खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर CBSE Class 6 History Chapter 8 Notes in Hindi

TextbookNCERT
BoardCBSE Board, UP board, JAC board, HBSE Board, Bihar Board, PSEB board, RBSE Board, UBSE Board
Class6th Class
SubjectHistory | Social Science
ChapterChapter 8
Chapter Nameखुशहाल गाँव और समृद्ध शहर
Topicखुशहाल गाँव और समृद्ध शहर CBSE Class 6 History Chapter 8 Notes in Hindi
MediumHindi
Especially Designed Notes forCBSE, ICSE, IAS, NET, NRA, UPSC, SSC, NDA, All Govt. Exam

खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर

लोहे के औज़ार और खेती

  • लोहे की चीजें हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं।
  • इस उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ।
  • महापाषाण कब्रों में लोहे के औज़ार और हथियार बड़ी संख्या में मिले हैं।
  • करीब 2500 वर्ष पहले लोहे के औज़ारों के बढ़ते उपयोग का प्रमाण मिलता है।
  • इनमें जंगलों को साफ़ करने के लिए कुल्हाड़ियाँ और जुताई के लिए हलों के फाल शामिल हैं।

कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उठाए गए अन्य कदम : सिंचाई

  • समृद्ध गाँवों के बिना राजाओं तथा उनके राज्यों का बने रहना मुश्किल था।
  • जिस तरह कृषि के विकास में नए औज़ार तथा रोपाई महत्वपूर्ण कदम थे, उसी तरह सिंचाई भी काफी उपयोगी साबित हुई।
  • इस समय सिंचाई के लिए नहरें, कुएँ, तालाब तथा कृत्रिम जलाशय बनाए गए।
  • इस चार्ट में तुम्हें सिंचाई से आए परिवर्तन दिखाए गए हैं। खाली स्थानों में सही वाक्य भरो :

गाँवों में कौन रहते थे ?

  • इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी तथा उत्तरी हिस्सों के अधिकांश गाँवों में कम से कम तीन तरह के लोग रहते थे।
  1. तमिल क्षेत्र में बड़े भूस्वामियों को वेल्लला, साधारण हलवाहों को उणवार और भूमिहीन मज़दूर, दास कडैसियार और अदिमई कहलाते थे।
  2. देश के उत्तरी हिस्से में, गाँव का प्रधान व्यक्ति ग्राम – भोजक कहलाता था। एक ही परिवार के लोग इस पद पर कई पीढ़ियों तक बने रहते थे।
    • यह पद आनुवंशिक था।
    • ग्राम – भोजक के पद पर गाँव का सबसे बड़ा भू-स्वामी होता था।
    • इनकी ज़मीन पर इनके दास और मज़दूर काम करते थे।
    • राजा भी कर वसूलने का काम इन्हें ही सौंप देते थे।
    • ये न्यायाधीश का और कभी – कभी पुलिस का काम भी करते थे।
  3. ग्राम-भोजकों के अलावा अन्य स्वतंत्र कृषक भी होते थे, जिन्हें गृहपति कहते थे। इनमें ज़्यादातर छोटे किसान ही होते थे।
    • इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे स्त्री-पुरुष थे, जिनके पास अपनी ज़मीन नहीं होती थी।
    • इनमें दास कर्मकार आते थे, जिन्हें दूसरों की ज़मीन पर काम करके अपनी जीविका चलानी पड़ती थी।

अधिकांश गाँवों में लोहार, कुम्हार, बढ़ई तथा बुनकर जैसे कुछ शिल्पकार भी होते थे।

नगर : क्या कहती हैं कहानियाँ, यात्रा – विवरण, मूर्तिकलाएँ और पुरातत्त्व

कहानियाँ

  • ये वो कहानियाँ हैं, जो आम लोगों में प्रचलित थीं।
  • बौद्ध भिक्खुओं ने इनका संकलन किया।

मूर्तिकलाएँ

  • प्राचीन नगरों के जीवन के बारे में हमें कुछ अन्य स्रोतों से भी पता चल सकता है।
  • शहरों, गाँवों या फिर जंगलों के जीवन से जुड़ी घटनाओं को मूर्तिकार कलात्मक ढंग से उकेरते थे।
  • इन मूर्तियों को ऐसी इमारतों की रेलिंग, खंभों या प्रवेश-द्वारों पर सजाया जाता था।
  • लगभग 2500 साल पहले विकसित हुए कई शहर महाजनपदों की राजधानियाँ थे।
  • इनमें से कुछ शहर परकोटों से घिरे होते थे।

पुरातत्त्व

  • कई शहरों में, पुरातत्वविदों को बर्तनों या चीकनी मिट्टी के छल्ले की पंक्तियाँ मिली हैं, जो एक के ऊपर एक व्यवस्थित हैं।
  • अनेक शहरों में वलयकूप मिले हैं।
  • ये वलयकूप गुसलखाने, नाली या कूड़ेदान के लिए प्रयुक्त होते थे।
  • प्रायः ये वलयकूप लोगों के घरों में होते थे ।
  • महलों, बाज़ारों या आम घरों के अवशेष बहुत कम मिले हैं।
  • संभवत: लकड़ी, मिट्टी व कच्ची ईंटों या छप्पर से बने होने के कारण ये ज़्यादा समय तक टिक न पाए हों।
  • भविष्य में पुरातत्त्वविद् इनकी खोज कर सकते हैं।

यात्रा – विवरण

  • प्राचीन शहरों के बारे में वहाँ गए नाविकों तथा यात्रियों के विवरणों द्वारा भी पता चलता है।
  • ऐसा ही एक विस्तृत विवरण किसी अज्ञात यूनानी नाविक का है।
  • जिन-जिन पत्तनों पर वह गया, उन सभी के बारे में उसने लिखा है।

सिक्के

  • पुरातत्त्वविदों को इस युग के हज़ारों सिक्के मिले हैं।
  • सबसे पुराने आहत सिक्के थे, जो करीब 500 साल चले।
  • इन सिक्कों को यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि डिजाइन धातु – चांदी या तांबे पर अंकित किए गए थे।

नगर : अनेक गतिविधियों के केंद्र

  • यह 2500 साल से भी ज़्यादा समय से एक महत्वपूर्ण नगर रहा है क्योंकि यह यातायात और व्यापार के दो मुख्य रास्तों पर स्थित था।
  • इनमें से एक रास्ता उत्तर-पश्चिम से पूरब की ओर, दूसरा उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाला था।
  • शहर के चारों ओर किलेबंदी थी, इसमें अनेक मंदिर थे।
  • आस-पास के किसान तथा पशुपालक शहर में रहने वालों के लिए भोजन जुटाते थे ।
  • मथुरा बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र था।
  • लगभग 2000 साल पहले मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी बनी।
  • मथुरा एक धार्मिक केंद्र भी रहा है। यहाँ बौद्ध विहार और जैन मंदिर हैं। यह कृष्ण भक्ति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
  • मथुरा में प्रस्तर – खंडों तथा मूर्तियों पर अनेक अभिलेख मिले हैं।
  • आमतौर पर ये संक्षिप्त अभिलेख हैं, जो स्त्रियों तथा पुरुषों द्वारा मठों या मंदिरों को दिए जाने वाले दान का उल्लेख करते हैं।
  • प्रायः शहर के राजा, रानी, अधिकारी, व्यापारी तथा शिल्पकार इस प्रकार के दान करते थे।
  • उदाहरण के लिए मथुरा के अभिलेख सुनारों, लोहारों, बुनकरों, टोकरी बुनने वालों, माला बनाने वालों और इत्र बनाने वालों के उल्लेख मिलते हैं।

शिल्प तथा शिल्पकार

  • पुरास्थलों से शिल्पों के नमूने मिले हैं।
  • इनमें मिट्टी के बहुत पतले और सुंदर बर्तन मिले हैं, जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है क्योंकि ये ज़्यादातर उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में मिले हैं।
  • अन्य दूसरे शिल्पों के अवशेष नहीं बचे होंगे।
  • उस समय कपड़ों का उत्पादन बहुत महत्वपूर्ण था।
  • उत्तर में वाराणसी और दक्षिण में मदुरै इसके प्रसिद्ध केंद्र थे ।
  • यहाँ स्त्री-पुरुष दोनों काम करते थे ।

श्रेणी

  • अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने-अपने संघ बनाने लगे थे, जिन्हें श्रेणी कहते थे।
  • शिल्पकारों की श्रेणियों का काम प्रशिक्षण देना, कच्चा माल उपलब्ध कराना तथा तैयार माल का वितरण करना था।
  • जबकि व्यापारियों की श्रेणियाँ व्यापार का संचालन करती थीं।
  • श्रेणियाँ बैंकों रूप में काम करती थीं, जहाँ लोग पैसे जमा रखते थे।
  • इस धन का निवेश लाभ के लिए किया जाता था।
  • उससे मिले लाभ का कुछ हिस्सा जमा करने वाले को लौटा दिया जाता था या फिर मठ आदि धार्मिक संस्थानों को दिया जाता था।

सूक्ष्म निरीक्षण : अरिकामेड

  • लगभग 2200 से 1900 साल पहले अरिकामेडु एक पत्तन था, यहाँ दूर-दूर से आए जहाज़ों से सामान उतारे जाते थे।
  • यहाँ ईंटों से बना एक ढाँचा मिला है जो संभवत: गोदाम रहा हो ।
  • यहाँ भूमध्य सागरीय क्षेत्र के एंफोरा जैसे पात्र मिले हैं।
    • इनमें शराब या तेल जैसे तरल पदार्थ रखे जा सकते थे।
    • इनमें दोनों तरफ़ से पकड़ने के लिए हत्थे लगे हैं।
    • साथ ही यहाँ ‘एरेटाइन’ जैसे मुहर लगे लाल – चमकदार बर्तन भी मिले हैं।
    • इन्हें इटली के एक शहर के नाम पर ‘एरेटाइन’ पात्र के नाम से जाना जाता है।
  • इसे मुहर लगे साँचे पर गीली चिकनी मिट्टी को दबा कर बनाया जाता था।
  • कुछ ऐसे बर्तन भी मिले हैं, जिनका डिज़ाइन तो रोम का था, किन्तु वे यहीं बनाए जाते थे ।
  • यहाँ रोमन लैंप, शीशे के बर्तन तथा रत्न भी मिले हैं।
  • साथ ही छोटे-छोटे कुण्ड मिले हैं, जो संभवतः कपड़े की रंगाई के पात्र रहे होंगे ।
  • यहाँ पर शीशे और अर्ध – बहुमूल्य पत्थरों से मनके बनाने के पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं।

Leave a Comment