NCERT Class 10 Kshitij Chapter 5 Dohe Explanation अट नहीं रही है

Kshitij Chapter 5 Dohe Explanation अट नहीं रही है

NCERT Class 10 Kshitij Chapter 5 Dohe Explanation अट नहीं रही है, (Hindi) exam are Students are taught thru NCERT books in some of the state board and CBSE Schools. As the chapter involves an end, there is an exercise provided to assist students to prepare for evaluation. Students need to clear up those exercises very well because the questions inside the very last asked from those.

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NCERT Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5 Dohe Explanation अट नहीं रही है

 

पाठ की रूपरेखा

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ‘ ने ‘ उत्साह ‘ कविता के अंतर्गत बादलों को एक ओर तो लोगों की आकांक्षा ( इच्छाओं ) को पूरा करने वाला बताया है तथा दूसरी ओर उन्हें विध्वंस ( ध्वस्त , नष्ट ) , विप्लव ( विद्रोह ) और क्रांति चेतना के प्रतीक के रूप में बताया है । कवि ‘ निराला ‘ इस कविता के माध्यम से सामाजिक क्रांति और बदलाव लाना चाहते हैं । यह कविता एक आह्वान गीत है । ‘ अट नहीं रही है ‘ कविता में कवि ने फागुन के सौंदर्य और उल्लास को दर्शाया है । फागुन मास की शोभा संपूर्ण वातावरण में बिखरी हुई है ।

 

कविताओं का भावार्थ

उत्साह

1. बादल , गरजो ! –

घेर घेर घोर गगन , धाराधर ओ !

ललित ललित , काले घुँघराले ,

बाल कल्पना के – से पाले ,

विद्युत- छबि उर में , कवि , नवजीवन वाले !

वज्र छिपा , नूतन कविता

फिर भर दो –

बादल गरजो !

शब्दार्थ

घोर – भयंकर

गगन – आसमान

धाराधर- बादल

ललित- सुंदर

विद्युत – बिजली

नवजीवन – नया जीवन

वज्र – कठोर

नूतन – नई

भावार्थ – कवि बादलों को संबोधित करते हुए कहता है- लोगों के मन को सुख से भर देने वाले बादलों , आकाश को घेर – घेर कर खूब गरजो । तुम्हारे सुंदर बाल ( केश ) काले एवं घुँघराले हैं । ये कल्पना के विस्तार के समान घने हैं अर्थात् काले एवं सघन बादल अत्यंत दूर – दूर तक समूचे क्षितिज पर फैले हुए हैं । कवि ‘ निराला ‘ बादलों को कवि के रूप में व्याख्यायित करते हुए कहते हैं- तुम्हारे हृदय में बिजली की चमक है । जैसे बादल वर्षा करके सभी को नया जीवन प्रदान करते हैं , पीड़ित – प्यासे जन की इच्छा पूरी करते हैं , उसी प्रकार तुम ( कवि ) भी संसार को नया जीवन देने वाले हो । जिस प्रकार बादलों में वज्र छिपा है , उसी प्रकार तुम ( कवि ) भी अपनी नई कविता में अथवा भावनाओं में वज्र छिपाकर नवीन सृष्टि का निर्माण करो अर्थात् समूचे संसार को जोश से भर दो ।

2. विकल विकल , उन्मन थे उन्मन

विश्व के निदाघ के सकल जन ,

आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !

तप्त धरा , जल से फिर

शीतल कर दो — बादल गरजो !

शब्दार्थ

विकल- बेचैन

उन्मन – उदास

निदाघ- गर्मी

सकल – सारे

अज्ञात – अनजान

अनंत – आकाश

तप्त – जलती

धरा – पृथ्वी

भावार्थ – कवि कहता है कि चारों ओर वातावरण में बेचैनी व्याप्त थी , लोगों के मन भी दुःखी थे , इसलिए वह बादलों को कहता है – लोगों के मन को सुख से भर देने वाले बादलों ! आकाश को घेर – घेर कर गरजो ।

संसार के सभी प्राणी भयंकर गर्मी के कारण बेचैन और उदास हो रहे हैं । आकाश की अज्ञात ( अनजान ) दिशा से आए हुए घने बादलों ! तुम बरसकर गर्मी से तपती धरती को फिर से ठंडा करके लोगों को सुखी कर दो ।

 

अट नहीं रही है

3. अट नहीं रही है

आभा फागुन की तन

सट नहीं रही है ।

कहीं साँस लेते हो ,

घर – घर भर देते हो ,

उड़ने को नभ में तुम

पर – पर कर देते हो ,

आँख हटाता हूँ तो

हट नहीं रही है ।

पत्तों से लदी डाल

कहीं हरी , कहीं लाल ,

कहीं पड़ी है उर में

मंद – गंध – पुष्प – माल ,

पाट – पाट शोभा – श्री

पट नहीं रही है ।

शब्दार्थ

अट – समाना

आभा – सौंदर्य

पर- पंख

मंद – गंध – हल्की – हल्की खुशबू

उर – हृदय

पुष्प – माल – फूलों की माला

पाट – पाट – जगह – जगह

शोभा – श्री – सौंदर्य

भावार्थ – प्रस्तुत कविता में फागुन के अद्वितीय सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि चारों ओर फागुन की शोभा समा नहीं पा रही है । फागुन की शोभा तन में समा नहीं पा रही है । इस समय चारों ओर फूल खिलते हैं , तुम साँस लेते हो , उस साँस से तुम संपूर्ण प्रकृति को खूशबू से भर देते हो । वह सुगंध वातावरण में फैलकर हर घर को खूशबू से भर देती है । यह सब देखकर मन प्रसन्न हो उठता है और आकाश उड़ना चाहता है । इस वातावरण में पक्षी भी पंख फैलाकर आकाश में उड़ना चाहते हैं । फागुन का यह दृश्य इतना सुहावना है कि यदि मैं इन सबसे आँख हटाना भी चाहूँ तो हटा नहीं पाता हूँ । इस समय डालियाँ कहीं लाल , तो कहीं हरे पत्तों से लदी हुई हैं । इन सबको देखकर ऐसा लग रहा मानो फागुन के गले में सुगंध से मस्त कर देने वाली फूलों की माला पड़ी हुई है । इस प्रकार जगह – जगह फागुन का सौंदर्य बिखरा हुआ है कि वह सौंदर्य समा नहीं पा रहा है ।

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