंने भक्ति , प्रेम और प्रकृति संबंधी कविताएँ भी लिखी हैं ।

भाषा – शैली – चतुर्वेदी जी की कविता में खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है , जिसमें तत्सम शब्दों के साथ – साथ उर्दू – फ़ारसी शब्दों का प्रयोग किया गया है । उन्होंने मुक्त छंद में रचनाएँ की हैं , जिनका भावपक्ष सबल है ।

 

भावार्थ

1. क्या गाती हो ?

क्यों रह – रह जाती हो ?

कोकिल बोलो तो !

क्या लाती हो ?

संदेशा किसका है ?

कोकिल बोलो तो !

ऊँची काली दीवारों के घेरे में ,

डाकू , चोरों , बटमारों के डेरे में ,

जीने को देते नहीं पेट भर खाना ,

मरने भी देते नहीं , तड़प रह जाना !

जीवन पर अब दिन – रात कड़ा पहरा है ,

शासन है , या तम का प्रभाव गहरा है ?

हिमकर निराश कर चला रात भी काली ,

इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?

शब्दार्थ –

रह-रह जाती हो – बोलते – बोलते रुक जाना

कोकिल – कोयल

बटमार – राह में यात्रियों को लूटने वाले

डेरे में – आवास में

पहरा – रखवाली , निगरानी

तम- अंधकार

हिमकर – चंद्रमा

कालिमामयी – काले रंगवाली

आली – सखी

भावार्थ – जेल में बंद कैदी रूप में कवि कोयल से पूछता है कि कोयल तुम क्या गाती हो ? गाते – गाते तुम क्यों रुक जाती हो । अपने गीतों के माध्यम से मेरे लिए क्या तुम किसी का संदेशा लाई हो ? कोयल शायद हम कैदियों को देश के बारे में कुछ संदेश देना चाहती हो ।

हे कोयल ! हमें यहाँ जेल की ऊँची – ऊँची दीवारों के बीच कैद करके रखा गया है । हम जैसे स्वाधीनता सेनानियों को भी चोरों , लुटेरों के साथ रहने को विवश किया गया है । यहाँ खाने के लिए भरपेट खाना भी नहीं देते हैं । अमानवीय परिस्थितियों में रहते हुए हमें नारकीय जीवन बिताना पड़ रहा है । जेल के कर्मचारी हमें मरने भी नहीं देते हैं । ऐसे में हम तड़पकर रह जाते हैं । ये कर्मचारी हम पर कड़ा पहरा रखते हैं । इसे शासन कहें या घोर अन्याय । चारों ओर अंधकार के इस समय में चंद्रमा भी हमें निराश कर चला है । कहीं से भी आशा की किरण नहीं दिखाई देती है । हे सखी ! इस कालिमापूर्ण वातावरण में तू हमें क्यों जगा रही है ? क्या तू ऐसे में किसी का संदेशा लाई है ?

2. क्यों हूक पड़ी ?

वेदना बोझ वाली – सी ;

कोकिल बोलो तो !

क्या लूटा ?

मृदुल वैभव की

रखवाली – सी ,

कोकिल बोलो तो !

क्या हुई बावली ?

अर्धरात्रि को चीखी ,

कोकिल बोलो तो !

किस दावानल की

ज्वालाएँ हैं दीखीं ?

कोकिल बोलो तो !

शब्दार्थ –

हूक पड़ी – चीख पड़ी , दर्दभरी आवाज़ में बोली

वेदना – पीड़ा

मृदुल – मधुर

वैभव – ऐश्वर्य , धन – दौलत

रखवाली – रक्षा करना

बावली – पागल

दावानल – जंगल में अपने – आप लगने वाली आग

ज्वालाएँ – आग की लपटें

भावार्थ – कारागार में बंदी कवि ने कोयल की वेदनापूर्ण आवाज़ सुनकर पूछा कि हे कोयल ! तुम इस तरह क्यों चीख रही हो ? तुम्हारा क्या लुट गया ? तुम्हारे कंठ की मधुर आवाज़ सुनकर यही लगता है कि ईश्वर ने तुम्हें ही मधुर वैभव की रखवाली का दायित्व सौंपा है । हे कोयल ! बताओ तो तुम आधी रात को पागलों की तरह क्यों चीखी ? क्या जंगल में फैली आग देख ली जो इस तरह चीख पड़ी । कोयल कुछ बताओ तो सही ।

3. क्या ? – देख न सकती , जंजीरों का गहना ?

हथकड़ियाँ क्यों ? यह ब्रिटिश राज का गहना ,

कोल्हू का चर्रक चूँ ? – जीवन की तान ,

गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान !

हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ ,

खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआँ ।

दिन में करुणा क्यों जगे , रुलानेवाली ,

इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ?

इस शांत समय में ,

अंधकार को बेध , रो रही क्यों हो ?

कोकिल बोलो तो !

चुपचाप , मधुर विद्रोह – बीज

इस भाँति बो रही क्यों हो ?

कोकिल बोलो तो !

शब्दार्थ –

जुंजीर – बेड़ी

गहना – आभूषण

चर्रक चूँ – कोल्हू चलने से उत्पन्न आवाज़

गिट्टी – पत्थर के छोटे टुकड़े

मोट – चमड़े का बड़ा-सा थैला , जिससे कुँए से पानी निकाला जाता है

ब्रिटिश अकड़ का कुआँ – अंग्रेज़ों का अहंकार

गज़ब ढाना – आश्चर्यजनक काम करना

बेधना – चीरना

विद्रोह-बीज – विद्रोह रूपी बीज

भावार्थ – कोयल की असमय चीख सुनकर कोयल से कवि पूछता है कि हम स्वतंत्रता सेनानियों के हाथों में हथकड़ियों का गहना तू देख नहीं सकती है क्या ? ये हथकड़ियाँ नहीं अंग्रेज़ी सरकार द्वारा दिया गया गहना है । हमारे काम करते हुए कोल्हू की जो आवाज़ तुम सुनती हो , वह हमारे जीवन का गीत बन गया है । यहाँ हम गिट्टियाँ तोड़ते हैं और हमें पेट पर जूआ रखकर मोट से पानी खींचना पड़ता है । इससे ऐसा लगता है कि हम अंग्रेज़ सरकार की अकड़ के कुएँ को खाली यानी कम कर रहे हैं । अंग्रेज़ सरकार दिन में हम स्वतंत्रता सेनानियों पर कोई दया नहीं करती है , इसलिए तू रात में अपना मधुर स्वर सुना रही है । रात के इस सन्नाटे में तू अंधकार को चीरती हुई आवाज़ क्यों कर रही है ? कोयल बता तो इस तरह अपनी मधुर आवाज़ से देशवासियों में अंग्रेज़ों के प्रति विद्रोह की भावना क्यों पैदा कर रही है ?

4. काली तू , रजनी भी काली ,

शासन की करनी भी काली ,

काली लहर कल्पना काली ,

मेरी काल कोठरी काली ,

टोपी काली , कमली काली ,

मेरी लौह – शृंखला काली ,

पहरे की हुंकृति की ब्याली ,

तिस पर है गाली , ऐ आली !

इस काले संकट – सागर पर

मरने की , मदमाती !

कोकिल बोलो तो !

अपने चमकीले गीतों को

क्योंकर हो तैराती !

कोकिल बोलो तो !

शब्दार्थ –

रजनी – रात

शासन – अंग्रेज़ों का शासन

करनी – करतूतें

काल कोठरी – अपराधियों को रखने के लिए बनी अंधकारपूर्ण कोठरी

लौह-शृंखला – बेड़ियाँ

हुंकृति – हुँकार , जोर की आवाज़

ब्याली – साँपिनी

तिस पर – उस पर

संकट-सागर – दुखों का सागर

मदमाती – मस्त , मदमत्त

भावार्थ – कवि कोयल से कहता है कि कोयल तेरा रंग काला है और रात भी कालिमापूर्ण है । अंग्रेज़ी सरकार के कारनामें भी अच्छे नहीं हैं । देश में अंग्रेज़ों के प्रति जो लहर उठ रही है , वह भी काली है । कवि बताता है कि जिस कोठरी में उसे रखा गया है , वह भी काली है । उसकी टोपी और कंबल भी काला है । उसकी बेड़ियाँ भी काली हैं । पहरेदारों की ऊँची आवाज़े साँपिनी के समान काली हैं । इतने अन्यायपूर्ण व्यवहार के बाद भी वे कैदियों को गाली देते हैं । हे कोयल ! देश में फैले संकटरूपी सागर में तू मरने के लिए ठानकर क्यों आई है ? तू आज़ादी की भावना जगाने वाले इन चमकीले गीतों को इन विपरीत परिस्थितियों में कैसे गा लेती है ? हे कोयल ! कुछ तो बता ।

5. तुझे मिली हरियाली डाली ,

मुझे नसीब कोठरी काली !

तेरा नभ – भर में संचार

मेरा दस फुट का संसार !

तेरे गीत कहावें वाह ,

रोना भी है मुझे गुनाह !

देख विषमता तेरी मेरी ,

बजा रही तिस पर रणभेरी !

इस हुंकृति पर ,

अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ ?

कोकिल बोलो तो !

मोहन के व्रत पर ,

प्राणों का आसव किसमें भर दूँ !

कोकिल बोलो तो !

शब्दार्थ –

नसीब – किस्मत

नभ – आकाश

संचार – भ्रमण

कहावे वाह – प्रशंसित होते हैं

गुनाह – अपराध

विषमता – अंतर

रणभेरी – युद्ध में बजाया जाने वाला बाजा

कृति – रचना

मोहन – मोहनदास करमचंद गांधी

आसव – रस , उत्तेजना

भावार्थ – कवि अपनी और कोयल की तुलना करता हुआ कहता है कि तुझे रहने के लिए पेड़ों की हरी – भरी डालियाँ मिली हैं और मेरी किस्मत में जेल की काली कोठरी है । तू खुले आसमान उड़ती – फिरती है जबकि मेरी दुनिया दस फीट की कोठरी में सिमट कर रह गई है । तुम्हारे गीतों को लोग वाह – वाहकर सुनते हैं और मेरा रोना भी अपराध माना जाता है । कोयल ! तू मेरे और अपने बीच के अंतर को देख । इसके बाद भी तू रणभेरी बजाकर लोगों को आज़ादी की लड़ाई के लिए उत्साहित कर रही है । कोयल तेरी इस हुंकार से ओजस्वी रचनाएँ लिखने के अलावा और क्या कर सकता हूँ । बताओ कोयल मोहनदास करमचंद गांधी के संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी उत्तेजना किसमें भर दूँ । कोयल कुछ तो बता ।

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