NCERT Class 10 Kshitij Chapter 9 Poem Explanation संगतकार

NCERT Class 10 Kshitij Chapter 9 Poem Explanation संगतकार, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 9 Poem Explanation संगतकार

 

पाठ की रूपरेखा

कविता में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व पर विचार किया गया है । संगतकार न केवल दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियों में साथ देता है , बल्कि समाज और राष्ट्र के निर्माण व विकास में संगतकारों जैसे अनेक लोगों ने अहम भूमिका निभाई है ।

कविता इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि सहयोगी की भूमिका और नायक के पीछे रहना उनकी कमज़ोरी नहीं , बल्कि मानवीयता है । कविता की दृश्यात्मकता कविता को ऐसी गति देती है , मानो हम सब कुछ अपने सामने घटते देख रहे हैं ।

 

काव्यांशों का भावार्थ

काव्यांश 1

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती

वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी

वह मुख्य गायक का छोटा भाई है

या उसका शिष्य

या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार

शब्दार्थ

मुख्य गायक- वह गायक जिसकी आवाज़ सबसे अधिक और ज़ोर से सुनाई देती है

कमज़ोर काँपती हुई – धीमी और पतली

शिष्य- सीखने वाला छात्र

रिश्तेदार- संबंधी

भावार्थ – प्रस्तुत कविता में मुख्य गायक का साथ देने वाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व पर विचार किया गया है । नाटक , फ़िल्म , संगीत , नृत्य आदि के अलावा समाज और इतिहास में भी अनेक ऐसे प्रसंग हुए हैं , जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इसलिए कवि कहता है कि मुख्य गायक के गंभीर और दमदार स्वर का साथ देती हुई एक मधुर , कमज़ोर और काँपती हुई – सी आवाज़ सुनाई देती है । कवि अनुमान लगाता है कि वह मुख्य गायक के छोटे भाई की आवाज़ होगी या उसके शिष्य की या पैदल चलकर सीखने आने वाले दूर के किसी रिश्तेदार की ।

काव्यांश 2

मुख्य गायक की गरज़ में

वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में

खो चुका होता है या अपने ही सरगम को लाँघकर

चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में

तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है

जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान

जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन

जब वह नौसिखिया था

शब्दार्थ

गरज़ – ऊँची – गंभीर आवाज़

अंतरा- स्थायी या टेक को छोड़कर गीत का चरण

जटिल – कठिन

तान- संगीत में स्वर का विस्तार

सरगम – संगीत के सात स्वरों का समूह

अनहद – बिना आघात की गूँज

संगतकार – गायन – वादन द्वारा मुख्य कलाकार का साथ देने वाला

स्थायी – बार – बार प्रयोग किया जाने वाला गायन – वादन का प्रारंभिक चरण

नौसिखिया – जिसने अभी सीखना आरंभ किया हो

भावार्थ – संगतकार मुख्य गायक की आवाज़ में प्राचीन काल से ही अपनी गूँज मिलाता आया है । वह मुख्य गायक को आधार प्रदान करता है । उसके गायन की रिक्तता को भरता है ।

जब मुख्य गायक स्थायी या टेक को छोड़कर अंतरे के रूप में बंदिश अर्थात् गीत का अगला चरण पकड़ता है और कठिन तानों की सफलतापूर्ण प्रस्तुति करता है या अपने ही सरगम को लाँघकर एक ऊँचे स्वर में खो जाता है , तब संगतकार ही गाने के स्थायी को पकड़े रहता है । यहाँ कवि ने गायन की उस स्थिति का वर्णन किया है , जहाँ मुख्य गायक गाते – गाते अलौकिक आनंद में डूब जाता है और उसे पास बैठे श्रोताओं की अनुभूति भी नहीं रहती । उस स्थिति में संगतकार मुख्य गायक और श्रोतागण के मध्य सेतु का कार्य करता हुआ कार्यक्रम में चार चाँद लगा देता है । उस समय ऐसा लगता है , जैसे वह मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान समेट रहा हो , जैसे वह उसे उसका बचपन याद दिला रहा हो , जब वह संगीत सीख रहा था ।

काव्यांश 3

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला

प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ

आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ

तभी मुख्य गायक को ढाँढ़स बँधाता

कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर

कभी – कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ

यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं हैं

और यह कि फिर से गाया जा सकता है

गाया जा चुका राग

और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है

या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है

उसे विफलता नहीं

उसकी मनुष्यता समझी जानी चाहिए

शब्दार्थ

तारसप्तक- मध्य सप्तक से ऊपर का सप्तक

अस्त होना- कम होना / छिप जाना

राख जैसा कुछ गिरता हुआ – बुझता हुआ स्वर

ढाँढस बँधाना- तसल्ली देना / सांत्वना देना

हिचक- रुकावट

विफलता – असफलता

मनुष्यता – मानवीय गुणों से युक्त / मानवता

भावार्थ – जब मुख्य गायक का गला तारसप्तक अर्थात् ऊँचे स्वरों में गाते समय बैठने लगता है , प्रेरणा उसका साथ छोड़ने लगती है या उसका उत्साह कम होने लगता है , आवाज़ बुझने लगती है , तभी मुख्य गायक को सांत्वना देता हुआ – सा कहीं से संगतकार का ऊँचा स्वर सुनाई देने लगता है । कभी – कभी मुख्य गायक को यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है और जिस राग को गाया जा चुका है , उसे फिर से गाया जा सकता है , संगतकार अपने स्वर से उसका साथ देता है ।

इस प्रकार वह मुख्य गायक के उत्साह को बढ़ाता है । यह सब करते समय उसकी आवाज़ में एक हिचकिचाहट साफ़ सुनाई देती है । यह संगतकार की अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है , उसे उसकी विफलता नहीं मानी जानी चाहिए , यह तो उसकी मानवीयता है । किसी भी क्षेत्र में नायक का साथ देने वाले ऐसे व्यक्तियों को कमज़ोर नहीं समझना चाहिए , क्योंकि इन्हीं के बल पर दूसरे लोग सफलता प्राप्त करते हैं ।

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