Class 9 history chapter 1 Notes In Hindi | Class 9 history chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति Notes in hindi, इस Notes में हम फ्रेंच क्रांति के बारे में जानेंगे, फ्रांसीसी क्रांति ने फ्रांस में राजतंत्र को समाप्त कर दिया । विशेषाधिकारों पर आधारित व्यवस्था से शासन की एक नई व्यवस्था उदित हुई । क्रांति के दौरान तैयार किया गया मानव अधिकार घोषणापत्र एक नए युग के आगमन का द्योतक था । सबके एक समान अधिकार होते हैं और हर व्यक्ति बराबरी का दावा कर सकता है यह सोच राजनीति की नई भाषा का हिस्सा बन गई । समानता और स्वतंत्रता की यह सोच नए युग का केंद्रीय विचार थी।
Class 9 History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति Notes in hindi
फ्रांसीसी क्रांति
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1789 में फ्रांसीसी क्रांति शुरू हुई। मध्यम वर्ग द्वारा शुरू की गई घटनाओं की श्रृंखला ने उच्च वर्गों को झकझोर दिया ।
- लोगों ने राजशाही के क्रूर शासन के खिलाफ विद्रोह किया ।
- इस क्रांति ने स्वतंत्रता बंधुत्व और समानता के विचारों को सामने रखा।
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क्रांति 14 जुलाई 1789 को शुरू हुई थी। सैकड़ों लोगों का एक समूह पेरिस नगर के पूर्वी भाग की ओर चल पड़ा और बास्तील किले की जेल को तोड़ डाला ।
- इसके बाद हुई हथियारबंद लड़ाई में बस्टिल के कमांडर की मौत हो गई ।
- सम्राट की निरंकुश शक्तियों का प्रतीक होने के कारण बास्तील किला लोगों की घृणा का केंद्र था ।
- इसलिए किले को ढहा दिया गया ।
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में फ्रांसीसी समाज:
फ्रांस की क्रांति के कारण :-
राजनीतिक कारण
- सन् 1774 में बूब राजवंश का लुई XVI फ्रांस की राजगद्दी पर आसीन हुआ । उस समय उसकी उम्र केवल बीस साल थी और उसका विवाह ऑस्ट्रिया की राजकुमारी मेरी एन्तोएनेत से हुआ था ।
- राज्यारोहण के समय उसने राजकोष खाली पाया ।
- लंबे समय तक चले युद्धों के कारण फ़्रांस के वित्तीय संसाधन नष्ट हो चुके थे ।
- वर्साय ( Versailles ) के विशाल महल और राजदरबार की शानो – शौकत बनाए रखने की फिजूलखर्ची का बोझ अलग से था ।
- लुई XVI के शासनकाल में फ्रांस अमेरिका के 13 उपनिवेशों को साझा शत्रु ब्रिटेन से आज़ाद कराने में सहायता दी थी ।
- इस युद्ध के चलते फ्रांस पर दस अरब लिव्रे से भी अधिक का कर्ज़ और जुड़ गया जबकि उस पर पहले से ही दो अरब लिव्रे का बोझ चढ़ा हुआ था ।
- सरकार से कर्जदाता अब 10 प्रतिशत ब्याज की माँग करने लगे थे ।
- फ्रांसीसी सरकार अपने बजट का बहुत बड़ा हिस्सा दिनोंदिन बढ़ते जा रहे कर्ज़ को चुकाने मजबूर थी ।
- अपने नियमित खर्चों जैसे , सेना के रख – रखाव , राजदरबार , सरकारी कार्यालयों या विश्वविद्यालयों को चलाने के लिए फ्रांसीसी सरकार करों में वृद्धि के लिए बाध्य हो गई ।
सामाजिक कारण
- अठारहवीं सदी में फ्रांसीसी समाज तीन एस्टेट्स में बँटा था और केवल तीसरे एस्टेट के लोग ( जनसाधारण ) ही कर अदा करते थे ।
- वर्गों में विभाजित फ्रांसीसी समाज मध्यकालीन सामंती व्यवस्था का अंग था ।
- ‘ प्राचीन राजतंत्र ‘ पद का प्रयोग सामान्यतः सन् 1789 से पहले के फ्रांसीसी समाज एवं संस्थाओं के लिए होता है ।
- पूरी आबादी में लगभग 90 प्रतिशत किसान थे ।
- ज़मीन के मालिक किसानों की संख्या बहुत कम थी ।
- लगभग 60 प्रतिशत ज़मीन पर कुलीनों , चर्च और तीसरे एस्टेट्स के अमीरों का अधिकार था ।
- प्रथम दो एस्टेट्स , कुलीन वर्ग एवं पादरी वर्ग के लोगों को कुछ विशेषाधिकार जन्मना प्राप्त थे ।
- इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषाधिकार था राज्य को दिए जाने वाले करों से छूट ।
- किसानों को स्वामी की सेवा के लिए घर और खेतों में काम करने के लिए-सेना में सेवा करने या सड़कों के निर्माण में भाग लेने के लिए बाध्य किया गया था।
भारी कर प्रणाली
- चर्च भी किसानों से करों का एक हिस्सा , टाइद ( Tithe , धार्मिक कर ) के रूप में वसूलता था ।
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तीसरे एस्टेट के लोगों को सरकार को कर चुकाना ही होता था ।
- इन करों में टाइल ( Taille , प्रत्यक्ष कर ) और अनेक अप्रत्यक्ष कर शामिल थे ।
- अप्रत्यक्ष कर नमक और तम्बाकू जैसी रोज़ाना उपभोग की वस्तुओं पर लगाया जाता था ।
- इस प्रकार राज्य के वित्तीय कामकाज का सारा बोझ करों के माध्यम से जनता वहन करती थी ।
आर्थिक कारण
जीवन का संघर्ष
- फ़्रांस की जनसंख्या सन् 1715 में 2.3 करोड़ थी जो सन् 1789 में बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई ।
- परिणामतः अनाज उत्पादन की तुलना में उसकी माँग काफ़ी तेज़ी से बढ़ी ।
- अधिकांश लोगों के मुख्य खाद्य पावरोटी – की कीमत में तेजी से वृद्धि हुई ।
- अधिकतर कामगार कारखानों में मजदूरी करते थे और उनकी मज़दूरी मालिक तय करते थे ।
- लेकिन मज़दूरी महँगाई की दर से नहीं बढ़ रही थी ।
- फलस्वरूप , अमीर गरीब की खाई चौड़ी होती गई ।
- स्थितियाँ तब और बदतर हो जातीं जब सूखे या ओले के प्रकोप से पैदावार गिर जाती ।
- इससे रोज़ी – रोटी का संकट पैदा हो जाता था । ऐसे जीविका संकट प्राचीन राजतंत्र के दौरान फ़्रांस में काफ़ी आम थे ।
उभरते मध्य वर्ग ने विशेषाधिकारों के अंत की कल्पना की
- ये ज़िम्मेदारी तीसरे एस्टेट के उन समूहों ने उठाई जो समृद्ध और शिक्षित होकर नए विचारों के संपर्क में आ सके थे ।
- अठारहवीं सदी में एक नए सामाजिक समूह का उदय हुआ जिसे मध्य वर्ग कहा गया ,
- जिसने फैलते समुद्रपारीय व्यापार और ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों के उत्पादन के बल पर संपत्ति अर्जित की थी ।
- तीसरे एस्टेट में इन सौदागरों एवं निर्माताओं के अलावा प्रशासनिक सेवा व वकील जैसे पेशेवर लोग भी शामिल थे ।
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ये सभी पढ़े लिखे थे और इनका मानना था कि समाज के किसी भी समूह के पास जन्मना विशेषाधिकार नहीं होने चाहिए ।
- किसी भी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत का आधार उसकी योग्यता ही होनी चाहिए ।
दार्शनिक और उनका योगदान
- स्वतंत्रता , समान नियमों तथा समान अवसरों के विचार पर आधारित समाज की यह परिकल्पना जॉन लॉक और ज़्याँ जाक रूसो जैसे दार्शनिकों ने प्रस्तुत की थी ।
- अपने टू ट्रीटाइज़ेज़ ऑफ़ गवर्नमेंट में लॉक ने राजा के दैवी और निरंकुश अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया था ।
- रूसो ने इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा ।
- मॉन्तेस्क्यू ने द स्पिरिट ऑफ़ द लॉज़ नामक रचना में सरकार के अंदर विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही ।
फ्रांस में राजनीतिक विचारक
दार्शनिकों के इन विचारों पर कॉफ़ी हाउसों व सैलॉन की गोष्ठियों में गर्मागर्म बहस हुआ करती और पुस्तकों एवं अखबारों के माध्यम से इनका व्यापक प्रचार – प्रसार हुआ ।
क्रांति की शुरुआत
- फ्रांसीसी सम्राट लुई XVI ने 5 मई 1789 को नये करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई ।
- पहले और दूसरे एस्टेट ने इस बैठक में अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे जो आमने – सामने की कतारों में बिठाए गए ।
- तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधि उनके पीछे खड़े किए गए ।
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तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग कर रहे थे ।
- किसानों, औरतों एवं कारीगरों का सभा में प्रवेश वर्जित था ।
- लगभग 40,000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतों एवं माँगों की सूची बनाई गई , जिसे प्रतिनिधि अपने साथ लेकर आए थे ।
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एस्टेट्स जेनराल के नियमों के अनुसार प्रत्येक वर्ग को एक मत देने का अधिकार था ।
- इस बार भी लुई XVI इसी प्रथा का पालन करने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ था ।
- परंतु तीसरे वर्ग के प्रतिनिधियों ने माँग रखी कि अबकी बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए , जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार होगा ।
- यह एक लोकतांत्रिक सिद्धांत था जिसे मिसाल के तौर पर रूसो ने अपनी पुस्तक द सोशल कॉन्ट्रैक्ट में प्रस्तुत किया था ।
- जब सम्राट ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि विरोध जताते हुए सभा से बाहर चले गए ।
- तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि खुद को संपूर्ण फ्रांसीसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे ।
- 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इन्डोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए ।
- उन्होंने अपने आप को नैशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं किया जाएगा तब तक असेंबली भंग नहीं होगी ।
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उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिए ने किया ।
- मिराब्यो का जन्म कुलीन परिवार में हुआ था लेकिन वह सामंती विशेषाधिकारों वाले समाज को खत्म करने की ज़रूरत से सहमत था ।
नैशनल असेंबली के दौरान फ्रांस
- जिस वक्त नैशनल असेंबली संविधान का प्रारूप तैयार करने में व्यस्त थी, पूरा फ़्रांस आंदोलित हो रहा था ।
- कड़ाके की ठंड के कारण फ़सल मारी गई थी और पावरोटी की कीमतें आसमान छू रही थीं ।
- बेकरी की दुकानों पर घंटों के इंतज़ार के बाद गुस्सायी औरतों की भीड़ ने दुकान पर धावा बोल दिया । दूसरी तरफ़ सम्राट ने सेना को पेरिस में प्रवेश करने का आदेश दे दिया था ।
- क्रुद्ध भीड़ ने 14 जुलाई को बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्तनाबूद कर दिया ।
अफवाहों की अवधि
- देहाती इलाकों में गाँव – गाँव यह अफ़वाह फैल गई कि जागीरों के मालिकों ने भाड़े पर लठैतों – लुटेरों के गिरोह बुला लिए हैं जो पकी फ़सलों को तबाह करने निकल पड़े हैं ।
- कई जिलों में भय से आक्रांत होकर किसानों ने कुदालों और बेलचों से ग्रामीण किलों ( chateau ) पर आक्रमण कर दिए । उन्होंने अन्न भंडारों को लूट लिया और लगान संबंधी दस्तावेजों को जलाकर राख कर दिया ।
- कुलीन बड़ी संख्या में अपनी जागीरें छोड़कर भाग गए , बहुतों ने तो पड़ोसी देशों में जाकर शरण ली।
क्रांति के परिणाम
- लुई XVI ने अंतत : नैशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा ।
- 4 अगस्त, 1789 की रात को असेंबली ने करों, कर्त्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित किया ।
- पादरी वर्ग के लोगों को भी अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देने के लिए विवश किया गया ।
- धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया और चर्च के स्वामित्व वाली भूमि जब्त कर ली गई ।
- इस प्रकार कम से कम 20 अरब लिव्रे की संपत्ति सरकार के हाथ में आ गई
फ़्रांस संवैधानिक राजतंत्र बन गया
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नैशनल असेंबली ने सन् 1791 में संविधान का प्रारूप पूरा कर लिया ।
- इसका मुख्य उद्देश्य था— सम्राट की शक्तियों को सीमित करना ।
- एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रीकृत होने के बजाय अब इन शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं
- विधायिका,
- कार्यपालिका
- एवं न्यायपालिका में विभाजित एवं हस्तांतरित कर दिया गया ।
- सन् 1791 के संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नैशनल असेंबली को सौंप दिया । नैशनल असेंबली अप्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती थी ।
- सर्वप्रथम नागरिक एक निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे , जो पुनः असेंबली के सदस्यों को चुनते थे ।
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सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार नहीं था ।
- 25 वर्ष से अधिक उम्र वाले केवल ऐसे पुरुषों को ही सक्रिय नागरिक (जिन्हें मत देने का अधिकार था) का दर्जा दिया गया था, जो कम से कम तीन दिन की मज़दूरी के बराबर कर चुकाते थे ।
- शेष पुरुषों और महिलाओं को निष्क्रिय नागरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया था ।
फ्रांस के संविधान का आधार
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संविधान ‘ पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणापत्र ‘ के साथ शुरू हुआ था ।
- जीवन के अधिकार
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार
- और कानूनी बराबरी के अधिकार
- ‘ नैसर्गिक एवं अहरणीय ‘ अधिकार के रूप में स्थापित किया गया अर्थात् ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जन्मना प्राप्त थे और इन अधिकारों को छीना नहीं जा सकता ।
- राज्य का यह कर्त्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करे ।
राजनीतिक प्रतीक
- टूटी हुई जंजीर : दासो को बांधने के लिए जंजीरों का प्रयोग किया जाता था टूटी हुई हथकड़ी उनकी आजादी का प्रतीक है ।
- छड़ो का गट्ठर : अकेली छड़ को आसानी से तोड़ा जा सकता है पर पूरे गट्ठर को नहीं एकता में ही बल है का प्रतीक है ।
- त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आंख : सर्वदर्शी आंख ज्ञान का प्रतीक है सूरज की किरणे अज्ञान रूपी अंधेरे को मिटा देती है ।
- राजदंड : शाही सत्ता का प्रतीक है ।
- अपनी पूंछ मुंह में लिए सांप : समानता का प्रतीक अंगूठी का कोई और छोर नहीं होता ।
- लाल फ्राइजियन टोपी : दासों द्वारा स्वतंत्र होने के बाद पहनी जाने वाली टोपी।
- नीला सफ़ेद लाल : फ्रांस के राष्ट्रीय रंग।
- डैनों वाली स्त्री : कानून का मानवीय रूप।
- विधि पट : कानून सबके लिए समान है और उसकी नज़र में सब बराबर हैं।
फ़्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना
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लुई XVI ने संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए थे , परन्तु प्रशा के राजा से उसकी गुप्त वार्ता भी चल रही थी ।
- फ्रांस की घटनाओं से अन्य पड़ोसी देशों के शासक भी चिंतित थे ।
- इसलिए 1789 की गर्मियों के बाद होने वाली ऐसी घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए इन शासकों ने सेना भेजने की योजना बना ली थी ।
- लेकिन जब तक इस योजना पर अमल होता , अप्रैल 1792 में नैशनल असेंबली ने प्रशा एवं ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया ।
- प्रांतों से हज़ारों स्वयंसेवी सेना में भर्ती होने के लिए जमा होने लगे ।
- उन्होंने इस युद्ध को यूरोपीय राजाओं एवं कुलीनों के विरुद्ध जनता की जंग के रूप में लिया ।
- उनके होठों पर देशभक्ति के जो तराने थे उनमें कवि रॉजेट दि लाइल द्वारा रचित मार्सिले भी था ।
- यह गीत पहली बार मार्सिलेस के स्वयंसेवियों ने पेरिस की ओर कूच करते हुए गाया था ।
- इसलिए इस का नाम मार्सिले हो गया जो अब फ़्रांस का राष्ट्रगान है ।
जेकोबिन्स
- देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को ऐसा लगता था कि क्रांति के सिलसिले को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है
- 1791 के संविधान से सिर्फ़ अमीरों को ही राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे ।
- लोग राजनीतिक क्लबों में अड्डे जमा कर सरकारी नीतियों और अपनी कार्ययोजना पर बहस करते थे ।
- इनमें से जैकोबिन क्लब सबसे सफल था ,(जिसका नाम पेरिस के भूतपूर्व कॉन्वेंट ऑफ़ सेंट जेकब के नाम पर पड़ा), जो अब इस राजनीतिक समूह का अड्डा बन गया था ।
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जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे ।
- इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर- जैसे जूता बनाने वाले , पेस्ट्री बनाने वाले , घड़ीसाज़ , छपाई करने वाले और नौकर व दिहाड़ी मज़दूर शामिल थे ।
- उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था ।
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जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह धारीदार लंबी पतलून पहनने का निर्णय किया ।
- ऐसा उन्होंने समाज के फ़ैशनपरस्त वर्ग , खासतौर से घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस ( घुटन्ना ) पहनने वाले कुलीनों से खुद को अलग करने के लिए किया ।
- यह ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों की सत्ता समाप्ति के एलान का उनका तरीका था ।
- जैकोबिनों को ‘ सौं कुलॉत ‘ के नाम से जाना गया जिसका शाब्दिक – अर्थ होता है – बिना घुटन्ने वाले ।
- सौं कुलॉत पुरुष लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता का प्रतीक थी ।
राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना
- सन् 1792 की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महँगाई अभाव से नाराज़ पेरिसवासियों को लेकर एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनायी ।
- 10 अगस्त, ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोल दिया, राजा के रक्षकों को मार डाला और खुद राजा को कई घंटों तक बंधक बनाये रखा ।
- बाद में असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया ।
- नये चुनाव कराये गए 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषों – चाहे उनके पास संपत्ति हो या नहीं को मतदान का अधिकार दिया गया ।
- नवनिर्वाचित असेंबली को कन्वेंशन का नाम दिया गया ।
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21 सितंबर 1792 को इसने राजतंत्र का अंत कर दिया और फ्रांस को एक गणतंत्र घोषित किया ।
- यह वंशानुगत राजशाही नहीं है ।
- लुई XVI को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में मौत की सजा सुना दी गई ।
- 21 जनवरी 1793 को प्लेस डी लॉ कॉन्कॉर्ड में उसे सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई ।
- जल्द ही रानी मेरी एन्तोएनेत का भी वही हश्र हुआ ।
आतंक राज
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सन् 1793 से 1794 तक के काल को आतंक का युग कहा जाता है ।
- रोबेस्प्येर ने नियंत्रण एवं दंड की सख्त नीति अपनाई ।
- उसके हिसाब से गणतंत्र के जो भी शत्रु थे – कुलीन एवं पादरी , अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य , उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य उन सभी को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया और एक क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया ।
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- यदि न्यायालय उन्हें ‘ दोषी ‘ पाता तो गिलोटिन पर चढ़ाकर उनका सिर कलम कर दिया जाता था ।
- गिलोटिन दो खंभों के बीच लटकते आरे वाली मशीन था जिस पर रख कर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था ।
- इस मशीन का नाम इसके आविष्कारक डॉ . गिलोटिन के नाम पर पड़ा ।
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- रोबेस्प्येर सरकार ने कानून बना कर मज़दूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी ।
- गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गई ।
- किसानों को अपना अनाज शहरों में ले जाकर सरकार द्वारा तय कीमत पर बेचने के लिए बाध्य किया गया ।
- अपेक्षाकृत महँगे सफ़ेद आटे के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई ।
- सभी नागरिकों के लिए साबुत गेहूँ से बनी और बराबरी का प्रतीक मानी जाने वाली , ‘ समता रोटी ‘ खाना अनिवार्य कर दिया गया ।
- बोलचाल और संबोधन में भी बराबरी का आचार व्यवहार लागू करने की कोशिश की गई ।
- परंपरागत मॉन्स्यूर ( महाशय ) एवं मदाम ( महोदया ) के स्थान पर अब सभी फ़्रांसीसी पुरुषों एवं महिलाओं को सितोयेन ( नागरिक ) एवं सितोयीन ( नागरिका ) नाम से संबोधित किया जाने लगा ।
- चर्चों को बंद कर दिया गया और उनके भवनों को बैरक या दफ़्तर बना दिया गया ।
- रोबेस्प्येर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि – त्राहि करने लगे ।
- अंतत : जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार करके अगले ही दिन उसे गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया ।
डिरेक्ट्री शासित फ़्रांस
जैकोबिन सरकार के पतन के बाद मध्य वर्ग के संपन्न तबके के पास सत्ता आ गई ।
- नए संविधान के तहत सम्पत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया ।
- इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था ।
- इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका – डिरेक्ट्री को नियुक्त किया ।
- इस प्रावधान के ज़रिए जैकोबिनों के शासनकाल वाली एक व्यक्ति – केंद्रित कार्यपालिका से बचने की कोशिश की गई ।
- डिरेक्टरों का झगड़ा अकसर विधान परिषदों से होता और तब परिषद् उन्हें बर्खास्त करने की चेष्टा करती ।
डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह – नेपोलियन बोनापार्ट – के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया ।
क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई?
- महिलाएँ शुरू से ही फ्रांसीसी समाज में इतने अहम परिवर्तन लाने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं ।
- उन्हें उम्मीद थी कि उनकी भागीदारी क्रांतिकारी सरकार को उनका जीवन सुधारने हेतु ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करेगी ।
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तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएँ जीविका निर्वाह के लिए काम करती थीं ।
- वे सिलाई बुनाई , कपड़ों की धुलाई करती थीं , बाज़ारों में फल – फूल – सब्ज़ियाँ बेचती थीं अथवा संपन्न घरों में घरेलू काम करती थीं ।
- बहुत सारी महिलाएँ वेश्यावृत्ति करती थीं ।
- अधिकांश महिलाओं के पास पढ़ाई – लिखाई तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के मौके नहीं थे ।
- केवल कुलीनों की लड़कियाँ अथवा तीसरे एस्टेट के धनी परिवारों की लड़कियाँ ही कॉन्वेंट में पढ़ पाती थीं , इसके बाद उनकी शादी कर दी जाती थी ।
- उनकी मज़दूरी पुरुषों की तुलना में कम थी ।
महिला क्लब और महिलाओं के प्रति उनकी मांग
- महिलाओं ने अपने हितों की हिमायत करने और उन पर चर्चा करने के लिए खुद के राजनीतिक क्लब शुरू किए और अखबार निकाले ।
- फ्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग 60 क्लब अस्तित्व में आए ।
- उनमें ‘ द सोसाइटी ऑफ़ रेवलूशनरी एंड रिपब्लिकन विमेन ‘ सबसे मशहूर क्लब था ।
महिलाओं के प्रति उनकी मांग
- 1791 के संविधान में महिलाएँ निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था ।
- उनकी एक प्रमुख माँग यह थी कि महिलाओं को पुरुषों के समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए ।
- महिलाओं ने मताधिकार , असेंबली के लिए चुने जाने तथा राजनीतिक पदों की माँग रखी ।
- उनका मानना था कि तभी नई सरकार में उनके हितों का प्रतिनिधित्व हो पाएगा ।
क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए ।
- सरकारी विद्यालयों की स्थापना के साथ ही सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया ।
- अब पिता उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ़ शादी के लिए बाध्य नहीं कर सकते थे ।
- शादी को स्वैच्छिक अनुबंध माना गया और नागरिक कानूनों के तहत उनका पंजीकरण किया जाने लगा ।
- तलाक को कानूनी रूप दे दिया गया और मर्द औरत दोनों को ही इसकी अर्जी देने का अधिकार दिया गया ।
- अब महिलाएँ व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं , कलाकार बन सकती थीं और छोटे – मोटे व्यवसाय चला सकती थीं ।
अंततः 1946 में फ्रांस में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला।
दास प्रथा का उन्मूलन
फ़्रांसीसी उपनिवेशों में दास प्रथा का उन्मूलन जैकोबिन शासन के क्रांतिकारी सामाजिक सुधारों में से एक था ।
- कैरिबिआई उपनिवेश – मार्टिनिक , गॉडेलोप और सैन डोमिंगों – तम्बाकू , नील , चीनी एवं कॉफ़ी जैसी वस्तुओं के महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता थे ।
- अपरिचित एवं दूर देश जाने और काम करने के प्रति यूरोपियों की अनिच्छा का मतलब था – – बागानों में श्रम की कमी ।
- इस कमी को यूरोप , अफ्रीका एवं अमेरिका के बीच त्रिकोणीय दास- व्यापार द्वारा पूरा किया गया ।
दास व्यापार की शुरूआत
दास – व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में शुरू हुआ
- फ्रांसीसी सौदागर बोर्दे या नान्ते बन्दरगाह से अफ़्रीका तट पर जहाज़ ले जाते थे , जहाँ वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे ।
- दासों को दाग कर एवं हथकड़ियाँ डाल कर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक तीन माह की लंबी समुद्री यात्रा के लिए जहाज़ों में ठूंस दिया जाता था ।
- वहाँ उन्हें बागान मालिकों को बेच दिया जाता था ।
- दास श्रम के बल पर यूरोपीय बाज़ारों में चीनी , कॉफ़ी एवं नील की बढ़ती माँग को पूरा करना संभव हुआ ।
- बोर्दे और नान्ते जैसे बंदरगाह फलते – फूलते दास- व्यापार के कारण ही समृद्ध नगर बन गए ।
- लेकिन अंततः सन् 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया ।
- पर यह कानून एक छोटी – सी अवधि तक ही लागू रहा ।
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दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास प्रथा पुनः शुरू कर दी ।
- बागान मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ़्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतंत्रता मिल गयी ।
- फ्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया ।
क्रांति और रोज़ाना की ज़िंदगी
- सन् 1789 से बाद के वर्षों में फ़्रांस के पुरुषों , महिलाओं एवं बच्चों के जीवन में ऐसे अनेक परिवर्तन आए ।
- क्रांतिकारी सरकारों ने कानून बना कर स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्शों को रोज़ाना की जिंदगी में उतारने का प्रयास किया ।
- 1789 की गर्मियों में जो सबसे महत्त्वपूर्ण कानून अस्तित्व में आया, वह था सेंसरशिप की समाप्ति ।
- प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत तमाम लिखित सामग्री और सांस्कृतिक गतिविधियों – किताब , अखबार , नाटक – को राजा के सेंसर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद ही प्रकाशित या मंचित किया जा सकता था ।
- अधिकारों के घोषणापत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया ।
- प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब यह था कि किसी भी घटना पर परस्पर विरोधी विचार भी व्यक्त किए जा सकते थे ।
सारांश
नेपोलियन बोनापार्ट
- 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फ़्रांस का सम्राट घोषित कर दिया ।
- उसने पड़ोस के यूरोपीय देशों की विजय यात्रा शुरू की ।
- पुराने राजवंशों को हटा कर उसने नए साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी ।
- नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था ।
- उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप तौल की एक समान प्रणाली चलायी ।
- शुरू – शुरू में बहुत सारे लोगों को नेपालियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतंत्रता दिलाने की उम्मीद थी ।
- पर जल्दी ही उसकी सेनाओं को लोग हमलावर मानने लगे ।
- आखिरकार 1815 में वॉटरलू में उसकी हार हुई ।
फ्रांसीसी क्रांति से हमें क्या मिला
- स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के विचार फ़्रांसीसी क्रांति की सबसे महत्त्वपूर्ण विरासत थे ।
- ये विचार उन्नीसवीं सदी में फ़्रांस से निकल कर बाकी यूरोप में फैले और इनके कारण वहाँ सामंती व्यवस्था का नाश हुआ ।
- टीपू सुल्तान और राजा राममोहन रॉय क्रांतिकारी फ़्रांस में उपजे विचारों से प्रेरणा लेने वाले दो ठोस उदाहरण थे ।