NCERT Class 10 Kshitij Chapter 7 Poem Explanation छाया मत छूना

NCERT Class 10 Kshitij Chapter 7 Poem Explanation छाया मत छूना, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

Sometimes, students get stuck inside the exercises and are not able to clear up all of the questions.  To assist students, solve all of the questions, and maintain their studies without a doubt, we have provided a step-by-step NCERT poem explanation for the students for all classes.  These answers will similarly help students in scoring better marks with the assist of properly illustrated Notes as a way to similarly assist the students and answer the questions right.

NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7 Poem Explanation छाया मत छूना

 

पाठ की रूपरेखा

प्रस्तुत कविता अतीत की स्मृतियों को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का संदेश देती है । हमारे जीवन में सुख और दुःख दोनों की उपस्थिति रहती है । अतीत की दु : खद स्मृतियों में ही खोए रहना ही जीवन जीने का कोई उचित विकल्प नहीं है । वर्तमान को अपने अनुकूल बनाने की चेष्टा करना ही मनुष्य का परम कर्तव्य है ।

मनुष्य जितना यश , ऐश्वर्य , धन , सम्मान आदि को पाने के विषय में सोचता है , वह उतना ही भ्रमित होता है । अत : जीवन को सुखी बनाने के लिए , यथार्थ को अपने अनुकूल बनाने के लिए मनुष्य को संघर्ष ( कर्म ) करते रहना चाहिए , नहीं तो वह अतीत की स्मृतियों में ही तैरता रहेगा ।

 

काव्यांशों का भावार्थ

काव्यांश 1

छाया मत छूना

मन , होगा दुःख दूना ।

जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी

छवियों की चित्र – गंध फैली मनभावनी ;

तन- सुगंध शेष रही , बीत गई यामिनी ,

कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी ।

भूली – सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण –

छाया मत छूना मन , होगा दुःख दूना ।

शब्दार्थ

छाया – परछाई / अतीत की स्मृतियाँ

दूना- दुगुना

सुरंग – रंग – बिरंगी

सुधियाँ –यादें

छवियों की चित्र – गंध – चित्र की स्मृति के साथ उसके आस – पास की गंध का अनुभव

मनभावनी- मन को अच्छी लगने वाली

तन- शरीर

यामिनी- तारों भरी चाँदनी रात

कुंतल – लंबे बाल

छुअन – छूना / स्पर्श

जीवित क्षण – जीता – जागता अनुभव

भावार्थ – कवि आशावादिता का संदेश देते हुए कहता है कि जीवन में कभी सुख आते हैं , तो कभी दुःख । जो समय बीत गया , उसके सुखों याद कर वर्तमान के दुःखों को और बढ़ाने से कोई लाभ नहीं है , क्योंकि इससे हमारी समस्याएँ कम होने के स्थान पर और अधिक बढ़ती हैं । माना कि जीवन में रंग – बिरंगी सुहावनी यादें हैं , बीते दिनों के सुख भरे चित्रों की स्मृति के साथ – साथ उसके आस – पास की सुहावनी गंध चारों ओर फैली हुई है , लेकिन अब वो तारों भरी सुंदर रात बीत गई है , उसकी केवल छवि शेष रह गई है ।

ठीक इसी प्रकार प्रिया के बालों में लगे हुए फूलों की खुशबू की भी यादें ही शेष रह गई हैं । आज दुःख के इन क्षणों में वे भूली हुई सुख भरी यादें एक जीवित क्षण बनकर मन को छू जाती हैं , लेकिन तू केवल उन्हीं में मत डूबा रह , जो कुछ वर्तमान में तेरे पास है , उसी से अपने भविष्य का निर्माण कर । इन छायाओं में जीकर मन को दोगुना दुःख मिलता है । अतः इनसे बच ।

काव्यांश 2

यश या न वैभव है , मान है न सरमाया ;

जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया ।

प्रभुता का शरण – बिंब केवल मृगतृष्णा है ,

हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है ।

जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन –

छाया मत छूना मन , होगा दुःख दूना ।

शब्दार्थ

यश – ख्याति

वैभव – ऐश्वर्य

सरमाया- पूँजी / धन दौलत

भरमाया – भटका प्रभुता का

शरण – बिंब – बड़प्पन का अहसास

मृगतृष्णा- भ्रम की स्थिति

चंद्रिका – चाँदनी

कृष्णा- काली

यथार्थ – सत्य

भावार्थ – जीवन में आशावादी दृष्टिकोण अपनाने की सीख देता हुआ कवि कहता है कि माना आज जीवन में न यश है और न वैभव , न मान – सम्मान है और न धन – दौलत , किंतु मनुष्य इन चीज़ों को पाने के लिए जितना दौड़ता है , उतना ही भटकता है । बड़प्पन का अहसास भ्रम के समान झूठा है और इसे पाने के लिए मनुष्य रेगिस्तान में भटके हिरन की भाँति इधर – उधर भटकता रहता है । हर सुख भरी चाँदनी रात के पीछे दुःख भरी काली रात भी छिपी रहती है । इसलिए तू केवल अपने सुख भरे दिनों को याद करके दुःख में मत डूब । तेरे सामने आज जो दुःख भरी कठिन परिस्थितियाँ आ रही हैं , तू उनका सामना कर , उसी स्थिति में जीने की कोशिश कर । सच्चाई से अपना मुख मत मोड़ , क्योंकि केवल अतीत के सुखों को याद करने से दुःख और अधिक बढ़ेगा ।

काव्यांश 3

दुविधा हत साहस है , दिखता है पंथ नहीं ,

देह सुखी हो पर मन के दुःख का अंत नहीं ।

दुःख है न चाँद खिला शरद – रात आने पर ,

क्या हुआ जो खिला फूल रस – बसंत जाने पर ?

जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण ,

छाया मत छूना

मन , होगा दुःख दूना

शब्दार्थ

दुविधा हत साहस – साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना

पंथ – रास्ता

देह – शरीर

वरण- अपना लेना

भावार्थ – हमें आशावाद के सहारे जीने का संदेश देते हुए कवि कहता है कि हे मनुष्य ! साहस होते हुए भी तेरा मन दुविधाग्रस्त है , तुझे सफलता का रास्ता कहीं दिखाई नहीं दे रहा है , तेरा शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ है , किंतु मन के दुःखों का कोई अंत नहीं दिखाई दे रहा है ।

माना जीवन में दुःख ही दुःख हैं । शरदकालीन सुहावनी रात के आने पर भी सुख रूपी चाँद उदित नहीं हुआ है और वसंत ऋतु के चले जाने पर फूल खिला है , तो भी दुःखी मत हो । जो सुख तुझे जीवन में नहीं मिला , उसे भूल जा । जो कुछ तुझे प्राप्त हो रहा है , उसे खुशी से स्वीकार कर और वर्तमान का सामना करके अपने भविष्य का नवनिर्माण कर ।

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