Hindi Sparsh Chapter 13 Summary गीत – अगीत
Class 9 Hindi Sparsh Chapter 13 Summary गीत – अगीत, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.
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Class 9 Hindi Sparsh Chapter 13 Summary गीत – अगीत
पाठ का सार
श्री रामधारी सिंह ‘ दिनकर ‘ द्वारा रचित कविता गीत – अगीत शृंगारिक चेतना से परिपूर्ण है । प्रस्तुत काव्य के द्वारा जीवन में प्रेम और कोमलता के महत्त्व को प्रतिपादित किया गया है । कवि मानता है कि प्रेम की पहचान प्रदर्शन में नहीं है बल्कि मौन भाव से सारी पीड़ा को पी जाने में है । कविता में मौन और मुखर दोनों अभिव्यक्तियों को सुंदर कहा गया है । कवि के अनुसार नदी कलकल स्वर में अपना सुख – दुख कहती चली जाती है । वह किनारे पड़े पत्थरों से कुछ – कुछ कहकर अपना हृदय हलका कर लेती है । उधर गुलाब मौन रहकर सुंदरता बिखेरता है । गुलाब मौन भाव में सोच में डूबा रहता है । वह अपने प्रेम भावों को प्रकट नहीं कर पाता । दोनों का अपना – अपना सौंदर्य हैं । प्रातः कालीन सूर्य की सुनहरी धूप का स्पर्श पाकर शुक गा पड़ता है जबकि शुकी उस गान को सुनकर प्रफुल्लित हो जाती है । दोनों ही अपनी – अपनी जगह सुंदर हैं । एक प्रेमी प्रेम में मग्न होकर आल्हा – गीत गाता है , वह अपने प्रेम को गीत के माध्यम से व्यक्त करता है , पर उसकी प्रेमिका नीम की छाया में चुपचाप गीत सुनती है कुछ बोलती नहीं पर सोचती अवश्य है कि भाग्य ने उसे गीत की कड़ी क्यों नहीं बना दिया । इस प्रकार अभिव्यक्ति के दो रूप हैं- मुखर और मौन । दोनों ही अपनी – अपनी जगह सुंदर हैं ।
भावार्थ
1. गीत , अगीत , कौन सुंदर है ?
गाकर गीत विरह के तटिनी
वेगवती बहती जाती है ,
दिल हलका कर लेने को
उपलों से कुछ कहती जाती है ।
तट पर एक गुलाब सोचता ,
“ देते स्वर यदि मुझे विधाता ,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता । ”
गा – गाकर बह रही निर्झरी ,
पाटल मूक खड़ा तट पर है ।
गीत , अगीत , कौन सुंदर है ?
शब्दार्थ-
अगीत- जो गाया नहीं गया
विरह – वियोग
तटिनी – नदी
वेगवती – तेज़ गति से चलनेवाली
विधाता – ईश्वर
पाटल – गुलाब
मूक- मौन
भावार्थ – प्रस्तुत पंक्तियों में प्रकृति सौंदर्य के अतिरिक्त जीव – जंतुओं के ममत्व , मानवीय राग और प्रेमभाव का सजीव चित्रण करते हुए कवि कहते हैं कि गीत और अगीत दोनों में से कौन अच्छा है । नदी वियोग के गीत गाती हुई तीव्र प्रवाह से प्रवाहित होती है । अपने मन की व्यथा को हल्का करने के लिए किनारों से संवाद करती है । बहता हुआ पानी जब किनारों से टकराता है तो उससे एक प्रकार की गूँज उठती है । नदी के किनारे पर लगा हुआ गुलाब सोचने लगता है कि यदि मुझे ईश्वर स्वरों का वरदान देते तो मैं भी अपनी आपबीती नदी के गीत की तरह संसार को सुनाता । इस गीत में पतझड़ के दुखभरे दिनों की अभिव्यक्ति होती नदी गीत गाते हुए अर्थात् कल – कल की ध्वनि करते हुए प्रवाहित हो रही है और कि पर खड़ा हुआ गुलाब चुप है । उसकी पीड़ा मन ही में रह जाती है । गीत और अगीत में से कौन सुंदर प्रतीत होता है ?
शिल्प – सौंदर्य –
1. प्रस्तुत पद्यांश में प्राकृतिक सौंदर्य जीवंत हो उठा है ।
2 . खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है ।
3. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग किया गया है ।
4 . भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।
5. भाषा सरल , सरस व प्रवाहमयी है ।
6. भावात्मक व उदाहरणात्मक शैली का प्रयोग किया गया है ।
7. चित्रात्मक होने के कारण वर्णन सजीव व रोचक बन पड़ा है ।
8. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है ।
2. बैठा शुक उस घनी डाल पर
जो खोंते पर छाया देती ।
पंख फुला नीचे खोंते में
शुकी बैठ अंडे है सेती ।
गाता शुक जब किरण वसंती
छूती अंग पर्ण से छनकर ।
किंतु , शुकी के गीत उमड़कर
रह जाते सनेह में सनकर ।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में ,
फूला मग्न शुकी का पर है ।
गीत , अगीत , कौन सुंदर है ?
शब्दार्थ –
शुक – तोता
घनी – अधिक पत्तोंवाली
खोंता – घोंसला
शुकी – मादा तोता
पर्ण- पत्ता
सनकर – डूबकर
भावार्थ – कवि ने मौन और प्रकटीकरण के अंतर को व्यक्त करने के लिए तोते और तोती के व्यवहार को सामने रखते हुए कहा है कि शुक वृक्ष की उस घनी डाल पर बैठा है जिसकी छाया उसके घोंसले पर पड़ रही है , उसी घोंसले में शुकी भी बैठी है , वह अपने पंख फुलाकर अपने अंडों को से रही है । जब सूरज की बसंती किरण पत्तों से छनकर आती है और उसके अंगों को छूती है तो वह प्रसन्न होकर गा उठता है । उधर शुकी भी गाना चाहती है किंतु उसके मन में उठनेवाले गीत प्रेम और वात्सल्य में डूबकर रह जाते हैं । वह अपने बच्चों के स्नेह में डूबी डूबी उन गीतों को अंदर ही अंदर अनुभव करती है । शुक का स्वर वन में चारों ओर गूँज रहा है , किंतु शुकी अपने पंखों को अंडों पर फुलाए हुए मग्न है । दोनों ही सुंदर हैं । शुक का स्नेह मुखर है और शुकी का मौन । एक का स्वर गीत कहलाता है , दूसरे का मौन अगीत कहलाता है । बताइए , इन दोनों में से कौन सुंदर है ?
शिल्प- सौंदर्य –
1. कवि मौन भावना के सौंदर्य को व्यक्त करने में सफल रहा है ।
2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है ।
3. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग किया गया है ।
4. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।
5. भावात्मक व उदाहरणात्मक शैली का प्रयोग किया गया है ।
6. भाषा सरल , सरस व प्रवाहमयी है ।
7. चित्रात्मक होने के कारण वर्णन सजीव व रोचक बन पड़ा है ।
8. ‘ स्नेह में सनकर ‘ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ ।
3. दो प्रेमी हैं यहाँ , एक जब
बड़े साँझ आल्हा गाता है ,
पहला स्वर उसकी राधा को
घर से यहाँ खींच लाता है ।
चोरी – चोरी खड़ी नीम की
छाया में छिपकर सुनती है ,
‘ हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना ‘ , यों मन में गुनती है ।
वह गाता , पर किसी वेग से
फूल रहा इसका अंतर है ।
गीत , अगीत , कौन सुंदर है ?
शब्दार्थ –
आल्हा – बुंदेलखंड क्षेत्र में गाया जानेवाला वीर रस से ओत – प्रोत लोकगीत
कड़ी – गीत की एक पंक्ति
विधना – विधाता
गुनती – सोचती
अंतर- हृदय
भावार्थ- कवि कहता है कि दो प्रेमियों के प्रेम का अंतर देखो । एक प्रेमी साँझ होते ही आल्हा – गीत गाने लगता है । जैसे ही उसके मुख से आल्हा का पहला स्वर फूटता है , वैसे ही उसकी राधा घर से वहाँ खिंची चली आती है । वह नीम की छाया में छिपकर उसका मधुर गीत सुनती है । गीत पर मुग्ध होकर वह सोचती है कि हे विधाता ! मैं इस मधुर गीत की पंक्ति ही क्यों न बन गई ? काश ! मैं इसके मधुर गीत में खो जाती । देखो , प्रेमी गाता है और उसके गान को सुनकर उसकी प्रेमिका का हृदय नाच उठता है । एक का प्रेम प्रकट है तो दूसरों का मौन । एक गाया जाने के कारण गीत है तो दूसरा मौन होने के कारण ‘ अगीत ‘ है । बताओ , इन दोनों में कौन अधिक सुंदर है ?
शिल्प – सौंदर्य –
1. गीत व अगीत के बीच ममत्व , मानवीय प्रेम और प्रेमभाव का सजीव चित्रण किया गया है ।
2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है ।
3. तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग किया गया है ।
4. भाषा में लयात्मकता व गीतात्मकता है ।
5. भाषा सरल , सरस व प्रवाहमयी है ।
6. भावात्मक व उदाहरणात्मक शैली का प्रयोग किया गया है ।
7. चित्रात्मक होने के कारण वर्णन सजीव व रोचक बन पड़ा है ।
8. ‘ चोरी – चोरी ‘ , ‘ गा – गाकर ‘ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है ।