NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 धूल

Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 धूल

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 धूल, (हिंदी)परीक्षा में राज्य बोर्ड और सीबीएसई स्कूलों में से कुछ में एनसीईआरटी की किताबों के माध्यम से छात्रों को पढ़ाया जाता है । के रूप में अध्याय एक अंत शामिल है, वहां एक अभ्यास के लिए छात्रों को मूल्यांकन के लिए तैयार सहायता प्रदान की है । छात्रों को उन अभ्यासों को बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट करने की जरूरत है क्योंकि बहुत पिछले उन लोगों से पूछा भीतर सवाल । कई बार, छात्रों के अभ्यास के भीतर अटक जाते है और सवालों के सभी स्पष्ट करने में सक्षम नहीं हैं 

छात्रों को सभी प्रश्नों को हल करने और अपनी पढ़ाई को संदेह के साथ बनाए रखने में सहायता करने के लिए, हमने सभी कक्षाओं के लिए छात्रों के लिए स्टेप एनसीईआरटी सॉल्यूशंस द्वारा कदम प्रदान किए हैं। इन उत्तरों को इसी तरह छात्रों की सहायता और सवालों का सही जवाब देने के तरीके के रूप में ठीक से सचित्र समाधानों की सहायता से बेहतर अंक स्कोरिंग में छात्रों की मदद मिलेगी ।

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 धूल

Class 9 Hindi Sparsh Chapter 1 धूल

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1.
हीरे के प्रेमी उसे किस रूप में पसंद करते हैं?
उत्तर:
हीरे के प्रेमी उसे साफ़-सुथरा खरादा हुआ और आँखों में चकाचौंध करने वाले रूप में पसंद करते हैं।

प्रश्न 2.
लेखक ने संसार में किस प्रकार के सुख को दुर्लभ माना है?
त्तर:
लेखक ने अखाड़े की मिट्टी और धूल से सनने को संसार का सबसे दुर्लभ सुख माना है।

प्रश्न 3.
मिट्टी की आभा क्या हैं? उसकी पहचान किससे होती है?
उत्तर:
मिट्टी की आभा धूल है। उसके रूप और गुण की पहचान उसके धूल से होती है।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न 1.
धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?
उत्तर:
ग्रामीण जीवन में गोधूलि बेला होती है। उस समय वातावरण में उठी हुई धूल शिशु के मुख पर सुशोभित होती है। हर ग्रामीण शिशु इस सुख का अनुभव करता है। अत: ग्रामीण जीवन में धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती।

प्रश्न 2.
हमारी सभ्यता धूल से क्यों बचना चाहती है?
उत्तर:
हमारी सभ्यता इसलिए धूल से बचना चाहती है क्योंकि वह खुद को प्रगतिशील, आधुनिक और शहरी संस्कृति को अपनाने वाली है। इसका मानना है कि धूल से इनके बनवटी श्रृंगार फीके और धुंधले पड़ जाएँगे। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे भी धूल में न खेलें और न उसे हाथ लगाएँ।

प्रश्न 3.
अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
उत्तर:
अखाड़े की मिट्टी विशेष होती है। वह तेल और मट्टे से सिझाई हुई होती है। जब यह पसीने से लथपथ शरीर पर फिसलती है तो ऐसा लगता है कि मानो आदमी कुआँ खोदकर निकला हो।

प्रश्न 4.
श्रद्धा, भक्ति, स्नेह की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन किस प्रकार है?
उत्तर:
श्रद्धा, भक्ति और स्नेह की भावना की व्यंजना के लिए धूल सर्वोत्तम साधन इसलिए है क्योंकि धूल का जुड़ाव व्यक्ति की मातृभूमि से होता है। एक सती स्त्री इसे अपने माथे से लगाती है। योद्धा इसे अपनी आँखों से लगाकर देशभक्ति और देश के प्रति श्रद्धा प्रकट करता है। किसी धूल-धूसरित बालक को गोद में उठाकर उसके प्रतिस्नेह प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 5.
इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यग्य किया है?
उंत्तर:
लेखक ने नगरीय सभ्यता को बनावटी, नकली तथा चकाचौंध-भरी कहा है। नगर के लोग मिट्टी को मैल कहकर उससे दूर रहते हैं। इस कारण वे धूल में सनने का तथा स्वाभाविक खेलों का आनंद नहीं ले पाते।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (5(0-60 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न 1.
लेखक वालकृष्ण’ के मुँह पर छाई गोधूलि को श्रेष्ठ क्यों मानता है?
अथवा
लेखक ने ‘धूल’ पाठ में बाल कृष्णा के सहज सौंदर्य के साथ किसकी तुलना करते हुए उसे महत्त्वहीन बताया। हैं और क्यों?
उत्तर:
लेखक बालकृष्ण के मुँह पर छाई गोधूलि को इसलिए श्रेष्ठ मानता है क्योंकि अभिजात्य वर्ग ने सौंदर्य में वृद्धि करने वाले अनेक साधनों का आविष्कार कर लिया, पर बालकृष्ण के मुख पर लगी धूल जैसा सौंदर्य बढ़ाती है, उसके सामने सारे सौंदर्य फीके नजर आते हैं। इसके अलावा इसी धूल में खेल-कूदकर शिशु बड़ा होता है। जिन बच्चों का बचपन गाँव में बीतता है, उनके धूल-धूसरित शरीर के बिना बचपन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।

प्रश्न 2.
लेखक ने धूल और मिट्टी में क्या अंतर बताया है?
उत्तर:
लेखक ने मिट्टी और धूल में अंतर बताया है। उसके अनुसार मिट्टी शरीर है तो धूल प्राण है। मिट्टी शब्द है तो धूल उससे उत्पन्न रस है। मिट्टी चाँद है तो धूल उसकी चाँदनी है। दूसरे शब्दों में, मिट्टी की आभा की दूसरा नाम है-धूल। कहने का आशय यह है कि धूल में चमक होती है, आभा होती है। मिट्टी की पहचान उसकी धूल से होती है।

प्रश्न 3.
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के कौन-कौन से सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है?
उत्तर:
ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के अनेक सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है; जैसे-आम की बागों के पीछे छिपते सूर्य की किरणों में जो धूलि सोने को मिट्टी कर देती है, सूर्यास्त के बाद रास्ते पर गाड़ी के निकल जाने के बाद जो रुई के बादलों की तरह या ऐवरावत हाथी के नक्षत्र पथ की तरह जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है। चाँदनी रात में मेले में जाने वाली गाडियों के पीछे धूल कवि की कल्पना की भाँति उमड़ती चलती है। यही धूल फूल की पंखुड़ियों पर सौंदर्य बनकर छा जाती है।

प्रश्न 4.
ही वह घन चोट न टूट’ का संदर्भ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उन -इस उक्ति का अर्थ है-हीरा वही है जो घन की चोट खाकर भी न टूटे। आशय यह है कि असली हीरा सुदृढ़ होता है। पाठ के संदर्भ में इसका अर्थ है-ग्रामीण लोग हीरे की भाँति सुदृढ़ होते हैं। वे संकटों की मार से हारते नहीं हैं। जिन्हें इस देश की धूल-मिट्टी से प्यार है, वे हर संकट में और अधिक मज़बूत होकर उभरते हैं।

प्रश्न 5.
धूल, धूलि, धूली, धूरि और गोधूलि की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘धूल’ पाठ से स्पष्ट होता है कि धूल, धूली, धूलि, धूरि और गोधूलि आदि की व्यंजनाएँ अलग-अलग हैं। धूल मानव जीवन का यथार्थवादी गई है जबकि ‘धूलि उसकी कविता है। ‘धूलि’ छायावादी दर्शन है जिसकी वास्तविकता संदिग्ध है और ‘धूरि’ लोक संस्कृति को जागरण है और गोधूलि ग्रामीण क्षेत्रों में सूर्यास्त के समय गायों के खुरों से उठने वाली वह धूल है जो वन प्रांत से घर की ओर दौड़ती-भागती गायों के खुरों से उठती है। इन सबका रंग एक ही है, रूप की भिन्नता भले ही हो।

प्रश्न 6.
‘धूल पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘धूल’ पाठ का केंद्रीय भाव लिखिए। पाठ के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
धूल’ पाठ का मूल भाव है-ग्रामीण सभ्यता का गुणगान करना। जो लोग गाँव की धूल में सनकर पले-बढ़े हैं, वे हीरे के समान सुंदर और सुदृढ़ हैं। ग्रामीण जीवन की तुलना में नागरिक जीवन का बनावटी सौंदर्य काँच के समान नकली और नश्वर होता है। लेखक के अनुसार, ‘धूल मिट्टी की महिमा का नाम है। वह मिट्टी की आभा है। यह गर्द या मैल नहीं है, बल्कि पवित्र है। सती हो या योद्धा-सब इसे अपने माथे पर सुशोभित करते हैं। हमें चाहिए कि हम धूल का सम्मान करें, इसके संपर्क में रहें।।

प्रश्न 7.
कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है? s
उत्तर:
कविता को विडंबना मानते हुए लेखक ने यह कहा है कि गोधूलि को अपनी कविता का विषय बनाकर कितने ही कवियों ने अपनी लेखनी चलाई है परंतु सच्चाई तो यही है कि गोधूलि पूरी तरह से गाँवों की संपत्ति है जो शहरों के हिस्से में नहीं आई है। शहरों में तो बस धूल धक्कड़ है। यहाँ धूलि होने पर भी गोधूलि कहाँ हो सकती है। इसकी एक विडंबना यह भी है कि कवियों ने अपनी कविता में जिस धूल को अमर किया है वह हाथी-घोड़ों के चलने से दौड़ने वाली धूल नहीं, बल्कि गायों और गोपालकों के पैरों से उठने वाली धूलि है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1.
फूल के ऊपर जो रेणु उसका श्रृंगार बनती है, वही धूल शिशु के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
उत्तर:
जो धूल फूल के ऊपर बैठ जाती है और उसका श्रृंगार करती है, वही धूल शिशु के मुँह पर बैठकर उसकी स्वाभाविक शारीरिक आभा को और अधिक निखार देती है। आशय यह है कि धूल के कारण शिशु का मुख और फूल दोनों सुंदर प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 2.
‘धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की-लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
इन पंक्तियों द्वारा लेखक यह कहना चाहता है कि धन्य-धन्य वे नर कहकर लेखक ने उस व्यक्ति को धन्य कहा है परंतु ‘मैले जो करत’ कहकर अपनी हीन भावना भी प्रकट कर दी क्योंकि धूल-धूसरित शिशु को गोद में उठाने से अपने कपड़ों के मलिन होने से चिंतित भी है। यह व्यक्ति धूल भरे हीरों का प्रेमी नहीं है।

प्रश्न 3.
मिट्टी और धूल में अंतर है, लेकिन उतना ही, जितना शब्द और रस में, देह और प्राण में, चाँद और चाँदनी में। [CBSE]
उत्तर:
लेखक के अनुसार, मिट्टी और धूल में वही अंतर है जो कि शब्द और रस में, देह और प्राण मैं, चाँद और चाँदनी में है। आशय यह है कि मिट्टी स्थूल है। ‘धूल’ उसका सूक्ष्म सौंदर्य और प्रभाव है।

प्रश्न 4.
हमारी देशभक्ति धूल को माथे से न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।
उत्तर:
नगरीय सभ्यता द्वारा धूल को हेय समझने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य करते हुए लेखक कहता है कि धूल को माथे से लगाने योग्य है। इससे देशभक्ति की भावना की अभिव्यक्ति होती है पर नगर का अभिजात्य और आधुनिक कहलाने वाले वर्ग यदि इसे माथे से न लगाए तो इस पर पैर रखकर इसका अपमान भी न करे। अर्थात धूल का अपमान नहीं सम्मान करना चाहिए।

प्रश्न 5.
वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।
उत्तर:
इस पंक्ति में लेखक कहता है-ये धूल भरे हीरे अर्थात् मैले-कुचैले दीखने वाले ग्रामीण बंधु कभी विद्रोह पर उतर आए तो तुम पर ऐसी चोट करेंगे कि तुम्हें इनकी ताकत का तथा अपनी कमज़ोरी का साफ पता चल जाएगा। आशय यह है कि ये ग्रामीण जने वास्तविक हैं और ठोस हैं, जबकि नगरवासी चकाचौंध भरी नकली जिंदगी जीते हैं।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग छाँटिएउदाहरण : विज्ञापित-वि (उपसर्ग) ज्ञापित संसर्ग, उपमान, संस्कृति, दुर्लभ, निर्द्वद्व, प्रवास, दुर्भाग्य, अभिजात, संचालन।
उत्तर:

  1. संसर्ग = सम् + सर्ग
  2. उपमान = उप + मान
  3. संस्कृति = सम् + कृति
  4. दुर्लभ = दुः + लभ
  5. निर्द्वद्व = निः + द्वंद्व
  6. प्रवास = प्र + वास
  7. दुर्भाग्य = दुः + भाग्य
  8. अभिजात = अभि + जीत
  9. संचालन = सम् + चालन

प्रश्न 2.
लेखक ने इस पाठ में धूल चूमना, धूल माथे पर लगाना, धूल हान जैसे प्रयोग किए हैं। धूल से संबंधित अन्य पाँच प्रयोग और बताइए तथा उन्हें वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
अन्य प्रयोग इस प्रकार हैं-
धूल का स्पर्श करना, धूल से बढ़कर होना, धूल दिखाई देना, धूलि भरा, धूल से खेलना।
वाक्य प्रयोग-

  1. धूल का स्पर्श करना – सभी पहलवान अखाड़े में उतरने से पहले धूल का स्पर्श करते हैं।
  2. धूल से बढ़कर होना – जिस तत्त्व ने हमारे जीवन का निर्माण किया, वह धूल से बढ़कर और कोई नहीं है।
  3. धूल दिखाई देना – जिन्हें अपनी संस्कृति पर गर्व नहीं है, उन्हें स्वर्ण में भी धूल दिखाई देती है।
  4. धूलि भरा – माँ को अपने पुत्र का धूलि भरा चेहरा बहुत मनमोहक लगता है।
  5. धूल से खेलना – हम बचपन से ही धूल से खेल-खेलकर बड़े हुए हैं।

योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
शिवमंगल सिंह सुमन की कविता ‘मिट्टी की महिमा’, नरेश मेहता की कविता ‘मृत्तिका’ तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ‘धूल’ शीर्षक से लिखी कविताओं को पुस्तकालय में हूँढ़कर पढ़िए।

उत्तर:
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘मिट्टी की महिमा’ के कुछ शब्द इस प्रकार हैं-

मिट्टी की महिमा मिटने में
मिट-मिट हर बार सँवरती है।
मिट्टी मिट्टी पर मिटती है।
मिट्टी मिट्टी को रचती है।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
इस पाठ में लेखक ने शरीर और मिट्टी को लेकर संसार को असारता का जिक्र किया है। इस असता का वर्णन अनेक भक्त कवियों ने अपने काव्य में किया है। ऐसी कुछ रचनाओं का संकलन कर कक्षा में भित्ति पत्रिका पर लगाइए।

उत्तर:
कबीर का एक पद है-

रहना नहिं देस बिराना है।
यहु संसार कागद की पुरिया बूंद पड़े घुलि जाना है।
यहु संसार झाड़ औ झाँखड़ उरझ पुरझ मरि जाना है।

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