Class 9 Hindi Sparsh Chapter 3 Summary एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

Hindi Sparsh Chapter 3 Summary एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

Class 9 Hindi Sparsh Chapter 3 Summary एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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Class 9 Hindi Sparsh Chapter 3 Summary एवरेस्ट : मेरी शिखर यात्रा

 

पाठ का सार

बचेंद्री पाल एवरेस्ट के शिखर पर पहुँचनेवाली प्रथम भारतीय महिला है । इस पाठ में उन्होंने एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने का रोमांचकारी वर्णन किया है ।

एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज से चल दिया । एक मजबूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे ‘ बेस कैंप ‘ पहुँचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ़ कर सके । लेखिका ने नमचे बाज़ार पहुँचकर एवरेस्ट को निहारा । इस स्थान को ‘ सागर माथा ‘ भी कहते हैं । अधिकतर शेरपा यहीं हैं । लेखिका ने एवरेस्ट पर एक बड़ा भारी बर्फ़ का फूल देखा । पता चला कि जब पर्वत शिखर पर 150 किलोमीटर से अधिक की गति से हवाएँ चलती हैं तो सूखी बर्फ़ के उड़ने से यह फूल सा बन जाता है । बर्फ़ का यह ध्वज 10 किलोमीटर से भी लंबा हो सकता है । शिखर पर चढ़नेवालों की इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है । लेखिका को डर लगा , किंतु फिर भी वह चुनौती का सामना करना चाहती थी ।

26 मार्च को अभियान दल पैरिच पहुँचा तो इन्हें बर्फ़ के खिसकने से हुई शेरपा कुली की मृत्यु का समाचार मिला । हिमपात के समय बर्फ़ के खंड बेतरतीब गिरते हैं और ग्लेशियर के बहने से बड़ी – बड़ी चट्टानें फौरन गिर जाती हैं । ऐसे में धरती पर दरारें पड़ जाने से खतरनाक स्थिति बन जाती है । दूसरे दिन वे अपना अधिकांश सामान हिमपात के आधे रास् तक ले गए और डॉ ० मीनू मेहता से इन्होंने अल्यूमिनियम की सीढ़ियों से अस्थायी पुल बनाना , रस्सियों का उपयोग , बर्फ़ की आड़ी – तिरछी दीवारों पर रस्सी बाँधना आदि सीखा । तीसरे दिन रीता गोंबू के साथ लेखिका ने हिमपात से कैंप तक सामान लेकर चढ़ाई की । बेस कैंपको सूचना देने के लिए इनके पास वॉकी – टॉकी थी , जिससे इन्होंने कर्नल खुल्लर को अपने कैंप पर पहुँचने की सूचना दी । अंगदोरजी , लोपसांग और गगन बिस्सा 29 अप्रैल को साउथ कोल पहुँच गए , जहाँ उन्होंने हजार नौ सौ मीटर पर चौथा कैंप लगाया ।

जब अप्रैल में लेखिका बेस कैंप में थी , तो तेनजिंग अपनी सबसे छोटी पुत्री डेकी के साथ इनके पास आए थे तथा इन्होंने दल के प्रत्येक सदस्य के साथ बात की थी । लेखिका ने जब स्वयं को पर्वतारोहण में नौसिखिया बताया तो उन्होंने लेखिका के कंधों पर अपना हाथ रखकर कहा कि वह एक पर्वतीय लड़की है इसलिए पहले ही प्रयास में एवरेस्ट के शिखर पर पहुँच जाएगी । 15-16 मई , 1984 को वह बुद्ध पूर्णिमा के दिन ल्होत्से की बर्फ़ीली सीधी ढलान पर लगाए गए तंबू के कैंप में थी । इसके साथ लोपसांग और तशारिंग तथा अन्य लोग दूसरे तंबुओं में थे । लेखिका गहरी नींद में सोई हुई थी कि अचानक रात में साढ़े बारह बजे के लगभग उसके सिर के पिछले हिस्से में एक सख्त चीज टकराई जिससे उसकी नींद खुल गई । तभी एक जोरदार धमाका भी हुआ । उसे ऐसा लगा कि जैसे कोई ठंडी और भारी वस्तु उसे कुचलती हुई जा रही है और साँस लेने में भी कठिनाई होने लगी । यह एक लंबा बर्फ़ का पिंड था , जो इनके कैंप के ठीक ऊपर ल्होत्से ग्लेसियर से टूटकर इनके ऊपर आ गिरा था । इससे प्रत्येक व्यक्ति को चोट लगी थी । आश्चर्य इस बात का था कि इस दुर्घटना में मौत किसी की भी नहीं हुई थी ।

लोपसांग ने अपनी स्विस छुरी की मदद से तंबू का रास्ता साफ़ किया था । उन्होंने ही लेखिका को बर्फ़ की कब्र से खींचकर बाहर निकाला था । सुबह तक सुरक्षा दल वहाँ पहुँच गया । इतनी ऊँचाई पर यह सुरक्षा कार्य सचमुच साहसिक था । सभी नौ पुरुष सदस्यों को चोटों तथा हड्डी टूटने के कारण बेस कैंप में भेजना पड़ा । कर्नल खुल्लर ने बचेंद्री से पूछा कि क्या वह भी वापस जाना चाहेंगी ? बचेंद्री ने उत्तर दिया- नहीं ।

साउथ कोल कैंप पहुँचते ही लेखिका ने अपनी महत्वपूर्ण चढ़ाई की तैयारी शुरू कर दी । उसने भोजन , कुकिंग गैस तथा ऑक्सीजन के सिलेंडर एकत्र कर लिए । जय और मीनू पीछे रह गए थे । लेखिका इनके लिए एक थरमस में जूस और दूसरे में गर्म चाय लेकर बर्फीली हवाओं का सामना करते हुए नीचे चल पड़ी । पहले उसकी मुलाकात मीनू से फिर जय से और अंत में थोड़ा नीचे उतरने पर उसे की मिला । उसने लेखिका के इस प्रकार आने पर आश्चर्य व्यक्त किया और जूस पीकर उसके साथ चल पड़ा । थोड़ी देर बाद साउथ कोल कैंप से ल्हाटू और बिस्सा भी उनसे मिलने नीचे आ गए । बाद में सभी साउथ कोल कैंप में आ गए ।

अगले दिन सुबह चार बजे उठकर लेखिका ने बर्फ़ पिघलाकर चाय बनाई और बिस्कुट , चॉकलेट का नाश्ता कर लगभग साढ़े पाँच बजे तंबू से बाहर निकल आई । अंगदोरजी तुरंत चढ़ाई शुरू करना चाहता था । एक ही दिन में साउथ कोल से चोटी तक जाना और लौटना बहुत कठिन और मेहनत का कार्य था । अन्य कोई इनके साथ चलने के लिए तैयार नहीं था । सुबह 6.20 पर ये और अंगदोरजी साउथ कोल से निकल पड़े और दो घंटे से भी कम समय में वे शिखर कैंप पर पहुँच गए । उसे लगा कि वे दोपहर के एक बजे तक चोटी पर पहुँच पाएँगे । ल्हाटू भी वहाँ पहुँच गया । चाय पीकर इन्होंने फिर चढ़ाई शुरू कर दी । ये नायलॉन की रस्सी के सहारे आगे बढ़ रहे थे ।

यह 23 मई 1984 का दिन था । दोपहर का एक बजकर सात मिनट का समय था । लेखिका इस समय एवरेस्ट की चोटी पर खड़ी थी । वह भारत की प्रथम महिला थी जो इस प्रकार एवरेस्ट की चोटी पर पहुँची थी । वहाँ एक साथ दो व्यक्ति खड़े नहीं हो सकते थे । चारों ओर हज़ारों मीटर लंबी सीधी ढलान थी । इन्होंने बर्फ़ खोदकर स्वयं को ढंग से खड़ा रहने लायक बनाया और फिर घुटनों के बल बैठकर बर्फ से अपने माथे को लगाकर सागरमाथा के ताज का चुंबन किया । वहीं उसने थैले से दुर्गा माँ का चित्र और हनुमान चालीसा निकालकर लाल कपड़े में लपेटकर इनकी पूजा कर बर्फ़ में दबा दिया । तभी उसे अपने माता – पिता की भी याद आ गई । उसने अंगदोरजी को नमस्कार किया । लेखिका ने उन्हें बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट पर चढ़ने की बधाई दी तो उन्होंने भी लेखिका को गले से लगाकर कहा कि तुमने अच्छी चढ़ाई की । ल्हाटू ने एवरेस्ट पर चारों के पहुँचने की सूचना दल के नेता को दे दी । कर्नल खुल्लर इस सफलता से बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने लेखिका को कहा कि तुम्हारी इस उपलब्धि के लिए मैं तुम्हारे माता – पिता को बधाई देना चाहूँगा । देश को तुम पर गर्व है । अब तुम ऐसे संसार में वापस जाओगी जो तुम्हें पहले से एकदम भिन्न लगेगा ।

पाठ के शब्दार्थ

अग्रिम दल – पहले पहुँचनेवाला समूह

बेस कैंप – जहाँ से चढ़ाई का अभियान चलाया जाता है

दुर्गम – जहाँ कठिनाई से जाया जा सके

हिमपात – बर्फ का गिरना

शिखर – चोटी

ध्वज – झंडा

विचित्र – अनोखा

कठिनतम – सबसे कठिन

चुनौती – संकट

सामना करना – मुकाबला करना

हिम – स्खलन – बर्फ का गिरना

दुःखद – दुखदायी

अवसाद – निराशा

सहज – स्वाभाविक

अवगत – परिचित

चिह्नित – निशान दिया हुआ

जायजा लेना – अनुमान लगाना

अनियमित – बिना नियम के

व्यर्थ – बेकार

भौचक्का – हैरान

अव्यवस्थित – बिना व्यवस्था के

तत्काल – उसी समय

हिम विदर बर्फ़ में दरार पड़ना

प्रवास – विदेश में रहना । बाहर यात्रा करना ।

आरोही – चढ़नेवाला

अस्थायी – जो स्थिर न हो

आड़ी – तिरछी – टेढ़ी – मेढ़ी

अभियांत्रिकी – तकनीकी ।

नौसिखिया – अनाड़ी

प्रयास – कोशिश

पिंड – टुकड़ा

हिमपुंज – बर्फ़ का समूह

भीषण गर्जना – भयानक गरज

तहस – नहस करना नष्ट करना

स्ट्रेचर – रोगी को लिटाकर ले जाने का उपकरण

सुरक्षा – बचाव

साहसिक – हिम्मतवाला

कृतज्ञतापूर्वक – उपकार मानते हुए

हक्का – बक्का रह जाना – हैरान रह जाना

जोखिम – खतरा

पर्वतारोही – पर्वत पर चढ़नेवाला

किट – सारा समान

उपलब्ध – प्राप्त

शिखर कैंप – चोटी पर स्थित अस्थायी निवास

श्रमसाध्य – परिश्रम से किया जानेवाला

आरोहण – ऊपर चढ़ना

क्षमता – शक्ति

कर्मठता – काम करने में दृढ़ता

आश्वस्त – भरोसा रखे हुए

भुरभुरी – चूरा – चूरा टूटनेवाली

सुरक्षा – रक्षा

संतुलन – बराबर का भार बनाए रखना

सपाट – सीधा

दृश्यता – दिखाई देने का गुण

शून्य – खाली । समाप्ति

शंकु – नुकीला और सर्वोच्च भाग

स्थिर – ठहरा हुआ

अर्चना – पूजा

रज्जु नेता – रस्सी के सहारे आगे बढ़ानेवाला व्यक्ति

प्रोत्साहित – उत्साहित

अनूठी – अद्भुत

उपलब्धि – प्राप्ति , सफलता ।

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