Class 9 Hindi Sparsh Chapter 4 Summary तुम कब जाओगे अतिथि

Hindi Sparsh Chapter 4 Summary तुम कब जाओगे अतिथि

Class 9 Hindi Sparsh Chapter 4 Summary तुम कब जाओगे अतिथि, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT Summary for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

Class 9 Hindi Sparsh Chapter 4 Summary तुम कब जाओगे, अतिथि

 

पाठ का सार

प्रस्तुत व्यंग्यात्मक लेख में ऐसे लोगों की आलोचना की गई है जो दूसरों के घर पर जबरदस्ती कब्ज़ाकर मेहमाननवाजी कराते हैं और वापिस जाने का नाम नहीं लेते । ये लोग बिना सूचना दिए चले आते हैं । रिश्तेदारी दो – चार दिन के लिए ही उपयुक्त होती है । फिर भारी पड़ने लगती है । इस पाठ में एक इसी प्रकार के मेहमान के बारे में मेजबान निरंतर कुछ न कुछ कयास लगाता है ।

मेहमान को घर में आए चार दिन बीत गए । बार बार मन यह सोचने पर विवश हो जाता है कि अतिथि कब जाएँगे । लेखक अतिथि को स्मरण दिलाना चाहते हैं कि कैलेंडर सामने लगा है , सिगरेट का धुआँ उछाल रहे हो , दो दिन से तुम्हारे जाने की प्रतीक्षा हो रही है । कम से कम यह तो ख्याल रखना चाहिए कि घर में रहते हुए बहुत दिन बीत गए । लाखों मील लंबी यात्रा करने के बाद एस्ट्रॉनाट्स भी इतने समय तक चाँद पर नहीं रुके थे । माना कि तुमने एक अंतरंग निजी संबंध स्थापित कर लिया है , किंतु आर्थिक अभावों के वाबजूद तुम यहीं टिके रहना चाहते हो । अब तुम्हें घर लौट जाना चाहिए , क्या तुम्हें अपने घर की याद नहीं आती ?

जब अतिथि घर आए तब उनका आदर – सत्कार किया गया । पत्नी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया । विविध भोज्य सामग्री बनाई गई । सिनेमा दिखाया गया और मेहमाननवाज़ी में भी कोई कमी नहीं आने दी । रात के भोजन को डिनर में बदल दिया गया । इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक आशा थी । इस आवभगत के कारण अतिथि शीघ्रतिशीघ्र लौट जाएँगे ऐसी उम्मीद रखी गई थी ।

तीसरे दिन की सुबह जब उन्होंने धोबी के पास कपड़े भेजने का अनुग्रह किया तो उनका इरादा स्पष्ट होने लगा । पर मन पर नियंत्रण रखकर उनकी जिज्ञासा पूरी करने का निर्णय लिया गया । तब लगा कि हमेशा ही अतिथि देवता नहीं होते । अतिथि की लॉण्ड्रीवाली बात को सुनकर पत्नी की आँखें बड़ी हो गईं । उसका मन छोटा हो गया । उसे अहसास हो गया था कि अतिथि अधिक दिन ठहरनेवाला है । उनकी यह धारणा निर्मूल नहीं थी । अतिथि के आने पर परिवार , बच्चे , नौकरी , फिल्म , राजनीति , रिश्तेदारी , तबादले , पुराने दोस्त , परिवार नियोजन , महँगाई , साहित्य और यहाँ तक कि आँख मार – मारकर पुराने प्रेमी प्रेमिकाओं का भी जिक्र कर लिया । उसके बाद खामोशी छा गई । बोरियत होने लगी । भावनाएँ अपशब्दों का रूप ग्रहण करने लगीं पर अतिथि था कि जाने का नाम नहीं ले रहा था । बार – बार मन में प्रश्न कूदने लगता है कि अतिथि कब वापिस जाएँगे ? अगर अतिथि का बस चलता तो वह यहीं रह जाते , उन्हें तो यह स्वीट होम लग रहा था परंतु शराफत भी कोई चीज़ होती है । गेट आउट भी एक वाक्य है जो बोलने में देर नहीं लगती ।

आज मेहमाननवाज़ी का पाँचवाँ दिन था । एक देवता और अतिथि में अंतर होता है । देवता तो दर्शन देकर लौट जाते हैं , इसी में उनका देवत्व है । अतिथि को भी अपना देवत्व पहचानना चाहिए ।

पाठ के शब्दार्थ

आगमन – आना

चतुर्थ – चौथा

निस्संकोच – बिना शर्म के

विगत – बीता हुआ

सतत – लगातार

आतिथ्य – अतिथि सत्कार

संभावना – उम्मीद

एस्ट्रॉनाट्स – अंतरिक्ष यात्री

अंकित – छापा

आर्थिक सीमा – धन संबंधी सीमा

अज्ञात – अनजान

आशंका – भय

मेहमाननवाजी – अतिथि सत्कार

आग्रह – अनुरोध

गरिमा – गौरव

छोर – किनारा

आघात – चोट

अप्रत्याशित – जिसकी आशा न हो

मार्मिक – हृदय को छूनेवाली

वेला – समय

औपचारिक – दिखावटी

निर्मूल – निराधार

सलवट – मुड़ने के निशान

चुक जाना – समाप्त होना

ज़िक्र – चर्चा

सौहार्द – मित्रता

बोरियत बोर होना

रूपांतरित – बदला हुआ

ऊष्मा – गर्मी

गोलाकार – गोले का आकार उपवास व्रत महत्ता महत्व

गुंजायमान – गूँजता हुआ

किरण सूर्य की रोशनी

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